निर्वाण--भाग(३) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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निर्वाण--भाग(३)

माखनलाल जी ने अपना खाना फौरन ही खतम किया और उसी कमरें के कोनें में बिछे अपने बिस्तर पर रजाई ओढ़कर चुपचाप लेट गए,सम्पदा ने उनकी झूठी थाली उठाकर आँगन में रखें जूठे बर्तनों के साथ रखी,अँगीठी में थोड़ा पानी गरमाया और बर्तन धोने बैठ गई,रात को बर्तन धोकर ना रखो तो और काम बढ़ जाता है सुबह के लिए,कुछ ही देर में वो बरतन धोकर आई और अँगीठी के सामने बैठकर स्वेटर बुनने लगी,क्योंकि भामा अभी भी पढ़ रही थी,जब तक वो जागती है तो सम्पदा भी उसके साथ जागती रहती है,प्रबल भी सो चुका था और सियाजानकी भी अपने बिस्तर पर लेट चुकी थी.......
सम्पदा स्वेटर बुनते बुनते सोच रही थी कि बचपन से उसने अपने लिए केवल यही सुना कि लड़की है तू पढ़ाई लिखाई करके क्या करेगीं?घर के काम काज सीख वही काम आने वाले हैं,वो भी तो पढ़ना चाहती थी लेकिन आठवीं के बाद उसे उसके घरवालों ने पढ़ने नहीं दिया,लेकिन वो अपनी बेटी भामा के साथ ऐसा कभी नहीं होने देगी,चाहें उसकी सास हो या फिर समाज ,वो सबसे लड़ जाएगी,लेकिन बेटी की पढ़ाई अधूरी नहीं रहने देगी,ना जाने अम्मा को क्या दिक्कत है भामा की पढ़ाई से ?हमेशा उसकी पढ़ाई के विरूद्ध रहतीं हैं साथ में मुझे भी जली-कटी सुनातीं रहतीं हैं,सम्पदा ये सब सोच ही रही थी तभी भामा बोली....
माँ!मुझे सुबह जल्दी जगा देना!
ठीक है जगा दूँगीं,सम्पदा बोली।।
माँ! अब तुम भी सो जाओ,मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है,भामा बोली।।
ठीक है और फिर इतना कहकर सम्पदा भी अपना अधबुना स्वेटर एक तरफ रखकर बिस्तर पर लेट गई.....
सुबह हो चुकी थी और सियाजानकी अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर गाँव लौटने को तैयार खड़ी थी,इधर सम्पदा भी नहा धोकर पूजा कर चुकी थी और सुबह के खाने की तैयारी में लग चुकी थी,उसने अँगीठी पर आलू मटर की सूखी सब्जी तैयार कर ली थी और अब पूरियाँ तलने जा रही थी,सास को भी तो सफ़र के लिए पूरियाँ बाँधनी थी और सब नाश्तें में भी यही खा लेगें,यही सोचकर उसने झटपट पूरियाँ तलकर सास के सामने थाली परोस दी लेकिन ये नहीं कहा कि....
अम्मा! और कुछ दिन रूक जाओ।।
इसी बात से शायद सियाजानकी का मुँह फूला हुआ था...और वो किसी से बात नहीं कर रही थी,तब तक माखनलाल जी भी स्नान करके आ चुके थे,बच्चे नाश्ता कर के तैयार होकर स्कूल को निकल गए थे ,सम्पदा ने माखनलाल जी सामने भी नाश्ते की थाली परोस दी....
दोनों ने खाना खाया और बस स्टैण्ड को निकलने के लिए हुए तभी सम्पदा ने पूरियाँ और अचार बाँधकर सास को दिया और उन के पैर छूने चाहें तो वें पीछे हटते हुए बोलीं....
पहले बेइज्जती करो,फिर पैर छू लो।।
अपनी सास की बात सुनकर सम्पदा कुछ नहीं बोली,वो बात को आगें नहीं बढ़ाना चाहती थी,सियाजानकी भी फिर बिना कुछ बोले बाहर चली गई....
फिर सम्पदा ने सोचा यही तो समाज है,कुछ करो तो भी समाज कहेगा और कुछ ना करो तो भी समाज कहता ही है,मैं कौन सा अपराध कर रही हूँ जो बेटी को पढ़ा रही हूँ,कोई कुछ भी कहेँ मैं अपनी बेटी को पढ़ाकर ही रहूँगी,मेरा ये सपना मैं कभी भी अधूरा नहीं छोड़ूगी....
और सम्पदा के इसी संकल्प के साथ जिन्दगी की रफ्तार बढ़ने लगी,समय बीतता जा रहा था और भामा ने अब दसवीं पास कर लीं थीं,सम्पदा की सास भी लम्बी बिमारी के चलते अब इस दुनिया से अलविदा हो गई थीं इसलिए अब भामा की पढ़ाई के लिए कुड़कुड़ करने वाला भी कोई नहीं बचा था,लेकिन जब कभी सम्पदा का अपने गाँव जाना होता तो उसकी देवरानियाँ जरूर भामा की पढ़ाई के लिए दो चार बातें सुना ही देती थीं,जिसका सम्पदा करारा जवाब दे देती क्योंकि वो तो जेठानी थी,अब भामा की पढ़ाई के रास्ते में रोड़े अटकाने वाले कम ही थे जिनका भामा और सम्पदा अच्छे से जवाब देती....
अब भामा ने दसवीं पास कर ली थी , कक्षा में अव्वल आकर और उसने ग्याहरवीं में एडमिशन ले लिया था,ईश्वर की दया से वो शरीर से हृष्ट-पुष्ट थी लम्बाई में वो अपने कक्षा की सभी लड़कियों से लम्बी थी,गोरा रंग और कमर तक के सुन्दर बाल जिसे उसकी माँ हमेशा रिबन के साथ दो चोटियाँ बना देती,
सम्पदा अपनी बेटी की पढ़ाई देखकर फूली ना समाती,स्कूल के सभी अध्यापक और अध्यापिकाएँ उसकी तारीफ़ करतीं ,वो पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद में अच्छी थी,सम्पदा उसके खाने पीने का बहुत ख्याल रखती,ताजे फल सब्जियांँ और दूध वो उसे नियमित देती,मुहल्ले भर की औरतें इस बात को लेकर सम्पदा से हमेशा कहतीं कि बेटी का इतना ख्याल क्यों रखती हो?वो तो एकदिन ब्याहकर अपने घर चली जाऐगी,वंशबेल तो लड़के से बढ़ती है तब सम्पदा कहती.......
वो भी मेरी ही सन्तान है,जितना कष्ट मुझे लड़के को जन्मते वक्त हुआ था उतना दर्द मुझे बेटी को जन्मते वक्त भी हुआ था,वो मेरी शान है उसे ऐसे आगें बढ़ते हुए देखती हूँ तो मुझे लगता है मैं भी आगें बढ़ रही हूँ,उसकी तरक्की ही मेरी तरक्की है,ये सब सुनकर मुहल्ले की औरतों के मुँह बंद हो जाते,फिर वें भामा के बारें में कुछ नहीं कहती।।
अब भामा सयानी भी हो रही थी और साथ साथ वो खूबसूरत भी बहुत थी,खेलकूद में अव्वल रहती थी इसलिए शरीर से भी मजबूत दिखती थीं और उसकी खूबसूरती देखकर उस पर कई लड़के अपनी नज़र लगाएं रहते थे लेकिन भामा किसी को भी भाव नहीं देती थी,वो अपने काम से ही मतलब रखती थी,उसे सिर्फ़ पढ़ाई करके आगें बढ़कर अपनी माँ और बाबूजी का सपना पूरा करना था,इसलिए उसे इन सब बातों से ना तो कोई सरोकार था और ना कोई दिलचस्पी।।
लेकिन उसकी ही ट्यूशन में पढ़ने वाला एक लड़का जिसका नाम सुधांशु था वो उसे बहुत पसंद करता था,भामा इन सब पर ध्यान नहीं देती थी लेकिन साथ पढ़ने वाली लड़कियांँ हमेशा उससे कहतीं कि पूरे ट्यूशन भर सुधांशु तुम्हें देखता रहता है,लेकिन भामा उनकी बातों का यकीन नहीं किया करती,लेकिन एक बार जब दीवाली की छुट्टियांँ पड़ी तो भामा अपने गाँव चली गई इसलिए ट्यूशन में उसका काफी काम पिछड़ गया,गाँव से वापस आने पर सर ने उससे कहा कि जिसके नोट्स पूरे हो तो उससे लेकर आपना काम पूरा कर लेना,
तब उन सब में केवल सुधांशु के ही नोट्स पूरे थे तो उसने सर से कहा कि
सर! मैं भामा को नोट्स दे दूँगा,मेरा काम पूरा है,॥
सर बोले,ठीक है तो अभी दे दो।।
फिर सुधांश सर से बोला.....
सर! आज मैं लाया नहीं कल दे दूँगा।।
और फिर जब दूसरे दिन ट्यूशन खतम हो गया तो भामा घर जाने लगी तब सुधांशु ने भामा से कहा.....
भामा!मैं तुम्हारे लिए नोट्स लाया था ,इन्हें ले लो।।
भामा ने नोट्स लिए और चुपचाप घर चली गई फिर जब रात को अपनी पढ़ाई करने बैठी तो उसने सोचा कि क्यों ना पहले फिजिक्स के नोट्स पूरे कर लिए जाएं और जब उसने सुधांशु के नोट्स खोले तो उसमें उसे सुधांशु की लिखी एक चिट्ठी मिली,जिसमें लिखा था....

प्रिय भामा...
मैं तुम्हें सच्चे दिल से प्यार करता हूँ और अगर तुम भी मुझे चाहती हो तो अपने मन की बात लिखकर इन नोट्स के जरिए मुझे दे सकती हो।।
तुम्हारा सुधांशु....
चिट्ठी पढ़कर भामा के होश उड़ गए और डर के मारें उसका पेट खौलने लगा,उस चिट्ठी को छुपाकर वो पहले बाँथरूम भागी,जब वहाँ से वापस आई तो माचिस लेकर वो आँगन की ओर गई और उस चिट्ठी को जला दिया,उसने उस रात कोई भी पढ़ाई नहीं की ,बस चुपचाप रजाई ओढ़कर सो गई,फिर रातभर वो कुछ सोचती रही,इस बात से वो इतनी परेशान हो गई थी कि उसे रात भर नींद नहीं आई......
सुबह अनमने मन से स्कूल गई और दिनभर उसने खाना भी नहीं खाया,जब शाम को वो ट्यूशन पहुँची तो बाहर ही सुधांशु खड़ा था,अपना जवाब पाने के लिए,भामा उसके पास गई और बोली....
ये लो तुम्हारे नोट्स।।
तुमने नोट्स लिख लिए,सुधांशु ने पूछा।।
नहीं! भामा ने जवाब दिया।।
क्यों? सुधांशु ने पूछा।।
क्योंकि मैं परेशान हो गई थी,भामा बोली।।
किस बात से? सुधांशु ने पूछा।
तुम्हारी चिट्ठी से,भामा बोली।।
तो तुमने क्या निर्णय लिया?सुधांशु ने पूछा।।
निर्णय तो ले लिया है मैनें,भामा बोली।।
तुम्हें मेरा प्यार स्वीकार है ना! सुधांशु ने पूछा।।
प्यार तो मैं सिर्फ़ अपने कर्तव्यों से करती हूँ जो कि मेरा कर्तव्य है अपने माँ बाप का सपना पूरा करना,तुम्हें पता है मेरी माँ मेरी पढ़ाई के लिए सारी दुनिया से लड़ जाती है मैं उसका प्यार ठुकराकर तुम्हारा प्यार स्वीकार नहीं कर सकती,हाँ! अगर काबिल बन गई तो उस दिन तुम्हारा प्यार जरूर स्वीकार कर लूँगी,लेकिन अपनीं माँ बाप की आँखों में धूल झोंककर मैं जी नहीं पाऊँगी,मेरे माँ बाप मुझे पढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं और मैं उनकी मेहनत को यूँ ही जाया नहीं कर सकती,माँफ करना मुझे और इतना कहकर भामा जाने लगी तो सुधांशु बोला.....
मैं भी पढ़ लिखकर इस काबिल बनूँगा कि तुम्हारे माँ बाप से तुम्हारा हाथ माँगने आ सकूँ।।
उस दिन मुझे बहुत खुशी होगी और खुशी खुशी मैं तुम्हारा हाथ थाम लूँगी और इतना कहकर भामा वहाँ से चली गई.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....