निर्वाण--भाग(६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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निर्वाण--भाग(६)

बुढ़िया बोली....
मैं और मेरी पोती इस झोपड़ी में खुशी खुशी रहा करते थे,हमारे पास चार पाँच बकरियाँ और एक गाय थी जिनसे हम दोनों का गुजारा हो जाता था,वो गाय के गोबर से उपले बनाती थी और सूख जाने पर मैं उन्हें बेच आती थी,फिर यहाँ इट्टो का नया भट्ठा लग गया,हमारे मुहल्ले पास-पड़ोस की बहुत सी औरतें वहाँ काम करने लगी,मुझे कई औरतों ने सलाह दी भट्ठे में काम करने की,वें कहने लगीं कि कल को पोती का ब्याह करोगी तो मुट्ठी में कुछ रूपया तो होना चाहिए,देखों हम सब भट्ठे में काम करतीं हैं तो अपने खर्चे भर का रूपया तो निकाल ही लेतीं हैं कम से कम अपने मर्दो के सामने हमें हाथ तो नहीं फैलाने पड़ते,
उन सभी की ये सलाह मुझे भी बहुत अच्छी लगी,तो मैं भी ईंटों के भट्ठे में मजदूरी करने लगी,सिर पर ईटें ढ़ोंने से मेरी तबियत खराब रहने लगी,इसलिए मेरी तबियत को देखते हुए मेरी पोती सोनी भट्ठे पर काम के लिए जाने लगी,मेरी जवान पोती पर सबकी गन्दी नज़रें उठने लगी,उसने मुझसे बताया कि भट्ठे पर काम करने वाले पुरूष उसे देखकर फालतू की बातें करते हैं,जब मैनें ये सुना तो मुझे अच्छा नहीं लगा और मैनें उससे भट्ठे पर जाने को मना कर दिया,मेरी बीमारी ज्यादा बढ़ गई थी इसलिए पोती ने भट्ठे के मालिक से कुछ रूपए उधार लिए थे,जब भट्ठे पर हम दोनों ही काम पर ना गए तो उधार ना चुका तो भट्ठे का मालिक हमारे घर आ धमका और उधार के रूपए माँगने लगा,हम लोगों के पास रूपया था ही नहीं जो उसे दे देते,इसलिए सोनी को फिर भट्ठे पर मजदूरी का काम करना पड़ा,
कुछ दिन ऐसे ही बीते थे कि शहर से विधायक का लड़का जो की छात्रसंघ का नेता भी था,वो यही हमारे गाँव के पास बने उसके फाँर्महाउस में अपने दोस्तों के साथ घूमने आया और गाँव में उसे मेरी सोनी भा गई,एक दिन उसने सोनी से बात करनी चाही तो सोनी उसे अनदेखा करके चली आई फिर जब उसने देखा कि सोनी ऐसे मानने वाली नहीं है तो उसने उसे रूपयों का लालच दिया लेकिन उस दिन सोनी ने उसका गाल लाल कर दिया और बोली....
खबरदार!जो आज के बाद मेरा रास्ता रोका।।
अब तो विधायक के लड़के को अपनी बेइज्जती देख बहुत गुस्सा आया और उसने उस दिन सोनी से बदला लेने की ठान ली,फिर एक दिन सोनी ईटों के भट्ठे पर काम करने गई और वापस ना लौटी ,मैनें उसे बहुत खोजा और लोगों से भी ढ़ुढ़वाया लेकिन वो ना मिली फिर दूसरे दिन सुबह नदी के किनारे उसकी लाश मिली,मुझे पूरा यकीन था कि ये काम विधायक के लड़के और उसके दोस्तों का है,मैं थाने रपट लिखाने भी गई लेकिन थानेदार तो पहले से ही घूस लेकर बैठा था और उसने मेरी रपट ना लिखी जब मैं दोबारा गई तो उसने मेरी और मेरी मरी हुई पोती की भी बेइज्जती की,जो मुझसे सुना नहीं गया और मैं वापस आ गई फिर मैं उस दिन के बाद कोई भी रपट लिखाने ना गई,
मेरी जवान बच्ची मेरी आँखों के सामने चली गई और मैं कुछ ना कर पाई,कीड़े पड़े उन कुकर्मियों को जिन्होंने मेरी बच्ची के साथ दुराचार करके उसे मार डाला,भगवान उन्हें कभी माँफ नहीं करेगा और कहते कहते बुढ़िया फूट फूटकर रो पड़ी.....
फिर भामा ने बुढ़िया को सम्भालकर पानी पिलाया और बोली....
चुप हो जाओ...अम्मा! चुप हो जाओं,मैं वादा करती हूँ कि तुम्हारी बच्ची के कातिलों को मैं सजा दिलवाकर रहूँगी,
और फिर भामा ने बुढ़िया को खाना बनाकर खिलाया ,खुद भी साथ बैठकर खाया और अपने कमरें वापस आ गई,जब वो आई तो आज भी कल की तरह अँधेरा हो गया था,उसने चुपचाप अपने कमरें का ताला खोला ही था कि तभी पुरूषोत्तम यादव उसके पास आकर खड़ा होकर बोला....
कहाँ से आ रही हो मैडम?
जी!ऐसे ही गाँव घूमने गई थी,भामा बोली।।
या फिर किसी से मिलने,पुरूषोत्तम ने पूछा।।
जी!हाँ!किसी से मिलने ही गई थी,भामा बोली।।
कोई पुराना दोस्त-ओस्त है क्या?पुरूषोत्तम ने पूछा।।
जी!नहीं!जो भी हो,लेकिन आपको अपनी निजी बातें क्यों बताऊँ?भामा बोली।।
जैसी तुम्हारी मर्जी,वैसे खाना ना बनाना हो तो मेरे साथ आज रात का खाना खा सकती हो,पुरूषोत्तम बोला।।
जी!मैं खाकर आई हूँ,भामा बोली।।
तो फिर पक्का कोई दोस्त ही है जिसने तुम्हें भूखे नहीं आने दिया,पुरूषोत्तम बोला।।
जी!ऐसा कुछ नहीं है,भामा बोली।।
मत बताओं लेकिन एक ना एक दिन पता चल ही जाएगा,पुरूषोत्तम बोला।।
तो पता चल जाने दीजिए,मैं कोई चोरी थोड़े ही कर रही हूँ,भामा बोली।।
वो तो वक्त ही बताएगा और इतना कहकर पुरूषोत्तम वहाँ से चला गया और भामा कमरें के भीतर आकर अपनी शाँल निकालकर बिस्तर पर लेट गई....कुछ ही देर में उसे नींद भी आ गई.....
सुबह वो तैयार होकर थाने पहुँच गई और उसने देखा कि आज भी थानेदार पुरूषोत्तम की त्यौरियाँ चढ़ी हुई हैं शायद आज भी उससे गुस्सा है लेकिन इससे भामा को कोई फर्क नहीं पड़ा और वो चुपचाप अपना काम करती रही,उसने मन में सोचा कि ये तो थानेदार का रोज़ रोज़ का नाटक है,कहाँ तक उसकी बातें सुनती रहूँ और फिर वो रोज़ाना की तरह अपना काम निपटाकर फिर से उस बुढ़िया की झोपडी़ में चली गई,थानेदार को शाम के वक्त भामा का बाहर जाना अखर जाता इसलिए उसने हवलदार भगवती प्रसाद से कहा कि पता करो कि ये रोज शाम अपने किस यार से मिलने जाती है,भगवती ने अपने मुखबिरों से पता लगवाया तो पता चला कि भामा तो उसी बुढ़िया के यहाँ जाती है जिसकी पोती के साथ पिछले साल कुकृत्य हुआ था जिसमें विधायक का बेटा शामिल था और भामा उसके खिलाफ़ सुबूत ढूढ़ रही है और अगर उसने सुबूत हासिल कर लिए तो फिर थानेदार पुरूषोत्तम यादव के साथ वहाँ मौजूद हवलदार भी फँसेगें क्योंकि उन्होंने अपने कर्तव्यों को अनदेखा करके घूस खाकर विधायक के बेटे को बचाया था,
इस बात से थानेदार डर गया और उसने एक दिन भामा को धमकी देते हुए कहा.....
तू जो कर रही है वो बिल्कुल ठीक नहीं है,
मैं क्या कर रही हूँ सर?भामा ने पूछा।।
जो तू उस बुढ़िया धर्मी की पोती सोनी के बलात्कारियों को सजा दिलवाना चाहती है ना! वो सब, थानेदार पुरूषोत्तम यादव बोला।।
तो इसमें गलत क्या है?ये तो मेरा फ़र्ज़ है और मैं वही निभा रही हूंँ,भामा बोली।।
लगता तुझ पर तेरी वर्दी का कुछ ज्यादा ही नशा चढ़ा हुआ है,थानेदार बोला।।
वर्दी का नहीं ईमानदारी का नशा चढ़ा है सर?भामा बोली।।
ज्यादा धोखे में मत रह ,तेरा ये नशा उतारते मुझे ज्यादा देर ना लगेगी,थानेदार बोला।।
जानती हूँ सर कि आप कुछ भी कर सकते हैं,भामा बोली।।
तब भी तुझे इतना गुरूर है,थानेदार बोला।।
सर जी! ऐसा है ना कि मैनें ये वर्दी लोगों को न्याय दिलवाने के लिए पहनी है ना कि घूस खाने के लिए,इसलिए आप मेरे पचड़े में ना पड़े तो बेहतर होगा,भामा बोली।।
बहुत जुबान चल रही है तेरी,ये जुबान बंद कराने में मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा,थानेदार बोला।।
अब जो भी अन्जाम हो लेकिन मैं इस केस की तह तक जाऊँगी और जरूरत पड़ी तो ऊपर जाकर भी मदद की गुहार लगाऊँगी लेकिन उस बुढ़िया धर्मी को न्याय तो दिलवाकर ही रहूँगीं,भामा बोली।।
तुझे पता है ना जो झुकते नहीं वो टूट जाते हैं,थानेदार बोला।।
अगर अपना फर्ज निभाते हुए जान चली जाएं तो इससे अच्छा क्या होगा?भामा बोली।।
तुझे समझना बहुत कठिन है और इतना कहकर थानेदार बाहर चला गया और भामा उसे घूरते हुए देखती रही.....
पुरूषोत्तम यादव के मना करने पर भी भामा ने उस धर्मी से मिलना ना छोड़ा और वो कोशिश करने लगी कि कुछ ऐसा पक्का सुबूत उस विधायक के बेटे के खिलाफ़ मिल जाएं जिससे वो उसे सज़ा दिलवा सकें और ये बात पुरूषोत्तम यादव से हज़म ना हुई और उसने भामा को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.....
फिर एक शाम हवलदार टीकाराम थाने में सबसे बोला.....
आज मेरा जन्मदिन है और मैं यहाँ अकेला हूँ घर में होता तो बीवी तरह तरह पकवान पकाकर खिलाती....
इतने उदास क्यों होते होते हो टीकाराम?इतना मायूस होने की जरूरत नहीं है क्या थाने के लोंग तुम्हारे अपने नहीं है,हम सब मिलकर तुम्हारा जन्मदिन मनाऐगे़,थानेदार पुरूषोत्तम सिंह बोला....
सच!में साहब!टीकाराम ने पूछा।।
हाँ!भाई!सच में!अभी भगवती प्रसाद से पार्टी का सामान मँगाकर पार्टी करते हैं और फिर क्या था?शराब की बोतलें और तन्दूरी चिकन आया,जो शाकाहारी हवलदार थे उनके लिए कोल्ड ड्रिंक्स और समोसे आएं अभी पार्टी शुरु नहीं हुई थी और ये सोचकर कि उसे ऐसी पार्टी में शामिल ना होना पड़े इसलिए भामा अपने कमरें आ गई,लेकिन जैसे ही भामा अपने कमरें में पहुँची तो टीकाराम एक कोल्डड्रिंक की बोतल और दो समोसे लेकर भामा के कमरें आ पहुँचा और बोला....
मैडम!ये आपके लिए,
जी!आप रख दीजिये मैं बाद मेँ खा लूँगी,भामा बोली।।
जी!मेरे सामने ही थोड़ा सा खा लीजिए तभी मुझे तसल्ली होगी नहीं मुझे लगेगा कि मेरे जन्मदिन की पार्टी है और आपने कुछ खाया पिया ही नहीं,टीकाराम बोला.....
आप जिद़ मत कीजिए,कहा ना बाद में खा लूँगीं,भामा बोली....
अच्छा!समोसे मत खाइए लेकिन ये कोल्डड्रिंक तो पी ही सकतीं हैं ना!आपकी नाराजगी साहब से,मैनें तो कुछ नहीं कहा ना आपसे,टीकाराम बोला।
ये सुनकर भामा कुछ नहीं बोली और कोल्डड्रिंक पीने लगी और दो चार घूँट पीने के बाद बोली....
अब हो गई ना आपको तसल्ली,
जी!हाँ!अब तसल्ली हो गई और इतना कहते ही टीकाराम भामा के कमरें से चला आया.....
भामा का मन तो पहले से ही खराब था इसलिए उसने सोचा कि वर्दी बदलकर सादे कपड़े पहनकर कुछ आराम कर लेती हूँ और फिर जैसे ही वो कपड़े बदलकर बिस्तर पर पहुँची तो उसे गहरी नींद आ गई,करीब आधी रात के वक्त उसकी आँख खुली तो उसे कुछ अजीब सा महसूस हुआ क्योंकि वो कमरें की लाइट बंद करके शाम को नहीं लेटी थी तो आखिर कमरें की लाइट किसने बंद की,फिर उसने जैसे ही करवट ली तो उसे लगा कि उसके बिस्तर पर कोई है वो फौरन ही पीछे खिसकी और अँधेरे में पूछा....
कौन...कौन है यहाँ?
मैं हूँ मेरी जान और उस आवाज़ को सुनकर उसके होश उड़ गए क्योंकि वो कोई और नहीं पुरूषोत्तम यादव था,भामा ने डरते हुए पूछा.....
सर!आप यहाँ कैसें?
बस,तेरी अकल ठिकाने लगाने आया था,तू ज्यादा उड़ रही थी इसलिए मैनें तेरे पंख कतर दिए,अब मचा हल्ला किससे क्या कहेगीं?उस कोल्डड्रिंक में मैनें नींद की गोलियाँ मिलाई थीं और टीकाराम के हाथों भिजवाई थी,तू जरा सा ध्यान तो लेती कि कोल्डड्रिंक का ढ़क्कन खुला क्यों है और सुन इस बारें में केवल तुझे और मुझे ही पता है तू चुप रहेगी तो मैं भी किसी से कुछ नहीं कहूँगा और रही दरवाजे बंद होने की बात तो तू सोचेगी कि दरवाज़े बंद होने के बावजूद मैं भीतर कैसें आया तो सुन ये सरकारी मकान के दरवाज़े हैं जो कि कमजोर होते हैं, वैसे तेरी कमर पर जो तिल है वो बड़े कमाल का है,मज़ा ही आ गया बस...
इतना सुनकर भामा ने अपने कपड़े देखें जो कि अस्त-ब्यस्त थे,इसका मतलब है कि थानेदार ने अपने मन की कर ली थी अब भामा के पास सिवाय रोने के और कोई चारा ना था,वो फूट फूटकर रोने लगी और थानेदार से बोली....
मैं तुम्हें छोड़ूगीं नहीं.....
जा....जा....तेरे जैसे बहुत से लोंग मुझे रोज़ धमकियांँ देकर जाते हैं,मेरी पहुँच बहुत ऊपर तक है,तुझे मना किया था लेकिन तू मानी ही नहीं,ये मत भूल तेरा परिवार भी है अगर उन्हें कुछ हो गया तो फिर मुझे दोष मत देना.....
ये सुनकर भामा सहम गई आखिर में उसने चुप्पी साध ली,
लेकिन मन ही मन वो इस बात का बदला लेने का सोचने लगी क्योंकि उसके साथ जो उस रात हुआ था वो उसे भूल नहीं पा रही थी,उसे अपने बदन से घिन आती थी कि पुरूषोत्तम ने उसे स्पर्श किया और उसकी अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,वो जब भी थानेदार को देखती तो उसे उसका घिनौना चेहरा नोंच लेने का दिल करता,लेकिन वो अपने घरवालों के बारें में सोचकर चुप रह जाती क्योंकि पुरूषोत्तम ऐसा इन्सान था कि वो किसी भी हद़ तक जा सकता था,

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....