The Author Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ फॉलो Current Read वो कौन थे? - 2 - पान By Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ऑफ्टर लव - 27 विवेक अपने ऑफिस में बैठे हुए होता है, तभी टीवी में चल रहे न्... जिंदगी के रंग हजार - 14 आंकड़े और महंगाईअरहर या तूर की दाल 180 रु किलोउडद की दाल 160... गृहलक्ष्मी 1. गृहलक्ष्मी एक बार मुझे दोस्त के बेटे के विवाह के रिसे... बुजुर्गो का आशिष - 11 पटारा मैं अभी तो पूरी एक नोट बुक निकली जिसमे क्रमांनुसार कहा... नफ़रत-ए-इश्क - 5 विराट अपने आंखों को तपस्या की आंखों से हटाकर उसके कांप ते ह... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 3 शेयर करे वो कौन थे? - 2 - पान (7) 2.6k 5.8k मैं अविनाश, मेरी उम्र 40 साल है मैं इंदौर शहर मे CRC हू, CRC यानी cluster co-ordinator जो एकसाथ 10-12 स्कूल की देखरेख रखता है और शिक्षण के कायदों, स्कीम, एक्साम इन सभी मुद्दों का पालन स्कूल मे करवाता है। उन दिनों में मैं मध्यप्रदेश के अनंतपुर गांव गया था, वहां मुजे सरकारी स्कूल में जाकर अवेयरनेस प्रोग्राम करना था। मैं प्रोग्राम के एक दिन पहले ही पहुच गया था, वहां के लोग बहुत अच्छे थे, मेरा बहुत सन्मान करते थे, बहुत सारे दसवीं के स्टूडेंट्स मेरे पास आए और कैरियर के बारेमे पूछने लगे, धीरे धीरे पूरे गाँव मे पता चल गया कि कोई टीचर आए हैं और सबको स्टडी के बारेमे मदद कर रहे हैं, अनंतगढ़ गांव बहुत ही छोटा था इसलिए कोई भी बात जल्द ही फैल जाती थी, मैंने बहुत सारे बच्चों से बात की और उन सबको गाइड किया, दूसरे दिन सुबह 9.00 बजे प्रोग्राम था, जोकि काफी अच्छा रहा,मैंने और वहां के टीचर ने पूरा प्रोग्राम अच्छे से किया, प्रोग्राम बहुत ही अच्छा रहा। वहां के लोग तो अच्छे थे लेकिन एक बात मुजे खाए जा रही थी कि यहा पे लोग भूत प्रेत की बाते बहुत किया करते थे, उन लोगों का कहना था कि गांव में भूत प्रेत का साया हुआ करता था, मैं इन सब बातों मे विश्वास नहीं करता था, कोई एसी बाते करता तो मुजे गुस्सा आ जाता था, कोई विद्यार्थि अगर एसा बोलता तो मैं तो उसे डांट ही देता था। कैसे लोग है यहा के? एसी अंधश्रद्धा मे विश्वास करते हैं, भारत मे एसे गांव मे अवेयरनेस प्रोग्राम करने चाहिए, वो भी अंधश्रद्धा पर!! एसी ही बाते सोचता हुआ मे उस दिन शाम को रिपोर्ट बना रहा था मैं स्कूल की होस्टेल के एक कमरे में रुका हुआ था जोकि ग्राउण्ड फ्लोर पर था, उस दिन शाम को कोई नहीं था वहा, मैं रिपोर्ट बना रहा था तभी उधर एक आदमी आया, उसकी उम्र 35 साल की रही होगी, उसने शर्ट पेंट पहना हुआ था, मेरे पास आ कर मुझसे पढ़ाई की बाते करने लगा, फिर शौक की बात निकली तो उसने कहा कि वो : मुजे पान खाने का शौक है, आप खाते हो पान? मैं : हाँ मुजे, कलकत्ते, बनारसी और इंदौरी पान बहुत पसंद है लेकिन सिर्फ बिना तंबाकू का, व्यसन नहीं है मुजे। वो : हाँ हाँ, मुजे भी व्यसन नहीं है, वैसे भी तंबाकू का व्यसन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, आपको खाना है? मैं लाया हू पान आपके लिए! मैं (खुश होकर) : क्या बात है,!! मेरे लिए? लाओ लाओ, खिलाओ चलो मुजे!! उसने अपनी जेब से पान निकाला, बड़ा ही अजीब पान था, मैंने उसे पूछा : मैं :एसा कैसा पान है? अजीब सा दिख रहा है ये?! वो : खाओ तो सही ये पान यहा की स्पेशियलिटी है, आप खाते रह जाओगे। मैं : अच्छा, ऐसा क्या? चलो खा के देखता हूं मैंने पान खाया, शुरुआत में मजा आया, मैं धीरे धीरे चबा रहा था, मुजे अच्छा लग रहा था, वो भी मेरी तरफ प्यार से हंसकर देख रहा था, लकिन अचानक मुजे अह्सास हुआ कि मेरे मुह मे जो चीज है उसकी साईज बढ़ रही है, मेरे गाल थक रहे थे धीरे धीरे, लकिन वो पान अपने आप बड़ा हो रहा था, मुजे चबाने मे अब प्रॉब्लम हो रहा था, मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था लेकिन वो इंसान मेरे सामने अब बड़ी रहस्य भरी नजरो से देख रहा था, वो पान जोकि मेरे मुह मे था वो अब कड़क हो रहा था, वो पान अब लकड़ी जैसा कड़क और मजबूत हो रहा था, मैं थूकने का प्रयास कर रहा था l लेकिन वो चीज बाहर निकल नहीं रही थी, वो चीज लगातार अपनी साइज बड़ा कर रही थी और अब लोहे की तरह मजबूत हो गई थी मुजे चक्कर आ रहे थे अब मैं कैसे भी करके उठकर थूकने गया, मेरी जान गले मे अटकी हुई थी, मुजे अब मेरी मौत दिख रही थी किसीकी मदद भी ले नहीं पा रहा था, और वो शख्स उधर आराम से बैठकर हस रहा था, अखिर मेरे मुह से वो चीज कैसे भी करके निकल गई, मेरे मुह से बहोत सारा खून निकलने लगा, और मे बेहोश हो गया। मेरी आँख खुली तो मैं गांव के वैद्य के घर मे था, रात के आठ बजे का वक़्त होगा, मेरे बगल मे स्कूल के प्रिन्सिपल चौधरी साहब बैठे थे, मेरे मुह मे छाले पड़ गए थे, मैं उठा और वैद्य ने मुजे ठीक से बैठाया, चौधरी साहब ने मुजे पानी पिलाया फिर मुजे पूछा कि क्या हुआ? मैंने उन्हें पूरी बात कही, ये सुनकर उन्होंने आह भरी, फिर कुछ देर बाद उन्होंने बोलना शुरू किया कि चौधरी साहब : हमारे गांव में एक 35 साल का आदमी था, जयदेव नाम था उसका, उसे छोटी सी पान का कि दुकान थी, वो बहोत ही अच्छा पान बनाता था, गरीब था बिचारा। उसने हमारे गांव के एक गुंडे से पैसे उधार लिए थे, वो वापिस करने के लिए मोहलत माग रहा था लेकिन उन लोगों ने मोहलत देने के लिए मना कर दिया, एक दिन वो और बाकी 3 गुंडे जयदेव की दुकान पर गए और गुस्से में आकर 25-30 जितने पान जयदेव के मुह मे घुसा दिए, पान का मसाला उसके गले में अटक गया और वो वहीं मर गया!! इतना बोलते हुए चौधरी साहब रो पडे, आगे उन्होंने कहा चौधरी साहब : उसका पान खाने का आग्रह करता हुआ प्रेत आज भी कई लोगों को दिखता है!! मैं हतप्रभ हो गया था, मैंने आगे पूछा मैं : सर फिर उन गुंडों का क्या हुआ? ये सुनकर चौधरी साहब की आंखे जुनून से लाल हो गई, उन्होंने कहा चौधरी साहब : उन चारो गुंडों को मैंने मारा!!! जयदेव मेरा बचपन का दोस्त था, उसकी खून की खबर सुनकर मेरा खून खौल उठा था, मैंने उन चारो गुंडों को एक एक कर मारा, किसको मुह मे रुपयों के सिक्के खिलाए, तो किसीको गोली खिलाई, एसे मैंने मेरे दोस्त का बदला लिया। मेरी आंखे बाहर आ गई, मैं सुन रहा था, उन्होंने आगे कहा चौधरी साहब : ये पूरा गांव मेरा है, मेरे दादाजी यहा के ज़मींदार थे, मेरी यहा बहुत इज़्ज़त है, सबको पता है कि उन चारो को मैंने मारा है, यहां तक कि तुम्हारे बगल में बैठा वैद्य भी इस बात को जानता है। तुम्हें भी मे एक बात कहना चाहता हूं... आखिरी बार कह रहा हूं कि ये बात किसको बताना मत, वर्ना अगली बार पान बाहर नहीं तुम्हारी रूह बाहर आएगी। .... मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई, मैं फिर से बेहोश होते होते बचा था.. ‹ पिछला प्रकरणवो कौन थे? 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