भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 4 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 4

और यहाँ पर एक शादी का जिक्र जरूरी है।जैसा मैं पहले कह चुका हूँ। मेरे तीन ताऊजी थे।कन्हैया लाल सबसे बड़े।यह रेलवे में ड्राइवर थे।दूसरे देवी सहाय जो खेती करते और अविवाहित थे।तीसरे गणेश प्रशाद और यह मास्टर थे।मेरे पिता रेलवे में आर पी एफ में इंस्पेटर थे।गणेश प्रशाद के बड़े बेटे और मेरे चचेरे जगदीश भाई की शादी थी।उन दिनों पांच या छः दिन की शादी होती थी।इनकी शादी मेहसरा गांव से हुई थी।जैसा मैं पहले बता चुका हूँ।उन दिनों न इतनी ट्रेन थी और न ही हर जगह बस जाती थी।बारात भी सौ से ऊपर हो जाती क्योकि बेंड भी साथ लेकर जाना पड़ता था।
जगदीश भाई की बरात 14 डाउन से गई थी।यह ट्रेन तब दिल्ली और अहमदाबाद के बीच चलती थी।यह पेसञ्जर ट्रेन थी।बांदीकुई से सुबह चार बजे चलती थी।बारात के साथ नाटक मण्डली भी लेकर गए थे।ट्रेन से बरात को खान भांकरी स्टेशन आना था।यहाँ से बैलगाड़ी और रथ से बारात को गांव जाना था।ट्रेन सही समय पर आ गयी थी लेकिन बारात को ले जाने के लिए बैलगाड़िया और रथ नही आये थे।मेरे बड़े ताऊजी कन्हैया लाल बहुत गुस्से बाज थे।बैलगाड़िया और रथ न दखकर उनका पारा चढ़ गया।कुछ मिनट के इन्तजार के बाद ताऊजी ने पैदल बारात को चलने का हुक्म दिया।कुछ फर्लांग ही चले थे कि बैलगाड़ियों की पूरी लाइन चली आयी। वधु पक्ष के लोगो ने माफी मांगते हुए बैलगाड़ियों में बैठने का अनुरोध किया।पर ताऊजी ने मना कर दिया।एक लाइन में बैलगाड़िया और एक लाइन में बराती चलते रहे।वधु पक्ष वाले ताऊजी से बैलगाड़ियों में बैठने का अनुरोध करते रहे।काफी देर बाद ताऊजी इस बात पर राजी हुए की केवल बच्चे ही बैठेंगे और बाकी बराती पैदल ही चलेंगे।यह वधु पक्ष की बड़ी बेज्जती थी।वह एक शादी थी जो तीन दिन की में मैं गया था।
उसी समय अभी याद है कोई अनहोनी घटना की भी आशंका शायद उल्कापिंड टकराने की बी बात थी।तब काफी धार्मिक काम हुए थे।मेरे ताऊजी के बंगले पर हर पूर्णमासी के दिन मंडावर से पण्डितजी सत्यनारायण की कथा के लिए आते थे।ताऊजी अंग्रेजो की तरह शान से रहते थे।बंगले के आउट हाउस में उन्होंने काम करने वाले रख रखे थे।बंगले में काफी बड़ा बगीचा भी लगवा रखा था।जिसकी देख रेख के लिए माली रख रखा था।हजामत बनाने के लिए नाइ घर पर ही आता।वह हमेशा दो गाय रखते थे।एक गाय हमेशा दूध देती रहती थी।ताऊजी सिर्फ सर्दियो में चाय पीते थे लेकिन मक्खन डालकर।गर्मियों में गाड़ी लेकर आते तो ताईजी पोदीना पीस कर रखती थी।छाछ में पोदीने के 2 या 3 गिलास आते ही पीते।पूरे बांदीकुई में ताऊजी के एल शर्मा के नाम से मशहूर थे।उन्हें साहब कहलवाना पसन्द था।अगर कोई बाबूजी कह दे तो उन्हें गुस्सा आ जाता।उन्हें रामायण कंठस्थ याद थी और अंग्रेजो के बहुत किस्से सुनाया करते थे।
मेरे पिताजी मिल्ट्री में थे।उन दिनों रेलवे वर्तमान नाम से नही थी।ताऊजी बी बी एंड सी आई रेलवे में थे।एक बार ताऊजी मेरे पिताजी यानी अपने छोटे भाई से मिलने के लिए गए।उनके साथ मेरे छोटे ताऊजी और मामा भी साथ थे।ताऊजी के पास फ्री पास था लेकिन