भाग 27
मैं अपनी योजना में कामयाब हो गया था। अब थोड़ा सा सुकून महसूस कर रहा था। अगर खुराना का भेजा ये व्यक्ति अपनी चाल में कामयाब हो जाता तो अनर्थ ही हो जाता। नियति ये केस जीत कर भी हार जाती। नीना देवी ने जो आरोप नियति और मुझ पर लगाए थे उस पर जज साहब ने कहा था कि बिना किसी सबूत के नियति पर आरोप ना लगाए। खुराना ने नीना देवी के साथ मिल कर इसी सबूत को जुटाने का वादा किया होगा। और उसकी जिम्मेदारी इस व्यक्ति को सौंपी गई होगी। और इस व्यक्ति ने अपने काम को बखूबी अंजाम भी दे दिया था। पर मेरी सतर्कता से मैने उसे देख लिया; और उसकी चाल को नाकामयाब कर दिया।
इसके बाद हम सब ने अपना जो ऑर्डर किया था उसे खत्म किया। फिर मैंने सब को बाहर पार्किंग के बाहर आने को बोल कर गाड़ी निकालने चल पड़ा।
मैने गाड़ी पार्किंग से बाहर निकाली और नियति, मिनी और मासी के साथ वापस उनके घर की ओर चल पड़ा।
मेरी हंसी, मेरी खुशी, मेरा सारा उत्साह गायब हो चुका था। इस बात को नीता मासी ने भी नोटिस किया की मैं जाते वक्त और वापस आते वक्त में काफी अलग दिख रहा हूं। जहां जाते वक्त मैं खुश था, हर बात पर सब के साथ इंजॉय कर रहा था। वही लौटते वक्त बहुत गंभीर हूं और बस पूछी गई बात का ही जवाब दे रहा हूं। उन्होंने वजह जानने की कोशिश भी की पर मैंने उन्हें कुछ नही बताया। उन सभी को घर पहुंचाया। घर पहुंच कर नीता मासी ने बिना कॉफी के नही आने दिया जिद्द करके रोक लिया। जब तक मैं कॉफी पिता उतनी देर मिनी मेरी ही गोद में बैठी रही। वो पैकेट खोल खोल कर अपनी हर चीज मुझे दिखाती और मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए की वो कैसी है मेरी ओर देखती। जब मै मुस्कुरा कर सर हिलाता की अच्छा है तब वो जोर जोर से हंसने लगती। जब मै किसी चीज को देख कर न में सर हिलाता और अपने होठ बुरे अंदाज में बनाता तो वो भी उस चीज को दूर फेक कर "गंदा गंदा" बोलती। मिनी की ये मासूम हरकत किसी पत्थर को भी पिघलाने की ताकत रखती थी। फिर मैं तो था ही बच्चो का प्रेमी।
मुझे तो छोटे बच्चे शुरू से ही बहुत अच्छे लगते थे।
मैने कॉफी खत्म की ओर जाने की इजाजत मांगी, "मासी अब मैं चलता हूं , काफी देर हो गई। घर पर मां इंतजार करती होगी। आज मैने पूरा दिन उनके साथ गुजारने का वादा किया था।"
नीता मासी बोली, "बेटा अब फिर कब आओगे? क्या मैं कोई जरूरी काम पड़ने पर तुम्हे बुला सकती हूं?"
मैने बड़ी ही कोशिश से अपनी आवाज को थोड़ा सा रूखा किया और बोला, "मासी ऐसा है की मैं बहुत बिजी रहता हूं। मुझे अपने ही काम के लिए वक्त नहीं मिलता। मैं आपकी क्या मदद कर पाऊंगा...? सॉरी मगर मैं अब नही आ पाऊंगा।" इतना कह कर मैं चलने को हुआ। मेरी निगाह सामने बैठी नियति के चेहरे पर पड़ी। कितना मुश्किल था मेरे लिए इतना रूखा बोलना। ये मेरे सिवा कोई नही समझ सकता था। आज के बाद मैं कब मिनी और नियति से मिलूंगा, इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। फिर मिल भी पाऊंगा या ये मेरी आखिरी मुलाकात होगी इसका भी मुझे पता नहीं। मेरे इस जवाब से निःसंदेह नियति को भी कष्ट पहुंच होगा। वो नजरे नीचे किए बैठी थी। मन की पीड़ा चेहरे पर भी झलक रही थी। मैने मिनी को गोद में लेकर दुलारा और नीचे उतर कर तेज कदमों से बाहर चल पड़ा। मेरा दिल अब और नियति का सामना करने की स्थिति में नहीं था। नीता मासी भी इस परिवर्तन को समझने की कोशिश में बाहर तक आई। पर मैं जल्दी से उन्हे बिना कोई प्रश्न करने का मौका दिए गाड़ी स्टार्ट कर चल दिया।
मेरे लिए आज का सूरज अपने साथ खुशियां लाया था। जैसे जैसे वो अपनी रौशनी फैलाता गया मेरे दिल में भी खुशियों की रौशनी फैलती गई। अपने अस्त होने के साथ ही मेरे खुशियां वो अस्त कर के चला गया। अब अंधेरा सिर्फ बाहर ही नहीं फैला था, बल्कि वो मेरे जीवन में भी छा गया था। मैं अब नियति के जीवन में और परेशानी नहीं देखना चाहता था। आज उस व्यक्ति को मैने देख लिया और उसकी चाल को नाकामयाब कर दिया पर हमेशा ही ऐसा हो जरूरी नहीं। हो सकता है मैं जान भी न पाऊं और वो मेरी और नियति की फोटो चोरी छिपे ले ले फिर उसका दुरुपयोग नीना देवी कोर्ट में करे। ऐसा अगर हुआ तो फिर से मिनी की कस्टडी नीना देवी को मिल जायेगी। नियति को दुबारा फिर शायद ही मिनी मिल सके। क्योंकि बचपन में तो कोर्ट के जरिए अपने पास रखेंगी और फिर उसके मन में इतनी नफरत नियति के प्रति भर देंगी की बड़े होने पर वो खुद ही नियति के पास नही जाना चाहेगी।
सब कुछ सोच विचार कर मेरा फैसला मुझे बिल्कुल सही लग रहा था। मैने निर्णय कर लिया था की अब नियति से किसी भी तरह का कोई वास्ता नहीं रखना है।
निर्णय दिल ने नही लिया था। ये फैसला मेरे दिमाग का था। जो मेरे दिल को मंजूर नहीं था। वो अपनी नामंजूरी आंखो के जरिए व्यक्त कर रहा था।
क्या प्रणय कायम रहा अपने निर्णय पर? मां को क्या जवाब दिया? क्या ये दूरी फिर से उन्हे हमेशा के लिए सहनी होगी? पढ़े अगले भाग मे।