Pal Pal Dil ke Paas - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 1

1

जैसे ही ट्रेन आकर रुकी मुसाफिरों का हूजूम चढ़ने को बेताब हो गया। एक दूसरे को धक्का - मुक्की देते हुए

सभी चढ़ने लगे। मैं भी कोशिश कर चढ़ गया। अभी

अपनी बर्थ पर बैठा ही था कि ट्रेन खुल गई। अभी ट्रेन

रेंग ही रही थी कि एक लगभग चीखती हुई आवाज

सुनाई दी, "प्लीज़ कोई मेरी हेल्प करो......" और एक लड़की बैग टांगे दौड़ती हुई दिखाई दी। मै भी उसकी

आवाज सुन कर सब दर्शक बने लोगों को बगल करता हुआ गेट के पास आ गया। उसने सहायता के लिए हाथ आगे फैला दिया।

मैंने भी अपना हाथ आगे कर उसके हाथों को पकड़ा और खींच कर ऊपर चढ़ा लिया। हाफ़ती हुई वो मेरी ही सीट पर बैठ गई और इशारे से पानी मांगा। मैंने पानी कि बॉटल पकड़ा दी । जिसे वो दो घूंट पीकर मुझे वापस पकड़ा दी।

उसके हाव भाव से ऐसा लग रहा था जैसे वो पीना तो पूरी बोतल ही चाहती थी पर मुझे सफ़र में फिर पानी कहा मिलेगा ये सोच कर वापस कर दिया।

सामने वाली बर्थ उसकी थी। अब वो इत्मीनान से बैठ गई।

मैंने गौर से देखा वो माथे पर आई लटो को बार बार पीछे कर रही थी जो हवा से बार बार आगे आ जा रहे थे।

गेहूंआ रंग बड़ी बड़ी पनिली काली आंखो में गजब का आकर्षण था। किसी को भी मोहित कर सकती थी। मैंने अपना परिचय दिया। और उसकी ओर भी प्रश्न वाचक निगाहों से देखने लगा।

वो धीरे से मुस्कुराई और बोली, "मेरा नाम नियति है और मै हैदराबाद जा रही वहा मेरी ज्वाइनिग है कल इसलिए किसी भी कीमत पर मुझे ट्रेन पकड़ना था। थैंक्स आपने हेल्प किया वरना मै नहीं चढ़ पाती।"

मेरी हैदराबाद में मीटिंग थी। कम्पनी ने मुझे दो दिन के लिए भेजा था। मै एक लीगल एडवाइजर था और एक इंपॉर्टेंट केस के सिलसिले में मुझे वह भेजा गया था।

नियति ने बताया एमबीए करने के बाद उसकी पहली पोस्टिंग है।

आपस में बात करते हुए समय अच्छे से बीतने लगा। शाम हुई उसके बाद रात। नियति और मैंने अपना अपना खाने का डिब्बा निकला और शेयर कर के खाया।

अब रात गहराने लगी। नींद हावी हो रही थी।

नियति ने बिस्तर लगा कर सोने की तैयारी कर ली।

और कुछ ही देर में गहरी नींद में सो गई।

मै भी सोने की कोशिश कर रहा था थकान के बावजूद

नींद नहीं आ रही थी। अब मै उसे बिना किसी बाधा के देख सकता था। वो सोते हुए बिल्कुल बच्चे की भांति लग रही थी। जैसे कोई निष्पाप अबोध बालक सोता हो। उसकी लम्बी पलके गालों को चूम रही थी।

मै सो कर इस पल से वंचित नहीं होना चाहता था। मैं अपनी संगनी की झलक उसमे देख रहा था। और वो मेरे ही शहर की भी थी। मेरे अरसे से भटकते मन को शीतल छांव मिल गई थी।

मां ने स्पष्ट कह दिया था "तू जिस किसी को भी पसन्द करेगा उसमे मेरी हां होगी।" पर आज तक कोई ऐसी नहीं मिली थी जिसे देख कर दिल कहता कि 'हां यही तो है वो जिसकी तुझे तलाश थी।'

काफी लंबा सफर था तीसरे दिन सुबह पहुंचना था। उस देखते - देखते ही आंख कब लग गई पता ही नहीं चला।

जब मै उठा तो वो जाग चुकी थी, और फ्रेश लग रही थी। मेरी निगाह मिलते ही मुस्कुरा कर गुड मॉर्निंग कहा।

मै भी गुड मॉर्निंग कहते हुए उठ बैठा। हाथ मुंह धोया और पेंट्री कार मै जा कर चाय को बोल आया।

थोड़ी ही देर में चाय आ गई। मैंने और नियति ने चाय पीना शुरू किया। एक सिप लेते ही मुंह बना कर बोली, " ये भी कोई चाय है, चाय तो स्टेशन पर ही अच्छी मिलती है, जो खूब उबली रहती है। इससे तो दिल ही नही भरा।"

मैंने कहा, "हां ये तो है पर क्या किया जा सकता है? जो मिलेगा वही पीना पड़ेगा। देखिए जहां ज्यादा देर स्टॉपेज होगा कोशिश करूंगा लाने की।"

संयोग से जल्दी ही जबलपुर स्टेशन आ गया। पंद्रह मिनट स्टॉपेज था। इसलिए मै जल्दी से गया और चाय बनवा कर थर्मस में ले आया।

चाय पीकर नियति खुश हो गई, और "थैंक्स मिस्टर??" बोली।

मै समझ गया वो मेरा नाम पूछना चाहती है।

मै बोला, "प्रणय... बंदे को प्रणय सिन्हा कहते है।"

मेरे कहने के अंदाज से वो खिल - खिला पड़ी।

फिर उसने साथ रक्खा नाश्ता मुझे भी दिया और खुद भी खाया।

अब वो मेरे लिए और मै उसके लिए अजनबी नहीं थे।

सफ़र एक सुहाने सफर में तब्दील हो चुका था। दिल कर रहा था कि ये सफ़र कभी खत्म ना हो।

अब हमारे साथ आया खाने का सामान खत्म हो चुका

था। दोपहर का खाना भी हमने ट्रेन की पेंट्री से ही ऑर्डर किया जो स्वाद हीन था पर पेट भर गया।

शाम को भी वही से डिनर ऑर्डर किया गया। हम खा कर बाते कर रहे थे मै अपने परिवार के बारे में सब कुछ बता चुका था कि एक मां है जो गवर्नमेंट कॉलेेज में प्रिंसिपल है।

एक बड़ी बहन है जिसकी शादी हो चुकी है। पिता जी बचपन में ही गुजर गए थे। मां ने बड़े ही जतन से पाला पोसा है।

पर नियति अपने बारे में कुछ भी नहीं बता थी थी। मेरे पूछने पर उदास हो जाती और शून्य में देखने लगती।

अब सुबह ही हमें अपनी मंजिल पर पहुंच जाना था।

मै उम्मीद में था कि कुछ तो बताएगी नियति अपने बारे में पर उसने कुछ नहीं कहा।

वो से गई। मै बस उसे निहारता रहा।

मै भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि ट्रेन लेट हो जाए। शायद ईश्वर को मुझ पर तरस आ गया और ट्रेन लेट हो गई।

हमारी ट्रेन के पहले जो ट्रेन गुजरी थी उसकी चपेट में कोई जानवर आ गया था जिससे ट्रेन रोक देनी पड़ी थी।

नियति भी फ्रेश हो कर बैठी थी। मैं भी उठा और सीधा फ्रेश होकर चाय और बिस्कुट के लिए बोल कर आ गया।

नियति ने बहुत रिक्वेस्ट के बाद चाय पी पर बिक्कुट नहीं लिया। वो अनमनी सी लग रही थी। शायद उसे मेरी भावनाओं का अहसास हो गया था। मै जानना चाहता था कि वो मुझसे सहमत है या नहीं।

मैंने अपना कार्ड देते हुए कहा "इसपे मेरा फोन नंबर है दो दिनों में जब फ़्री होना कॉल कर लेना हम साथ साथ कुछ समय बिताएंगे।" मै बोला, " तुम भी अपना कार्ड दे दो" तो वो बोली, " अभी मुझे कार्ड नहीं मिला है ।"

मैंने कहा, " कोई बात नहीं अपने घर का एड्रेस और फोन नंबर पेपर पर ही लिख कर दे दो।"

उसने हा में सिर हिलाया।

वो पेज पर लिखने लगी।

मै खुश था कि वो मुझे अपना एड्रेस और फोन नंबर दे रही है।

करीब दो घंटे बाद रास्ता साफ हो गया।

ट्रेन चल दी। बस कुछ ही देर बाद हैदराबाद आने वाला था।

ट्रेन प्लेट फार्म पर लग गई। सभी मुसाफिर उतर कर जाने लगे। मै भी अपना और नियति का सामान लेकर उतर गया।

स्टेशन के बाहर आकर मेरी तो कंपनी की गाड़ी आई थी मुझे लेने।

मैंने नियति को भी उसकी डेस्टिनेशन पर छोड़ने का ऑफर दिया जिसे उसने मना कर दिया ।

बोली, "मुझे टैक्सी दिला दो ।"

मैंने एक टैक्सी रोक कर उसके समान को रख कर उसे बैठा दिया।

मैंने जाने को हुई नियति से मुस्कुरा कर हाथ फैलाया और बोला, " मैडम आपने कुछ इस बंदे को देने के लिए लिखा था।"

जैसे उसे याद आ गया हां कहते हुए पर्स से एक कागज निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

मैंने उस कागज को जेब में रख लिया और बाय कर हाथ हिलाता हुए अपनी गाड़ी में बैठ गया। नियति भी टैक्सी में बैठी हाथ हिलती हुई चली गई।

मै उस दिन बहुत बिज़ी रहा। शाम को जब मीटिंग निपट गई तो मुझे नियति का खयाल आया। सोचा फोन कर मिलने जाता हूं।

सुबह जो पैंट पहनी थी उस बैग से निकाला और फोन नंबर देखने लगा।

उस पेज को देखते ही मेरा दिमाग सुन्न हो गया।

उसपे फोन नंबर और एड्रेस की बजाय जो लिखा था, मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था।

लिखा था, "प्रणय जी मै माफी चाहती हूं। मै आपसे कोई कॉन्टेक्ट नहीं रख सकती । मैंने आपकी आंखों में मेरे लिए कई सपने देख लिए थे। जिन्हे मै पूरा नहीं कर सकती। आपको दुख होगा ये जान कर की मै एक दो साल की बच्ची की मां हूं। मेरे पति की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई शादी के दो साल बाद ही। मुझे पता है अगर मै ये बाते आपको बता देती तो आपका निश्चय और भी पक्का हो जाता। आपकी आंखो में को जुनून मैंने देखा वो कुछ भी जान कर बदलने वाला नहीं था। पर मै आपके काबिल नहीं हूं। हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा।" नियति की बस यही नियति थी।

मै अपना सर पकड़ कर बैठ गया । ये नियति ने क्या कर दिया?? मै छुट्टी लेकर जितनी कोशिश कर सकता था पता लगाने की करता रहा। पर कुछ पता ना चला।

अब भी हर महीने हैदराबाद जा कर सड़को पर घूमता हूं शायद नियति दिख जाए। होटलों में तलाशता हूं शायद नियति मिल जाए।

ओह!!!!....… नियति कहा हो तुम........ओह!!!! नियति ....अब तो आ जाओ तुम......

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