राज-सिंहासन--भाग(१४) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राज-सिंहासन--भाग(१४)

तब ज्ञानश्रुति ने निपुणनिका से कहा....
निपुणनिका! अब मैं आ गया हूँ,अब मैं तुम्हें कोई भी कष्ट नहीं होने दूँगा और जिसने तुम्हारी ये दशा की है उससे अवश्य ही प्रतिशोध लूँगा तभी मेरे हृदय की अग्नि शान्त होगी।।
जी! भ्राता! मुझे भी आपसे ऐसी ही आशा है,निपुणनिका बोली।।
तभी सहस्त्रबाहु बोला.....
राजकुमार ज्ञानश्रुति! आप दोनों वार्तालाप कुछ क्षणों के पश्चात कर लीजिएगा,अभी राजकुमारी निपुणनिका को इस पाषाण रूपी धड़ से मुक्त कराना है,मैँ कुछ ऐसे मन्त्र पढ़ता हूँ जिससे राजकुमारी निपुणनिका अपने पूर्व रूप में आ जाऐगीं।।
जी! भ्राता सहस्त्र! आप कुछ ऐसा ही कीजिए,मैं भी चाहता हूँ कि निपुणनिका शीघ्र ही अपने पूर्व रूप में आ जाएं और हम इन्हें मुक्त कराकर इस गुफा से अपने संग ले जाएं,ज्ञानश्रुति बोला।।
तो अब मुझे ध्यान लगाना होगा तथा राजकुमारी निपुणनिका को मुक्त करने हेतु,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! आप शीघ्र ही समाधि में बैठकर अपना कार्य प्रारम्भ कीजिए,ऐसा ना हो कि कोई हमें खोजते हुए यहाँ आ पहुँचे,ज्ञानश्रुति बोला।।
और इसके उपरान्त सहस्त्रबाहु समाधि लगाकर बैठ गया एवं ध्यान करते हुए कुछ मंत्रों का उच्चारण करने लगा,कुछ समय पश्चात ही निपुणनिका धीरे-धीरे अपने पूर्व रूप में परिवर्तित होने लगी,ये देखकर ज्ञानश्रुति प्रसन्न होने लगा एवं तब कुछ समय पश्चाताप निपुणनिका अपने पूर्व रूप में वापस आ गई,सहस्त्रबाहु ने अपने नेत्र खोलकर देखा तो उसके समक्ष अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी निपुणनिका खड़ी थी....
सहस्त्रबाहु ,निपुणनिका की सुन्दरता देखकर कुछ क्षणों के लिए मौन सा हो गया,उसने ऐसा अद्वितीय रूप-सौन्दर्य पहली बार देखा था,निपुणनिका को देखकर वो मंत्रमुग्ध हो गया एवं निपुणनिका भी सहस्त्रबाहु की आतुर दृष्टि अपनी ओर पड़ते देख लज्जा से पलकें झुका बैठी।।
निपुणनिका को सुरक्षित देख ज्ञानश्रुति अत्यधिक प्रसन्न हो उठा और निपुणनिका को अपने हृदय से लगा बैठा,तब सहस्त्रबाहु बोला.....
यहाँ से बाहर निकलने में ही भलाई है,कोई हमें यहाँ देखकर हमें बन्दी ना बना लें....
कदाचित! आप ठीक कहते हैं सहस्त्र भ्राता,चलिए हम तीनों शीघ्रता से यहाँ से प्रस्थान करें,ज्ञानश्रुति बोला।।
एवं इतना कहते ही तीनों गुफा के बाहर आएं और अश्वो में बैठकर सूरजगढ़ की ओर बढ़ चले,कुछ समय पश्चात जब वें वहाँ पहुँचने वालें थे तभी सहस्त्र ने सभी को रूकने का संकेत दिया और बोला....
हम राजकुमारी निपुणनिका को ऐसे नहीं ले सकते ,सुकेतुबाली इन्हें पहचान लेगा,पहले हमें इनका वेष बदलना होगा।।
ये आपने बिल्कुल ठीक कहा सहस्त्र भ्राता! किन्तु इस समय इनके वेष बदलने हेतु वस्त्र कहाँ मिलेगें?ज्ञानश्रुति बोला।।
कुछ सोचने दीजिए,कदाचित कोई ना कोई समाधान तो निकल ही आएगा,सहस्त्र बोला।।
तभी निपुणनिका बोली....
देखिऐ!उधर कुछ घर दिखाई पड़ रहे हैं,कदाचित वहाँ लोंग निवास करतें हैं,हमें वहाँ वस्त्र मिल सकते हैं।।
हाँ! ये हो सकता हैं,यही उत्तम रहेगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
तब सब पैदल ही अपने अश्वों के संग वहाँ पहुँचे,वहाँ उन्होंने लोगों से सहायता माँगी,जब सभी ने सुना कि ये राजा से प्रतिशोध लेने आएं हैं तो उनकी सहायता हेतु तत्पर हो गए,क्योंकि उन्हें भी अपने राजा सुकेतुबाली से घृणा थी ,वहाँ की महिलाएं राजकुमारी निपुणनिका को भीतर ले गई एवं उसके वस्त्र बदलकर उसे पुरूष वेष में बाहर ले आईं।।
जब सहस्त्र ने निपुणनिका को पुरूष वेष में देखा तो आश्चर्यचकित हो उठा,वो सचमुच पुरूष लग रही थी,परन्तु स्वाभाव तो अभी भी कन्याओं वाला था,लज्जा ने अब भी उसके मुखड़े को ढ़क रखा था,तब ज्ञानश्रुति बोला....
सहस्त्र भ्राता! मेरे लिए भी कन्याओं वालें वस्त्र माँग ही लीजिए,क्योंकि अब मुझे कन्या का वेष धरना होगा,हे ईश्वर! ये कैसी बिडम्बना आन पड़ी है हम भाई बहन के जीवन में जो निपुणनिका को पुरूष का वेष धरना पड़ रहा है और मुझे कन्या का।।
ये सुनकर वहाँ सभी उपस्थित लोंग हँस पड़े।।
राजकुमार ज्ञानश्रुति !यदि आपका परिहास समाप्त हो गया तो आप शीघ्रता से कन्या वेष धर लें क्योकिं हमें शीघ्र ही सूरजगढ़ की ओर प्रस्थान करना होगा,सूर्यास्त के पश्चात हम सबको राज्य के मुख्य द्वार पर रोका जा सकता है,यदि सुकेतुबाली को हम पर तनिक भी संदेह हो गया ना तो इसका भयंकर परिणाम हो सकता है,सहस्त्रबाहु बाहु बोला।।
कदाचित आप सत्य कह रहें हैं, मैं शीघ्र ही कन्या वेष धरकर आता हूँ,इतना कहकर ज्ञानश्रुति कन्या वेष धरने चला गया,कुछ समय पश्चात जब वो कन्या के रूप में सभी के समक्ष उपस्थित हुआ तो उसे देखकर सब आश्चर्यचकित थे,तब निपुणनिका बोली.....
भ्राता! आप तो कन्या लग रहें हैं,
ये भी योजना एक भाग है,निपुणनिका! ज्ञानश्रुति बोला।।
और तब सबने उन ग्रामवासियों से आज्ञा ली और चल पड़े अपने गन्तव्य की ओर,राज्य के मुख्य द्वार पर जब सभी पहुँचे तो सबकी जाँच हेतु कहा गया,किन्तु कादम्बरी बने ज्ञानश्रुति ने अपने रूप द्वारा उन सैनिकों को रिझाना प्रारम्भ कर दिया ,सभी सैनिक कादम्बरी के रूप पर मंत्रमुग्ध हो गए और सैनिकों ने तीनों को राज्य के भीतर प्रवेश करने की अनुमति देदी।।
जब सभी राजमहल में पहुँचे तो निपुणनिका को सहस्त्र एवं ज्ञानश्रुति के संग देखकर सभी अत्यधिक प्रसन्न हुए,नीलमणी उसे अपने कक्ष में ले गई साथ में सभी भी नीलमणी के कक्ष में गए एवं उनके मध्य कुछ इस प्रकार का वार्तालाप हुआ......
मैं अधिक दिनों तक राजकुमारी निपुणनिका को अपने कक्ष में छिपाकर नहीं रख सकती,नीलमणी बोली।।
हाँ! यदि महाराज सुकेतुबाली को कोई भी ऐसी सूचना मिल गई कि निपुणनिका इस कक्ष में है तो राजकुमारी नीलमणी पर भी संकट आ सकता है,ज्ञानश्रुति बोली।।
सत्य कहा आपने,वीरप्रताप बोला।।
तो इसका क्या उपाय है? हम सभी निपुणनिका को यहाँ कैसे सुरक्षित रखेंगें? सोनमयी ने पूछा।।
बस एक ही कार्य हो सकता है,सहस्त्रबाहु बोला।।
वो क्या है भ्राता सहस्त्र? वीरप्रताप ने पूछा।।
मैं कल प्रातःकालीन राजकुमारी निपुणनिका को अश्व में बैठाकर उसे अपने निवासस्थान छोड़ आता हूँ,तुम सभी से ये कहना कि मेरी माँ का स्वास्थ्य अच्छा नहीं इसलिए मैं अपनी माता से मिलने गया हूँ,साँझ तक लौट आऊँगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
यही उचित योजना रहेगी,वीरप्रताप बोला।।
तो नीलमणी आज रात्रि कैसे भी करके निपुणनिका को अपने कक्ष में सुरक्षित रख लो,प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही मैं इन्हें अपनी माँ के पास छोड़ आऊँगा एवं मामाश्री भानसिंह को सारी सूचनाएं दे दूँगा और उनसे ये भी कहूँगा कि वें भी हमारी सहायता हेतु तत्पर रहें,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ यही उचित रहेगा,सोनमयी बोली।।
एवं इसके उपरान्त सभी भोजन करके अपने अपने विश्राम स्थान में जा पहुँचे,सहस्त्र एवं वीरप्रताप अश्वशाला चले गए, नीलमणी के कक्ष में कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति ,सोनमयी एवं निपुणनिका थे,इन सबके मध्य वार्तालाप चल रहा था....
तभी सोनमयी ने निपुणनिका से पूछा.....
तो राजकुमारी निपुणनिका आप कहाँ बन्दी थी?
सखी! मुझे एक गुफा में बंदी किया गया था,मेरी ग्रीवा के नीचे के भाग को पाषाण में परिवर्तित कर दिया गया था,सहस्त्रबाहु जी ने कुछ मंत्रों का उच्चारण करके उस वशीकरण को तोड़ा,तब मैं मुक्त हुई,निपुणनिका बोली।।
मेरे भ्राता हैं ही इतने साहसी,किसी भी संकट से नहीं घबराते,सबका डटकर सामना करते हैं,सोनमयी बोली।।
जी! आपके भ्राता सच में अत्यधिक साहसी एवं वीर हैं,निपुणनिका बोली।।
एवं ऐसे ही सबके मध्य वार्तालाप चलता रहा,कुछ समय के पश्चात सभी विश्राम करने चले गए,प्रातःकालीन सहस्त्रबाहु ने अपने अश्व पर पुरूष वेष में ही निपुणनिका को अपने पीछे बैठाया और राज्य के बाहर निकल गया,उन दोनों ने वन की ओर प्रस्थान किया।।
लगभग जब उन्होंने आधा मार्ग तय कर लिया तो उन्हें भूख एवं प्यास का अनुभव हुआ,एक सुरक्षित स्थान देखकर सहस्त्रबाहु ने अपना अश्व रोका एवं जल की खोज करने लगा तभी उसे वहाँ एक झरना दिखा,उसने निपुणनिका से कहा....
देखिए राजकुमारी निपुणनिका! वो रहा झरना,आप वहाँ पर जाकर जल पी सकतीं हैं,तब तक मैं कुछ फल खोज लेता हूँ आपको भूख भी तो लगी होगी,तब निपुणनिका जल पीने हेतु झरने की ओर बढ़ी तभी ना जाने कहाँ से एक मण्डूक(मेढ़क ) वहाँ आ पहुँचा और निपुणनिका उसे देखकर भयभीत हो उठी एवं उसके मुँख से एक तीव्र चित्कार निकली।।
निपुणनिका की चित्कार सुनकर सहस्त्रबाहु उस ओर भागा,उसने देखा कि निपुणनिका भाग रही है,तब तक सहस्त्रबाहु , निपुणनिका के समक्ष आ चुका था एवं निपुणनिका सहस्त्र से जा भिड़ी,इस भिडंत मे
निपुणनिका के सिर पर लगी पगड़ी धरती पर गिर पड़ी एवं निपुणनिका के घने काले केश खुलकर अस्त-ब्यस्त हो गए,
जब निपुणनिका के केश खुले तो सहस्त्र ने उसे देखा तो देखता ही रह गया,निपुणनिका भी सहस्त्र की आँखों में निरन्तर देख रही थी,जब निपुणनिका तनिक चेतना में आई तो लजाते हुए उसने अपनी दृष्टि झुका दी और सहस्त्र से बोली....
क्षमा कीजिए ! महानुभाव! भूलवश मुझसे ऐसा हुआ।।
कोई बात नहीं किन्तु ये कहें कि आप इतनी भयभीत क्यों हुईं थीं? सहस्त्र ने पूछा।।
जी! झरने पर एक बड़ा सा मण्डूक था जिसे देखकर मैं भयभीत हो गई थी,निपुणनिका बोली।।
ये सुनकर सहस्त्र हँसा जिससे निपुणनिका और भी सकुचाई और सहस्त्र से कुछ अन्तर बनाकर खड़ी हो गई, बोली कुछ भी नहीं,ये देखकर सहस्त्रबाहु ,निपुणनिका के समीप आकर बोला...
मुझे लगा आप को मेरी बात कुछ अच्छी नहीं लगी।।
ऐसा कुछ नहीं है,आपको मेरा परिहास उड़ाने का अधिकार है,आपने मेरे प्राण जो बचाएं हैं,निपुणनिका बोली।।
तो सच में आपको मेरी बात अच्छी नहीं लगी,सहस्त्र बोला।।
नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है,निपुणनिका बोली।।
ऐसी ही बात है,सहस्त्र बोला।।
मैने कहा ना ऐसा कुछ नहीं है,निपुणनिका बोली।।
ठीक है पहले आप जल पी लीजिए इसके उपरान्त हम दोनों वाद-विवाद प्रतियोगिता करेगें,सहस्त्र बोला।।
ये सुनकर निपुणनिका हँस पड़ी और बोली....
हमारा भावार्थ ये नहीं था।।
आपका भावार्थ कुछ भी हो परन्तु हँसते हुए आप अत्यधिक सुन्दर दिखतीं हैं,सहस्त्र बोला।
ये सुनकर निपुणनिका पुनः लजा गई एवं जल पीने झरने की ओर बढ़ने ही वाली थी कि उसने सहस्त्र से पूछा....
आपको प्यास नहीं लगी,क्या आप जल ग्रहण नहीं करेगें?
जी! तो चलिए मैं भी आपके संग झरने पर चलता हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
और दोनों जल पीने झरने की ओर चल पड़े,निपुणनिका अपनी अंजुली में जल भरकर पीने लगी,परन्तु वो अपनी अंजुली में जैसे ही जल भरकर पीती तो उसके लम्बे काले केश उसके मुँख पर आ जाते एवं उसे जल पीने में कठिनाई होती एवं ऐसा कई बार हुआ,वो इस कारण जल ठीक से नहीं पी पा रही थी,तभी इस बार जब निपुणनिका जल पीने को हुई तो सहस्त्र ने उसके केशों को पीछे से पकड़ कर एक साथ लपेट दिया,ये देखकर निपुणनिका ने अपनी पलके झुकाई और शान्त होकर जल पीने लगी और उसे जल पीता हुआ देखकर सहस्त्र अति प्रसन्न हो रहा था।।
जब निपुणनिका जल पी चुकी तो उसने सहस्त्र से भी कहा कि आप जल पी लें,दोनों ने जल पिया और वृक्षों से कुछ फल तोड़कर खाएं,कुछ समय एक वृक्ष के तले विश्राम किया इसके उपरान्त उन्होंने पुनः अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान किया।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....