राज-सिंहासन--भाग(१३) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राज-सिंहासन--भाग(१३)

जब सुकेतुबाली ने नीलमणी से कहा कि ...
तुम्हारी सखी कादम्बरी अत्यधिक सुन्दर है तो सोनमयी और नीलमणी मन ही मन मंद-मंद मुस्कुरा उठीं,परन्तु कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति भयभीत हो उठा,क्योंकि उसे आशा थी कि ये नारीप्रेमी मानव कुछ भी कर सकता है,ना जाने अब उसके संग क्या होने वाला है?
हे! प्रभु! दया रखना,अब तुम ही रखवाले हो कादम्बरी के,ज्ञानश्रुति ने मन में बोला।।

सुकेतुबाली को अभी भी अपनी पुत्री एवं उन सभी मेहमानों पर तनिक भी विश्वास नहीं था,सुकेतुबाली को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी पुत्री अपने संग शत्रुओं को ले आई हो,उसे तो अपनी पुत्री नीलमणी पर भी संदेह हो रहा था क्योंकि जिस मानव के मन में कपट होता है तो उसको सारा संसार ही कपटी दिखाई देता है।।
किन्तु उसने समय ऐसा प्रकट किया कि उसे कुछ भी ज्ञात नहीं,वों तो अपनी पुत्री और उसके मेहमानों को देखकर अत्यधिक प्रसन्न है,उसके मन मे भय इसलिए था क्योंकि जीवन भर उसने केवल पाप ही किए थे और उसका दण्ड उसे सहस्त्रबाहु अपने साथियों के संग देने आया था।।
सुकेतुबाली ने सर्वप्रथम उन सबको अतिथिग्रह में ठहरा दिया एवं अपने विश्वसनीय दास दासियों से कह दिया की इन सभी पर दृष्टि रखी जाएं,यदि इनमे से किसी को ऐसा कोई कार्य करते देख लिया जाएँ,जो मेरे विरूद्घ हो तो वहीं पर उसकी हत्या कर दी जाए।।
और हाँ! राजकुमारी नीलमणी पर भी दृष्टि रखी जाएं,हो सकता है वो भी इन सभी की संगी हो एवं इनका संग दे रही हो,मुझे किसी पर भी विश्वास नहीं,मै जीवनभर इस राज-सिंहासन हेतु संघर्ष करता रहा ,इतनी सरलता से मैं ये किसी को भी नहीं लेने दूँगा,चाहें इसका उत्तराधिकारी ही क्यों ना आ जाएं?
किन्तु! सुकेतुबाली को ये कहाँ ज्ञात था कि राज-सिंहासन का उत्तराधिकारी तो आ चुका है एवं उसकी ही दृष्टि के सम्मुख वो अपना राज-सिंहासन पाने का प्रयास कर रहा है एवं वो इस कार्य में सफल भी होगा,उसे अपने कुकृत्यों का दण्ड एक ना एक दिन भोगना ही पड़ेगा।।
ऐसे ही सबको अतिथिग्रह में रहते हुए कई दिन ब्यतीत हो गए,उन सभी को ज्ञात था कि उन पर दृष्टि रखी जा रही है,इसलिए वें सभी सावधानीपूर्वक कार्य कर रहे थे,उन्होंने सुकेतुबाली का सारा संदेह दूर कर दिया था एवं उसके विश्वासपात्र बन गए थे।।
सुकेतुबाली को अपनी पुत्री पर विश्वास हो गया कि उसकी पुत्री नीलमणी उसका हित चाहतीं है,वो अपने पिता का अनहित भला कैसे कर सकती है?उसके सभी अनुमान एवं धारणाएँ अब असत्य हो चली थीं,इसलिए अब उसने रघुवीर बने सहस्त्र एवं श्रवन बने वीरप्रताप को अश्वशाला में रखने की अनुमति दे दी थी।।
सोनमयी और कादम्बरी बने ज्ञानश्रुति ने भी नीलमणी की सखी बनकर उसके ही कक्ष में रहने लगी,अब जब देखो तब सुकेतुबाली नीलमणी के कक्ष में चला आता कादम्बरी से मिलने,ये सब देखकर कादम्बरी के क्रोध की सीमा ना रहती और वो कोई ना कोई बहाना बनाकर बाहर चली जाती।।
इतने दिनों पश्चात भी सभी राजकुमारी निपुणिका को नहीं खोज पाएं थे,ज्ञानश्रुति अत्यन्त चिन्ता में था कि ना जाने उसकी बहन किस दशा में होगी,उसकी चिन्ता को तो सभी समझ रहे थे परन्तु विवश थे,उन्हें राजकुमारी निपुणनिका के विषय में अब तक कुछ ज्ञात नहीं हुआ था।।
उसकी इस चिन्ता को सोनमयी भाँप गई और उससे बोली....
राजकुमार ज्ञानश्रुति! कहीं निपुणनिका हेतु आपका हृदय विचलित तो नहीं है।।
हाँ! देवी सोनमयी! मुझे यही चिन्ता सता रही है,ज्ञानश्रुति बोला।।
परन्तु! निपुणनिका के विषय में कुछ ज्ञात करना है तो आपको महाराज सुकेतुबाली के समक्ष अभिनय करना होगा,सोनमयी बोली।।
कैसा अभिनय देवी सोनमयी? ज्ञानश्रुति ने पूछा।।
अपने हृदय की पीड़ा व्यक्त करनी होगी,ताकि उन्हें ये प्रतीत हो कि आप उनकी प्रेयसी हैं एवं उनसे अत्यधिक प्रेम करतीं हैं,सोनमयी बोली।।
कदापि नहीं! मैं ऐसा कार्य कदापि नहीं करूँगा,ये क्या कह रही हैं आप?देवी सोनमयी!वो वासना का पुजारी है,उसकी कुदृष्टि सदैव मेरे ऊपर रहती है और आप मुझे उसकी प्रेयसी बनने को कह रहीं हैं,ज्ञानश्रुति बोला।।
यदि इसके सिवाय आपके पास और कोई मार्ग हो तो कहें,सोनमयी बोली।।
मुझे तो कुछ और नहीं सूझ रहा,ज्ञानश्रुति बोला।।
तो भलाई इसी में है कि आप सुकेतुबाली की प्रेयसी बनना स्वीकार कर लें,सोनमयी बोली।।
कदाचित आप ठीक कह रहीं हैं,यही उचित रहेगा,मुझे शीघ्र ही निपुणनिका को खोजना है,ना जाने किस दशा में होगी वो,ज्ञानश्रुति बोली।।
अब आप ने की ना! बुद्धिजीवियों जैसी बात,सोनमयी बोली।।
किन्तु! उस बीभत्स राक्षस के समक्ष मुझे भय लगेगा,उसकी आतुर दृष्टि देखकर मुझे उससे घृणा होती है,ज्ञानश्रुति बोली।।
इतना कष्ट तो सहन करना पड़ेगा आपको,सोनमयी बोली।।
ये कष्ट नहीं महाकष्ट है देवी सोनमयी!ज्ञानश्रुति बोली।।
मैं आज रात्रि ही इस विषय में सहस्त्र भ्राता एवं वीर भ्राता से बात करती हूँ,वे क्या निर्णय देते हैं इस विषय पर?सोनयी बोली।।
देवी सोनमयी ! मेरी समस्या का शीघ्रता से निवारण कीजिए,अत्यधिक दुविधा में हूँ मैं,ज्ञानश्रुति बोला।।
आपकी दुविधा रात्रि को हल हो जाएगी,सोनमयी बोली।।
अत्यधिक आभार आपका देवी सोनमयी! ज्ञानश्रुति बोला।।
आभार प्रकट मत कीजिए,राजकुमार! हम सभी भी तो चाहते हैं कि सुकेतुबाली पराजित हो ,हमें शीघ्रता से निपुणनिका एवं सहस्त्रबाहु भ्राता के माता-पिता को भी तो खोजना चाहते हैं,सोनमयी बोली।।
सत्य कहा आपने देवी!वो धूर्त,कपटी इस राज्य का राजा बना घूमता है और जो उस राज-सिंहासन का असली उत्तराधिकारी है वो उससे अभी तक वंचित है,ज्ञानश्रुति बोला।।
यही तो बिडम्बना है,सोनमयी बोली।।
शीघ्र ही सुकेतुबाली के मुख से इन रहस्यों को उगलवाना होगा तभी निपुणनिका एवं सहस्त्र भ्राता के माता पिता मिल पाएगे,ज्ञानश्रुति बोला।।
सत्य कहा आपने,सोनमयी बोली।।
आप दोनों भ्राताओं से आज रात्रि वार्तालाप करके मुझे शीघ्र ही आदेश करें कि सुकेतुबाली के मुँख से मैं किस प्रकार सत्य उगलवा सकता हूँ,ज्ञानश्रुति बोला।।
अवश्य! रात्रि को ही इस विषय पर वार्तालाप होगा एवं आप भी मेरे संग होगें वहाँ पर,मैं अकेले अश्वशाला तक नहीं जाऊँगीं,सोनमयी बोली।।
यही उचित रहेगा,संग ही चलेगें,ज्ञानश्रुति बोला।।

रात्रि हुई एवं रात्रि का भोजन करने के उपरान्त अवसर देखकर नीलमणी को सूचित कर दोनों अश्वशाला की ओर पहुँचे,वहाँ उन्होनें सहस्त्रबाहु एवं वीरप्रताप से वार्तालाप की एवं पूछा कि किस प्रकार वो सुकेतुबाली से निपुणनिका के विषय में ज्ञात करें,सोनमयी ने अपनी योजना भी कह सुनाई तब सहस्त्रबाहु बोला....
राजकुमार ज्ञानश्रुति! सोनमयी ठीक कहती है,अभिनय ही करना होगा आपको सुकेतुबाली की प्रेयसी बनने का तभी आप इस रहस्य को ज्ञात कर सकतें हैं।।
तब वीरप्रताप बोला....
मेरे पास एक योजना है,
वो क्या?ज्ञानश्रुति ने पूछा।।
कल रात्रि आप सुकेतुबाली के कक्ष में जाकर उससे बड़ी मधुर-मधुर बातें कीजिएगा,मदिरा का प्रयोग करके उसके मुँख से रहस्य को उगलवा लीजिएगा,तनिक नयनो के बाण चलाइएगा,पुरूषों को मोहित करने वाली मनोहर चेष्टाएँ तो आपको आतीं ही हैं,अपने हाव-भाव दिखाकर उनका मन मोह लिजिएगा,देवी कादम्बरी! आपकी मोहनी सूरत पर तो हम भी अपना हृदय हार बैठे हैं तो सुकेतुबाली भी शीघ्रता से आपके मोहफाँश में बिध ही जाएगा,वीरप्रताप बोला।।
वीरप्रताप की बात सुनकर सब हँस पड़े।।
कुछ समय तक सभी के मध्य कुछ वार्तालाप हुआ ,इसके उपरांत सभी अपने अपने विश्राम स्थान पर लौट गए,दिनभर तो ऐसे ही ब्यतीत हो गया किन्तु रात्रि आने से पूर्व ही ज्ञानश्रुति की दशा कुछ बिगड़ सी रही थी,क्योंकि उसको भय था कि रात्रि के समय वो कैसे उस राक्षस के समक्ष जाएगा,किन्तु निपुणनिका के प्राणों का प्रश्न था इसलिए ज्ञानश्रुति भय को त्याग कर इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने बढ़ चला,इस कार्य में सोनमयी एवं नीलमणी ने उसका साहस बढ़ाया।।
वो सुकेतुबाली के कक्ष की ओर बढ़ चला,कक्ष में पहुँचा तो सुकेतुबाली ने शीघ्र ही उससे पूछा.....
अरे,कादम्बरी ! तुम! मेरे कक्ष में।
जी आवश्यक कार्य था,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
हाँ! कहो ना! मैं तो सदैव तुम्हारी सेवा मे तत्पर हूँ,सुकेतुबाली बोला।।
जी! मुझे ये ज्ञात हैं,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
तो कहो ना! इतनी भयभीत मत हो,मैं तो सदैव से तुम्हें अपना समझता आया हूँ,तुम ही ना जाने क्यों मुझसे दूर भागी रहती हो?सुकेतुबाली बोला।।
ऐसी बात नहीं है महाराज,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
तो कैसी बात है प्रिऐ? सुकेतुबाली ने पूछा।।
आप इतने बड़े राज्य के महाराज एवं मैं एक साधारण सी कन्या,आपका और मेरा भला कैसा मेल? कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
तुम चाहो तो मेल हो सकता है,सुकेतुबाली बोला।।
सत्य कह रहें हैं महाराज,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोली।।
हाँ! बिल्कुल सत्य प्रिऐ! मुझे तुमसे प्रेम हो गया है,सुकेतुबाली बोली।।
मुझे भी महाराज आपसे प्रेम हो गया है,मैं ना जाने कब से आपसे ये बात कहना चाह रही थी,किन्तु भय सा लगता था कि कहीं आप मुझे तुच्छ समझकर मेरे प्रस्ताव को अस्वीकार ना कर दें,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
ओह...तो तुम्हारे भय का ये कारण था,तो आओ ना मेरे हृदय से लग जाओ,सुकेतुबाली बोली।।
ठहरिए महाराज! तनिक प्रतीक्षा कीजिए,कुछ समय तक वार्तालाप करते हैं,ये कादम्बरी तो आपके चरणों की दासी है जो कहेगें सो वही करूँगीं और इतना कहते कहते कादम्बरी ने मदिरा भरकर एक पात्र दे दी और सुकेतुबाली से पीने को कहा।।
सुकेतुबाली ,कादम्बरी के मोह में लिप्त हो चुका था और वो मदिरा पीने लगा,कादम्बरी मीठी मीठी बातें करते हुए सुकेतुबाली को मदिरा से भरे पात्र पर पात्र देने लगी,कुछ ही समय पश्चात सुकेतुबाली कुछ अचेत सा हुआ एवं ज्ञानश्रुति ने निपुणनिका के विषय में प्रश्न पूछने प्रारम्भ कर दिए,प्रश्न पूछने पर सुकेतुबाली ने उत्तर भी दिया एवं कादम्बरी अपनी योजना में सफल हुई ,सुकेतुबाली ने निपुणनिका को किस स्थान पर रखा है ये कादम्बरी ने ज्ञात कर लिया।।
कुछ समय पश्चात मदिरा की मात्रा अत्यधिक हो जाने पर सुकेतुबाली गहरी निंद्रा में लीन हो गया एवं कादम्बरी उसके कक्ष से भाग आई।।
उसने रात्रि मेँ ही सोनमयी को जगाया और बोली....
देवी सोनमयी! मुझे निपुणनिका के विषय में ज्ञात हो चुका है कि वो किस स्थान पर है? हमें इसी समय उसे खोजना होगा।।
इस समय,किन्तु इस समय हम पर संकट आ सकता है,सोनमयी बोली।।
इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं है देवी सोनमयी,कादम्बरी बना ज्ञानश्रुति बोला।।
इस कार्य में तो हमें वीर भ्राता एवं सहस्त्र भ्राता की सहायता लेनी होगी,सोनमयी बोली।।
तो उनके पास ही चलिए,ज्ञानश्रुति बोली।।
अच्छा! चलिए राजकुमार ज्ञानश्रुति! सोनमयी बोली।।
और दोनों अश्वशाला पहुँचे,वहाँ उन्होंने दोनों को निपुणनिका के विषय में बताया,तब सहस्त्रबाहु बोला....
आप सभी अपने विश्रामस्थान पर जाकर विश्राम करें,मैं अकेले ही वहाँ से राजकुमारी निपुणनिका को लाऊँगा,
किन्तु आप उससे परिचित नहीं हैं,ज्ञानश्रुति बोला।।
तो ठीक है कल प्रातः केवल मैं और आप ही उसे खोजने जाऐगें,सहस्त्रबाहु बोला।।
और यही तय किया गया,दूसरे दिन प्रातः ज्ञानश्रुति एवं सहस्त्रबाहु चल पड़े राजकुमारी निपुणनिका की खोज करने.....
सुकेतुबाली ने बताया था कि वो राज्य से दूर उत्तर दिशा की ओर किसी गुफा में बंदी है,जिसका मुँख के नीचे का भाग सुकेतुबाली ने वशीकरण मंत्र द्वारा किसी तान्त्रिक से पाषाण का करवा दिया है,जिससे वो चल नहीं सकती,एक ही स्थान पर अचल रहकर खड़ी रहती है एवं इस कार्य में सहायता करने हेतु ही सहस्त्रबाहु ,ज्ञानश्रुति के संग आया था क्योंकि उसे तंत्र विद्या भी आती है,उसने अपने गुरू अनादिकल्पेश्वर से इसकी शिक्षा प्राप्त की है।।
सहस्त्र एवं ज्ञानश्रुति दोनों ही उस गुफा तक पहुँचें किन्तु अन्जान बेड़ियों ने उन्हें जकड़ लिया,वें स्वयं को छुड़ा ही ना सकें,कदाचित ये सब राजकुमारी के निरीक्षण हेतु किया गया प्रबन्ध था,जिससे राजकुमारी निपुणनिका गुफा से बाहर ना आ सकें,किन्तु किसी को ये ज्ञात नहीं था कि सहस्त्रबाहु इस तंत्र को तोड़ने में सफल हो जाएगा।।
एवः कुछ समय पश्चात ही सहस्त्रबाहु ने अपने गुरू अनादिकल्पेश्वर का स्मरण किया एवं कुछ मंत्रो का उच्चारण करता रहा ,कुछ समय पश्चात ही दोनों की बेड़ियाँ टूट गई और वें गुफा के भीतर भी पहुँच गए,गुफा के भीतर अन्धकार के सिवाय कुछ और ना था,तभी दूर उन्हें एक छोटे छिद्र से प्रकाश आता हुआ दिखा एवं वें दोनों उसी ओर पहुँचे.....
उन्होंने देखा कि राजकुमारी गुफा कि भित्ति के सहारे आधी पाषाण बनी खड़ी है,ज्ञानश्रुति ने राजकुमारी को देखते ही पुकारा.....
निपुणनिका.....निपुणनिका! मैं आ गया हूँ।।
निपुणनिका ने जैसे ही अपने भाई की आवाज़ सुनी तो वो चीख पड़ी...
ज्ञानश्रुति भ्राता! आप आ गए,मुझे ज्ञात था कि आप एक ना एक दिन अवश्य आऐगें,मै हर दिन आपकी प्रतीक्षा करती थी और आज आप आ ही गए...
और दोनों भाई बहनों के नेत्रों से अश्रुधारा बह चली......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....