मणि मोहन मेहता-भेड़िया ने कहा शुभ रात्रि राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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मणि मोहन मेहता-भेड़िया ने कहा शुभ रात्रि

गंभीर और प्रभावी कविताएं
राजनारायण बोहरे
मणि मोहन मेहता का नया कविता संग्रह ‘भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ अभी बोधि प्रकाशन से छप कर आया है । इसमें मणि भाई की तमाम अच्छी कविताएं सम्मिलित हैं।
मणि मोहन मेहता हिंदी में इस बात के लिए जाने जाते हैं कि वे छोटी-छोटी मगर बहुत गंभीर और प्रभावी कविताएं लिखते हैं । इस कविता संग्रह में केवल तीन कविताएं ऐसी हैं जो दूसरे पेज तक गई हैं, अन्यथा सभी कविताएं एक पेज में ही खत्म हो गई हैं ; एक पेज क्या अधिकांश कविताएं पांच से आठ पंक्तियों की हैं।
संग्रह की सबसे छोटी कविता है-कहा फकीर ने ! जिसमें केवल दस शब्द हैं-
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो
दुख
किसी का मीत नहीं ( पृष्ठ 91)
ताज्जुब है कि मेहता जी कम शब्दों में ही अपना मंतव्य प्रकट करने में समर्थ रहते हैं यह सामर्थ्य उनकी शब्द साधना को प्रकट करती है। उनकी जो कविताएं एक पेज से बड़ी हैं वह उनमें सिवा एक नाम के (पृष्ठ 54,) पुरस्कार वितरण समारोह (पृष्ठ 109) और अपने पाठकों के बीच एक अधूरी कविता (पृष्ठ 117 ) हैं । जिनका शब्द विन्यास भी सुगठित है।
कवि ने इस संग्रह में पक्षियों, चीटियों, ऋतु खासकर बारिश, भ्रष्ट ब्यूरोक्रेसी , घमंडी सत्ताधीश और एक विषय पर अनेक प्रकार से लिखी सीरीज की कविताओं को संकलन में शामिल किया है। पक्षियों पर लिखी उनकी कविता शुक्रिया (पृष्ठ 19) चिड़िया( पृष्ठ 22) घोंसले (पृष्ठ 37) गौरैया ( पृष्ठ 119) वगैरह है। तो बारिश पर तो उनकी बहुत सी कविताएं हैं । जिन में बारिश एक, बारिश दो (पृष्ठ 76, 77 ) के अलावा बारिशः एक दृश्य (पृष्ठ 78) ,उसकी बारिश ( पृष्ठ 79) बारिश की एक बूंद (पृष्ठ 21) ,बारिश की बूंदे (पृष्ठ 90,) बारिश एक स्मृति (पृष्ठ 86), रंग संवाद (पृष्ठ 74) जैसी कुछ कविताएं बारिश की कविताएं हैं । अन्य मौसम में बसंत (पृष्ठ 87) और पतझड़ (पृष्ठ 63) पर भी उनकी कविताएं है। गुलाब(पृष्ठ 20) शिखर (पृष्ठ 36), घोंसले ( पृष्ठ 37), चीटियां (पृष्ठ 42) सुबह (पृष्ठ 60) यह रात (पृष्ठ 62) समय ( पृष्ठ 88) हरितिमा-( पृष्ठ 100) चांद (पृष्ठ 111), यह चांद (पृष्ठ 112) हरसिंगार ( पृष्ठ 116) सो भी प्रकृति और मौसम की कविताएं हैं। कवि ने इस संग्रह में कवि ,कविता, भाषा और पुस्तक को केंद्र में रखकर भी अनेक कविताएं लिखी हैं।
कवि और कविता पर लिखी गई उनकी कविताएं हैं एकलाप एक , एकलाप दो एकलाप तीन एकलाप चार (पृष्ठ 11,12,13,14) निर्वस्त्र ( पृष्ठ 15) कवि ने कहा (पृष्ठ 16) कविता ( पृष्ठ 17) कवि ( पृष्ठ 29) एक रात थी (पृष्ठ 30) जैसे छिपकली (पृष्ठ 31) भाषा का घर (पृष्ठ 45) कविता ने ( पृष्ठ 70) किताब लिखना (पृष्ठ 75) सृजन (पृष्ठ 80) आदि कविताएं हैं, जो सभी कविता और किताबों के आसपास ही हैं ।
शीर्षक कविता बहुत छोटी है, लेकिन ऐसी कविता में कवि बड़े मारक संदेश लिखते हैं-
जागते रहना
अभी-अभी
भेड़ियों ने कहा है
शुभ रात्रि शुभरात्रि-तीन (पृष्ठ 34 )
मनमोहन मेहता अंग्रेजी का प्रोफेसर है, अंग्रेजी पढ़ाते हैं, तो विदेशी कवि-लेखकों को पढ़ते भी हैं , भारतीय लेखकों को भी उन्होंने खूब पढ़ा होगा । ऐसे में उन्हें श्रोताओं और पाठकों की पसंद-नापसंद और पाठक के पास मौजूद समय तथा विदेशी विचारकों के दर्शन व कला अनुसंधान का खूब ज्ञान है । शायद इसलिए उन्होंने अपनी कविताओं का आकार छोटा ही रखा है ।
इस संग्रह में बहुत सी कविताएं सीरीज में लिखी गयी है । एकलाप एक दो तीन व चार, शुभरात्रि एक दो और तीन, पतझर चार कविताएं , बारिश एक दो, बारिश: एक दृश्य, बारिश की बूंदे और बारिश एक बूंद, नींद एक नींद दो तथा हाशियाएक दो तीन और शुभ रात्रि एक दो तीन ऐसी ही कविताएं हैं । जो सिद्ध करती हैं कि कवि एक विषय पर एक से ज्यादा संख्या में कविता में विभिन्न आयाम में अपनी बात कह पाने की सामर्थ्य रखते हैं।
संग्रह की कई कविताएं बहुत मार्मिक हैं ।एक कविता देखिए -
एक बूढ़ी स्त्री ने
जब अपनी दवा की पर्ची के साथ
अपने बेटे की तरफ
एक मुड़ा तुड़ा नोट भी बढ़ाया
तो अहसास हुआ
कि यह दुनिया
वाकई बीमार है (बीमार पृष्ठ 51)
सत्ताधीश और सत्ता के घमंड में डूबे ब्यूरोक्रेट व राजनय को लताड़ती हुई एक कविता देखिए -
वह बैठा रहा अपनी विशाल कुर्सी पर
उसने बैठने को नहीं कहा
सामने खड़े हुए मनुष्य से...
हालांकि इस तरह
सामने खड़ा हुआ मनुष्य
कुर्सी पर बैठे हुए आदमी से
कुछ इंच ही सही
पर ऊंचा दिख रहा था क्षुद्रता पृष्ठ 53
एक और महत्वपूर्ण कविता इस संकलन में सम्मिलित है जो मणि मोहन की काव्य पहचान जैसी कविता हो गई है, आइए उसे देखते हैं-
दंतकथा कहती है
कि एक रात में पूरा हुआ था
इस मंदिर का निर्माण
दंतकथा यह भी कहती है
कि उस रात गांव के बाशिंदों को
चक्की पीसने की मनाही थी
बावजूद इसके
किसी ने चला दी थी चक्की
और मुख्य कारीगर
बदल गया था पत्थर की मूर्ति में
पत्थर के शिल्प में तब्दील
यह कारीगर
दूर से ही दिखता है
शिखर के एकदम करीब
दंतकथा तो दंतकथा है
पर इतना तो सच है
कि शिखर पर पहुंचकर
पत्थर हो जाना
मनुष्यता की सबसे बड़ी त्रासदी है
दंतकथा भी तो
यही कहती है ! (दंतकथा पृष्ठ 56)
एक अन्य कविता देखिए जो आम आदमी के मन के भावों को बड़े तार्किक ढंग तरीके से प्रकट करती है -
बलात्कारियों और हत्यारों के पक्ष में
निकलने वाले जुलूस में
शामिल होने से पहले
जरा सोच लेना
कि यह जुलूस
तुम्हारे घर के सामने से भी गुजरेगा
जरा सोच लेना
कि पूछ सकती है
तुम्हारी मां, बहन या बेटी
कि किस बात पर
निकल रहा है यह जलूस? (जुलूस पृष्ठ 106)
इस संग्रह की एक और विशेषता है कि यह संग्रह बेटियों को समर्पित किया गया है । मणि मोहन मेहता जी ने समर्पण के पृष्ठ पर लिखा है-
अनुष्का मेहता गंजबासौदा
और
वत्सला चौबे भोपाल सहित
सभी बेटियों के लिए...
इस संग्रह की आखरी कविता महिलाओं को समर्पित है, बल्कि जुलूस कविता का ही विस्तार है। यह कविता इस तरह है -
यह सिर्फ
देश से शुरू होकर
देह पर खत्म होने वाला
मसला नहीं है
यह किसी के मन के साथ
मनमानी है
अपनी मेडिकल रिपोर्ट में
कभी नहीं लिखा किसी डॉक्टर ने
कि अंतरात्मा में बहुत गहरे तक
धंसी हुई मिली उसे
कोई जंग खाई कील (बर्बरता पृष्ठ 120)
एक कविता कविता या लिखने के बारे में है। दरअसल मणि मोहन मेहता जब कोई कविता लिखते हैं तो कहते कुछ और हैं और उनका आशय कुछ और होता है । ऐसी ही शानदार कविता है-लिखना
उसके दाहिने हाथ में पेंसिल है
वह बाएं हाथ में इरेजर
कुछ लिखती है
कुछ मिटाती है
फिर फूंक मारकर
सफेद कागज से
मिटे हुए शब्दों की
मेल उड़ आती है...
लिखना सीख रही है
बिटिया
यह शायद
सिखा रही है लिखना । (लिखना पृष्ठ 75)
बेटी से लिखना सीखने के लिए तो भाशा के लिए कवि गौरैया के पास जाने का परामर्श देता है-
मैं बार-बार लौटता हूं
इस गौरैया के पास
एक भाषा है
इस चिड़िया के पास
जो इस धरती को बचा सकती है
मुझे यह भाषा सीखनी है । (गौरैया पृष्ठ 119)
हाशिया सीरीज से उनकी तीन कविताएं हैं । हाशिया एक देखिए-
आओ
सब बैठ जाओ
बहुत जगह है
यहां हाशिए पर
तख्त उठा कर फेंक दो
कुर्सियां भी
यह मेज और इस पर रखा गुलदान भी
धीरे धीरे
जगह पर बनाओ
बैठो, गांओ, बतियाओ
अलख जगाओ
बहुत जगह है
यहां हाशिये पर (पृष्ठ 45 )
जब मणि मोहन मेहता यह कविता लिखते हैं तो लगता है कि राजेंद्र यादव के संपादकीय ं में किये गये आव्हान को कविता का रूप प्रदान करते प्रतीत होते है। हाशिए के समाज को आओ और अपना हक और हिस्सा पाओ के आव्हान किए जाने का ही एहसास होता है। कवि सारे तख्त और कुर्सी हटा कर उस जगह हाशिए के लोगों को आदर के साथ बैठाने की बात करता है, जगह पर जम जाने की बात करता है।
हाशिया दो कविता के देखिये -
बेटी ने अभी अभी
बनाई है रंगोली
पत्नी ने अभी-अभी
रखा है दिया
हाशिय पर बैठकर
मैंने भी लिखी है
अभी-अभी एक कविता ( हाशिया दो पृष्ठ 46)
हाशिया तीन में कवि का अंधेरे से लड़ते दीपक पर बड़ी आशा है‘
रोशनी की कथा में
दूर तक पसरा है
अंधियारा
गनीमत है
कि हाशिये पर ही सही
इस अंधेरे से
लड़ तो रहा है
मिट्टी का एक दिया (हाशिया तीन )
महिलाओं और बच्चों पर लिखते हुंए कवि ज्यादा भावुक हो जाते हैं, एक पागल स्त्री कविता स्त्रियों के बारे में देखिए-
जब थक गई वह
खुद से बतियाते बतियाते
तो एक गीत गाने लगी
और फिर गाते गाते
सुबकने लगी ...
देश की राजधानी के
प्लेटफार्म नंबर एक पर
एक पागल स्त्री ।
सामान के नाम पर
उसके पास सिर्फ एक पोटली
और एक गंदी सी बॉटल थी
पानी की...
और हां ! उसके पास
इस संसार की
लुप्त हो चुकी
एक भाषा भी थी
(एक पागल स्त्री पृष्ठ 67)
डूबना कविता में कवि एक मेहनती स्त्री, और श्रम के आनंद की बात करता है, देखिए -
इस तरह
डूबने का
अपना आनंद है
जैसे दिन भर की हालत तोड़ मेहनत के बाद
कोई चुपचाप चला जाए
गहरी नींद में ...
या फिर कोई स्त्री
अपने बच्चे को
स्तनपान कराने
और उसे लोरी सुलाने के बाद
दबे पांव निकल जाए
रात की पाली में
अपने काम पर। (डूबना पृष्ठ 69)
मणि मोहन मेहता की कविताएं छोटी हैं लेकिन उनके अर्थ बहुंत गहरे होते हैं। कम शब्दों में गहरे आशय भर देना, एक छोटी कविता में सब कुछ कह देना बहुत कठिन होता है । मनी मोहन मेहता की कविताएं न केवल हमारे आसपास की बातें करती हैं बल्कि सहज अंदाज में जीवन के गहरे आशय, दर्शन, विचार और अंतरात्मा की बात भी करती हैं। भारत में जागरूक हो रहे मतदाताओं या आम आदमी की बात मणि भाई कितने अलग अंदाज में करते हैं , इसे देखना है तो उनकी लोकतंत्र कविता देखिए-
वोट डालने की मशीन देखने के बाद
उस बूढ़ी स्त्री ने
बहुत गुस्से के साथ कहा
कि इस बार वह किसी को वोट नहीं देगी
क्योंकि उसका गरीबी रेखा वाला
राशन कार्ड नहीं बना
दुख हुआ सुनकर
और सुखद आश्चर्य भी
कि उसकी शिकायत मे
ं बड़ी चालाकी के साथ
अचानक पैदा किए गए मुद्दे शामिल नही
और गलत भी तो नहीं उसका गुस्सा
किस लोकतंत्र के तमाशे में
भूख अभी भी
पहले पायदान पर है ( लोक तंत्र पृष्ठ 59)
एक कविता भरोसा में मणिमोहन लिखते है-
कुछ तोड़ने को तैयार खड़े हैं
कुछ कोशिश कर रहे हैं
कुछ तमाशबीन हैं
कि टूटे तो तालियां बजाएं
किसे दोश दें
किसे कसूरबार ठहराऐ
हमने भी तो
अपना भरोसा
दही हांडी की तरह
लटका दिया है चौराहे पर कविता भरोसा
(पृष्ठ 28)
एक अन्य कविता में लिखते हैं
जैसे-जैसे मनुष्य
शिखर की तरफ बढ़ रहा है पानी
धरती के भीतर अंधकार में
गहरे और गहरे उतर रहा है
बेहद डरा हुआ है पानी
बेहद भयावह है
पानी की आत्मा में
दुबक कर बैठा
वह डर मनुष्य के लिए (डर पृष्ठ 107)
कवि जब पानी की बात करता है और शिखर की बात करता है तो ना वह पर्वत या मंदिर के शिखर की बात कर रहा है ना ही वह पानी की बात कर रहा है । पानी शब्द बहू अर्थी है और शिखर भी।
बहुअर्थी और बहुआयामी शब्दों से खेलते, बिना किसी शिल्प का सहारा लिए कविता लिखते बल्कि कविता कहते मणि मोहन मेहता दुंनिया जहान की बात करने के बाद भी अपने कवि होने का न दम्भ पालते है न प्रदर्शन करते है।
एक मेहनती, प्रतिभाशाली और शब्दों के बाजीगर का यह संग्रह पढ़ने योग्य है।
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राज बोहरे
89 ओल्ड हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी
बस स्टैण्ड दतिया 475661