महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 6 Captain Dharnidhar द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 6

केतकी मन में सोच रही थी.. खुशी की बात हो और खुशी न हो.. यह कैसे हो सकता है ..क्या अभय का नेचर ही ऐसा है ..या शादी की थकान है..सास ने केतकी से कहा ..बहु ये पडौस की महिलाएं अभी तुम्हारे पास आयेंगी बातें करेंगी ..इनको प्रणाम करना ..हमारे यहां पांव दबाये जाते हैं..जानती है या समझाऊं..नही नही मम्मी मैं जानती हूँ ..आप तो बता दीजिएगा किस किस के पांव लगना है ..ठीक है मेरी नणद है उसको भेज देती हूँ वह समझा देगी ..
नणद आ गयी बोली ..केतकी मै बुआ हूँ ..केतकी झट से खड़ी होकर पांव लगी ..बुआ के मुख से आशीर्वाद की झड़ी लग गयी ..शीली हो सपूती हो बूढ़ सुहागिन हो ..केतकी बोली ..बुआ जी इतना लंबा आशीर्वाद.. बुआ को हंसी आगयी बोली बहु हमारे पास तो आशीर्वाद ही है ..इसमे कंजूसी क्यों रखें ।
बुआ जी बोली केतकी ..! आओ मैं इन सब से मिलवादूं..बुआ ने सब महिलाओं का परिचय दिया और सबको 10 -10 रूपये दिलवाकर
पांव लगवाने लगी ..केतकी बड़े चाव से बुआ के कहने से सबको मुस्कुराहट के साथ प्रणाम करने लगी ।
सभी महिलाएं धीरे धीरे अपने अपने घर चली गयी ।
बुआ आवाज देकर केतकी की सास को बुला रही है ..भाभी..ओ..भाभी ..हां जीजी ..आई आई .. हां बोलो...बुआ बोली .. देव दर्शन के लिए भी तो जाना है ..कितने बजे चलना है..बस जीजी ये थोड़ा फ्रेस हो जायें.. नहाले धोले ..ठीक है बहु तुम्हे बाथरूम बतादूं तुम तैयार हो जाओ .. अभय ! तुम भी तैयार हो जाओ ..बाहर का बाथरूम खाली है ।
बहु अंदर तैयार होने चली गयी ..अभय अपनी मा के पास से निकला तो मा धीरे से बोली यह सब तेरी गलती है अब बहु को पता चलेगा तो जबाब तू ही देना ..

देव दर्शन भी सब कर आये .. अब केतकी अपने कमरे में बैठी थी थोड़ी देर बाद मोबाईल पर घंटी बजी ..केतकी की मम्मी का फोन .. ..फोन की घंटी सुन अभय भी केतकी के पास आ गया ..केतकी ने फोन उठाया ..हैलो..केतकी..हां प्रणाम मम्मी ..कैसी हो ? ..ठीक हूँ मम्मी ..केतकी सारा घर सूना सूना हो गया तेरे जाने से ..तू बता ससुराल में सब रश्म हो गयी ..पता नही मम्मी अभी देव दर्शन करके आये हैं ..बाहर से बुआ की आवाज सुन केतकी बोली मम्मी..मम्मी मैं बाद में बात करूंगी ।
केतकी तुम तैयार हो गयी ? हां बुआजी चलो बाहर आ जाओ ..केतकी आगयी, बाहर सभी रिश्तेदार इक्कठे हो रखे हैं ..चौक में एक चौकी लगा रखी है उस पर एक सोडिया बिछा रखा है ..बुआ जी बोली आवो आवो ..केतकी को चौकी पर बैठा दिया ..बुआ जी बोली बहु घूंघट निकाल ले .. केतकी थोड़ा सा असहज हुई बुआ जी की ओर देखा ..कनखियों से अपनी सास को देखा ..सास झुककर धीरे से बोली बेटा ..रश्म है .. सास ने उसके सिर की चुनरी को आगे खींचकर घूंघट निकाल दिया ..
केतकी के मन में सवालों की लाइन लग गयी ..यह कैसी रश्म है ? पढ़े लिखे होकर ..नहीं नहीं मैं घूंघट नही निकालूंगी.. इतने मैं एक बुजुर्ग महिला ने घूंघट के छोर पकड़कर झांक कर देखा और उसके हाथ में 100 रूपये थमा दिये ..फिर दूसरी महिला ने भी ऐसा ही किया.. बुआ का नंबर आया ..उसने कुछ उपहार वस्त्र उसको दिया और पीछे हट गयी ..भाभी अब तुम्हारा नंबर है ..केतकी की सास ने सोने की चेन उसको पहनाई और 500 रूपये हाथ में दिये ..बुआ बोल पड़ी ..भाभी इतना ही.. कम से कम 11000 हजार तो दो ..देखो नणद जी सब कुछ इसका ही है .. बाकि महिलाएं भी बोलने लगी .. कस्तुरी सब इसी का है पर 500 कम है ..कस्तुरी ने बटवे से 600 रूपये निकाल कर केतकी के हाथ में धर दिये और सिर पर हाथ रखा ..पुचकारते हुए बोली बहु तुम खुश रहो ।
केतकी को पहले तो अटपटा लगा.. पर अब उसे अच्छा लग रहा था ..
केतकी की सास अपने पति से बोली अब आप लोंगो की बारी है ..केतकी सोच रही थी.. क्या मर्द भी घूंघट में झांकेंगे ? ओहो ..
क्रमश----