नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 40 Poonam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 40

"इन सिग्नेचर्स के बाद, ऑफिशियली ये कॉन्ट्रैक्ट खतम हो जायेगा।"
सबिता अपनी टीम के साथ मीटिंग रूम में थी और लॉयर को कहते सुन रही थी।
उसके ठीक सामने देव सिंघम अपनी टीम के साथ बैठा था।
वोह दोनो यहां लास्ट डॉक्यूमेंट को साइन कराने आए थे हैंडओवर करने के लिए क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक इसके बाद का कंस्ट्रक्शन का काम मैनेजमेंट टीम को संभालना था।

"सर, मैडम, आप दोनो को कुछ पूछना है?" लॉयर ने पूछा।
"नही," सबिता ने तुरंत जवाब दिया। वोह मीटिंग लगभग दो घंटे तक चलती रही। और पूरे टाइम सबिता की नज़रे सिर्फ टेबल पर ही गड़ी हुई थी उन पेपर्स को देखने में जिनमे लिखे हुए अक्षर सबिता पढ़ नही सकती थी।

"सर?" लॉयर ने पूछा।
"सब ठीक है," देव ने अपनी भारी और गहरी आवाज़ में कहा। "अगर कुछ पूछना होगा, तोह मैं टीम से डायरेक्ट कॉन्टैक्ट कर लूंगा।" देव फिर कुछ पल रुक गया और सबिता को उसकी नज़रे अपने ऊपर महसूस होने लगी जबकि वोह अभी भी टेबल पर ही देख रही थी। "आई वांट एवरीवन फॉर एक्सेप्ट सबिता प्रजापति टू लीव दिस रूम," देव ने रुकने के बाद फिर कहा।

देव के कहते ही जितने भी लॉयर थे और देव के आदमी थे वोह सब उठ गए और बाहर चले गए। बस सबिता के आदमी अभी भी वहीं बैठे हुए थे अपनी जगह, वोह वहां से हिले भी नही।
"लीव नॉउ, नही तोह फिर तुम्हारी बॉडीज बाहर जाएंगी इस रूम से," देव ने धीरे से लेकिन धमकाते हुए कहा।

जब सबिता के लोग थोड़ा सकुचाने लगे तोह सबिता ने ध्रुव की तरफ देखा। "जाओ। बाहर इंतजार करो। मैं बाद में आती हूं," सबिता ने ध्रुव से कहा।

ध्रुव थोड़ा असमंजस में था लेकिन उसने अपना सिर हिला दिया और अपने सभी लोगों को लेकर बाहर चला गया।

जैसे ही उनके जाने के बाद दरवाजा बंद करने की हल्की सी क्लिक की आवाज़ आई, देव अपनी चेयर से उठ खड़ा हुआ और सबिता के सामने आ गया। सबिता ने धीरे से नज़रे उठा कर देव की ओर देखा।

"कैसी हो तुम?" देव ने प्यार से पूछा। सबिता चुप रही। उसके गले में से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। वोह बस देव को देख रही थी। उसने बहुत कोशिश करते हुए कहा, "मैं ठीक हूं।"
देव ध्यान से उसका चेहरा देख रहा था। अब सबिता के चेहरे पर आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स दिखने लगे थे। पर देव ने कुछ नही कहा की अगर वोह ठीक है तोह उसके चेहरे की ऐसी हालत क्यों है। सबिता जानती थी की देव को वोह ऐसी लग रही होगी जैसे किसी ने सबिता को खूब मारा है और उसपर जुल्म किया है। देव उसके नज़दीक आया और उसने अपना हाथ बढ़ाया। देव ने उसके चेहरे पर आए बालों को पीछे किया और कान के पीछे अटका दिए। सबिता ने एक बार भी इसका विरोध नहीं किया। देव ने अब धीरे से अपने दोनो हाथों को कुर्सी की बाह पर रख दिए। वोह और थोड़ा झुक गया। उसकी नाक सबिता की गर्दन से टकरा रही थी। सबिता ने महसूस किया की देव उसे स्मेल कर रहा है।
"आई मिस द स्मेल ऑफ़ रोज़ेस," देव ने कहा। "आई मिस यू, टू। आई मिस यू अ लॉट, बेबी," उसने आगे कहा।
सबिता के होंठ कपकापने लगे। "तुमने मुझे मिस नही किया?" देव के सवाल ने सबिता को अंदर तक हिला दिया। सबिता ने देव सिंघम जैसा इंसान आज तक नही देखा था। उसके जैसा चार्मिंग और कॉन्फिडेंट आदमी से वोह कभी नही मिली थी। कभी कभी वोह थोड़ा घमंडी और गुस्सा भी हो जाता था लेकिन इस तरह नही जिस तरह वोह आज बात कर रहा था।
उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जो सबिता को तोड़ रहा था, वोह बिखर रही थी। वोह उसकी ओर खींचता महसूस कर रही थी। सबिता ने अपनी आंखे भींच ली और अपनी मुट्ठी कस दी। वोह पूरी कोशिश कर रही थी की देव के सामने अपने इमोशंस नही आने देगी।
असल में तोह उसने देव को बहुत मिस किया था। उसने उसकी मुस्कुराहट को मिस किया था। उसने अपने गाल पर देव के होंठों के स्पर्श को मिस किया था। उसने उसके होंठों का ताप अपने होंठों पर मिस किया था। उसने उस आदमी को बहुत मिस किया था जिसने उसका दिल ही चुरा लिया था।
"क्यों?" देव ने उसी टोन में पूछा। सबिता ने कुछ नही कहा। वोह कह ही नही सकी। उसका गला मानो चोक हो गया था। सबिता ने महसूस किया देव अपनी उंगलियों से इसके गाल को सहला रहा है। उसने अब सबिता के माथे को शिद्दत से चूम लिया और अब वोह उसके गाल की तरफ बढ़ने लगा। सबिता को तोह पता ही नही चला की कब उसके रोक हुए आंसू उसकी आंखों से झलक कर उसके गाल पर लुढ़क गए। उसे अपने रोने का एहसास तब हुआ जब देव ने अपने होंठों को उसके गाल से नीचे लुढ़क रहे आंसू पर रख दिया और उसके आंसू को अपने होंठों पर समा लिया।
"हम क्यों साथ नही रह सकते?" देव ने प्यार से पूछा। सबिता जानती थी की वोह अपने आप को उसके सामने ऐसे बिखरने नही दे सकती थी। उसने अपनी पूरी ताकत से अपने इमोशंस को कंट्रोल करने की कोशिश की और बड़ी जिद्दोजेहत के बाद उसने कहा, मैं... मैं नही रह सक... ती।" उसने अपनी लड़खड़ाती आवाज़ को काबू में करने की कोशिश करते हुए कहा, "मैं नही रह सकती तुम्हारे साथ। हम दोनो एक दूसरे के लिए नही बने है।"
"ऐसा मत कहो," देव ने भावुक होते हुए कहा। "तुम क्यों मुझे अपनी ज़िंदगी से बाहर निकाल रही हो?" देव ने आग्रह करते हुए पूछा।
सबिता को अब धुंधला दिखने लगा था क्योंकि उसके आंसू लगातार बह जा रहे थे। उसकी आंखों में सिर्फ आंसू थे और कुछ नही। अब वोह और ज्यादा अपने आंसू को रोक नहीं सकी थी।
"क्योंकि मैं तुमसे प्यार नहीं करती," सबिता ने वोही अपना पुराना झूठ फिर बोला। "मेरी ज़िंदगी में अब कोई और है। तुम मुझे अकेला छोड़ दो," सबिता ने फुसफुसाते हुए कहा।
देव ने एक गहरी सांस ली और पीछे हट गया। तुरंत ही सबिता को देव की गरमाहट का एहसास दूर जाता महसूस हुआ। सबिता ने अपनी आंखे खोली और देव को देखने लगी। उसकी आंखों में उसे अपने लिए गुस्सा और धोखे का एहसास महसूस हो रहा था। गुस्सा वोह समझ सकती थी। लेकिन अपने प्रति देव की नजरों में धोखा का एहसास देख कर सबिता का दिल मानो हज़ार बार बार टूटा गया। वोह जानती थी की देव यही समझ रहा है की इन तीन महीनों में जब वोह साथ थे उस वक्त की उन दोनो की बॉन्डिंग का सबिता की नज़रों में कोई मतलब नही है। वोह यह भी जानती थी देव जरूर ऐसा ही समझ रहा है की सबिता उससे बिल्कुल प्यार नही करती या इतना प्यार नही करती की अपने प्यार के लिए लड़ सके।
शायद देव सही हो। वोह उससे प्यार तोह करती है लेकिन इतना नही की अपने प्यार और उन दोनो के भविष्य के लिए लड़ सके। सबिता को देव के चेहरे पर कई अलग अलग तरह के भाव नज़र आ रहे थे, गुस्सा, धोखा और शायद नफरत भी।
वोह बस अब यहां से भागना चाहती थी। एक दूसरे के नज़दीक आने से पहले वोह एक दूसरे से सिर्फ नफरत करते थे। उस वक्त जो देव के चेहरे पर भाव होते थे सबिता के लिए, वोही भाव सबिता आज फिर देव के चेहरे पर देख रही थी।
पर इस बार उसकी नफरत भरी निगाहों से सबिता को फर्क पड़ रहा था, बल्कि बहुत फर्क पड़ रहा था। उसको अंदर तक मानो आघात कर रहा था।
देव उसको कुछ देर और ऐसे ही देखता रहा। और फिर वोह पलटा और कमरे से बाहर चला गया। और छोड़ गया सबिता को तन्हा, अकेला और टूटता हुआ।

****

कुछ दिनों तक देव अलग अलग कंट्रीज में घूमता रहा उसे ढूंढने जिसकी जब भी उसे कोई लीड मिलती उसके बारे में जिसने रायडू को मारा था। वोह एक ऐसे ही ट्रिप से लौटा था और अभी सिंघम मैंशन में बने ऑफिस में कुर्सी पर बैठे बैठे सो रहा था की अभय ने आ कर उसे जगा दिया।
"देव।"
देव ने अपनी नींद से बोझिल आंखों को हल्का सा खोला और सामने अभय खड़ा पाया जिसके चेहरे पर कुछ गंभीर से भाव थे।
"क्या हुआ?" देव ने पूछा।
"कल रात वीरेंद्र प्रजापति नही रहे।" अभय ने जवाब दिया।
सबिता के दादाजी का कल रात इंतकाल हो गया था। "मुझे बस दस मिनट दो मैं चलता हूं तुम्हारे साथ।" देव ने कहा।
अभय ने सिर हिला दिया। "तुम ठीक तोह हो?" अभय ने पूछा।
*नही। मैं बिल्कुल भी ठीक नही हूं। मुझे वोह अपनी जिंदगी में वापिस चाहिए जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं और चाहता हूं की वोह भी मुझे वापिस प्यार करे और मेरी जिंदगी में वापिस आ जाए।*
देव अपनी मन की बात चीख चीख के कहना चाहता था लेकिन उसने उस विचार को आवाज़ नही दी और इसके बदले बस इतना कहा, "मैं ठीक हूं।"

दो घंटे बाद, देव, अभय और अनिका, प्रजापति मैंशन में थे, वीरेंद्र प्रजापति के अंतिम संस्कार में।

नीलांबरी प्रजापति अपने पिता के पार्थिव शरीर के पास फूट फूट कर रो रही थी और बाकी सबके चेहरे भी गंभीर थे। पहली बार अपनी आपसी रंजिश को साइड रखते हुए प्रजापति, सिंघम और सेनानी तीनो एक साथ थे, प्रजापति के घर के सबसे बड़े सदस्य को श्रद्धांजलि देने। देव ने आगे बढ़ कर वीरेंद्र प्रजापति को श्रद्धांजलि दी और फिर एक साइड खड़ा हो गया। उसकी नज़र अब सबिता को ढूंढ रही थी। वोह आखिरकार उसे दिख गई, दूर एक कोने में दुखी और शांत मन से खड़े हुए। देव जनता था की सबिता को बहुत दुख हुआ है अपने दादाजी के जाने का क्योंकि वोह उनसे बहुत ही ज्यादा अटैच्ड थी भले ही वोह उनसे ज्यादा बात नहीं करती थी और ज्यादा समय भी नही बिताते थी। देव आगे बढ़ने लगा, सबिता को सांत्वना देने, उसे कंफर्ट महसूस कराने। लेकिन उसके कदम बीच में ही रुक गए जब उसने रेवन्थ सेनानी को उससे पहले पहुंचते देख लिया। रेवन्थ सेनानी उससे बात करने लगा।
देव बस पलट कर अपनी जगह वापिस जाने ही वाला था की सबिता की नज़र देव की नजरों से टकरा गई। देव को उसकी आंखों में मातम के भाई नज़र आ रहे थे। एक सेकंड को देव यूहीं उसे देखने लगा जैसे की वोह भी उसका कंफर्ट पाने के लिए बुला रही हो। पर नही यह ज्यादा वक्त के लिए नही था। सबिता देव से नज़र बचा कर दूसरी तरफ देखने लगी। ऐसा नहीं था की वोह रेवन्थ सेनानी से बात कर रही थी। वोह तोह वहां से उठ कर ही चली गई।
देव उसे जाते हुए देखने लगा। वोह ना चाहते हुए भी उसके पीछे चलने लगा उसे संभालने, उसे कंफर्ट महसूस कराने। पर उसके कदम रुक गए जब रेवन्थ सेनानी ने आगे आकर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया उसे रोकने के लिए। दोनो ही एक दूसरे को घूरने लगे। जहां रेवन्थ सेनानी उसे अपनी खाली आंखों से घूर रहा था, वहीं देव उसे गुस्से भरी नज़रों से घूर रहा था।
"उससे दूर रहो, सिंघम," रेवन्थ सेनानी ने देव को चेतावनी देते हुए कहा। "यह मत समझना की मैं अंधा हूं या बेहरा हूं जो ये नही नोटिस करूंगा की क्या हो रहा है मेरी आंखों के सामने।"
देव ने उसकी बात को ज्यादा तवज्जू नही दिया और ना ही उसे जवाब देने में कोई इंटरेस्ट दिखाया। देव की आंखें तोह लगातार सबिता को ढूंढ रही थी।
"किसी और की होने वाली वाइफ को देखना बंद करो। अगर इंटरेस्ट दिखाना ही है तोह मेरी बहन की तरफ दिखाओ जो जल्द ही तुम्हारी वाइफ बनने वाली है।"

देव की नज़र फिर रेवन्थ से जा टकराई। "मैने अभी तक शादी के लिए हां नही कहा है," देव ने ठंडे पन से जवाब दिया।

"ठीक है शायद नही कहा है। तुम मेरी बहन से शादी करो या ना करो इसे मेरे और सबिता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हम जल्द ही शादी कर रहें हैं। और अगर तुमने कोई दखल अंदाजी की....... तोह तुम्हारे और तुम्हारे लोगों के लिए अच्छा नहीं होगा।"

देव को इतना गुस्सा आया की उसका मन किया की उस बास्टार्ड को एक ज़ोर का पंच मार दे। पर जगह की एहतिमियत्ता को देखते हुए उसने अपना गुस्सा कंट्रोल कर लिया।

"दुबारा मेरे लोगो को धमकाने की सोचना भी मत," देव ने उसे वार्न किया। और फिर उसे घूरते हुए उसने आगे कहा, "क्या बात है, सेनानी? तुम्हे हर उस आदमी को वार्न करने की जरूरत पड़ रही है जो भी तुम्हारी मंगेतर से बात करेगा उसके ही दादाजी के अंतिम संस्कार में। मुझे बहुत दुख हो रहा तुम्हारी इनसिक्योरिटी देख कर।"

रेवन्थ सेनानी के जबड़े भींच गए पर उसने कुछ नही कहा। उन दोनो के बीच उस वक्त झगड़ा हो रहा था या बहस, जो कहो, लेकिन देव उसे खतम किए बिना ही रेवन्थ को घृणा की नज़र से देखते हुए चला गया। वोह तोह बस उस घटिया इंसान को चिंगारी जला कर उसे उकसाने का काम कर रहा था। उसे एक बार को ऐसा लगा की उसके आखरी शब्दो से रेवन्थ की बोलती बंद हो गई थी और उसने बदले में पलट कर कुछ नही कहा मानो देव की ही उस बहस में जीत हो गई हो। उसे तोह अभी भी यकीन नही हो रहा था की सबिता उस घटिया इंसान से शादी करने का सोच सकती है, रेवन्थ सेनानी जैसे इंसान से।
अपने आप को बेचारा सा महसूस करते हुए देव प्रजापति मैंशन से बाहर निकल गया। यह सोच के की वोह वापिस सिंघम मैंशन जायेगा लेकिन बीच में ही उस के फोन में बीप का साउंड आया। डेफिनेटली वोह मैसेज का साउंड था। उसने चैक किया तोह इन्वेस्टीगेटर का था की जो लीड मिली थी उससे कुछ हासिल नहीं हुआ।
निराशा से वोह सीढियां उतरने लगा। जब वोह आखरी सीढ़ी पर पहुंचा तोह उसने एक बूढ़े आदमी को अपनी स्टिक के सहारे सीढियां चढ़ते हुए देखा। कपड़ो से वोह बूढ़ा इंसान पादरी(प्रिस्ट) लग रहा था।

"मैं आपकी मदद करता हूं, फादर," देव ने कहा और सीढियां चढ़ने में उनकी मदद करने लगा। जब पादरी सबसे ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचा तब तक उनकी सांस फूलने लगी। देव इंतजार करने लगा की वोह रिलैक्स फील करें फिर अंदर चले जाए और किसी और की हेल्प ले लें।

"थैंक यू, माय सन," पादरी ने देव का धन्यवाद किया। फिर एक आह भर कर उन्होंने कहा, " मुझे नही पता था की एक दिन मुझे वीरेंद्र के अंतिम संस्कार में आना पड़ेगा। वोह तोह इतना बूढ़ा भी नही था। वोह एक शांत रहने वाला इंसान था। ही वास ऑलवेज टोलरेंट एंड जेनरस टू अदर्स। क्वाइट ट्रैजिक। क्या हो गया यह सब उसके साथ और उसकी फैमिली के साथ।"

देव ने चुपचाप सिर हिला दिया।

"हिस सन हर्षवर्धन एंड यशवंत, वर इक्वली टॉलरेंट, टू। बट अनफोर्टिनेटली, जब वोह मारे गए उस ट्रैजिक इंसिडेंट में तोह यहां के लोगों का सब्र खतम होने लगा। हमारे ज्यादा तर पादरी तोह कुछ दिन बाद ही छोड़ कर चले गए।"

कुछ खटका देव को। "फादर, आप किसी ऐसे को जानते हैं जो पादरी नही हो और उस पर वक्त वोह भी यहां से चला गया था?"

पादरी मुस्कुराया। "हां जनता हूं कुछ को। कुछ तोह मुझे अक्सर मेरा हाल चाल जानने के लिए फोन करते रहते हैं।"

देव ने अपना फोन निकाला और उन्हे रायडू की फोटो दिखाई। वोह फोटो तकरीबन पच्चीस साल पुरानी थी पर उसके पास बस यही थी। "क्या आप इसे पहचानते हैं, शायद यह भी गया हो उन पादरियों के साथ?"

पादरी ने अच्छे से उस फोटो को देखा। "आई एम नॉट श्योर। मेरी यादाश्त और नज़रे दोनो ही कमज़ोर हो गई हैं," पादरी ने कहा।

देव को फिर से बड़ी निराशा हुई।

"पर मुझे यकीन है की फादर मैथ्यू शायद जानते हो की इसने भी साथ में ही यह जगह छोड़ी थी की नही। वोह उस वक्त बहुत जवान हुआ करते थे।"

*मैथ्यू? यह तोह वोही सरनेम है जो रायडू ने लास्ट में यूज किया था। क्या यह संजोग है?*

"फादर मैथ्यू का पूरा नाम क्या है?" देव ने पूछा।

"समेउल मैथ्यू।"

देव को झटका लगा। यह इतना बड़ा संजोग तोह नही हो सकता। "मुझे फादर मैथ्यू कहां मिलेंगे?" देव ने बेसब्री दिखाते हुए पूछा।

"वोह तोह बाहर गए हुए हैं और दस दिन बाद आयेंगे," फादर ने जवाब दिया।

"क्या आप मुझे उनका फोन नंबर दे सकते हैं। मेरे लिए यह बहुत इंपोर्टेंट हैं।"

पादरी ने अपना सिर हिला दिया। "उन्होंने बताया था की वोह जहां जा रहें हैं वहां उन्हे कॉन्टैक्ट करने मुश्किल है।"

"आई सी। क्या मैं आपसे शाम को उनके बारे में और डिटेल्स ले सकता हूं।"

"श्योर, माय बॉय। मेरे दरवाज़े उन सभी के लिए खुले हुएं हैं जो भी मेरी मदद चाहता है।"

देव को सामने कोई आता दिखाई दिया। उन उससे पादरी को अंदर ले जाने को कहा और खुद अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।

देव एक लंबी छलांग लगा रहा था लेकिन उसे अंदेशा होने लगा था की जरूर यहां पर किसी ने रायडू की मदद की है भागने में। रायडू को किसने मारा था यह जानने के साथ साथ देव को यह भी जानना था की आखिर रायडू की मदद किसने की थी भागने में।

















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(पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏)