Nafrat se bandha hua pyaar - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 3

माहौल में तनाव महसूस करते हुए सबिता अपनी गाड़ी से उतर गई। अनिका प्रजापति और अभय सिंघम की शादी के बाद से कुछ सुधार हुआ था दोनो परिवारों के बीच संबंधों में। पर जब भी देव और सबिता एक दूसरे के सामने आते थे दोनो बस एक दूसरे पर आग ही बरसाते थे और उनके लोग भी तैयार रहते आगे होने वाले कदम के लिए। उसका मन तो कर रहा था की देव को अभी इसी वक्त गोली मार दे लेकिन अपने मन को बड़ी मुश्किल से शांत करवा के वोह देव के सामने चली गई।

"सिंघम" उसने औपचारिक तौर पर कहा।

"प्रजापति" देव ने भी अपनी गहरी आवाज़ में और उसी टोन में कहा।

बाहर से वोह दोनो अपने लोगों के लिए बिल्कुल सभ्य दिखाई दे रहे थे। सैकड़ों परिवार इस बात पर निर्भर थे कि उन दोनों के बीच क्या होगा। सिर्फ इसी कारण से उसने अपना हाथ आगे बढाया।
देव ने भी अपने बड़े और सख्त खुरदुरे हाथ बढ़ा कर उससे हाथ मिलाया।
सबिता ने महसूस किया की देव उससे हाथ मिलाते वक्त उसके हाथों पर हल्का दबाव बनाते हुए फिसला रहा है। जिससे महसूस कर सबिता को कुछ अजीब लगा। उसे उससे घृणा होने लगी लेकिन फिर सभी खयाल अपने दिमाग से निकाल दिए। देव सिंघम ने हाथों का इशारा करते हुए कहा "फॉलो मी" और उस बड़े से अस्थाई रूप से तैयार किए गए एक बिल्डिंग की तरफ बढ़ गया। सबिता उसके पीछे चलने लगी। उसके पीछे चलते हुए उसने अपने कपड़ों पर एक नज़र डाली, फिर देव पर। उसने बड़े अच्छे तरीके से और महंगे शर्ट और ट्राउज़र पहना हुआ था। उसकी नीले रंग की शर्ट के ऊपर के एक दो बटन खुले हुए थे क्योंकि बाहर बहुत गर्मी थी। एक महंगे सन ग्लासेस उसने अपनी नाक पर चढ़ाए हुए थे जो की उसकी आंखों को ढकने और उसके एक्सप्रेशंस छुपाने का काम कर रही थी। भले ही देव सिंघम एक हैंडसम लुक दे रहा था लेकिन सबिता जानती थी की देव एक हिंसक और खूंखार कमिना इंसान है। सबिता के लोग भी उससे डरते थे। कुछ साल पहले, जब देव सिंघम अपने भाई के साथ अपने घर अपने गांव वापिस आया था तब, नीलांबरी जी के आदेश की सिंघम परिवार पर हमला नही करना है के बावजूद भी, कुछ प्रजापति के आदमियों ने सिंघम भाइयों पर हमला कर दिया था। उस समय वोह अपने ही ज़मीन पर अपनी दादी के साथ घूमने निकले थे। प्रजापति के आदमियों को लगा सिंघम ब्रदर्स तो निहत्थे हैं तो उन्हें मरना बहुत ही आसान होगा। पर देव सिंघम ने कुल्हाड़ी से ही प्रजापति हमले का जवाब दिया था। उस वक्त उसके पहनावे से प्रजापति आदमियों को गलतफेमी हो गई थी और उसके कौशल को कम आंक लिया था। सबिता ने खुद अपनी आंखों से देखा था की उसके बाद देव सिंघम ने उन प्रजापति आदमियों का क्या हाल किया था। तब से लेकर अब तक देव सिंघम ने उस खास कुल्हाड़ी को कई बार वीभत्स तरीके से प्रजापति आदमियों का खून कर चुका था, जब तक की अभय सिंघम ने उसे बीच में आके उसे रोका नहीं। और इस तरह से खूनी लड़ाई ना हो, अभय सिंघम ने देव सिंघम को शहर भेज दिया था। सबिता जानती थी की जितना शांत और समझदार अभय सिंघम है, देव सिंघम उतना ही कठोर, गर्म दिमाग का, गुस्सैल, खड़ूस और क्रूर कमीना इंसान है। उसे सुख सुविधाएं ऐशो आराम और पैसा विरासत में मिली थी जो उसे घमंडी और आलसी भी बनाता था। सबिता ने सुना था की देव सिंघम ने कई प्रोजेक्ट्स अकेले हैंडल किए हैं और पूरे भी किए हैं, फिर भी उसे शक था की वोह अपने भाई के कई बार दखल के बिना शायद ये वाला प्रोजेक्ट्स नही कर पायेगा।

"ये वर्कर्स का एरिया है," देव की गहरी आवाज़ सबिता को सुनाई पड़ी। उसने बताया की यहां वर्कर्स काम के बाद आराम कर सकते हैं। सबिता बड़े ध्यान से सब सुन रही थी और देख रही थी। अभय सिंघम ने जो प्रोजेक्ट्स कोलेबोरेशन कर हाथ मिला कर उदारता दिखाई थी उसे सोच कर सबिता अभी भी बहुत हैरान थी। वे दोनो नहर और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स शेयर करने वाले थे। उसने सुना था की ये ऑफर पहले सेनानी को भी दिया गया था, लेकिन सेनानियों ने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया था।

"यह ऑफिस क्वार्टर्स हैं" देव सिंघम वर्कर्स एरिया से निकल कर सेमी प्राइवेट स्पेस की तरफ आ गया था।
दो बहुत ही बड़े कमरे एक साथ अगल बगल बने हुए थे जिनके बीच एक कॉमन दीवार थी। सबिता ने भौए सिकोड़ कर पूछा "हमारा रूम वर्कर्स रूम से दूर क्यों है?"
"ताकि वर्कर्स भी आराम कर सके अगर हम उनके आराम करने के वक्त भी इर्द गिर्द रहेंगे तो वो चैन से सांस भी नही ले पाएंगे और एक अनजाना बॉस का डर उनके ज़हन में हर वक्त बना रहेगा," देव ने बहुत ही शांत भाव से जवाब दिया और एक कमरे में सबिता को ले जाने के लिए दरवाज़ा खोला।
सबिता ने देखा एक नॉर्मल साइज का ऑफिस रूम था जिसमे पीछे की तरफ एक सेमी प्राइवेट बैड लगा हुआ था और बाथरूम भी था।
"यह मेरा ऑफिस है" देव ने कहा। "तुम्हारा भी इसी के जैसा ही दूसरा वाला रूम है मेरे रूम के बगल में"।
उसने सर हिलाया और अपने ऑफिस रूम की तरफ कदम बढ़ाया ही था की देव की आवाज़ ने उसे रोक दिया।
"मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है," देव ने कहा और अपने ऑफिस रूम के अंदर चला गया ये उम्मीद से की उसकी बात सुनके सबिता भी उसके पीछे पीछे आएगी।
सबिता ने पीछे पलट कर ध्रुव की तरफ देखा और कहा "मैं अभी आती हूं," "जब तक तुम मेरा ऑफिस चैक करलो और देखो वहां किसी चीज़ की जरूरत तो नही।" फिर वो आगे बढ़ गई देव के ऑफिस में जाने के लिए और देव उसी का इंतजार कर रहा था।
"बैठो," उसने एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा जबकी खुद एक बड़ी सिंहासन जैसी गद्देदार कुर्सी पर बैठा था। एक छोटा और हल्का सा क्लिक की आवाज़ आई सबिता के पीछे दरवाज़ा अपने आप ही बंद होने की, जिसके बंद होते ही वो दोनो बाहरी दुनिया से एकदम अलग हो गए।
"क्या बात है, सिंघम?" उसने पूछा।
"तुम बहुत नाजुक हो इस बाहरी काम के लिए? तुम्हे शायद आराम करने के लिए अपने रूम में बिस्तर की जरूरत है?"

सबिता जानती थी उसका बिना मतलब देव पर कटाक्ष करना बेवकूफी भरा है पर फिर भी उसकी नसें तनी हुई थी। वोह उसके साथ इस तरह व्यवहार कर रहा था जैसे की वोह उसकी एंप्लॉय है और देव उसका बॉस।
देव के चेहरे पर झंझलाहट आ गई "इसकी जरूरत नहीं है, में अफोर्ड कर सकता हूं, प्रजापति," देव ने सबिता की कॉफी का दाग लगी हुई शर्ट की तरफ घृणा से देखते हुए कहा।
"पर चिंता मत करो, में तुम्हे इसका बिल बिलकुल नहीं भेजूंगा जो लक्सरियस और फैंसी चीज़े मैने तुम्हारे ऑफिस में रखवाई है।"
सबिता ने ये सुन कर जबड़ा भींच लिया।
"इस पूरे प्रोजेक्ट पर जितना भी खर्चा होने वाला है, तुम जानते हो की प्रजापति अपना उचित और तै किया गया हिस्सा देगा।"

"हां! हां! देखते हैं कितनी जल्दी तुम मुझसे एक छोटा सा लोन मांगने आती हो।"

सबिता ने उसके ताने को इग्नोर करते हुए पूछा, "तुम्हे मुझसे क्या बात करनी थी?"

देव ने अपनी टेबल की ड्रॉअर खोली उसमे से एक फाइल निकली और उसमे से कुछ पेपर्स अलग कर सबिता के सामने रख दिया। "इस डॉक्यूमेंट्स को अच्छे से पढ़ लो।"

सबिता ने एक नज़र उन कागजों की तरफ डाली फिर कहा, "हम तोह पहले ही सभी जरूरी पेपर्स पर साइन कर चुके हैं।"

"कुछ सिंपल से बदलाव किए हैं वर्कर्स के शेड्यूल में" इन्हे एक बार पढ़ लो और फिर अपनी रजामंदी देदो ताकि में आज ही शाम तक सब कन्फर्म करदू।

सबिता अभी भी अपनी भौंए उचका कर उन कागजों की तरफ देख रही थी। "में अपने लॉयर से बात करके आपको बताती हूं, पहले वोह देखले फिर ही में कुछ कहूंगी।"

"इसकी जरूरत नहीं है, ये एक नॉर्मल सा डॉक्यूमेंट है बस तुम्हे पता होना चाहिए इसलिए दिखाया। इसमे तुम्हारे सिग्नेचर की भी जरूरत नहीं है बस तुम ऐसे ही अपने लोगों तक ये बात पहुंचा दो।"
सबिता ने सर हिलाया। "हो सकता है, लेकिन मैं अभी भी अपने अलावा किसी और को पहले इसे दिखाना पसंद करूंगी।"

वोह एकदम चुप और शांत भाव से बैठा था। उसने अपनी आंखों को सबिता पर टिका दी। वोह ध्यान से उसे उसके चेहरे को उसके एक्सप्रेशंस को पढ़ने लगा। फिर टेबल पर रखे उन डॉक्यूमेंट्स पर नज़र डाली।
उसने ऐसा बार बार किया जब तक की वो एक शॉकिंग नतीजे पर नहीं आ गया। उसकी आंखें बड़ी और हैरानी से फैल गई।
"डैमम्म्म! तोह इसका मतलब ये सही है की तुम अनपढ़ हो। तुम एक सिंपल सा......"

इसके आगे देव कुछ बोल पाता सबिता खड़ी हो गई, उसने तुरंत अपनी गन निकाल ली और देव के सिर की तरफ तान दी।
"अपनी किस्मत को और मत अजमाओ, सिंघम," उसने बड़े ही खतरनाक स्वर में कहा। "नही तो यहीं तुम्हारे इस लग्जरियस ऑफिस में तुम्हारे सर के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे। मेरे लिए सिर्फ यह एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना होगी।" उसने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा।
"हालांकि मुझे लगता है ये प्रजापति के लिए एक भाग्यशाली घटना होगी।"
सबिता ने देखा देव ने अपने हाथों को आपस में बंधा हुआ था।
अगले ही पल देव ने उसकी कलाई पकड़ी और उसे वापिस कुर्सी पर धकेल दिया।
"दुबारा अपनी गन मुझ पर तानने की जुर्रत भी मत करना।" वोह गुस्से से उसकी कुर्सी की तरफ आया।
सबिता उसे गौर से देख रही थी।
"यह मेरे लिए मुश्किल होगा क्योंकि जब आप अपना ये स्टूपिड सा मुंह खोलते हैं अपनी बकवास बातें करने के लिए तो मेरे हाथ खुद ब खुद चले जाते है मेरे हथियार पर। बल्कि आपका मुंह खोलना क्या, आपकी मौजूदगी ही काफी है।" सबिता ने गुस्से से झल्लाते हुए कहा।

देव उसके करीब बढ़ा और अपने चेहरा उसके करीब झुका लिया। बस कुछ इंच का ही फासला था।

वोह आसानी से उसके पास से आ रही खुशबू को सूंघ सकती थी।

"वैल! डार्लिंग!" हम दोनो बिलकुल एक जैसा सोचते हैं।
लेकिन में तुम्हे एक सुझाव दूंगा, की अपने आप पर कंट्रोल करना सीखो। नही तो तुम्हारे लोगों को या तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा या अपने राज्य से भागना पड़ जायेगा।" देव ने अपनी बात आराम से स्पष्ट शब्दों में समझाना चाहा।

सबिता ने अपना हाथ देव के सीने पर रखा और उसे धकेलने के लिए ज़ोर से धक्का दिया और कुर्सी से उठ खड़ी हुई। फिर उसने अपने हथेलियों को अपनी थाईज पर रगड़ ना शुरू कर दिया जैसे की देव को छूने से उसके हाथ गंदे हो गए हों।
"तुम्हे मेरे लोगों की परवा करने की कोई जरूरत नही," उसने ठंडे भाव से कहा। " उनकी चिंता करने के लिए में काफी हूं। अपना मुंह बंद रखा करो जब बात मेरी या मेरी पर्सनल चीजों की होती हो। जब तक की कोई काम से रिलेटेड बात ना हो मुझसे बात करने की जरूरत नही।" उसने वोह पेपर्स उठाए और दरवाज़े की तरफ बढ़ गई।
दरवाज़ा खोल कर वोह बाहर निकल गई और अपने पीछे से ही बिना मुड़े दरवाज़ा बंद कर दिया। लेकिन उसे जाते वक्त अपनी पीठ पर देव की जलती हुई निगाहें महसूस हो रही थी।





















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