नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर Yashvant Kothari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर

नजर लागी राजा तोरे बंगले पर

​यशवन्त कोठारी

​हे राजा, तेरे बंगले पर कईयों की नजर लग गई है। वे केवल मौके तलाश में है। मौका मिला और वे काबिज हुए। शायद कभी बिल्ली के भाग से छीका टूटे लेकिन एक दूसरी कहावत भी इस अवसर पर याद आ रही है न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेंगी। या फिर नाच न जाने आंगन टेढ़ा। कुछ समय पूर्व एक चैनल पर एक बाईट दिखाई गई थी जिसमें कई भूतपूर्व प्रधानमंत्री एक लाइन में बैठे थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री शपथ ले रहे थे। एक अखबार ने गप-शप कॉलम में यह भी लिख दिया था कि कब वर्तमान भूतपूर्व हो जाये और भूतपूर्व अभूतपूर्व हो जाये। वास्तव में सात रेसकोर्स के कोर्स का रास्ता पता नहीं कहां कहां से गुजरता है। सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए जितने शीर्षासन करने पड़ते है उससे ज्यादा शीर्षासन शीर्प पर टिके रहने के लिए करने पड़ते है।

​इधर देश में भावी प्रधान मंत्रियों की एक लम्बी लाइन बन गई है, हर कोई एक दूसरे को धक्का मुक्की दे रहा है और लाइन में सबसे आगे खड़ा दीखना चाहता है।

​भाजपा के पास भावी प्रधान मंत्रियों का भण्डार हे लाल कृष्ण आडवानी से शुरु करके नरेन्द्र मोदी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और अध्यक्ष खुद इस पद के प्रबल दावे दार है। कभी कभी शरद यादव, लालू यादव, और मुलायम सिंह यादव भी ताल ठोक कर भावी प्रधान मंत्री के अखाड़े में उतरने को बेताब दिखते है। ममता दीदी, जय ललिता, नितीश कुमार और ऐसे कई छुट भईये नेता इस पद पर नजर जमाकर बैठे है। एक अनार सौ बीमार वाला मामला है। कईयों को तो अर्जुन की तरह केवल चिड़िया की आंख ही दिखाई दे रही है। बाकी पेड़ से क्या लेना देना है। कांग्रेस में फिलहाल प्रधान मंत्री पद की जगह खाली नहीं है वहॉं पर नो वैकेन्सी का बोर्ड लगा हुआ है। अपनी कुर्सी को वर्तमान प्रधान मंत्री ने मजबूती से पकड़ रखा है। यदि डूबेंगे तो सब को साथ लेकर डूबेंगे। यदि तैरेगे तो किनारा हमारा है ही।

​प्रधान मंत्री बनने का सपना देखने का अधिकार भारत के हर नागरिक को है। और दिल्ली में बैठे बड़े नेता व राज्यों के क्षत्रप अक्सर यह सपना भोर में देखते है और दिन भर इस सपने के सहारे राजनीति करते है। सब जानते है कि राजनीति में कभी भी कुछ हो सकता है और क बन सकता है तो ख,ग,च,म,द,र,य क्यों नहीं। आपको सच बताऊं कभी कभी मेरा मन भी प्रधान मंत्री बनने को मचलता है, एक बार तो जोश में आकर मैं एम.पी. का फार्म भी ले आया था, मगर जमानत की राशि का इन्तजाम और उस राशि के डूब जाने के खतरे के कारण पत्नी ने मुझे खड़ा नहीं होने दिया और देश एक अयोग्य मगर ईमानदार प्रधान मंत्री से वंचित रह गया।

 

​जनकार लोग बताते है कि प्रधान मंत्री बनने में अंको का खेल बहुत महत्वपूर्ण और जादुई आकड़ों 272 है, इतने एम. पी. वाला ही प्रधान मंत्री बन सकता है मगर भावी प्रधान मंत्रियों के पास न तो इतने एम.पी. है और न ही होने की संभावना है वे तो पॉंच, दस पच्चीस या पचास एम.पी. के सहारे ये खेल खेल रहे हैं। रिन्द के रिन्द रहे हाथ से जन्नत न गई।

​कब चुनाव होंगे ? कब राष्टपति बुलायेंगे ? इन सब पचड़ों में पड़ने के बजाय सीधे सीधे अखबार या चैनलों पर शगूफा छोड़ दो मैं भी हूं  प्रधान मंत्री की दौड़ में। सात रेस कोर्स की रेस में सब घोड़े दौड़ने को बेताब है। सच पूछो तो सूरत कपास जुलाहे से लठ्ठम लठ्ठा। कभी ज्योति वसु ने प्रधान मंत्रीपद के लिए मना कर के खुद के पैरो पर कुल्हाडी मारी थी और वामदल आज भी प्रायष्चित कर रहे है। कई लोगो ने प्रधान मंत्री बनने के लिए कांग्रेस छोड दी। मुरार जी देसाई, चरण सिहं , विश्ववनाथ प्रताप सिहं, इन्द्रकुमार गुजराल ऐसे ही महा मानव थे।

किसी दल के पास राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं है। भाजपा में मजबूत और युवा नेता की तलाश जारी है। कांग्रेस यदि अपने बूते 272 का आकड़ा छू लेगी तो राहुल बन जायेंगे नहीं तो वर्तमान ही क्या बुरे है, किसी का बुरा नहीं सोचते। बुरा नहीं देखते। बुरा नहीं बोलते। बुरा नहीं सुनते। नेतृत्व का संकट सर्वत्र है। पार्टी की मजबूती से कुछ नहीं होगा नेता मजबूत हो तो पार्टी और देश पीछे पीछे चलता है और रेस कोर्स रोड के बंगले का कंटाकाकीर्ण मार्ग पर फूल बिछ जाते है मगर हे कहां ऐसा नेता। करिश्मा करना केवल कांग्रेस के बस की बात है। नेहरु, इन्दिरा या राजीव के करिश्मे के बाद काफी समय गुजर गया है। इस बंगले पर नेहरु, गांधी परिवार का कोई व्यक्ति नहीं आया राजा इस बंगले को आपका इन्तजार है। गठबन्धन धर्म से सरकारें घिसटती हुई चलती है बहुमत वाला राजा ही इस बंगले में जाये तो जनता, सरकार, अफसर, पार्टी, राजनीति, उधेंग, व्यापार,गरीब, अमीर सब को मजा आये।

​राजा तोरे बंगले पर सबकी नजर है और हमारी भी। इसलिए पुराना गाना फिर याद आ रहा है

​नजर लागि राजा तोरे बंगले पर।