लक्ष्मी शर्मा-स्वर्ग का अंतिम उतार राजनारायण बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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लक्ष्मी शर्मा-स्वर्ग का अंतिम उतार


स्वर्ग का अन्तिम उतार: रोचक उपन्यास
लक्ष्मी शर्मा

समीक्षा
राजनारायण बोहरे


एक जमाने में भारतीय ग्रामीण समाज के पुरुष गाय दान की हसरत करते थे, उपन्यास गोदान में प्रेमचंद ने होरी की हसरत को इसे बड़े विस्तार से बताया था। ठीक उसी प्रकार भारतीय व्यक्ति तीर्थ यात्राओं के लिए भी हमेशा उत्सुक और स्वप्न जीवी रहा है, चाहे मुस्लिम मित्रों के लिए हज यात्रा की हसरत हो अथवा सिख बंधुओं के लिए स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त की यात्रा का स्वप्न हो। एक आम भारतीय हिन्दू चारधाम यात्रा , खासकर बद्री विशाल के दर्शन करने के लिए मन में महत्वाकांक्षा पाल के रखता है। ऐसी ही बद्री विशाल की यात्रा की दिलचस्प कथा का उपन्यास "स्वर्ग का अंतिम उतार" पिछले दिनों लक्ष्मी शर्मा ने लिखा है जो शिवना प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।
इस कहानी का नायक छिगनलाल सोलंकी अपने घर में भी दो पीढ़ियों से यही स्वप्न पलता देख रहा है। उसकी दादी भी बद्री विशाल जाने की इच्छा लिए चली गई और माता पिता भी बद्री विशाल के दर्शन की महत्वाकांक्षा मन में पाल के रखते हैं, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो पा रहा। गांव से नौकरी की तलाश में से शहर आए छगनलाल एक दरबान की नौकरी पा चुके हैं, जिसमें उन्हें नाम मात्र की वेतन में , एक छोटी सी कोठरी में रहते हुए मालिक के दिए पुराने कपड़ों को पहन कर गुजारा करना पड़ता है।
उपन्यास के पहले वाक्य में ही अत्यंत प्रसन्न चित्त छगनलाल अपनी बई यानि मां को सूचना देते है कि वे बदरी विशाल की यात्रा पर जारहे हैं। दरअसल उनके मालिक की तरफ से उनको खबर दी गयी है कि छिगन उनके साथ यात्रा पर जाएंगे। मां उन्हें निर्देश देती है कि हरिद्वार में गंगा स्नान करना, यमुनोत्री के गर्म कुंड में चावल उबाल के लाना और गंगा के उद्गम से जल भर के गङ्गाजली लाना, जिससे कि वे लोग अपने घर गंगोज कर सकें । बाद में पता लगता है कि छिगनलाल को यात्रा में गूगल की देखभाल के लिए ले जाया जा है-गूगल यानी पालतू कुत्ता। छिगन परेशान हो उठता है। पर्सनलाइज्ड मिनि बस यानि आधुनिक आरामदायक वाहन में शुरू हुई इस यात्रा में इन्दौर से ऋषिकेश तक दो ड्रायवर व छिगनलाल यात्रा करते हैं। बाद में ऋषिकेश से छिगन के मालिक यानी साहब, मेम साहब और उनके बच्चे पुरु और जिया शामिल होते हैं, जो ऋषिकेश तक हवाई जहाज से आए हैं।
आगे की यात्रा में छिगनलाल जितना बाहर के स्थानों को देखता है , उतना ही वह अपने भीतर की यात्रा करता है। पुरानी यादों में उतरने के इस क्रम में उसे अपनी दादी,गाँव के सरपंच , दादा और बई ,पत्नी राजूड़ी,मर के भूत बन गयी चन्दरी भाभी,आधुनिक संत बापजी और उनसे जुड़े कई प्रसङ्ग याद आते हैँ, जिनमें लेखिका ने खूब किस्सागोई का सृजन किया है।
यमुनोत्री हो या बद्रीनाथ जी का मंदिर छिगनलाल के साहब हर जगह अपने कुत्ते को साथ न ले जाकर गाड़ी में ही छोड़ जाते हैं,जिसके साथ छिगन को भी रुकना पड़ता है ।
अपने घर की तीन पीढियों की अभिलाषा को यूँ ध्वस्त होता छिगन ऐसा कदम उठाता है कि साहब और उनका परिवार हक्का-बक्का रह जाता है।
इस उपन्यास की कथा-योजना लेखिका ने खूबसूरत शिल्प और तमाम उप कथाओं के सहयोग से बड़े रोचक अन्दाज़ में बनाई है,कथा यात्रा में एक क्रम से ऐसे ऐसे प्रसङ्ग आते-जाते हैँ कि पाठक का मन इस गल्प को सच की तरह डूब के पढ़ता है। लगता है, जैसे घर की बड़ी दीदी चटखारे लेकर कोई दिलचस्प किस्सा सुना रही हों, सो उत्सुकता और स्मित जिज्ञासा पूरे उपन्यास में बरक़रार रहती है।
उपन्यास का नामकरण आदिग्रन्थ महाभारत के उस प्रसङ्ग से किया गया है, जहां कि पांडव गण युद्ध और राज्यारोहण के बाद अन्त में बदरीनाथ के पहाड़ों के रास्ते स्वर्गारोहण करने के लिए निकलते हैं।इस उपन्यास में भी पाँच लोगों के साथ एक कुत्ता है।
कथा नायक छिगन मूलतः देवास के पास के एक गाँव का रहने वाला है, वह तनाव में होने पर अपनी एक कॉपी पर पेन से कुछ प्रतीकात्मक चित्र बनाता है। अन्त में उसके बनाए एक चित्र का विवरण पाठकों के सामने आता है,जिसके अनुसार कमजोर छिगन अपने मन का गुस्सा प्रतीकात्मक रूप से अभिव्यक्त करता है।
नदी और प्रकृति के मानवीकरण के अनेक प्रसङ्ग पूरे उपन्यास में बिखरे पड़े हैं।ऋषिकेश में नदी पर पत्थर फेंकते छिगन को आठ साल की बच्ची टोकती है-"काका,मत मारो।" " मैया को चोट लग जाएगी।" ( पृष्ठ 42) गङ्गा किनारे वालों का गङ्गा से यह स्नेह पुलकित कर देता है, छिगन सोचता है "हम मैदानी लोगों के लिये नदियाँ केवल पूजने के लिए हैं, बाकी उसे तकलीफ देने में हमें जरा भी दर्द नहीं होता।"
"स्त्री और नदी के भाग्य में गंदगी झेलना लिखा है " (पृष्ठ 71) यह वाक्य शब्दोँ के अंतर के साथ अनेक बार आया है।
स्त्रियों के बारे में एक और अनुभूत सचाई लेखिका ने सहज शब्दों में लिखी है कि "आदमी नामर्द निकल जाए तो भी औरत बांझ रहती है और औरत बाँझ रह जाए तो भी। औऱत की तकदीर भगवान नहीं समाज लिखता है वो भी मर्द की जूती की नोंक से। (पृष्ठ 71) इन शब्दोँ से जुड़ती अनेक कथाएँ व स्त्रीयों के दुःख दर्द उपन्यास में काफी सँख्या में हैं। चन्दरी भाभी इस उपन्यास का प्रकाश स्तम्भ की तरह दमदमाता सशक्त चरित्र है।नववधु चन्दरी को जब पता चलता है कि उसका पति धीरे-धीरे नामर्द होता जा रहा है,जिसकी वजह यह है कि उसका धर्मगुरु बापजी उसे केले के पत्ते का काढ़ा पिला रहा है,तो वह परेशान हो उठती है। अपनी अतृप्ति से विवश चन्दरी गाँव के खंडहर में स्वरति की आदी हो जाती है। छिगन के पूछने पर उसने बताया कि उसे पाने के लिए गांव भर के युवा आगेपीछे घूमते रहते हैं और घर में भी तीन पुरुष लालायित हैं। लेकिन चन्दरी अपने पति के प्रति एकल निष्ठा रखती है। चन्दरी की दुःखद मृत्यु की याद करता छिगन समझ नही पाता कि ऐसी दबंग स्त्री आत्महत्या कैसे कर सकती है!गाँव में यह अफवाह फैल गयी है कि चन्दरी मरके भूत बन गयी है जो किसी के भी सिर पर सवार हो लेती है। उसके इस भूत द्वारा कई महिलाओं की रूह पर कब्जा करके गाँव में स्थापित होने जा रहे अनैतिक सम्बन्ध और व्यभिचार रोके जाते हैँ। लेखिका का मानना है कि स्त्रीयों ने ही समाज को संभाल रखा है ,इस गुण की तारीफ में लेखिका ने छिगन से कहलवाया है " कमाल होती हैं ये औरतें, ये न हों तो जीवन में क्या बचे, न रंग,न रस, न परब,न त्यौहार।"(पृष्ठ 97)
उंपन्यास में किसी चरित्र को सम्बोधित कर जो सम्वाद बोले गए हैं , वे दो इनवर्टेड कोमा में और जो मन में बोले गए , वे एक इनवर्टेड कोमा में लिखे गए हैं, जबकि सामान्य सोच विचार की पक्तियाँ सामान्य ढंग से रनिंग स्टेटस में लिखी गयी हैं।
प्रसंगों के अनुकूल लोकगीत की एक पँक्ति या चार-चार पंक्तियों को लेखिका ने उपन्यास में इस प्रकार उद्धृत किया है कि कथ्य की रंजकता और उसका लोक से जुड़ाव गहरा हो जाता है । छिगन के लोक त्यौहार को याद करते समय लेखिका मालवीय त्यौहार सँझा की याद दिलाती हैं, इस त्यौहार के विवरण में दिन प्रतिदिन की गतिविधियों और गीतों के साथ विदाई के क्षणों का भावुक दृश्य मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।
पहाड़ क्षेत्र की एक चिड़िया द्वारा "जुहोssss" कहना और दूसरी द्वारा "भोर जाला" कहने की संगत देर तक चलती देख इस संवाद से जुड़ी लोककथा एक पहाड़ी व्यक्ति छिगन को सुनाता है कि पुराने जमाने में एक बहु मायके जाने की इजाजत मांगती थी - "जुहो$$$$" यानी जाऊं , तो बदले में सास उसे रोक के बोलती थी "भोर जाला" यानी भोर होने पर चली जाना, बाद वही दोनों स्त्रियां अगले जन्म में चिड़िया बन गयी तो पूर्वजन्म के दोनों वाक्य इस जन्म में भी चले आये।(पृष्ठ 103) जिसे सुन छिगन को मालवा क्षेत्र की एक चिड़िया द्ववारा बोले जाने वाले वाक्य "पीसे थीsssss, बीरो आयो थोsssss, चूंदड़ लायो थोsssss" से जुड़ी इसी से मिलती जुलती लोककथा स्मरण हो आती है।
बस के डेक में बजते गीत ड्राइवर और क्लीनर की मानसिकता व मनोभावों को प्रकट करते हैं। सेकण्ड ड्राइवर के नाकाम इश्क का किस्सा भी कहानी में आखिर में छिगन को सुनने को मिलता है।

इन्दौर से हरिद्वार तक जितने ढाबों पर गूगल और छिगन को ले जा रही बस रुकती है , हरेक पर ढाबे वाले द्वारा पूछे गए सवाल की हिन्दी टोन ढाबे के भौगोलिक औऱ सांस्कृतिक इलाके का संकेत देती हैं। यह ट्रिक भी लेखिका की अनूठी भाषाई दक्षता को प्रकट करती है।
छिगन को गाँव की एक शादी याद आती है, जिसमें बारातियों और मेहमानों के स्वागत के लिए शरबत के स्थायी इंतज़ाम के वास्ते छोटी कुइयां में सीधे ही एक बोरी शकर और केशरिया रँग डाल देने का ज़िक्र है । यह घटना गांव के ऐसे भुलाए जा रहे प्रसंगों की मीठी याद दिलाती है।
टिहरी बांध को देखते ही छगन को नर्मदा पर बंधे बाँध और पुराने हरसूद की याद आती है । बहन सीतू की सारी जमीन जिसमें डूब गई थी, " सीता का कैसा तो सुखी संसार और खेती-बाड़ी थी हरसूद में.वहाँ भी ऐसे ही एक बाँध ने एक रात में सारा शहर निगल लिया था।" (पृष्ठ 72)
सरकार कहती थी कि जो जो समान ले जाना है वह ले जाओ। छगन सोचता है, " लेकिन चार पीढ़ियों से बसी भरी-पूरी गिरस्थी से कितना ला सकता है कोई।घर के आँगन में गड़ी ओलनाल कैसे निकले,घर के दरवाजे पर लगे हल्दी वाले हाथ की छाप किस संदूक में समाए.शीतला माता की पिंडी औऱ तेजाजी का त्रिशूल किस झोले में बांधे।रसोई का सिलबट्टा,नहान घर का गंगाल,बच्चों के खिलौने,जच्चा का खटला,बुजुर्गों की लकड़ी... क्या-क्या लाए कोई?
उस पानी मे क्या क्या तैरते हैं...
एक महोगनी का पलंग,जिस पर कोई भाग्यवान लेटा होगा।एक दरवाजे का पल्ला,जिसके पीछे खड़े होकर किसी सुहागन ने अपने कंत की बाट निहारी होगी। एक पालना,जिसमें किसी की कोख का फूल सोया होगा.कुछ फूल, जिनकी आग अब कभी नहीं जलेगी।
(पृष्ठ 73)
लेखिका में मरजाद से बात कहने की कला है, वे खुली बात को भी अन्य शब्दों से कह जाती हैं। चाहे चन्दरी भाभी के स्वरति की स्थिति हो या अन्य ऐसे स्थान ; जैसे -"कुत्ते की चिचियाहट से उसका ध्यान भंग हुआ,शायद किसी चींचढ़े ने उसे कुठोर * काट लिया है।अपनी ही पूँछ के पीछे भागते कुत्ते ने दसेक फेरे काटे और फिर से पसर गया।"(पृष्ठ 63)
उपन्यास के चरित्रों में छिगन, पहला ड्राइवर उर्फ हरे बाल वाला व दूसरा ड्राइवर,मालिक या साहब,मेम साहब, जिया ,पुरु और गूगल प्रमुख हैं। गूगल ही कथा का आधार है औऱ वही छिगन के साथ उपन्यास के अंत तक रहता है। छिगन जहाँ ग्रामीण पारम्परिक मानसिकता का व्यक्ति है, वहीं उसे सामान्य ज्ञान भी है,चिपको आंदोलन उसे याद है तो वर्तमान के फेसबुक और इन्स्ट्रॉग्राम से बच्चों के लगाव की भी उसे खूब जानकारी है । गरीब होने से विनम्र तो है लेकिन वह निडर भी है, तभी तो अन्त में वह बोल्ड निर्णय लेता है। बरसों पहले महीनों की झड़ी लगा कर बरसते पानी की भी उसे याद है, तो वर्तमान की कम वर्षा की भी। ड्राइवरों के चरित्रों के अनुकूल ही उपन्यास के दोनों ड्राइवर सड़क औऱ होटल ढाबों की जानकारी रखने वाले मस्त लड़के हैं , लेकिन वे भीतर से कोमल भी हैं।इनके नाम तो हैं लेकिन समाज मे सदा से ही मजदूरों को नाम नहीं, उनके वेश या पेशे से बुलाया जाता है , इसलिए इनके नाम कम ही उपयोग किये गए हैं। इन सबका साहब दूसरे साहबों की तरह अकड़ू है , तो उसकी पत्नी राखी चतुर चालाक है जो पहाड़ के एक गृहस्थ की लड़की को पढ़ाई कराने के बहाने घरेलू नौकरानी बनाने की चाल चलती है। साहब की लड़की जिया भी नखरैल किशोरी है जो बेध्यानी से छिगन के छू जाने पर आसमान सिर पर उठा लेती है।
कथा का देश और वातावरण तो कहानी में ही स्पष्ट होजाता है, जबकि फेसबुक और इंस्ट्राग्राम के बहाने इस कथा का समय इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक का ठहरता है।
उपन्यास में सरल हिन्दी के साथ सरल मालवी बोली का उपयोग किया गया है, जो शब्द जरा भी कठिन लगते हैं लेखिका उनके अर्थ कोष्ठक में लिख देती है। उंपन्यास में मालवी के शब्दों में गंगोज,बई, दवई,नीं, उच्छ्ब, गच्ची, तमास्ती आदि अनेक शब्द प्रयोग किये गए है।

लेखिका ने इस यात्रा के बहाने इन्दौर से गंगोत्री,यमुनोत्री औऱ भारत के आखरी गाँव माना तक के लिए मिनीबस से की जाने वाली यात्रा का रूट चार्ट औऱ यात्रा अवधि पेश कर दी है।
उपन्यास का अन्त जादुई यथार्थवाद के अंदाज़ में किया गया है जो पाठक को प्रफुललित करता है।
शानदार उपन्यास के लिए लेखिका को बधाई।
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