रोज-डे
कंप्यूटर साइंस का पहला सेमिस्टर समाप्त हो गया था | दूसरा सेमिस्टर शुरू हुए भी एक महीना बीत गया था | छात्रों में नये एकेडेमिक ईयर का जोश धीरे -धीरे कम हो गया था | क्लास में अलग अलग ग्रुप कई बन गए थे | सुरभि की तिकड़ी अब सचिन के साथ मिलकर चौकड़ी बन गयी थी | सचिन का उस ग्रुप में रहना पहले ही कई लड़को के लिए ईर्ष्या का कारण था और इस समय यह ईर्ष्या अपने चरम पर थी | उन लड़कों में कमल भी था | उसे सचिन और सुरभि की नजदीकियां पहले ही खटक रही थीं और अब यह चुभन काफी बढ़ गयी थी |
कमल की इस मनोदशा से अनजान सचिन को सुरभि का साथ अच्छा लग रहा था | ज्यादातर लोगों को सचिन की भारी भरकम टेक्निकल बातें बोर कर देती लेकिन सुरभि वही बातें बड़ी तन्मयता से सुनती| उससे उन विषयों पर बहस भी करती | सचिन के अथाह टेक्निकल ज्ञान में सुरभि की रुचि दोनो की मित्रता को और अधिक गाढ़ा किये जा रहे थे | लेकिन सुरभि के लिए यह मित्रता केवल मित्रता ही थी | वह सचिन के व्यक्तित्व से प्रभावित अवश्य थी लेकिन यह खिंचाव मित्रता की सीमा-रेखा तक आते आते समाप्त हो जाता था |
लेकिन क्या सचिन ने भी इस खिंचाव को सिर्फ मित्रता की परिधि में रखा हुआ था ? एक स्त्री का मित्रवत झुकाव कई बार पुरुषों में अलग भावनाओ को जन्म दे देता है | किन्तु क्या सचिन के मन में भी ऐसी ही किसी भावना का जन्म होने लगा था ? लेकिन सुरभि सचिन के मन में जन्म लेती ऐसी किसी भी भावना से बेखबर थी और....... शायद खुद सचिन भी ....|
शुरू शरू में तो चित्रा और मुग्धा को सुरभि की सचिन में इतनी दिलचस्पी अजीब लगती थी | दोनो सुरभि के इस खिंचाव को समझ नही पा रही थीं | एक दिन चित्रा ने टोक भी दिया |
" कुछ ज्यादा ही वक्त बीत रहा है इस विकिपीडिया के साथ "
चित्रा अक्सर सचिन को विकिपीडिया कह कर ही चिढ़ाती थी |
" अरे इट्स प्योर मित्रता मैडम ....ज्यादा दिमाग के घोड़े मत दौड़ाओ | "
सुरभि के चेहरे पर तटस्थता के भाव बने रहे | चित्रा उसके हाव-भाव की बारीकियां बचपन से ही पढ़ती आयी थी | वह उसकी बालपन की सहेली थी | उसके चेहरे की हर सिकन, उसकी आवाज का हर उतार-चढ़ाव वह पहचानती थी | सुरभि के चेहरे के सहज भाव सत्यता का प्रमाण दे रहे थे |वह जानती थी | वह निश्चिंत हो गयी |
किन्तु कमल तो चित्रा नही था | उसकी चुभन अब ईर्ष्या के पहले पायदान पर चढ़ गई थी | लड़को में चल रही गॉसिप ने इसे और हवा दे दी थी | सुरभि उसकी यह मूक छटपटाहट समझ गयी थी किन्तु वह क्या कर सकती थी | कमल उसका कौन था ? वह तो मित्रवत सामान्य सी बातचीत की परिधि से भी बाहर था | कमल के मन में चाहत की कलियां चटख कर फूल जरूर बन गयी थीं लेकिन सुरभि से बात करने का विचार आते ही उसकी जुबान लड़खड़ाने लगती |
वैसे इन दिनों कालेज का माहौल काफी खुशनुमा होने लगा था | साल का यह समय हर साल लड़कों में जोश भर देता था | लड़कियों की अदाएं इस दौरान और भी दिलकश हो जाती थीं |
रोज डे की तारीख पास आ रही थी | तैयारियां जोर-शोर से होने लगी थीं | रीम कालेज में रोज डे मनाने का एक खास तरीका था | उस दिन एक भव्य कार्यक्रम होता था | कार्यक्रम का आयोजन 'कल्चरल क्लब' की टीम करती थी | कार्यक्रम की तैयारी के फलस्वरूप दस दिन पहले से ही खास किस्म के कार्ड्स की बिक्री कैंटीन गेट पर शुरू हो जाती | इस साल भी रोज कार्ड्स बिकना शुरू हो गए थे | पोस्टकार्ड नुमा इन कार्ड्स के एक तरफ एक सुर्ख गुलाब का फोटो था और दूसरी ओर संदेश लिखने के लिए खाली जगह | लड़के-लड़कियां जोर-शोर से रोज कार्ड खरीद रहे थे | किसी खास के लिए प्यार भरा संदेश लिख कर वह पास रखे डब्बे में डाल दिया जाता था |
-------------- क्रमशः
-------- कंदर्प
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