चौथा नक्षत्र- 9 Kandarp द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चौथा नक्षत्र- 9

अध्याय 9


टॉपर


चित्रा और मुग्धा कैंटीन के पास पहुंच चुकी थीं । सुरभि को कमल की बांहों में झूलते हुए उन्होंने देख लिया था । चित्रा उसे खींचती हुई कैंटीन के दरवाजे की ओर बढ़ गयी थी । उन दोनो के पीछे-पीछे फुदकती हुई मुग्धा भी कैंटीन में प्रवेश कर गयी थी ।

अच्छा , इसलिए इतना तेजी से भागती हुयी कैंटीन आ रही थीं !!

चेअर पर बैठते ही मुग्धा नें शैतानी भरे स्वर में कहा ।

चुप करो .. मैं तो बस पिल्लों को देखने गयी थी , और ....”

sss हो sss....पिल्लों को देखने गयी थीं तो फिर वहाँ चिपकी-चिपकी क्यों चल रही थी ?

मुग्धा सुरभि को छेड़ने के मूड में आ गयी थी । सुरभि ने जवाब देने के लिए मुँह खोला ही था कि चित्रा खाने की प्लेट लेकर टेबल पर आ गयी । उसने इशारे से उसे शांत कर दिया । मुग्धा मुस्कुराती हुई पलके झपका कर शरारत भरे अंदाज में सुरभि को देखने लगी । सुरभि से रहा न गया ।

मैं तो ...”

मैं तो ..क्या ? मैं तो बस किस करने गयी थी उसने तो पकड़ ही लिया !! यही न...!!!”

मुग्धा ने उसकी बात काटते हुए कहा और खिलखिला उठी ।

चुप ,सेमलेस ......धीरे बोल .....वो तो बस एक्सीडेंट था

सुरभि ने होठो पर तेजी से फैलती मुस्कुराहट को दबाते हुए बनावटी गुस्से में कहा ।

लेकिन चित्रा का चेहरा गंभीर था । वह इस सामान्य से ‘एक्सीडेंट’ की गंभीरता को समझती थी । थोड़ा अंदाज उसे विजय की बातों से कुछ दिनों पहले की लग गया था ।


विजय और कमल की दोस्ती कालेज के पहले दिन से ही जम गयी थी । दोनो कालेज में हर जगह साथ -साथ ही दिखाई देते । क्लास में भी दोनो साथ ही बैठते । दोस्ती का यह बंधन दिन पर दिन मजबूत होता जा रहा था इसलिए जब विजय नें चित्रा से कहा कि उसका दोस्त तो हर लेक्चर में ज्यादातर वक्त सुरभि को ही ताकता रहता है तो वह अचंभित हुई । उसने विजय की बातों को हँसी में टाल दिया था , लेकिन बाद में उसने भी गौर किया । कमल की आँखो की चमक सचमुच ही सुरभि को देखकर बढ़ जाती थी । चित्रा चिंतित हो उठी थी । वह इस प्रकरण को आगे नही बढ़ने देना चाहती थी । वह सुरभि की पृष्ठभूमि जानती थी । वह सुरभि की पड़ोसी थी । बचपन से ही दोनों साथ-साथ बड़ी हुई थीं । दोनो परिवारों में घनिष्ठ संबंध थे । दोनो एक ही स्कूल में गयी थीं ।बचपन से ही चित्रा पंडित जी की विचारधारा के प्रवाह को देखती आयी थी । उसे अच्छी तरह से याद था , नवी कक्षा का काण्ड । चौथी बेन्च पर बैठने वाला वह चुप-चुप सा रहने वाला लड़का ......। उसकी आँखें भी इसी तरह सुरभि को देख कर चमक उठती थीं । किशोरवय में भावनाओ का अंकुरण नया नया था । लेकिन एक दिन उसने वह कर दिया जिससे पूरे स्कूल में भूचाल आ गया । उसके माता पिता को अगले ही दिन प्रधानाध्यापक कक्ष में तलब किया गया । उनके सपूत ने चुपके से एक पत्र सुरभि के बस्ते में डाल दिया था । माता पिता मिन्नते करते रह गए किन्तु स्कूल से उसे तत्काल ट्रांसफर सर्टिफिकेट दे दिया गया था ।

किन्तु चित्रा क्या कर सकती थी ? क्या कमल के मन में बढ़ रहे इस अनुराग पर चित्रा का कोई जोर चल सकता था ? क्या उस पर किसी और का कोई जोर चल सकता था ? क्या उस पर खुद कमल का जोर चल सकता था ? शायद नही ....।

जैसे-जैसे कालेज के दिन बीत रहे थे , कमल के मन मे फूटी प्यार की कोंपल जवान हो रही थी । कमल की निगाहें अब सुरभि को ही ढूढ़ती रहती । लैब में अक्सर वह सुरभि के पास बैठने की जुगत में लगा रहता । सुरभि रोज लायब्रेरी जाती । लायब्रेरी की कोने वाली सीट पर वह चित्रा और मुग्धा के साथ बैठ कर किताबों से नोट्स निकालती रहती । कमल , विजय को खींचता हुआ लायब्रेरी ले आता । वह यूँ ही बिना वजह बुकसेल्फ से किताबें निकालता और रखता ,जब तक सुरभि वहाँ रहती ।

कॉलेज शुरू हुए ढेड़ महीना हो गया था । कमल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी किन्तु अब तक वह सुरभि से सामान्य सी बातचीत करने का साहस भी न जुटा पाया था । अगर मन में उठती यह भावनाये न होती तो शायद न जाने कितनी बार और न जाने किन किन विषयों पर वह सुरभि से घंटो बात कर चुका होता । स्कूल के समय से ही उसकी कई लड़कियों से दोस्ती थी लड़कियों से बात करने में वह सदैव बिंदास था । किन्तु यह पहली बार था कि वह किसी लड़की से बात करना चाह रहा था और नही कर पा रहा था । एक अनजान सी हिचकिचाहट हर बार उसको रोक लेती थी ।

ऐसा नही था कि सुरभि कमल की बेचैनी से अनभिज्ञ थी । एकटक उसे देखती और फिर झेंप कर झुकती कमल की निगाहों की भाषा वह समझ रही थी । प्यार में डूबी उन आँखों का मूक आमंत्रण वह पढ सकती थी किन्तु क्या उस आमंत्रण को वह स्वीकार कर सकती थी ? क्या वह इस उलझन को सुलझा सकती थी ? शायद नही ....।

इन दिनों कमल की उलझन का एक कारण और भी था । पहले टेस्ट हो चुके थे । रिजल्ट नोटिस बोर्ड पर लग गया था । बोर्ड के पास स्टूडेंट्स की भीड़ लगी हुई थी । उस भीड़ में मुग्धा भी शामिल थी ।

अरे यार तुम तो दूसरे नंबर पर हो पूरे कंप्यूटर साइंस में ।

मुग्धा ने लगभग चीखते हुए सुरभि के पास आ कर कहा ।

कॉरिडोर की रेलिंग के पास खड़ी सुरभि बस मुस्कुरा दी । उसकी ध्यान अब भी कमल और विजय पर ही था जो नोटिस बोर्ड पर अपना नाम ढूंढ रहे थे ।

पहला कौन है ?

चित्रा नें पूंछा ।

कोई सचिन है ।

मुग्धा नें कंधे उचका कर कहा ।

सचिन ?...कौन सचिन...?”

चित्रा ने सुरभि से पूंछा ।

मैं ......मेरा नाम सचिन है ।

पास खड़े इकहरे बदन के एक गौरवर्णीय युवक ने बड़ी शालीनता से कहा । सुरभि का ध्यान कमल से हट गया था । उसने युवक की ओर देखा ।काले गोल फ्रेम से दो शांत आंखे सुरभि को ही देख रही थीं । उसने मुस्कुराते हुए ‘हाय’ की मुद्रा में अपना पंजा सुरभि की ओर उठाया । सुरभि के ओठों पर अपने आप मुस्कान आ गयी ।

दोनो पढाकूओं में खूब छन रही है ।

नोटिस बोर्ड से पलटते हुए विजय नें कहा और हँसने लगा । कमल ने बनावटी गुस्से में एक घूंसा उस के पेट में जड़ दिया । विजय और जोर-जोर से हँसने लगा था । सुरभि का ध्यान उस ओर नही था । वह सचिन से बात कर रही थी ।

---------- क्रमशः

------- कंदर्प

*************************************************किन्ही कारणों से इतने दिनों तक अध्याय पोस्ट न कर सका। अपने पाठक परिवार से क्षमा चाहता हूँ ।