चौथा नक्षत्र - 10 Kandarp द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चौथा नक्षत्र - 10


उत्सव

इन दिनों कमल कुछ अनमना सा रहता था । एक बेचैनी हमेशा उसे परेशान किये रहती । वह देख रहा था कि आजकल सुरभि ,चित्रा और मुग्धा के त्रिभुज में एक भुजा और जुड़ रही थी । आजकल सचिन अपनी प्लेट लिए अक्सर उन तीनों की टेबल पर बैठ जाता ।

क्लास ,कॉरिडोर या फिर कैंटीन .....चारो का एक साथ दिखना अब आम बात हो गयी थी । लड़को में यह आजकल जोरदार चर्चा का विषय था । जिस अभेद किले को इन तीन महीनों में रीम कालेज का तेज से तेज लड़का न तोड़ पाया हो उसे इस एनकधारी पढ़ाकू ने कैसे जीत लिया था ? सभी के लिए यह एक बड़ा रहस्य बन गया था ।

कैंटीन काउंटर के पास वाली खिड़की से सटी हुई टेबल जैसे उन तीनों के लिए आरक्षित ही थी । उस टेबल पर उन तीनों का ही एकाधिकार था । लड़को के लिए तो वह टेबल वर्जित क्षेत्र ही था । कालेज के पहले हफ्ते में कुछ अति साहसी लड़कों ने उस पर स्थान पाने की कोशिश की लेकिन उन तीनों के सख्त रुख से उनके हौसले जल्द ही पस्त हो गए। धीरे-धीरे वह टेबल लड़कों के लिए निषिद्घ क्षेत्र बन गयी । लड़के ललचाई नजरो से उस ओर देखते लेकिन बैठने का साहस कोई न कर पाता ।

कमल के मन को यह बात कील की तरह चुभ रही थी । जिस सुरभि से वह ढंग से ‘हैल्लो’ तक कहने का साहस न जुटा पा रहा था, उससे सचिन का इस सहजता से बाते करना उसे अखर रहा था । वैसे उन तीनों में, सचिन सुरभि से ही ज्यादा बेबाक हो चला था । सुरभि उसकी बुद्धिमत्ता की कायल थी ।

“अरे...सी प्रोगरामिंग तो मैंने टेंथ के समर में ही कर ली थी ...तब से कॉम्पिटिटिव प्रोग्रामिंग में पार्टिसिपेट कर रहा हूँ .....दो कॉम्पिटिशन .....

सचिन लापरवाही भरे अंदाज में अपनी उपलब्धियां गिनाता रहता ।सुरभि तन्मयता से सुनती । सचिन की यही लापरवाही उसे भा गयी थी । चित्रा और मुग्धा को सचिन में कोई खास रुचि न थी । वह दोनों बोर हो जाती थीं ।

सचिन आजकल सुरभि का मैथ्स इंस्ट्रक्टर भी बन गया था । मैथ्स असाइनमेंट में अक्सर वह सुरभि की मदद करता ।

“अरे ,कहाँ हो ? एक डाउट है ।”

सुरभि फ़ोन करती और सचिन लायब्रेरी में हाजिर हो जाता ।लापरवाही से अपना स्लिंग बैग टेबल पर पटक कर वह सुरभि के सामने बैठ जाता । चित्रा और मुग्धा को अब लगने लगा था कि सुरभि उसको जरा ज्यादा ही लिफ्ट दे रही है ।

यार ,कुछ ज्यादा नही चिपक रहा है यह ?

एक दिन चित्रा ने हल्के से सुरभि को टोका।

क्या कहती है , ही इस डिसेंट यार ।

सुरभि ने तपाक से उसे कोहनी मारते हुए कहा । चित्रा ने आगे कुछ नही कहा ।उसने मुग्धा की ओर अर्थपूर्ण निगाहों से देखा । मुग्धा ने भी उसे देखा और हल्का सा मुस्कुरा दी ।

रीम कालेज की ग्रहपत्रिका ‘उत्सव’ के सेकंड फ्लोर पर बने ऑफिस में हलचल बढ़ गयी थी । नए एकेडेमिक ईयर के आरंभ में ही एडिटिंग टीम का चुनाव होना था । ऑफिस में काफी शोर शराबा रहता था । स्टूडेंट्स का आना जाना लगा रहता था । वैसे तो एडिटिंग टीम पर हमेशा टेलिकम्युनिकेशन ब्रांच का वर्चस्व था लेकिन कंप्यूटर साइंस से एक दो सदस्य रहते ही थे । पत्रिका की डिजिटल एडिटिंग और डिजाइनिंग के लिए एक्सपर्ट कंप्यूटर साइंस से ही आते थे ।

यार ,उत्सव की एडिटिंग टीम से ऑफर आ रहा है ।हाँ कर दूं ?

मुग्धा ने कॉरिडोर में दोनों से पूंछा।

क्यो, तुझे राइटर बनना है क्या ? तेरे गीत गजल सहने के लिए हम काफी नही हैं क्या ?

सुरभि ने कहा तो चित्रा अपनी हँसी रोक न पाई ।

अच्छा !! तो मैडम सहन करती हैं !!

दोनो हाथ कमर पर रख कर एक भौं को कुछ इस तरह टेड़ा कर मुग्धा नें कहा कि दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ी ।

बट ,सीरियसली यार सोचती हूँ कर लूं ।

मुग्धा ने बड़ी संजीदगी से कहा ।

कर ले , फिर तेरी गजलें वहीं पढ़ लेंगे , क्यों चित्रा ?

सुरभि को फिर शरारत सूझी लेकिन मुग्धा ने उसकी बात अनसुनी कर दी । वह अलग ही मूड में थी ।

वैसे नई गजल के दो शेर कल ही बनाये है , सुनो उसने कहा ।

न चाहते हुए भी दोनो के मुँह से इरशाद निकल गया ।


बड़ा मीठा जहर था दोस्ती उसकी

आए होश इतना चढ़ गया है वह


सुनाता किस्से था जिसकी फरेबी के

सुना है के वही अब बन गया है वह ।”


मुग्धा ने गला खंखारते हुए सुनाया और दोनों की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी । इससे पहले कि वह दोनो कुछ बोलती पीछे से सचिन की आवाज आई ।

बहुत खूब

मुग्धा ने मुड़ कर देखा । सचिन की आंखों में प्रशंसा के भाव थे।

एक मेरी तरफ से भी , स्वरचिरत है --



प्यार बहुत था हम दोनों में , फितरत इंसानी थी

हाँ दिल की बातें भी लेकिन, कब दिल नें मानी थी

हाथ रहा हाथों में यूँ ही , बस लम्हें छूट गये ।”


सचिन ने उन तीनों की ओर देखा । आवाक सी तीनो उसे ही देख रही थीं ।

-------- क्रमशः

------कंदर्प