जुबाँ पे लागा रे जायका चुगली का... Saroj Verma द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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जुबाँ पे लागा रे जायका चुगली का...

चुगली चुगलखोरों का हेल्थ टाँनिक है,चुगलखोर कभी भी इस टाँनिक के बिना नहीं रह सकते ,चुगली उनके लिए सबसे बड़ा योग है व्यायाम है,चुगली करने से मस्तिष्क संतुलित रहता हैं,नियमित चुगली करने से रक्तसंचार सुचारू रूप से होता है,खून साफ रहता है,ऊर्जा का संचय उचित रूप से होता है,ह्दय-स्पंदन ठीक से होता रहता है,चुगली करने से ना कभी आपको डायबिटीज होगी और ना कभी कोलेस्ट्रॉल बढ़ेगा,पेट मे भी दर्द नहीं होगा,आँखें हमेशा सचेत रहतीं हैं,तंत्रिकातंत्र भी अपना कार्य निरन्तर करता रहता है और अगर आप नियमित रूप से सुबह शाम और कभी कभी दोपहर मे भी चुगली करते हैं तो आपके शरीर में कभी भी,विटामिन्स,कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन्स और मिनरल्स की कमी नहीं हो सकती,इसलिए काम चाहे ना कीजिए लेकिन चुगली जुरूर कीजिए हुजूर......
तुम क्या जानो एक चम्मच चुगली की कीमत,दुनियावालों।।😋
फालतू में लोंग सेहत के लिए दुनियाभर की चींजे उपयोग करते हैं,एक बार चुगली करके देखें फिर आपको किसी भी चींज की आवश्यकता ही नहीं,अभी परसों की ही तो बात है,रामस्वरुप की बड़की दुल्हिन मनकी पहुँच गई अपनी सहेली रामसखी के यहाँ ,रामसखी बेचारी झाँसी की है,तो बाँदा की भाषा बोल नहीं पाती लेकिन समझ लेती ही और मनकी है बाँदा की रहने वाली,बाँदा मे ही ब्याह गई,जिन्द़गी भर से बाँदा की बोली बोलती रही है,जब रामसखी का ब्याह बाँदा में हो गया तो क्या करती बेचारी? धीरे धीरे समझने लगी बाँदा की बोली,
(बुंदेलखंड एक है लेकिन बुंदेलखंडी बहुत सारी,कर्वी में अलग,अतर्रा में अलग,बाँदा में थोड़ी और अलग,महोबा मेँ और अलग,झाँसी आते आते बुंदेलखंडी का रुप रंग ही बदल जाता हैं और इन सब जगहों से हमारा गहरा नाता है,इसलिए हमें पता है।।)
तो मनकी पहुँची रामसखी के पास और बोली...
ओ....पप्पू की अम्मा! कुछु सुना,वा रही है ना! विलसिया,वहकी आज सवेरे-सवेर सास निकल लीस भगवान के घरें,महीना भर से बीमार रही है बेचारी,चारपाई पकड़ लीस रही है,लेकिन भगवान भला कीन्ह बिचारी का ,ज्यादा नहीं तड़पी,भगवान मुक्ति दे दीन्ही,मैं तो कहत हूँ कि इन तान की मौत भगवान सबहीं का दे।।(ओ पप्पूकी अम्मा!कुछ सुना,वो विलसिया की सास थी तो सुबह सुबह भगवान के घर निकल ली,महीनें भर से चारपाई में बीमार पड़ी थी,ज्यादा नहीं तड़पी भगवान ने जल्दी मुक्ति दे दी)
का कह रहीं हो जिज्जी!(क्या कहती हो जीजी),विलासिया की सास मर गई,हमें तो कोऊ ने बताई नइया,( हमे किसी ने नहीं बताया),रामसखी बोली।।
मैं तो बतावत हूँ तुहीं(मैँ तो बता रही हूँ तुम्हें),मनकी बोली।।
सई बताव जिज्जी!,हमारो जी तो धक्क से उड़ गओ,जा ख़बर सुन के,(सही बताओ जीजी! हमारा जी तो डर गया खबर सुन के),रामसखी बोली।।
काहें! मोरी बात मा विश्वास निहाय तुही,ना हो तो चई जा विलासिया के घरे,देख कसत रोवा-गावा मचा है(काहे! मेरी बात पर विश्वास नहीं है,चली जाओ विलासिया के घर मे रोना धोना मचा है),मनकी बोली।।
ठीक है हम अबे जा रहें,विलासिया के घरें, ग़मी में चले जाएं,नई ता काल खो हमारी सास मर जैहें सो हमाय घरें कोऊ ना आहे(हम अभी जा रहे हैं विलसिया के घर नहीं तो कल को हमारी सास मर जाएगी तो हमारे घर कोई ना आएगा),राम सखी बोली।।
अभे तोर सास टनकी धरी है,जल्दी ना जई,(अभी तुम्हारी सास टनकी है जल्दी ना मरने वाली),मनकी बोली।।
हम तो अबही जा रहे हैं,राम सखी बोली।।
ठीक है तो तै पहुँच,मै पाछे से आवत हूँ(तुम पहुँचो मैं पीछे से आती हूँ), मनकी बोली।।
मनकी जिज्जी! अबेर ना करिओ,जल्दी आ जइओ( मनकी जीजी देर ना करना जल्दी आ जाना),रामसखी बोली।।
हव! आ जईहो,ते पहिले पहुँच तो,(मै आ जाऊँगीं तुम पहले पहुँचो तो),मनकी बोली।।
और इतना कहकर मनकी अपने घर चली गई और रोते-धोते हुए रामसखी पहुँची विलासिया के घर दरवाजे पर ही चीख उठी....
जो का हो गओ....मोरी मताई...जो का हो गओ( ये क्या हो गया मेरी माँ),
वहाँ मौजूद सभी लोंग सन्न हो गए कि घर के सदस्य तो इतना रोना-पीटना नहीं मचा रहे लेकिन रामसखी तो ऐसे रो रही जैसे कि कोई उसका बिल्कुल सगा गुज़र गया हो,लोगों की समझ से परे था रामसखी का रोना धोना,तब मोहल्ले की एक औरत आई और रोती बिलखती हुई रामसखी के कान में फुसफुसाकर बोली....
अभी मरी नहीं है,साँसे चल रहीं है,तुम काहे इतना रोना धोना मचा रही हो?
रामसखी ने ज्यों ही ये सुना तो उसकी आँखों के आँसू सूख गए और वो उलटे पाँव अपने घर को भाग चली और जो सबके सामने शर्मिन्दा होना पड़ा सो अलग,लोंग सोच रहे थे कि विलासिया की सास के मरने की बाट विलासिया से ज्यादा तो रामसखी जोह रही है.....
तो मतलब मनकी तो आग लगाकर चली गई लेकिन बेचारी रामसखी को समाज के सामने शर्मिन्दा होना पड़ा।।
आप उस काम को करने की कल्पना भी नहीं कर सकते कि जो काम चुगलखोर इन्सान कर लेता है,इतिहास में कितने चुगलखोर हुए हैं जिनकी चुगली ने बड़े बड़े राज्य-साम्राज्यों का बंटाढ़ार कर दिया बोले तो वाट लगा दी है।।
एक थीं दासी मन्थरा जिन्होंने सीता की जिन्द़गी में आग लगा दी थी बोले तो पेट्रोल डाल कर आग लगाई थी,बेचारी सीता मैया को क्या-क्या नहीं भुगतना पड़ा,वो तो सीता मैया थी,आज कल की लड़की होती तो पहले मन्थरा की लुटिया डुबोती बाद में बात करती।।
एक और चुगलखोर है वो नारायन...नारायन करते हुए नारदमुनि,जिन्होंने पूरे स्वर्ग लोक में खलबली मचा रखी थी,एक थे बाली के भाई सुग्रीव जिन्होंने अपने भाई की चुगली की थी और सबसे बड़ा चुगलखोर विभीषण था,जिसने रावन की वाट लगा दी और साथ मे लंका की भी।।
अभी कल ही तो मिसेज सोलंकी कह रही थी कि....
वो मिसेज कुलकर्णी हैं ना तो उनकी बहु पता नहीं कितनी रात को आँफिस से लौटी थी ,देर से लौटना तो ठीक लेकिन किसी पराए मर्द की गाड़ी से उतरी थी और उससे हँस हँस कर बातें कर रही थी,भाई मैं तो अपना मुँह बंद रखती हूँ,मुझे क्या लेना देना? मैं तो किसी के पचड़ो में नहीं फँसती....
सो भइया मिसेज सोलंकी की बातों से पता चल गया कि मिसेज सोलंकी बिल्कुल दूध की धुली है,उन्होंने किसी से कुछ भी नहीं कहा क्योकिं वें तो किसी के पचड़ो में फँसती ही नहीं हैं।।
और उस दिन मिसेज सिरोही ने तो सबकुछ कहकर भी कुछ नहीं कहा.....
मिसेज शर्मा से वें कह रही थी कि अरे मिस्टर भाष्कर का बेटा है ना! अनिमेक , मैने तो सुना है कि उसे लड़कियाँ ही नहीं भातीं,आँफिस के किसी जवान छोरे वीहान को फँसा रखा है उसी के साथ घूमता-फिरता है,एक दिन तो घर से चीखने की आवाज़े भी आ रही थीं,कह रहा था मैं तो विहान को चाहता हूँ उसी से शादी करूँगा,रामजाने! कैसा कलजुग आ गया है? समाज में लड़कियों की कमी हो गई है क्या ? जो छोरे छोरे से ब्याह रचाने पर तुले हैं,भाई मैं तो किसी से कुछ भी नहीं कहती ,बस सुनती हूँ सबकी,आज तक मैने ये बात अपने पेट में ही रखी किसी से ना बताई....
देखा कितनी भली हैं मिसेज सिरोही ,कुछ भी नहीं बोलती बेचारी तब भी सब उन्हें चुगलखोर कहते हैं,पता नहीं क्यों?😢
अब उस दिन मिस्टर पटेल को ही ले लो,पड़ोस में नए नए किराएदार त्रिपाठी जी उनके बगल के घर में रहने आएं,उनकी खूबसूरत सी सुन्दर जवान बेटी थी,पहलेपहल तो पटेल साहब उनके घर में घुस घुसकर उनकी जरूरतों का सामान पहुँचाते रहें,उनकी जवान बेटी कहीं भी चलने को कहती तो फौरन बिना सोचे समझे,बिना बीवी को बताएँ त्रिपाठी जी की बेटी के साथ चल पड़ते,फिर एक दिन दिन पटेल साहब को पता चला कि त्रिपाठी जी की बेटी तो शादीशुदा है तो उस दिन के बाद वें लोगों से कहते हुए पाएं गए कि त्रिपाठी साहब की बेटी देखने में जितनी शरीफ़ लगती है वैसी वो बिल्कुल भी नहीं है,
लोगों ने पूछा कि ऐसा क्या हुआ? तो पटेल साहब बोले....
वो तो एक नम्बर की बदचलन और आवारा है,एक दिन तो मुझसे लिपट गई और बोली कि मैं आपको पसंद करने लगी हूँ,मैं तो उस दिन के बाद जान छुड़ाकर भागा,अब नहीं जाता मैं त्रिपाठी जी के घर ,मुझे डर लगता है उनकी बेटी से....
मतलब कुछ भी, त्रिपाठी जी की बेटी पटेल साहब की शरीक़-ए-हयात ना बन सकी तो चुगली करके उसे बदनाम कर दो,तो ये हैं दुनिया के रंग जो पल पल में बदलते हैं गिरगिट की तरह....
जिसकी जुबान पर चुगली का जाय़का लग जाता है तो फिर उसकी जुबान को कोई और जाय़का नहीं भाता साहब!
हुजूर! हमें भी ऐसे लोगों का बहुत तजुर्बा हो चुका है,इसलिए गाँधी जी के बंदरों को फाँलो करते हैं और अपनी बनाई हुई दुनिया में मस्त रहते हैं,घर गृहस्थी,पति बच्चे और मातृभारती पर लिखना बस,रिश्तेदारों से मिलना और केवल उनकी सुनना,कहना कुछ नहीं ,पड़ोसियों से मिलना केवल उनकी सुनना और कहना कुछ नहीं,ना बोलने से आपको लोंग थोड़ा मूर्ख समझते हैं लेकिन क्या फर्क पड़ता है?अकलमंद बन के आप बेअक्लो के सामने कुछ साबित नहीं कर सकते, हमारा मानना है कि पहले अच्छे श्रोता बनो फिर बाद में सबको सुन सुनकर आप अच्छे वक्ता बन ही जाओगों,तो आज के लिए इतना ज्ञान काफ़ी है।।😎

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....