भक्ति माधुर्य - 7 Brijmohan sharma द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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भक्ति माधुर्य - 7

7
सूरदास – भक्ति रस परम माधुर्य
 

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।

काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥

महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।

भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥

तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।

माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।

सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥

 

भावार्थ : संसार के प्रवृति मार्ग पर भटकते-भटकते जीव अंत में प्रभु से कहता है, तुम्हारी आज्ञा से बहुत नाच मैंने नाच लिया। अब इस प्रवृति से मुझे छुटकारा दे दो, मेरा सारा अज्ञान दूर कर दो।

मै वह नृत्य कर रहा हूँ जिसमे काम-क्रोध के वस्त्र और विषय की माला पहन रखी है । अज्ञान के घुंघरू बज रहे हैं ।

परनिन्दा का मधुर गान गाया जा रहा है । भ्रम से भरे मन ने मृदंग का काम कर दिया है ।

तृष्णा ने स्वर भरा और ताल तद्रुप दिया है । माया का फेंटा कसा हुआ है |

माथे पर लोभ का तिलक लगा लिया और तुम्हें रिझाने के लिए न जाने कितने स्वांग रचे।

मुझे कहां-कहां नाचना पड़ा, किस-किस योनि में चक्कर लगाना पड़ा; न तो मुझे स्थान का स्मरण है, न समय का।

हे नंदनंदन ! मेरी समस्त अविद्या से मुझे मुक्त करने की कृपा करो |

 

मीराबाई
 

श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त कवियित्री मीराबाई ने मानव मन व आत्मा को भक्ति रस से सरोबार कर देने वाली परम माधुर्य युक्त कविताओं की रचना की है । वे बचपन से ही कृष्ण को अपना पति स्वीकार कर चुकी थी | वे दिन रात कृष्ण प्रेम में लीन रहती थी। उनका विवाह उनकी मर्जी के विरुद्ध मेवाड़ के राणा से कर दिया गया। किन्तु वे ग्रहस्थ के कार्य न करके दिन रात कृष्ण के प्रेम में डूबकर पूजा करती रहती | वे भक्ति रस के गाने गाती व न्रत्य करती रहती। उन्हें परिवार वालों ने पति के साथ रहने व गृहस्थ धर्म का पालन करने के लिए बहुत समझाया किन्तु उन्होंने किसी की नहीं सुनी । उनके सबंधियों ने उनके विरुद्ध राणा के कान भरे व उनके चरित्र तक पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए।

फलस्वरूप राणा ने उन्हे जान से मारने के अनेक प्रयत्न किए। राणा ने एक दिन मीरा के पास स्वादिष्ट पेय के रूप में जहर का प्याला भेजा जो मीरा ने शीघ्रता से पी लिया किन्तु भगवान ने उनकी रक्षा की व उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।

दूसरी बार राणा ने उन्हें मारने के लिए एक टोकरे में जहरीला नाग उन्हें डसने के लिए भेजा किन्तु उस सर्प ने उन्हें नहीं डसा |

बाद में अपनी उपेक्षा से परेशान होकर उनके पति ने उन्हें डूब कर मर जाने का फरमान सुनाया | इस पर वे गहरी नदी में कूद पड़ी किन्तु तैरना न आने के बाद भी वे नहीं डूबी | बाद में उन्होंने राणा का महल त्याग दिया व वृन्दावन में भगवान का कीर्तन गुणगान करते हुए अपना शेष जीवन भगवान को समर्पित कर दिया | अंत में एक दिन भगवान का ध्यान करते हुए वे श्रीकृष्ण में विलीन हो गई | मीरा की कहानी भगवान के सर्वश्रेष्ठ भक्तों की अमर कहानी है |

 

मीरा की सुंदर कविता
 

ऐ री मै तो दरद दिवाणी, मेरो दरद ना जाणे कोय

घायल की गति घायल जाणे, जो कोई घायल होय,

जौहरी की गति जौहरी जाणे,जो कोई जौहर होय।

हे री मैं तो श्याम दिवाणि, मेरो दरद ना जाणे कोय।

सूली ऊपर सेज हमारी सोवन किस विधि होय

गगन मंडल पर सेज पिया की, किस विधि मिलना होय।

हे री मैं तो प्रेम दिवाणी ...

दरद की मारी बन बन भटकू बैद मिला ना कोय,

मीरा के प्रभु पीर मिटेगी जब बैद सांवरिया होय।

हे री मैं तो ....

"ऐ री सखी ! मैं दर्द की दीवानी हूं । मेरा दर्द किसी ने नहीं जाना।

सरलार्थ : एक घायल की पीड़ा घायल व्यक्ति ही समझ सकता है। आग में बुरी तरह झुलसे व्यक्ति की पीड़ा एक जला हुआ व्यक्ति ही जान सकता है अन्य कोई नहीं ।

मेरी शय्या सूली के उपर बिछी हुई है, जबकि मेरे प्रीतम की सेज आसमान में है | कोई मुझे उपाय बताए की मै अपने प्रीतम से कैसे मिलूं ?

मै अपने पिया के विरह के असाध्य दर्द के कारण भयानक वन में भटक रही हूँ | मेरा दर्द तभी मिट सकता है जब मेरे प्रियतम कृष्ण मुझे वैद्य के रूप में मिले |

 

सुंदरतम काव्य रचना,
 

मीराबाई की ऐक सुंदर रचना का आनंद लीजिए

मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।

तात मात भात बंधु आपनो ना कोई,

छाड़ि दई कुल की कानि कहा करे कोई।

संतत ढिग बैठि बैठि लोक लाज खोई,

अंसवन जल सींचि सींचि प्रेम बेल बोई।।

अब तो बेलि फैल गई आणंद फल होई,

माखन सब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।

भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई,

दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोहि।

मेरो तो गिरधर गोपाल .....

सरलार्थ : मेरा एकमात्र मित्र सखा सम्बंधी सभी कुछ गिरधर गोपाल ही हैं। किसी अन्य से मेरा कोई वास्ता नहीं है।

जिस प्रभु के सिर पर मोरपंख का मुकुट है,वही मेरा पति है। माता, पिता, भाई व सगे संबंधि किसी से मेरा कोई संबंध नहीं है।

मैं संतों का सत्संग करती हूं । मुझे लोक लज्जा का तनिक भी भय नहीं है। मैंने प्रेम की बेल को अपने आंसुओं से सींचा है। अब उस बेल पर आनंद रूपी फल आ गए हैं।

मैंने भक्तिरस का मक्खन खाया है । अब संसार रूपी छाछ कोई भी पीएं, मुझे इससे कोई वास्ता

नहीं है । प्रभु के किसी भक्त को देखकर मुझे अपार सुख मिलता है। वहीं संसार में रमे लोगों को देखकर मुझे रोना आता है।

यह कितनी सुंदर हृदयस्पर्शी कविता है!

 
क्या सुन्दर काव्य रचना !
 

जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू रे

तोसो प्रीत तोड़ू कृष्णा कौन संग जोडू, तोसो प्रीत तोड़ू कृष्णा कौन संग जोडू |

जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू रे, जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू रे ||

तुम भये मोती प्रभुजी, हम भये धागा,तुम भये मोती प्रभुजी हम भये धागा,

तुम भये सोना, हम भये सुहागा ;

मीरा कहे प्रभु मीरा कहे प्रभु ब्रज के वासी,

तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी

जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू,जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू ||

तोसो प्रीत तोड़ू कृष्णा कोन संग जोडू, तोसो प्रीत तोड़ू कृष्णा कोन संग जोडू,

जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू रे, जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू |

तुम भये तरुवर मैं भई पंखिया, तुम भये सरोवर मैं तेरी मचिया ;

तुम भये गिरिवर मैं भई छाया, तुम भये चंदा मैं भाई चकोरा ;

जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू जो तुम तोड़ो पिया मैं नही तोडू रे

तोसो प्रीत तोड़ू कृष्णा कौन संग जोडू ||

सरल भावार्थ :

हे कृष्ण ! मै आपसे अपनी प्रीत कभी नहीं तोड़ सकती, हाँ आप यदि अपनी मुझसे प्रीत तोड़ भी लें तो बताओ मै फिर किससे प्रेम करूँ ?

यदि आप मोती बन जाओ तो मै भी धागा बनकर आपके साथ ही रहूंगी,आप यदि सोना बन जाओ तो मै भी सुहागा बन जाउंगी |

हे ब्रजवासी ! आप मेरे स्वामि हो और मै आपकी दासी हूँ |

यदि आप वृक्ष बन गए तो मै पक्षी बनकर आपके साथ रहूंगी, और यदि आप तालाब बन गए तो मै भी सीढियाँ बन जाउंगी |

यदि आप पर्वत बन गए तो मै उसकी छायाँ बन जाउंगी | यदि आप चन्द्रमा बन जाओगे तो मै चकोर बन जाउंगी |

हे प्रभो ! आप मुझसे भले ही अपनी प्रीत तोड़ लो किन्तु मै आपसे कदापि अपनी प्रीत नहीं तोड़ सकती |