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साक्षात्कार

स्त्री विमर्श –कुछ सवाल

[कुछ समय पूर्व मेरी कविताओं पर शोध कर रहे एक छात्र ने मेरा साक्षात्कार लिया था |पेश है उसके कुछ अंश ]
1-अपने जन्म और लेखन की शुरूआत के बारे में बताएँ ?
उत्तर-मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के पड़रौना कस्बे [जिला कुशीनगर] में हुआ | छोटी उम्र से ही मैं लिखने लगी | कस्बे में स्त्री की स्थिति दोयम दर्जे की थी | उसे मादा से अधिक नहीं समझा जाता था | हर स्तर पर लड़के.लड़की में भेदभाव था , जो मुझे अच्छा नहीं लगता था | लड़की थी , इसलिए अन्याय देखते हुए भी चुप रह जाना पड़ता था ,जिसके कारण मन में धीरे-धीरे विद्रोह संचित होता गया और उस विद्रोह को मैं कविता या कहानी में ढालने लगी थी |उस समय भाषा पर मेरी उतनी पकड़ नहीं थी ,पर धीरे-धीरे भाव उकेरने में मैं सफल होने लगी थी |
2-आपका विधिवत् लेखन कब और कैसे प्रारम्भहुआ ?
उत्तर-मेरा विधिवत लेखन गोरखपुर आकर शुरू हुआ | मैं यहाँ के विश्वविद्यालय में शोध कार्य करने आई थी | यहाँ मैं आकाशवाणी,दूरदर्शन व गोष्ठियों में कविताएं पढ़ने लगी |मित्रों ने प्रोत्साहित किया तो अखबारों और पत्रिकाओं में कविताएं भेजीं और वे छपने लगीं | फिर मैं विधिवत लिखने लगी |
3-आज हिन्दी साहित्य में विभिन्न विमर्शों पर बात हो रही है जिनमें से एक स्त्री-विमर्श भी है।हिंदी के स्त्री-विमर्श पर आपकी क्या राय है?
उत्तर-हिन्दी में स्त्री विमर्श की बहुत आवश्यकता है , क्योंकि अब तक स्त्री के बारे में पुरूष ही लिखते आए हैं और उन्होंने या तो उसे देवी रूप में चित्रित किया या फिर कुलटा रूप में | स्त्री के मनुष्य रूप पर उनकी कलम कम ही चली |उन्होंने अपनी तरफ से ही निश्चित कर लिया कि स्त्री क्या चाहती है ? विमर्श में स्त्री को स्त्री के नजरिए से देखा जाता है | स्त्री की चाहत के बारे में स्त्री से अधिक कौन जान सकता है ?
4- स्त्री-विमर्श में ‘विमर्श’ के बिंदु क्या होने चाहिए ?
उत्तर-विमर्श का बिन्दु यह होना चाहिए कि स्त्री के प्रति समाज की सोच में जो परिवर्तन हुआ है ,वह पर्याप्त नहीं है | अभी स्त्री के प्रति पुरूष बर्चस्व के सोच और व्यवहार में कुछ और बदलाव की जरूरत है | साथ ही स्त्री के स्वयं के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव की अपेक्षा बनी हुई है | आज स्त्री को बाजार के विरूद्ध खड़ा होना है क्योंकि वह उसे वही वस्तु बना रहा है,जिससे उसकी लड़ाई है |
5-प्रायः यह धारणा रही है कि स्त्री-लेखन पर एक तरह से स्त्री-लेखिकाओं को ही स्त्री-विमर्श का एकाधिकार प्राप्त है ?जब स्त्री-विमर्श में लेखन की प्रामाणिकता पर सवाल उठता है तो पुरुष लेखकों की अपेक्षा स्त्री लेखिकाओं के लेखन को ही क्यों प्रामाणिक मानते हैं ?
उत्तर-क्योंकि लेखिका पहले स्त्री है फिर लेखक| वह स्त्री के बारे में ज्यादा जानती है | भोक्ता का लेखन द्रष्टा से ज्यादा प्रमाणिक होता है |
6-स्त्री-विमर्श आधुनिक समय की देन है।अतीत में स्त्रियों पर किए गए लेखन को क्या आप विमर्श मानते हैं?
उत्तर-पुरूषों द्वारा लिखे गए लेखन में पूर्वाग्रह है ।प्रामाणिकता का अभाव है | अतीत में पुरूषों द्वारा जो लेखन हुआ,वह उनकी अपनी स्त्री दृष्टि है| उस समय स्त्रियों ने भी कलम चलाई थी ,पर उन्हें दबा दिया गया | उस समय स्त्री द्वारा जो लेखन हुआ है उनमें भी विमर्श था |आज जो विमर्श दिखता है ,उसके बिन्दु प्राचीन स्त्री लेखन में भी पा सकते हैं |
7-हिंदी साहित्य में प्रचलित स्त्री-विमर्श की दशा और दिशा पर आपकी क्या राय है ?
उत्तर-स्त्री के सम्पूर्ण अंतरंग और बहिरंग को समझने की कोशिश ही स्त्री विमर्श है | आवरणों और जकड़नों को भेद कर बाहर आई स्त्री का मन ,उसकी सोच ,दृष्टि ,समस्याओं ,स्थितियों और मन:स्थितियों का सम्यक विश्लेषण स्त्री विमर्श करता है | सामाजिक ,पारिवारिक और आंतरिक दबावों के बीच जीती स्त्री का स्वातंत्र्य, चेतना जैसे शब्दों से क्या रिश्ता है और उसके सोच की दशा क्या है तथा क्या हो ,यह भी इस विमर्श के खाते में दर्ज है | जरूरी यह जानना भी है कि ऊपरी अवरोधों को पार करने वाली स्त्री एक व्यक्ति के रूप में स्वयं को कितना जान समझ पाई है ? और इस रूप में कितनी स्वीकृत हुई है ?
स्त्री विमर्श ,स्त्री की मेधा की धार बनकर उसकी वास्तविक शक्ति बनाम आंतरिक शक्ति से भी परिचित कराने की कोशिश करता है|कुछ लोगों के अनुसार मौजूदा स्त्री विमर्श अधिकांशत: शरीर शोषण ,अर्थ और सेक्स के स्थूल धरातलों पर ही अटका रह गया है और वह भी फार्मूला बद्ध तथा एकरस ढंग से | पर यह एकांगी सोच है | स्त्री विमर्श आज काफी आगे जा चुका है |
हाँ,आज स्त्री विमर्श को सबसे बड़ा खतरा बाजार से है |बाजार स्त्री को उसके सौंदर्य की महत्ता याद दिलाकर अनायास की जगह सायास बाजार में उतार रहा है| स्त्री विमर्श तभी सार्थक होगा ,जब स्त्री बाजार के खिलाफ खड़ी होगी |
8-हिंदी में स्त्री-विमर्श की अभिव्यक्ति किस विधा के माध्यम से प्रभावी हो सकती है?
उत्तर-उपन्यास और कहानियों में स्त्री विमर्श की अभिव्यक्ति ज्यादा उभर कर आई है पर ऐसा नहीं है कि कविता में विमर्श कम प्रभावी है |विधा कोई भी हो उसमें व्यक्त विचार स्पष्ट होने चाहिए |
9-क्या स्त्री की समस्या को एक लेखिका ही सही से अभिव्यक्त कर सकती है?
उत्तर-मेरी दृष्टि में 'हाँ' क्योंकि वह स्त्री होने के नाते उसकी समस्याओं को ज्यादा अच्छी तरह समझती है|
10-आज स्त्रियाँ शोषण, हिंसा, बलात्कार की और भी अधिक शिकार हो रही हैं।क्या इस विमर्श का समाज पर कोई प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर- स्त्री हिंसा का सबसे बड़ा कारण यह है कि पुरूष की मानसिकता आज भी सामंती है | वह स्त्री को मात्र देह या वस्तु समझता है और उसे अपने अनुसार चलाना चाहता है |आज स्त्री स्वतंत्र हुई है और सभी क्षेत्रों में उसके लिए चुनौती बन रही है |इसी बौखलाहट में वह स्त्री हिंसा पर उतारू है |सदियों से बनी पुरूष मानसिकता में बदलाव इतनी जल्दी नहीं आएगा |अभी समय लगेगा |विमर्श का प्रभाव समाज में स्पष्ट दिख रहा है |लड़कियों का हर क्षेत्र में आगे बढ़ना इसका प्रमाण है |
11-कहा जाता है कि स्त्रियाँ ही स्त्रियों की शोषक हैं।इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-यह प्रचार भी पुरूषों की साजिश है | स्त्रियों के शोषण के पीछे कहीं न कहीं कोई पुरूष है |स्त्रियाँ जो शोषक दिखती हैं ,वे भी पुरूषों के हाथों की कठपुतली मात्र हैं |हाँ ,कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि पुरूष बर्चस्व का विरोध करते.करते स्त्री स्वयं पुरूष जैसी ही निरंकुशता और अमानवीयता को अंगीकार कर लेती है |जो नहीं होना चाहिए|स्त्री विमर्श इसके भी खिलाफ है |
12-क्या स्त्री-विमर्श आज अपनी सही दिशा में चल रहा है ?
उत्तर-हाँ, बिलकुल |थोड़ी बहुत दिशाभ्रमिता जरूर है ,पर समय के साथ वह भी दूर हो जाएगा |
13-क्या सिनेमा ने नारी की स्थिति को मजबूत किया है या उसकी छवि को बिगाड़ा है ? इस पर आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर-सिनेमा ने स्त्री की स्थिति को उतना अधिक मजबूत नहीं किया |यद्यपि कुछ फिल्मों में स्त्री समस्याओं को गंभीरता से लिया है ,पर उसे कुछ ज्यादा ही ग्लैमराइज़ कर दिया है |बंदिनी ,औरत ,मदर इंडिया ,लज्जा,दामिनी,गुलाबी गैंग जैसी फिल्मों ने स्त्री की स्थिति को संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है|

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