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अनमेल विवाह और प्रेमचंद

अनमेल विवाह और प्रेमचंद

स्त्री विमर्श के इस दौर में स्त्री की इच्छा ,भावना,कल्पना और कार्यदक्षता के साथ ही उसकी यौनिकता[व्यापक अर्थ में जीवनेच्छा]पर भी विचार -विमर्श किया जाता है|स्त्री भी ,मनुष्य है मात्र लिंग नहीं फिर भी पितृसत्ता एक तरफ तो पुरूष की काम-भावना को गौरवान्वित करता है दूसरी तरफ स्त्री की काम-भावना को विकृति मानकर तिरस्कृत करता है | शूपर्णखा का राम-लक्ष्मण के प्रति काम-भाव और उसकी परिणति से सब परिचित हैं |पूंजीवादी औद्योगिक समाज में भी पुरूष का ही बर्चस्व है ।स्त्री को तो वहाँ भी पण्य- वस्तु ही माना जाता है,जिसे खरीदा,भोगा तथा फेंका जा सकता है |स्त्रीवाद स्पष्ट कहता है कि यह दोहरी नीति अब नहीं चलेगी |स्त्री की देह और उसकी कोख उसकी अपनी है ,इसलिए उस पर अधिकार भी उसी का होना चाहिए |सहवास में स्त्री की इच्छा व निर्णय महत्वपूर्ण है |अब वह समय लद गया जब धरती का भोग वीर ही कर सकते हैं –का सिद्धान्त प्रचलन में था |
स्त्री की यौनिकता के विषय में प्रेमचंद क्या सोचते थे ,इस पर विचार करने से पूर्व यह जानना जरूरी है कि आलोचक इस संबंध में उनके विचार को अधूरा तथा आदर्शवादी मानते रहे हैं ,जो सही नहीं है |प्रेमचंद पर मिर्जा रूसवा ,रवीन्द्रनाथ टैगोर और शरतचंद के स्त्री विचारों का प्रभाव तो था ,पर उन्होंने इन तीनों के स्त्री संबंधी सीमाओं को तोड़ दिया था |
प्रेमचंद ने सुमन,निर्मला और रत्न को सुंदर,शिक्षित ,प्रतिभाशालिनी स्त्रियॉं के रूप में चित्रित किया है जो परिस्थितियों ,मान्यताओं और दहेज के कारण अनमेल विवाह का शिकार हो जाती हैं |उनके जोड़ का पुरूष उन्हें नहीं मिलता पर वे यथास्थिति को ज्यों का त्यों स्वीकार नहीं करतीं ,उनके खिलाफ संघर्ष करती हैं |अपनी अस्मिता,सौंदर्य और इच्छाओं ,कामनाओं के प्रति जागरूक ये स्त्रियाँ अपने शुष्क,नीरस,प्रेमविहीन जीवन में एक वैकल्पिक जीवन का स्वप्न ,इच्छा और प्रयास का भाव इस तरह लिए रहती हैं कि पाठक उनके चरित्र,उनकी यौनिकता के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेता है |
नरक का मार्ग,नैराश्य-लीला,स्वामिनी,और नया विवाह नामक कहानियाँ इसका सार्थक उदाहरण हैं |ये कहानियाँ स्त्री की यौनिकता,उनकी अदम्य जीवनेच्छा और समवयस्क पुरुष की कामना से लबरेज हैं |'नरक का मार्ग' कहानी में वेश्या जीवन जी रही स्त्री कहती है-'स्त्री सब कुछ सह सकती है दारुण से दारूण दुख,बड़े से बड़ा संकट,अगर नहीं सह सकती तो अपने यौवन-काल की उमंगों का कुचला जाना |
बूढ़े पति के साथ जीने से बेहतर वह वेश्या जीवन को मानती है –इस अधम दशा को भी उस दशा से नहीं बदलूंगी,जिससे निकलकर आई हूँ|
अपने अध:पतन का जिम्मेदार वह अपने माता-पिता तथा बूढ़े पति को मानती हुई समाज से आग्रह करती है-'अपनी बालिकाओं के लिए मत देखो धन,मत देखो जायदाद ,मत देखो कुलीनता केवल वर देखो.....|'
सेवसादन की सुमन का विवाह दोहाजू गजाधर प्रसाद से होता है |यह विवाह कितना अनमेल था, इस पर प्रेमचंद की टिप्पड़ी है-'सुमन की माँ वर को देखकर बहुत रोई और उसे लगा ‘मानो किसी ने सुमन को कुएं में डाल दिया हो |'
निर्मला भी अपनी पुत्री के भविष्य को लेकर इस कदर चिंतित है कि रुक्मणी से कहती है –'बच्ची को आपकी गोद में छोड़ जाती हूँ |अगर जीती-जागती रहे,तो किसी अच्छे कुल में विवाह कर दीजिएगा |चाहे क्वारी रखिएगा,चाहे विष देकर मार डालिएगा,पर कुपात्र के गले मत मढ़िएगा ,इतनी –सी आपसे मेरी बिनती है |'
'नैराश्य लीला' कहानी में कैलाश कुमारी ,जो विधवा है समाज के लगातार हस्तक्षेप से अंतत: विद्रोह कर बैठती है –'तो कुछ मालूम भी तो हो कि यह संसार मुझसे क्या चाहता है ?|मुझमें जीव है,चेतना है,जड़ क्यों कर बन जाऊँ ?
'कायाकल्प ' की लौगी भी इसी प्रकार के विचार व्यक्त करती है –ब्याह जोड़ का होता है कि बेजोड़?लड़की कंगाल को दे दे,पर बूढ़े को न दे |
रणभूमि की इन्दु भी सोफिया से कहती है-एक के बदले चौथाई पाकर कौन संतुष्ट हो सकता है ?मुझे तो बाजरे की पूरी बिस्कुट की चौथाई हिस्से से कहीं अच्छी मालूम पड़ती है क्षुधा तो तृप्त हो जाती है ,जो भोजन का उद्देश्य है |
कर्मभूमि की सुखदा और अमर के बीच तालमेल न होने की वजह बताते हुए प्रेमचंद लिखते हैं कि –वह पुरूष प्रवृति की युवती ब्याही गयी युवती प्रकृति के पुरूष से ,जिसमें पुरूषार्थ का कोई गुण नहीं |
निर्मला की व्यथा भी यही है- अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका पिता था ,जिसके सामने वह सिर झुकाकर ,देह चुरा कर निकलती थी ,अब उस अवस्था का एक आदमी उसका पति है ,वह उसे प्रेम की नहीं सम्मान की वस्तु समझती थी |वह उनसे भागती फिरती ,उनको देखते ही उसकी प्रफुल्लता पलायन कर जाती थी |
गोदान का होरी दातादीन के बहकावे में आकर अपनी बेटी रूपा का अधेड़ से विवाह करवा देता है,जिसके सदमे से वह जीते-जी नहीं उबर पाता |


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