ओमप्रकाश शर्मा -उपन्यासकार राजनारायण बोहरे द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ओमप्रकाश शर्मा -उपन्यासकार

आज की चर्चा के लिए धन्यवाद।
चर्चा के लिए हमने जो क्रम रखा है, मैं उसे बदल के , हट के चर्चा करना चाहता हूँ।
पहले पहल कौन सा उपन्यास पढ़ा?
एक साहित्य प्रेमी शिक्षक का बेटा होने की वजह से हमारे साथ संयोग रहा कि अच्छा साहित्य में बचपन से ही पढ़ने को मिलने लगा था। पुस्तको के अलावा, बाल पत्रिकाओं में चंदा मामा, पराग, बालभारती में आने वाली कहानियों से हम ऐसे प्रभावित हुए कि हम सर्वभक्षी पाठक बन गए। यानी कहानी के रूप में जो पढ़ने को मिले हम सब पढ़ लेते थे यह चाहत हमको आज भी है। कहानियां पढ़ते-पढ़ते हमे बुआ के गाँव अथाइखेड़ा तहसील अशोकनगर की पंचायती लाइब्रेरी में अचानक उपन्यास पढ़ने का मौका हाथ लगा और 9 वर्ष की उम्र में जो पहला उपन्यास हमने पढ़ा वह था -वयम रक्षाम! हाँजी इस उपन्यास को पढ़कर मैं सन्न रह गया था ,जब से पढ़ना सीखा तब से नायक के रूप में श्री राम या श्री कृष्ण को ही देखा था और सुना था, लेकिन वयम रक्षाम तो बहुत विचित्र उपन्यास था, जिसमें रावण प्रमुख पात्र था ।तो इस उपन्यास को पढ़कर जाना कि कथा का नायक कोई भी हो सकता है , बस आप के विवरण प्रामाणिक हो, भाषा विश्वसनीय हो औऱ अपनी तरह का कोई सन्देश या विचार हो। इस उपन्यास से यह भी जाना कि एक उपन्यास आपकी मानसिकता में न केवल उथल-पुथल मचा सकता है बल्कि उसे बदल भी सकता है। हालांकि इस उपन्यास के बाद मैंने अन्य साहित्य उपन्यास पढ़ने की परंपरा जारी नहीं रखी या कहें कि मुझे साहित्य के उपन्यास लगातार नहीं मिले बल्कि उस समय के समाज में प्रचलित गुलशन नंदा और प्रेम भारती के उपन्यास पढ़ते-पढ़ते मैं ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढ़ने लगा था। हां ओम प्रकाश शर्मा के जासूसी उपन्यासों ने मेरे किशोर मन में अमेरिकी पूंजीवाद के प्रति नफरत, अमेरिका की बदमाशियों की जानकारियां और रूस यानी अविभाजित सोवियत संघ की अच्छाइयां ,पाकिस्तान की बेवकूफियां और हमारे देश के कस्बों गांवों में स्मृति चिन्ह बने रह गए राजा महाराजाओं की मानसिकता उनकी दुरावस्था सहित मजदूर और किसान के आत्मविश्वास व उन की खुद्दारी भरी सीधी सादी जिंदगी का प्रामाणिक विवरण देखने को मिला था। शायद लोग अचरज करें कि ओमप्रकाश शर्मा घोषित रूप से जासूसी उपन्यास जरूर लिखते थे मगर उनके उपन्यासों में भीतरी तौर पर एक जनवादी धारा बहती दिखाई देती थी । दूसरे जासूसी उपन्यासों की तरह ना उनमें खून खच्चर होता था, ना सस्ती भाषा और न दैहिक रोमांस के खुले खाते होते थे , बल्कि एक सुगठित ,शानदार, समृद्ध भाषा में रचित उनके उपन्यास मूलतः जनवादी उपन्यास होते थे । जासूसी उपन्यास होने की वजह से उनमें जासूसी क्रियाकलाप तो होते थे पर अन्तिम विचारधारा जनवाद की होती थी और आपके मन पर वह अंतिम व्यक्ति अपना असर छोड़ता था जिसकी बेहतरी के लिए सारा साहित्य लिखा जाता है। तो मैं कहूंगा कि मेरे पहले उपन्यास के रूप में भले ही वयम रक्षाम उपन्यास हो, पर मेरे मन को जागरूक बनाने वाले और उस पर जनवादी प्रभाव स्थापित करने वाले उपन्यास कारों में ओम प्रकाश शर्मा का नाम हमेशा ही प्रभावशाली रहा ।
हमारी इस चर्चा में एक सवाल था कि मेरा सबसे प्रिय उपन्यास कौन है ?
त मैं कहूंगा कि मेरा सबसे प्रिय उपन्यास राग दरबारी है और वह इस हद तक मुझे प्रिय है कि न केवल मैं हर समय पढ़ना चाहता हूँ बल्कि अपने मित्रों और परिचितों को भी वही उपन्यास पढ़ाना चाहता हूं । मैं अब तक लगभग 50 कॉपी खरीद कर समय-समय पर अपने ऐसे गैर साहित्यकार दोस्तों ,पत्रकारों और अफसरों को भेंट कर चुका हूं , जिन्हें मैं हिंदी साहित्य का पाठक बनाना चाहता था । मुझे यह उपन्यास इसलिए पसंद है कि इसमें ना तो हद दर्जे का गांधीवाद है और ना हद दर्जे का गांधी विरोध या या कहें कि आधुनिक विकासवाद और हिंसा। बल्कि विश्वसनीय चरित्रों और कथा स्थितियों के बीच विशुद्ध हास्यात्मक भाषा व खिलंदड़ी अंदाज में नेहरू जी के सपनों के मोहभंग के समय की ग्रामीण कथा है यह उपन्यास । सबसे बड़ी बात है इस उपन्यास में ,वह है एक दो चरित्रों का तंत्र में पूरा विश्वास । मेरे मतानुसार जब तक तंत्र में हमारा यानि आमआदमी का विश्वास बना रहता है तब तक हमारा प्रजातंत्र जीवित रहता है, लोकतंत्र जीवित रहता है ।कुछ मित्रों को यह उपन्यास व्यंग्य निबंधों की तरह सब जगह नकारात्मकता खोजने वाला उपन्यास लगा , यह उनका अपना नजरिया था, लेकिन मुझे यह उपन्यास मोहभंग युग की वह रोचक ग्राम्य गगाथा लगी , वह दुनिया लगी जिस को पढ़ते समय मैं आज भी बाहरी जगत से मुक्त रहकर कुछ क्षणों के लिए एक अनिर्वचनीय आनंद में डूब जाता हूं ।
एक सवाल था मेरे प्रिय उपन्यासकार कौन?
मेरी प्रिय उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा हैं, जो आदर्शवाद और यथार्थवाद के बीच के बैलेंसिंग बिंदु पर ठहरी हुई होती हैं । लोक दुनिया, लोक जगत उनके उपन्यास में मूल तौर पर उपस्थित होता है तो स्त्री जागरण और दांपत्य संबंधों व प्रेम के विश्वसनीय विश्लेषण के साथ वे परिस्थितियों को देखती हैं
उपन्यास के बारे में स्वतंत्र टिप्पणी
इसबारे में संध्या जी ने प्रेमचंद के जो विचार बताएं हैं मैं उनसे सौ फीसदी सहमत हूं । विश्व के बड़े उपन्यासों में से कुछ के अनुवाद को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि उपन्यास में हम किसी स्थान को,किसी क्षेत्र को, किसी ऐतिहासिक घटना को और किसी समाज को ; एक युग विशेष में थोड़ा ठहर के , थोड़ा फुर्सत से , थोड़ा गहराई से देख पाते हैं ।उपन्यास समाज में क्रांति तो नहीं करते ,हां पाठक के मन को जरूर बदलने में समर्थ होते हैं, और उन्हें क्रांति के लिए तैयार कर देते हैं। आलोचकों और साहित्यशास्त्रियों ने उपन्यास में तमाम तत्व होना अनिवार्य बताया है, लेकिन मैं यह मानता हूं कि बिना "विचार " के उपन्यास सफल नहीं होता। उपन्यास के लिए जितना कथानक जरूरी है ,रोचकता जरूरी है ,लोकजीवन जरूरी है ,उतना ही उपन्यास के लिए विचार जरूरी है।।
पहला सवाल यानी जहां तक पढ़े हुए उपन्यासो को याद करने की बात है,मुझे इस वक्त सिर्फ वे उंपन्यास याद आ रहे है जो खास लगे।ऐसे उंपन्यास की सूची इस प्रकार है-
बाणभट्ट की आत्मकथा ,गोदान, गवन, कर्मभूमि, चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, सुफेद शैतान , आधा गांव, अपने अपने अजनबी , शहर में कर्फ्यू ,किस्सा लोकतंत्र, राग दरबारी, काला पहाड़, रेत, चाक ,इदन्नमम,अल्मा कबूतरी, मुझे चांद चाहिए, अपने अपने राम ,नरेंद्र कोहली के राम कथा के चार उपन्यास, रामकुमार भ्रमर के महाभारत कथा आधारित 18 उपन्यास , कितने पाकिस्तान, कसप ,कुरु कुरु स्वाहा ,एक थी मैंना एक था कुमहार, बीच रास्ते में , नमो अरिहंता, कटघरे , किंबहुना , आलाप बिलाप, कामिनी काय कांतारे, लोकतंत्र के पहरुए, धर्मपुर लॉज, एकलव्य, रत्नावली , डूब, पार, मुर्दहिया, बारामासी, नरक यात्रा ,नदी को याद नहीं, ऐसी नगरिया में केहि बिधि रहना , धरती धन न आपना ,धरती अब भी घूम रही है, तितली ,काला जल ,आखिरी कलाम काफी हिंदी के उपन्यास है तो अनुवाद किए हुए उपन्यासों में युद्ध व शांति, अपराध और दंड ,एकांत के सौ वर्ष, मुजरिम हाजिर है ,परस्त्री ,मजाक आनंदमठ ,साहब बीवी और गुलाम ,रस्सी, मछुआरा, सिद्धार्थ ,मृत्युंजय, याज्ञसैनी, कोई अच्छा सा लड़का ,अमीस त्रिपाठी की शिव ट्रायो लॉजी और राम ट्रायोलॉजी ,अशोक के बैंकर की राम कथा के दोनों उपन्यास और दस राजाओं का युद्ध आदि।।