ग्यारह अमावस - 53 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 53



(53)

गुरुनूर एक तंग कोठरी में कैद थी। कोठरी में हवा और रौशनी आने की व्यवस्था नहीं थी। इसके कारण कोठरी का महौल दम घोंटने वाला था। उस उमस और बदबू से भरी कोठरी में गुरुनूर एक कोने में घुटनों पर अपना सर रखकर बैठी थी। उसे बहुत उलझन हो रही थी। यह उलझन उमस और बदबू के कारण नहीं थी। यह उलझन कुछ ना कर पाने की थी।
उसे पहले कहीं और कैद करके रखा गया था। वहाँ वह इस फिराक में थी कि मौका मिलते ही भाग ले। पर उसे सही मौका मिल नहीं पाया। मौका मिलता उससे पहले ही उसे बेहोशी की हालत में उस जगह से एक नई जगह पर ले आया गया था। होश आने पर उसे उस मुखौटे वाले शैतान के सामने ले जाया गया। उस शैतान ने उसे बताया कि उसने बड़ी आसानी से दीपांकर दास को मोहरा बनाकर पुलिस को गुमराह कर दिया है। पुलिस अब केस को बंद कर देगी। वह आसानी से अपना काम करता रहेगा। अपनी कामयाबी पर हंसता हुआ वह उसके सामने से चला गया। उसकी हंसी देर तक गुरुनूर के कानों में गूंजती रही। वह गुस्से से उबल रही थी। उसे लग रहा था कि अब सही मौके का इंतज़ार करना ठीक नहीं है। उसे यहाँ से निकलने की कोशिश करनी चाहिए। इसलिए उसने गुस्से में खाना लेकर आने वालों पर हमला कर दिया। गुस्से में बिना सोचे समझे की गई इस हरकत का विपरीत परिणाम निकला। उसे इस तंग कोठरी में लाकर बंद कर दिया गया।
इस समय वह यही सोच रही थी कि थोड़ी सी चूक ने उसे और बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। इस कोठरी में कैद करने के बाद से उससे मिलने कोई नहीं आया था। उसे भूख भी लग रही थी। वह परेशान सी कोठरी के एक कोने में बैठी थी। उसे अचानक अपनी पीठ पर सरसराहट सी महसूस हुई। वह एकदम से उठकर खड़ी हो गई। अपनी पीठ पर हाथ मारकर उस कीड़े को गिरा दिया जो रेंग रहा था। अंधेरे में वह रेंगकर ना जाने कहांँ चला गया। वह कुछ सामान्य होती तभी उसे कोठरी का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। दरवाज़ा खुलने पर कुछ रौशनी और ताज़ी हवा अंदर आई। गुरुनूर को अच्छा लगा। उसकी निगाह दरवाज़े पर पड़ी तो जांबूर अंदर आता हुआ दिखाई दिया। वह आकर उसके सामने खड़ा हो गया। उस हल्की रौशनी में भी मुखौटे के पीछे से झांकती उसकी आँखों में शैतानी चमक दिखाई पड़ रही थी।
"सुना है कि तुम बहुत गुस्से में हो। कल तुमने खाना लाने वाले पर हमला कर दिया।"
जांबूर ने गंभीर आवाज़ में कहा। फिर ज़ोरदार ठहाका लगाया। शांत होकर फिर उसी गंभीर आवाज़ में बोला,
"क्या फायदा हुआ ? सिर्फ अपना नुकसान किया। अब इस कोठरी में सड़ोगी। लेकिन मैं अधिक दिन परेशान नहीं करूँगा। कुछ ही दिनों में तुम हर चीज़ से मुक्त हो जाओगी।"
गुरुनूर लगातार उसकी आँखों की तरफ देख रही थी। उनमें अजीब सी हैवानियत थी। ऊपर से उसकी धमकी मन में एक डर पैदा कर रही थी। गुरुनूर ने अपनी निगाह हटा ली। खुद को शांत करने के लिए बोली,
"तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाओगे। पुलिस उससे पहले मुझे तलाशती हुई यहाँ पहुँच जाएगी।"
जांबूर कुछ क्षण चुप रहा। फिर बोला,
"तुम्हारी यह उम्मीद भी मैंने तोड़ दी। कोई तुम्हें तलाशता हुआ नहीं आएगा।"
उसने जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी वो डराने वाली थी। एक बार फिर गुरुनूर के मन में भय की लहर उठी। जांबूर अपनी बात कहकर दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। दरवाज़े के बाहर निकलने से पहले गुरुनूर की तरफ देखकर बोला,
"तुम्हारी पुलिस यूनीफार्म मेरे काम आई।"
यह कहकर वह कोठरी से निकल गया।

कोठरी का दरवाज़ा बंद हो गया। एकबार फिर कोठरी में अंधेरा और घुटन भर गए। गुरुनूर उस बात का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी जो जांंबूर ने कही थी। जब अपहरण के बाद उसे होश आया था तो उसने खुद को दूसरे कपड़ों में पाया था। उसकी वर्दी नहीं थी। उसने जब अपनी वर्दी के बारे में पूछा तो कोई जवाब नहीं मिला। वह अब सोच रही थी कि इस शैतान ने उस वर्दी का क्या इस्तेमाल किया होगा ? जिस तरह से उसने कहा था कि उसे तलाशने कोई नहीं आएगा गुरुनूर के मन में सिहरन पैदा कर रहा था। गुरुनूर हताश और डरी हुई थी। उसने शक्ति पाने के लिए मूल मंतर का जाप करना शुरू कर दिया। अपनी आँखें बंद किए, हाथ जोड़कर वह पूरे ध्यान के साथ जप रही थी,
'इक्क ओंकार सत नाम
करता पुरख
निरभऊ निरबैर
अकाल मूरत
अजूनी सैभं
गुर प्रसाद।।'
मूल मंतर का जाप करने के बाद वह अपने मन में शांति और शक्ति का अनुभव कर रही थी।

जांबूर ने जो कुछ बताया उसे सुनकर शुबेंदु को बहुत तसल्ली हुई थी। आखिरकार यह डर खत्म हो गया था कि एसपी गुरुनूर कौर को तलाशती हुई पुलिस उन लोगों तक पहुँचे। क्योंकी पुलिस को एक लाश मिलने वाली थी। उसका चेहरा बुरी तरह कुछ कुचला हुआ था। उस लाश पर एसपी गुरुनूर कौर की वर्दी थी। उस वर्दी के कारण पुलिस को यह यकीन होने वाला था कि एसपी गुरुनूर कौर की हत्या हो गई। लेकिन उसके मन में अभी भी एक बात थी। उसने पूछा,
"क्या इस बार भी चोरी के फोन से पुलिस को सूचना दोगे ?"
जांबूर ने कहा,
"नहीं.....लाश ऐसी जगह डाली है जहाँ किसी ना किसी की नज़र उस पर पड़ेगी। वह पुलिस को सूचना देगा।"
कुछ सोचकर शुबेंदु ने कहा,
"मान लो कि कोई लाश को ना देख पाया तो ?"
जांबूर ने पूरे विश्वास के साथ कहा,
"मैं हमेशा बहुत सोचने के बाद मोहरे आगे बढ़ाता हूँ। मेरी चाल गलत नहीं हो सकती है।"
शुबेंदु अभी भी कुछ सोच रहा था। उसने कहा,
"लेकिन लाश की जांच होने पर सब स्पष्ट हो जाएगा।"
"मैंने बहुत सोच समझकर लाश का इंतज़ाम किया था। कद काठी सबकुछ उस पुलिस वाली से मिलती है।"
"लेकिन अगर गहरी जांच हुई...मेरा मतलब...."
उसकी बात बीच में ही काटकर जांबूर गुस्से में बोला,
"तुम अब बहुत सवाल करने लगे हो। तुमको क्या लगता है कि जो तुम सोच पाते हो वो मैं नहीं सोच पाता। मैं कह चुका हूंँ कि मैं सोच समझकर ही अपनी चाल चलता हूंँ। इसलिए मेरे फैसले पर बहुत अधिक शक मत किया करो।"
शुबेंदु के मन में अभी भी कई बातें थीं। पर उसने आगे कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे अपनी टीम के साथ उस जगह पर जा रहा था जहाँ एक महिला पुलिस ऑफिसर की लाश मिलने की खबर आई थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे मना रहा था कि वह गुरुनूर की लाश ना हो। लेकिन जो हुलिया बताया जा रहा था वह गुरुनूर की तरफ इशारा कर रहा था। फोन करने वाले ने बताया था कि वह पालमगढ़ और बसरपुर के बीच पड़ने वाले जंगल में किसी काम से गया था तब उसे पुलिस की वर्दी में एक महिला की लाश मिली। लाश देखने वाले आदमी ने कहा कि वह उस जगह पर पुलिस के पहुँचने का इंतज़ार कर रहा है।
उस जगह पर पहुँचकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने देखा कि कद काठी से लाश एसपी गुरुनूर कौर की ही लग रही थी। वर्दी पर नाम का बैज उसका ही था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के पास उसे गुरुनूर की लाश मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। साथ आई फॉरेंसिक टीम ने आसपास का मुआयना किया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे के मन में आ रहा था कि अगर मिलने वाली लाश एसपी गुरुनूर कौर की है तो उसकी हत्या किसने की। दीपांकर दास जिसे सब शैतान मान रहे थे तो पुलिस की गिरफ्त में था। तो क्या उसने गिरफ्तार होने से पहले एसपी गुरुनूर कौर की हत्या की। या फिर कोई और भी है। उसका ध्यान शुबेंदु की तरफ गया। लेकिन कुछ कहने से पहले वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखना चाहता था।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार हत्या का समय दीपांकर दास की गिरफ्तारी से कोई दस घंटे पहले का था। दीपांकर दास की गिरफ्तारी को छत्तीस घंटे से अधिक हो चुके थे। इस हिसाब से हत्या दो दिन पहले की गई थी। हत्या की ज़िम्मेदारी दीपांकर दास पर डाली जा सकती थी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे चाहता था कि एक बार फिर दीपांकर दास से मिले और उससे एसपी गुरुनूर कौर के बारे में बात करे। उसने एसीपी मंदार पात्रा से दीपांकर दास के साथ मुलाकात करने की इजाज़त मांगी।
यह खबर सारे बसरपुर में फैल गई थी कि सरकटी लाशों के केस के लिए विशेष तौर पर भेजी गई एसपी गुरुनूर कौर की लाश जंगल में मिली है। सब लोगों में एकबार फिर दहशत फैल गई। मीडिया में एसपी गुरुनूर कौर की हत्या को लेकर अलग अलग तरह की बातें हो रही थीं। एक पक्ष के लोग कह रहे थे कि पुलिस ने भले ही केस सॉल्व करने में सफलता पाई हो पर अपनी ऑफिसर को बचाने में असफल रही। दूसरे पक्ष का कहना था कि एसपी गुरुनूर कौर एक बहादुर ऑफिसर थी। उसने इस केस के लिए अपना बलिदान दिया है। एक धड़ा ऐसा भी था जो सवाल उठा रहा था कि एसपी गुरुनूर कौर का अपहरण लगभग बीस दिन पहले किया गया था। फिर उसे इतने दिनों तक जीवित क्यों रखा गया ? उसकी लाश उस जगह क्यों नहीं मिली जहाँ से दीपांकर दास को गिरफ्तार किया गया था ?