ग्यारह अमावस - 5 Ashish Kumar Trivedi द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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ग्यारह अमावस - 5



(5)

चौथी लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी। लाश मिलने के पंद्रह दिन पहले हत्या की संभावना व्यक्त की गई थी। इस बार एक ऐसी चीज़ सामने आई थी जो कुछ मदद कर सकती थी। मरने वाले किशोर की दाईं टांग में मेटल की एक प्लेट लगी थी। जिस पर एक नंबर था। जिसकी सहायता से यह पता चल सकता था कि प्लेट किस अस्पताल में, किस सर्जन द्वारा, किस व्यक्ति को इम्प्लांट की गई थी।
फारेंसिक टीम ने वह सीरियल नंबर देकर उस विषय में जानकारी एकत्र करने को कहा था। गुरुनूर किसी अच्छी खबर के इंतज़ार में थी। प्राप्त जानकारी वह सूत्र साबित हो सकती थी जिसे पकड़ कर केस की जांच को आगे बढ़ाया जा सके। उसे बसरपुर आए एक हफ्ता हो चुका था पर अभी तक जांच की सुई हिली भी नहीं थी। अब उम्मीद थी कि सुई घूमकर किसी दिशा की तरफ इशारा करे।

सब इंस्पेक्टर आकाश ‌दुबे ने गुरुनूर के केबिन में प्रवेश किया। उसके चेहरे की चमक देखकर गुरुनूर समझ गई कि कुछ अच्छी खबर है। उसने कहा,
"आकाश....लगता है कि कुछ अच्छी खबर लेकर आए हो।"
"जी मैडम खबर अच्छी है। लाश के पैर में जो सर्जिकल मैटल प्लेट थी उसके नंबर से यह पता चल गया है कि वह प्लेट किस अस्पताल में डाली गई थी। अस्पताल का नाम विद्यावती मेमोरियल हॉस्पिटल है। यह पालमगढ़ में है।"
खबर सुनकर गुरुनूर के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। अब एक ऐसी खबर मिली थी जो उसे एक रास्ता दिखा रही थी जिस पर आगे बढ़ा जा सकता था। उसने कहा,
"आगे की सूचना के लिए हमें विद्यावती मेमोरियल हॉस्पिटल चलना पड़ेगा। पालमगढ़ चलने की तैयारी करो।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम शाम होने में कुछ ही समय है...."
उसकी बात सुनकर गुरुनूर ने कुछ गुस्से में कहा,
"तो अब हम लोग भी शाम के बाद डरकर बैठे रहेंगे।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने सफाई देते हुए कहा,
"नहीं मैडम....मेरा वो मतलब नहीं था। मैं कहना चाह रहा था कि आने जाने में ही बहुत समय लग जाएगा। फिर वहाँ ना जाने कितना समय लगे। लौटने में बहुत रात हो जाएगी। आपको असुविधा होगी।"
गुरुनूर ने उसे घूरकर देखा। वह कुछ डर गया। गुरुनूर बोली,
"अपनी सुविधा का खयाल रखते रहे तो यह केस सॉल्व होना मुश्किल है। वैसे भी अभी तक आगे बढ़ने की कोई लीड नहीं थी। अब एक सूत्र मिला है। समय बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"जी मैडम सही कह रही हैं आप। मैं अभी चलने की तैयारी करता हूँ।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे चला गया। गुरुनूर सोच रही थी कि इतने दिनों तक उसे ना चाहते हुए भी शांत बैठना पड़ा। अब कुछ करने का समय आया है तो वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

गुरुनूर के साथ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित थे। इस समय तीनों विद्यावती मेमोरियल हॉस्पिटल के सर्जरी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर नील भसीन के कक्ष में थे। गुरुनूर ने उन्हें सारी बात बताने के बाद कहा,
"आप पता करवाइए कि यह सर्जिकल मैटल प्लेट किस व्यक्ति को लगाई गई थी। आपकी सहूलियत के लिए बता दूंँ कि उसकी उम्र पंद्रह से सत्रह साल के बीच होगी।"
नील भसीन ने कहा,
"मैडम कुछ वक्त दीजिए मैं रिकॉर्ड चेक करवाता हूंँ।"
उन्होंने अपने सेक्रेटरी को बुलाकर उसे निर्देश दिए। सेक्रेटरी उनके निर्देश का पालन करने के लिए चला गया। नील भसीन ने कहा,
"आप लोगों के लिए चाय मगाऊँ ?"
गुरुनूर ने मना कर दिया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे और हेड कांस्टेबल ललित ने एक दूसरे की तरफ देखा। तभी नील भसीन का फोन आ गया। वह बात करने लगा। गुरुनूर ने अपने साथियों से कहा,
"आप लोगों को चाय पीनी हो तो बाहर जाकर पी आइए।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"नहीं मैडम उसकी ज़रूरत नहीं है।"
तीनों बैठकर इंतज़ार करने लगे कि सेक्रेटरी जल्दी सारी बात पता करके आ जाए। करीब बीस मिनट बाद सेक्रेटरी ने एक काग़ज़ लाकर नील भसीन को दिया। नील भसीन ने उस पर नज़र डालने के बाद कागज़ गुरुनूर की तरफ बढ़ा दिया। गुरुनूर ने उसे ध्यान से पढ़ा। जिसे वह सर्जिकल मैटल प्लेट लगाई गई थी उसका नाम अमन पाहुजा था। उसकी उम्र सत्रह वर्ष थी। उसके घर का पता भी दिया गया था। गुरुनूर ने कहा,
"थैंक्यू मिस्टर भसीन। आपने हमारी अच्छी मदद की है।"
नील भसीन ने कहा,
"कानून की मदद तो हमारा फर्ज़ है।"
गुरुनूर उठकर खड़ी हो गई। नील भसीन उसे अपने कमरे के दरवाज़े तक छोड़ने गया।

विद्यावती मेमोरियल हॉस्पिटल से कुछ आगे जाकर गुरुनूर ने एक रेस्टोरेंट के आगे जीप रुकवाई। उसने अपने साथियों से कहा,
"आइए कुछ खा पी लेते हैं। उसके बाद उस लड़के अमन पाहुजा के घर चलना है।"
उन तीनों के अलावा ड्राइवर भी जीप को सही जगह पार्क करके रेस्टोरेंट में चला गया। गुरुनूर ने अपने साथियों से कहा,
"आपको जो भी ऑर्डर करना है निसंकोच कीजिए। बिल मैं पे करूँगी।"
सबने अपनी इच्छानुसार ऑर्डर कर दिया। गुरुनूर ने अपने लिए कॉफी और सैंडविच ऑर्डर किया था। खाते हुए वह सोच रही थी कि कौन होगा जिसने एक सत्रह साल के लड़के को बेरहमी से कत्ल किया होगा। आखिर क्या मिला होगा उसे उस बच्चे की हत्या करके। ना जाने उसके माँ बाप पर क्या बीत रही होगी। उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। इन सारी बातों के बारे में सोचकर उसका मन उस कातिल के लिए गुस्से से भर उठा। उसका मन खिन्न हो गया था। उसने जैसे तैसे कॉफी और सैंडविच खत्म किए। सबके खाने के बाद गुरुनूर ने यूपीआई से सबका बिल चुका दिया।

जीप एक मकान के सामने जाकर रुकी। गुरुनूर अपने साथियों के साथ उतरी। गेट खोलकर अंदर गई। हेड कांस्टेबल ललित ने कॉल बेल बजाई। कुछ देर में एक अधेड़ उम्र के आदमी ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर पुलिस को देखते ही बोला,
"अमन का पता चल गया ?"
गुरुनूर ने कहा,
"जी...."
"कहाँ है मेरा बेटा ? कैसा है ?"
उसकी आवाज़ सुनकर एक औरत भी आ गई। वह बोली,
"आप लोग मेरे बच्चे की खबर लेकर आए हैं।"
उसके बाद उसने हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद दिया। गुरुनूर समझ नहीं पा रही थी कि उन्हें उनके बेटे की मौत की खबर कैसे देगी। आदमी ने कहा,
"मैडम बताइए हमारा बेटा कहाँ है ?"
गुरुनूर ने धीरे से कहा,
"क्या मैं और मेरे साथी अंदर आ सकते हैं ?"
गुरुनूर की आवाज़ से दोनों पति पत्नी को अनहोनी का अंदेशा हो गया। वह आदमी एक तरफ होकर खड़ा हो गया। गुरुनूर और उसके साथी अंदर चले गए। पति पत्नी उनके सामने बैठ गए। गुरुनूर ने कहा,
"आपके बेटे का नाम अमन पाहुजा है।"
"जी.... मैं उसका पापा अजय और ये उसकी मम्मी ज्योत्स्ना है।"
अजय ने अपनी पत्नी की तरफ इशारा किया। ज्योत्स्ना ने कहा,
"मैडम अब हमारे बच्चे के बारे में बताइए। इतने दिनों से हम उसके बारे में जानने के लिए परेशान हैं। मैं और अजय लगभग रोज़ ही पुलिस स्टेशन जाते हैं। इस उम्मीद से कि कोई तो खबर मिलेगी। अब हमारे दिल की धड़कनें बहुत तेज़ हो रही हैं। जो भी है बता दीजिए।"
यह कहकर ज्योत्स्ना रोने लगी। अजय ने भी हाथ जोड़ दिए। गुरुनूर के लिए कठिन स्थिति उत्पन्न हो गई थी। पर उसने अपने पर काबू करके कहा,
"दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि आपके बेटे अमन की मृत्यु हो चुकी है। उसकी लाश मिली थी।"
यह सुनते ही अजय और ज्योत्स्ना ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। गुरुनूर को बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन एक पुलिस अधिकारी के तौर पर यह उसकी ड्यूटी थी कि वह जिस काम से आई है उसे पूरा करे। वह उठकर ज्योत्स्ना को सांत्वना देने लगी। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे भी अजय को चुप कराने लगा‌। कुछ देर में दोनों पति पत्नी कुछ शांत हुए। कमरे में एक तरफ डाइनिंग टेबल पर पानी का जग और गिलास रखे थे। हेड कांस्टेबल ललित ने दोनों को पानी पिलाया। ज्योत्स्ना की आँखों से आंसू बह रहे थे। वह रोते हुए बोलीं,
"इतने दिनों से अमन का इंतज़ार था। कभी लगता था कि वह अपने कमरे से मुझे आवाज़ दे रहा है। कभी लगता था कि दरवाज़े पर खड़ा होकर चिल्ला रहा है कि मम्मी मैं आ गया। हम दोनों एक उम्मीद में जी रहे थे कि शायद एक दिन वह लौट आएगा। आज उम्मीद टूट गई। इंतज़ार खत्म हो गया।"
गुरुनूर अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। उसने कहा,
"आपके बेटे के पैर में सर्जिकल मैटल प्लेट लगी थी। उसकी मदद से ही हम आप तक पहुँच पाए हैं।"
अजय ने कहा,
"मैडम दो साल पहले उसका एक्सीडेंट हुआ था। तब डॉक्टर ने सर्जरी करके प्लेट डाली थी। कई महीनों तक बिस्तर पर रहा था। अब बाहर निकलना शुरू किया था।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"आपका बेटा कब और कैसे गायब हुआ था ?"
अजय ने कहा,
"डेढ़ महीने हो गए थे। पहले वह साइकिल से स्कूल जाता था। एक्सीडेंट के बाद हमने उसके लिए वैन लगवा दी थी। एक दिन छुट्टी के समय वैन वाले ने ज्योत्स्ना को फोन किया कि वैन में कुछ गड़बड़ हो गई है। वह समय पर अमन को लेने नहीं पहुँच पाएगा। ज्योत्स्ना खुद उसे लेने के लिए स्कूल चली गई। जब वह पहुँची तो अमन कहीं दिखाई नहीं पड़ा।"
ज्योत्स्ना ने रोते हुए कहा,
"मैंने हर जगह देखा। सबसे पूछा पर कोई उसके बारे में कुछ नहीं बता पा रहा था।"
गुरुनूर ने पूछा,
"क्या आपको पहुँचने में देर हो गई थी ?"
"वैन वाला पहले अपनी कोशिश करता रहा। पर जब उसे लगा कि उसका पहुँचना नामुमकिन है तो उसने छुट्टी से सिर्फ दस मिनट पहले ही फोन किया था। उसके बाद मैं तैयार होकर निकली। पहुँचने में आधा घंटा लग गया। समझ नहीं आ रहा है कि अमन तो बहुत समझदार था। फिर वह किसी अनजान के साथ कैसे चला गया होगा।"
ज्योत्स्ना यह सवाल करके रोने लगीं। अजय भी अपने बच्चे की मौत को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। दोनों की आँखों में आंसू थे।