मातृभारती प्रयोगशाला.... Saroj Verma द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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मातृभारती प्रयोगशाला....

आधी रात का समय करीब बारह बजे होगें,मैं कहीं किसी सड़क पर चली जा रहीं थीं, कहाँ ?ये मुझे खुद नहीं पता था,तभी पीछे से किसी शख्स की लालटेन की रौशनी ने मुझे डरा दिया और वो गाना गाते हुए चला आ रहा था,गाना कुछ इस प्रकार था....

चट्ट देनीं मार देनीं खीच के तमाचा,
ही-ही हँस देहिल रिंकिया के पापा,

मैने उनसे पूछा....
सर! आप कौन हैं और इस वक्त कहाँ जा रहे हैं?
वें बोले...
आप हमें नहीं ना जानती हैं,हमें तो ससुरा सबहीं जानते हैं,हमरा नाम आलू प्रसाद माधव है और इससे ज्यादा कुछु मत पूछिएगा,काहें से हम बता नहीं पाऐगें जल्दी में जो हैं और इतना कहकर वें चले गए....
मैं उन्हें जाते हुए देखती रहीं....
तभी पीछे से एक हाथी आता हुआ दिखाई दिया,उस पर एक महिला सवार थी और वें भी गाना गाते हुए चलीं आ रहीं थीं.....

चल-चल मेरे हाथी,ओ मेरे साथी,
चल ले चल खटारा खीच के,
मैने उनसे पूछा कि आप कौन हैं देवी जी?
तो उन्होंने एक कागज उठाया और उसमें से पढ़कर बोली....
मैं छायावती हूँ और जल्दी में हूँ,बाद में बात करूँगी और इतना कहकर वें भी चलीं गईं।।
मैं उन्हें भी जाते हुए देखती रही....
फिर पीछे से महँगी कार में कोई शख्स आता हुआ नज़र आया वो भी गाना गाता हूँ चला आ रहा था वो गाना कुछ इस प्रकार था...

जाने मेरी जानेमन बसपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे!
सस्सा मेरा प्यार है,प्यार तुझको किया है ,
बसपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे!
मैने उनसे पूछा कि आप कौन हैं?
तो वें बोलें...
मेरा तो कुछ और नाम है वो मुझे अभी याद नहीं लेकिन मेरी मम्मी मुझे पप्पू कहकर बुलातीं हैं,अभी मैं जल्दी में हूँ बाद में बात करूँगा और वें भी चले गए,
मैं उन्हें भी जाते हुए देखती रही...
फिर कोई शख्स साइकिल पल सवार था और बार साइकिल की घंटी बजा रहा था साथ में गाना भी गा रहा था,गाना कुछ इस प्रकार था....

हवा के साथ साथ,गुलाबी ठंड ठंड,
तो साथी चल,तो साथी चल,
मैने उनसे भी पूछा कि आप कौन हैं?
तो वें बोले...
आप मुझे नहीं जानती ,मैं जानता हूँ,मैं समझता हूँ,मैं बोलता हूँ कि मेरा नाम मिथिलेश माधव है,बहुत जल्दी में हूँ,बाद मे बात करूँगा और वें भी चले गए...
मैं उन्हें भी जाता हुआ देखती रही....
फिर एक शख्स झाड़ू पर सवार होकर आसमान से गुजरा, वो भी गाना गा रहा था,जो इस प्रकार है....
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को,
याद आएं कभी तो मत रोना

मैने उनसे पूछा कि आप कौन?
तो वें बोले....
आप मुझे नहीं जानतीं,मेरी खाँसी और मफ़लर तो बहुत ही मशहूर है मैने दिल्ली को बिजली और पानी मुफ्त दिया है,मेरा नाम नेजरीवाल है....
अभी जल्दी में हूँ चलता हूँ फिर कभी बाद में मुलाकात होगी।।
तभी पीछे से मीडिया पर्सनैलिटी सरनव शोरस्वामी आ पहुँचे और चीखते हुए बोले....
आप कौन हैं?
मैने कहा....
मैं एक मामूली सी मातृभारती लेखिका हूँ।।
तो आपने उन सब लोगों से कहा क्यों नहीं कि आप मातृभारती लेखिका हैं?शोरस्वामी जी ने पूछा।।
मैने कहा...
उन सबने मौका ही नहीं दिया....
वें सब मातृभारती प्रयोगशाला में ही तो जा रहे थे,सबको अपनी अपनी स्पीच लिखवानी थी,क्योकिं हम सबने सुना था कि वहाँ जो भी कवि या लेखक जाते हैं तो बहुत सारे प्रयोगों से गुजर कर एक अच्छे लेखक या कवि बनकर ही निकलते हैं और मातृभारती के लेखक ही एक अच्छी स्पीच लिख सकते हैं,शोरस्वामी जी बोले....
मैने पूछा....
क्या हमारी मातृभारती इतनी फेमस है?
शोरस्वामी जी बोले ....
और क्या? मातृभारती जैसी बड़ी प्रयोगशाला और कहीं नहीं...मँझे हुए लेखक और कवि वहाँ से निकलते हैं....
मैने कहा,
तब तो बहुत बढ़िया ,जय हो मात्रभारती प्रयोगशाला तेरी महिमा अपरम्पार।।
और फिर शोरस्वामी जी भी उन सबके पीछे चले गए अपनी न्यूज के लिए मसाला ढ़ूढ़ने।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा....