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कांता रॉय-अस्तित्व की यात्रा

कांता रॉय-अस्तित्व की यात्रा
समीक्षा


पुस्तक पखवाड़े के इस मंच पर श्री अशोक भाटिया जी और बलराम अग्रवाल,जिजी व बी एल आच्छा जिजी जैसे लघुकथा के सुधी विचारक और शास्त्रीय समीक्षक बल्कि लघुकथा आंदोलन के प्रमुख विद्वानों के वक्तव्य हो चुके हैँ , सभी विद्वानों ने विभिन्न आयामों के बारे में बहुत गहराई से बात की है ऐसे में अब हम जैसे लगभग अजनबी लोग बहुत गहराई से बात तो नहीं कर सकते ।
लेकिन जैसी कि प्रथा है, हर मंचन पर, हर थिएटर की प्रस्तुति में पूर्व से यह निर्धारित किया जाता है कि किसका क्या रौल होगा,कितनी देर उसे मंच पर रहना होगा, तो उस शख्श का फर्ज होता है कि वह गम्भीरता से अपना रौल निभाये । इस कारण मैं अपनी बात करता हूं।
मित्रों न तो मुझे सुचिंतित वक्तव्य देना आता है न ही मैं लघुकथा का कोई अधिकृत समीक्षक हूँ, बस एक पाठक हूँ तो जो टूटा फूटा बिखरा हुआ बोलूंगा उसमें कोई तारतम्य न खोजियेगा।

लघुकथा मैं सन 1975 से सारिका में पढ़ता रहा हूँ। सन 1983 के आसपास से मैंने लघुकथा लिखना और सारिका की लघुकथाओ पर टिप्पणी करने शुरू कर दिया था। इस कारण अपने अध्ययन के आधार पर मैं अन्य कथाओं की तुलना में लघुकथा की खासियतों पर कुछ बिंदु रखना चाहता हैं।
सबसे पहले हम बात करते हैं कथ्य की बहुलता पर। जिस तरह आसमान अनंत है औऱ दुनिया के मुद्दे भी अनन्त है तो लघुकथा के लिए भी हमारर आसपास अनन्त मुद्दे,अगणित कथ्य और सैकड़ों विमर्श बिखरे पड़े है।इसलिए अन्य विधाओं की तुलना में लघुकथा के लिए कथ्य खोजना ज्यादा आसान होता है।
ऊपन्यास के लिए कोई बड़ी कथा चाहिए , बड़ा विचार चाहिए होता है तथा कहानी के लिए भी थोड़ा सा विस्तृत बहुमुखी कैनवास जरूरी होता है, लेकिन लघुकथा एक विशेष तत्व,खास मुद्दे,खास सन्देश, खास मनोविज्ञान की कहानी है । में इसे क्षण विशेष की कहानी नहीं मानता। जिस तत्व को ,विचार को, पीड़ा को लेखक को उजागर या हाईलाइट करना है, पॉइंटेड करना है या उसको अंत में लाकर प्रकट करना है वह ठीक से हाई लाइट ही जाय तो लघुकथा सफ़ल मानी जाती है। पँच वाक्य का महत्व बढ़ा देने पर उसके दुष्प्रभाव के बारे में पिछले एक सत्र में कहा गया था कि पंच को ही खास बना देने पर लघुकथा लेखक केवल पंच का पीछा करेगा,उसके लायक कथ्य खोजेगा।लघुकथा पिच्छड़ जायगी।


लघुकथा के शिल्प पर बात की जाय तो मित्रों समकालीन लघुकथाओं में जाने अनजाने हर लेखक द्ववारा पिरामिड शैली, उल्टा पिरामिड शैली और चतुर्भुज शैली में रचना की जाती हैं।
पत्रकारिता की पढ़ाई कराते समय न्यूज लिखने के जो तरीके बताए जाते हैं ,उनमें पिरामिड एक तरीका होता है जिसमे शरुआत में एक दो शब्द होते है, जिसके बाद थोड़ा बड़ा वाक्य यानी इंट्रो होता है और अंत मे सबसे बढ़ा विस्तारित वाक्य आता है।
समाचार की एक शैली इससे उल्टी होती है जो उल्टा पिरामिड कहलाती है । इस शैली में खूब बड़ा वाक्य यानी समाचार विस्तार सबसे ऊपर होता है और बाद में वाक्य छोटे होते जाते हैं तथा अंत में सबसे छोटा भाग आता है।यानी न्यूयूज़ स्टोरी का निचोड़।
हम कोई भी अखबार उठा कर देखें तो हम पाएंगे कि पिरामिड शैली में ही अधिकांश समाचार लिखे जाते हैं जैसे पिछले दिनों न्यूज पिरामिड की स्टाइल से एक न्यूज थी, शिखर पर लिखा था-
भोपाल अब्बल
इंट्रो में लिखा गया था कि किस तरह
पिछली बार इंदौर में कोरोना के मरीज ज्यादा थे और इस बार भोपाल में ज्यादा मरीज पाए जा रहे हैं।
न्यूज में आगे के वाक्यों में विस्तार ज्यादा हो गया था। जिसमे आंकड़े बताएं थे कि इंदौर में कितने निकले थे ,जबलपुर में कितने निकले थे, ग्वालियर कितने निकले थे और भोपाल में कितने। यहीं कोविड 19 के संक्रमण के कुछ कारण बताए गए थे।
यह पिरामिड शैली है।
जबकि पत्रिकाओं में लिखे समाचार और लेख उल्टे पिरामिड शेली में होते हैं। इनके शुरू में विस्तार होगा और अंत में छोटे वाक्य पर समाप्त होती है ।
लघु कथा की तीसरी शैली है चतुर्भुज शेली जिसमे छोटे वाक्य से शुरू लघुकथा बीच मे विस्तार पाती है और अंत मे फिर से छोटे वाक्यों पर खत्म होती है।
तकनीकी नजरिये से सारी लघुकठाएँ इन्ही तीन शेली में लिखी हुई मिल जायेंगी।
आइए हम कांता रॉय के लघु कथा सँग्रह
अस्तित्व की यात्रा पर बात करें। लघु कथा संग्रह की कुछ गिनी चुनी रचनाओं को कुछ बिंदुओं में बाँट कर बात करेंगे तो आसानी होगी ।
पहला बिंदु है
रिश्ते नाते प्रेम से जुड़ी लघुकथाएं । इस विषयमें सँग्रह में बहुतेरी लघुकथा शामिल हैंजिन्हें वर्तमान में टूटते परिवार,घर,रिश्तों की समाज मे यथार्थ बहुलता पाए जाने से होने से आईना दिखाती लघुकथा कहा जा सकता है। सँग्रह की सबसे छोटी लघु कथा व्रती इसी बिंदु की लघुकथा है जो केवल 56 शब्दों की लघुकथा है । जिसमें विदेश में रहता पति शुरुआत में चार छह दिन में पत्नी को फोन करता है, बाद में चार छे महीने में , फिर वर्ष गुजर जाते हैं और उसके इंतजार में बैठी उसकी पत्नी पतिव्रत धर्म का पालन करती हुई किसी की ओर देखती तक नही है और एक दिन अचानक उसका एक सहकर्मी उसके प्रति अलग अंदाज में आत्मीयता दिखाता है, बार-बार दिखता है तो अंततः व्रत टूट जाता है। इस कथ्य पर उपन्यास मुमकिन था, एक मुकम्मल कहानी भी मुमकिन थी लेकिन इस कथ्य लघु कथा लिखना औऱ वह भी रस निष्पत्ति के साथ लिखना केवल कांता रॉय की कलम के लिए मुमकिन था, उनके कौशल की तारीफ करना होगी ।
रिश्ते नाते की अन्य लघुकथाओं में सावन की झड़ी है जिसमें बरसात को देख मोर नाच रहा है ,ठीक इसी वक्त अपनी सुषमा जीजी को दुखी देख भतीजा अपनी भाभी से कहता है कि प्रेयसी को रिझाने जब सब जानवर नाचते है और पड़ौसी गुजराती को पिता जानवर कहते हैं और उसका नाच जीजी के लिए होता है,क्यो नही उससे जीजी की शादी करा देती हों। जीने के लिए लघुकथा पतिपत्नी के छीजते रिश्तों की लघुकथा है जिसमे पति से तलाक लेके आई बेटी को शुरू में डांट रहा पिता अंततः बेटी से सहमत हो जाता है। भय लघुकथा भी पति पत्नी की लघुकथा है जिसमे पत्नी को पीटने वाले हिंसक ही चुका पति नशे में बेहोश है और उसे मार देने का अवसर मिलने पर भी लोकलाज के भय से पत्नी टाई की नॉट तंग नहीँ कर पाती।
बाढ़ और सुरंग जहां विवाह पूर्व मेल मिलाप की लघुकथा हैं , वही सिंड्रेला में लड़की के आँखों से दिव्यांग होने का पता लगते ही लड़के की बेरुखी की कथा है। बेक ग्राउण्ड डॉक्टर की डिग्री के लालच में ब्याही गयी लड़की के मन की ओछेपन की लघुकथा है।


कतरे हुए पँख और श्रम की कीमत मजदूर औऱ ग्रह कार्य सहायकों के शोषण और शोषक के स्वजाहरन की कथा हैं।

मानवेतर लघु कथाओं में जमात दांतो की परस्पर विवाद की लघुकथा और स्वभाव वश सांप व नेवला की लघुकथा है।

तथा कथित विकास की पोल खोलती हुई बलिक उसको लांछित करती हुई लघुकथा कागज पर गांव और विलुप्तता हैं। टेक्सी वाला भी जब गांव में विकास नहीं देख पाता तो कथा नायिका से कहता है-मैड़म कागज में गाँव था लगता है उड़ गया है। वही नदी की विलुप्ति की कथा विलुप्तता है।

कुछ लघु कथाएं ऐसी है जो केवल कांता रॉय की विलक्षण लेखनी से रची जा सकती थीं। जैसे ओवरटेक ।अपने दोस्त को रसों आगे बढ़ने की जगह देता रहा सौरभ अंततः तय करता है कि सुरेश को ओवरटेक करके अपनी योग्यता के अनुरूप जॉब प्राप्त करेगा।सड़क पर चलती गाड़ी को ओवरटेक करते सौरभ की पूर्व भूमिका लघुकथा के अंत मे शिखर पर पहुँचती है।
मन पर सीकर ,प्यार और शादी तथा जिंदगी की तलब ऐसी तीन लघुकथा हैं, जिनके पात्र वही हैं, मुद्दे एक दूसरे से जुड़े हैं और कथा क्रम भी जुड़ा हुआ है लेकिन तीनो को इस कलात्मकता के साथ लिखा गया है कि तीनों ही स्वतंत्र लघुकथा के रूप में पढ़ी जाने पर अलग सुख देती हैं। इन लघुकथाओ के शीर्षक शुभ विवाह 1,2 व 3 लिख के लेखिका ने पाठक को संकेत दिया है।
अभागा रतन एक मार्मिक कहानी है जो कांता जी की यादगार रचना है। बचपन में तितलियों और कल्पना के पीछे दौड़ते रतन को घर मे डॉट पड़ती है कि वह तितलियों में ही रहे घर न लौटे तो अपनी सारी कल्पनाओ का गला घोंट कर रतन घर के कोने में सिमट जाता है । इस कहानी को रतन के बच्चे बहुत पुलकित होकर सुनते हैं और खुद रतन इन्हें सुनाता है।
व्यक्तित्व का विकास कहानी यूँ तो पिता की ओर से आंख फेर लेने वाले बेटे की कहानी है लेकिन उसकी प्रस्तुति इस लघुकथा को खास बना देती है। सब कुछ बेच कर बेटे को पढ़ा चुके मां बाप को जब खबर मिलती है कि कई साल से बन रहा मकान भी कम्प्लीट हो चुका है और बबेटा लड़की पसन्द करके उससे विवाह तय कर रहा है तो मां को समझाता पिता कहता है कि "मत हताश हो अपने बच्चे के व्यक्तित्व का पूरा विकास हो गया है।"
अहल्या का सौंदर्य लघुकथा भी एक खास नजरिये से लिखी गयी है जिसमें अहल्या की कहानी सुनाकर बच्चों को पाठ याद करने देता हुआ अध्यापक उस घर मे ट्यूशन देना छोड़ के इसलिए चल देता है कि उसके पढ़ाते समय उसके प्रति मोहित हो के घूमती गृह स्वामिनी बेतहाशा सुन्दर है और अध्यपक को खुद के संयम पर बिल्कुल विश्वास नही रह जाता है कि वह कह बहक जाएगा। ग़ज़ब मनोविज्ञान की कहानी है यह।


सँग्रह में शामिल आबदाना ,रंडी, अटाले का प्रबंध,प्रबंधन गुरु जैसी कुछ लघुकथा तो कई बार पढ़ के भी मेरी समझ मे नही आयीं। यह अबूझ होना शायद लघुकथाकार का नया प्रयोग होगा यही मानकर मैं चुप रह गया हूँ।
सँग्रह में अनेक जगह पुल्लिंग स्त्रीलिंग सम्बंधी वाक्य दोषो को भी हम इस लिए नजर अंदाज कर सकते हैं कि प्राथमिक शिक्षा के समय कोलकता बंगाल में रहने वाली कांता रॉय जी ने हिन्दी में 99 फीसदी निश्नांतत्ता प्राप्त कर ली है।

संचार शास्त्र के न्यूज लिखने के प्रचलित मॉडल पिरामिड औऱ उल्टे पिरामिड के नजरिये से भी यह लघुकथा उम्दा कही जा सकती हैं।






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