मे और महाराज - (फैसला_१) 45 Veena द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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मे और महाराज - (फैसला_१) 45

राजकुमारी शायरा की पालखी निकली तो जरूर थी राजकुमार अमन की तरफ, लेकिन बीच रास्ते में ही पालखी ने अपना रुख बदल दिया। राजकुमारी ने उन वाहको से काफी बहस की। लेकिन कोई मतलब नहीं वह चुपचाप पालखी बिना रुकाए चलते रहे। वह पालखी वजीर साहब के घर के बाहर आकर रुकी। वजीर साहब की बीवी और शायरा की बड़ी बहन दरवाजे पर खड़े थे।

" मैंने नहीं कहा था आपसे मां, भले ही इसकी शादी करवा दो लेकिन उसके दिलों-दिमाग में अभी भी मेरे पति को रिझाने में ज्यादा रुचि है। देखा कैसे मुंह उठाए चली आई।" उसकी बहन ने अपने दांत भिसते हुए कहा।

" आज तो वजीर साहब को फैसला करना ही होगा। आज तुम्हारे साथ पूरा इंसाफ होगा बेटी। सिपाहियों इस नापाक को अंदर ले लो।" वजीर साहब की बीवी गर्जी।

बड़ी ही बेदर्दी से शायरा को वजीर साहब के घर के बरामदे में लाया गया।
" शायरा क्या हम जान सकते हैं इस वक्त तुम क्या कर रही हो यहां ?" सारी बातें जानने के बावजूद वजीर साहब ने उससे पूछा।

नाजुक सी राजकुमारी के आंखों से बस आंसू बहते जा रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करेगी। क्या जवाब दें अपने पिता को ? जबकि वह जानती हैं कि यह सब साजिश उसके और उसके पति के खिलाफ रची गई है। सिराज को राजगद्दी की दौड़ से हटाने के लिए राजकुमार अमन ने उसे मोहरा बनाया। जिस प्यार पर उसे गुरूर था आज वह गुरुर, वह प्यार उसी के घर के आंगन में टूटेगा। उसे राजकुमार सिराज से ना शिकायत थी ना कोई शिकवा।

राजकुमारी से कोई जवाब ना पाकर, वजीर साहब के इशारे पर सिपाहियों ने पैर पर लकड़ी से वार कर, वजीर साहब के सामने राजकुमारी को झुकाया। वजीर साहब की आंखों में बस लालच दिखाई दे रहा था। अपनी बेटी के प्रति प्यार या पितृत्व की कोई भावना उनकी किसी भी हरकत में नहीं थी।
" जवाब दो शायरा। या तुम्हारी जबान कुत्ते खा गए ?" वजीर साहब ने पूछा।

" इतना सब होने के बाद अब भी आप जवाब मांग रहे हैं पिताजी।" शायरा की बड़ी बहन आगे आई। " यह देखिए यह वही खत है जो इन्होंने हमारे पति को लिखा था। शादी होने के बावजूद ऐसी हरकतें। क्या एक मर्द पूरा नहीं पड़ता ?"

अपनी बहन के मुंह से ऐसी घिनौनी बात सुन शायरा ने आंखें बंद कर ली। बंद आंखों में से भी आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

" सुनिए जी, मुझे नहीं लगता हमें शायरा से किसी भी जवाब की जरूरत है। उसे लगता है इस शदी के बाद वह अपने मन मुताबिक कर सकती है। लेकिन अब हमें उसे हमारे पारिवारिक नियम याद दिलाने पड़ेंगे।" इतना कह शायरा की बड़ी मां ने अपनी दासियों को इशारा किया और ठंडा पानी शायरा पर डलवाया। दिसंबर की ठंड में बरामदे में कप कपाती हुई शायरी बेसहारा अपने घुटनों पर बैठी हुई थी। जब उसके अपनों ने ही उसका साथ नहीं दिया तो उस परांए राजकुमार से वह क्या उम्मीद करती।

" क्या अब भी तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं है शायरा ?" वजीर साहब ने फिर से पूछा।

" क्या जवाब दूं ? जब आप लोगों ने बिना किसी जांच-पड़ताल के मुझे मुजरिम करार दे दिया है। तो अब इसके बाद में क्या जवाब दूं।" आज शायरा का अपनी भड़ास निकालना जरूरी था। " सामने बैठा आदमी अगर मेरे पिता होते ? तो क्या वह अपनी बड़ी बेटी को अपनी छोटी बेटी के बारे में ऐसी जलील बात कहने देते ?" उसने अपने पिता की तरफ उंगली दिखाई। " इस महल की रानी अगर मेरी मां होती ? तो क्या वह भरी ठंड में अपनी बेटी पर ठंडा पानी डलवा कर उसे जमीन पर बिठाने की सजा देती ?" उसने अपनी बड़ी मां की तरफ देखा।

" इस महल की राजकुमारी अगर मुझे अपनी बहन मानती। तो क्या वह एक बार अपने पति से नहीं पूछती कि वह उसकी छोटी बहन के साथ क्या करता है ?" शायरा के मुंह से अपने पति के खिलाफ बात सुन उसकी बड़ी बहन ने आकर उसे एक चांटा मारा।

" जलिल। नापाक। अपनी औकात भूल गई हो ? अपनी घिनौनी हरकतों का इंजाम मेरे पति पर लगाने की कोशिश करोगी ? अब इतनी हिम्मत बढ़ गई है तुम्हारी ?" उसकी बड़ी बहन ने गुर्राते हुए कहा।

" बड़ी दीदी, या फिर बड़ी राजकुमारी मुझ पर ऐसे इंजाम लगाने से अच्छा, क्यों ना आप अपने पति को काबू करना सीख ले ? हमने ना कभी उनकी तरफ देखा, ना उनसे मिलने की कोशिश की ना ही कभी करेंगे। लेकिन क्या आप यह बात पूरी इमानदारी से कह सकती है कि वह आज के बाद हमारी तरफ देखेंगे भी नहीं ?" शायरा की बात सुन बड़ी राजकुमारी चुप सी हो गई। अपनी बेटी को उलझन में देंख, वजीर साहब की बीवी ने अपनी दासियों को इशारा किया। कुछ ही देर में सजा देने का सारा सामान सामने आया।

" लगता है राजकुमार सिराज ने तुम्हें ज्यादा सर पर चढ़ा रखा है। सुनो बेगम इन्हें पारिवारिक नियम याद दिलाने की शुरुआत करो।" वजीर साहब ने शायरा की तरफ देखते हुए कहा।
वजीर साहब की बेगम ने गरम सुईया ली और शायरा के कंधे पर चुभा दी।

दर्द में होने के बावजूद भी शायरा के मुंह से चीख नहीं निकली। उनकी आंखों से बहते आंसू बस रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उसने अपने आंसू पोंछे, " हम राजकुमारी शायरा, राजकुमार सिराज की बेगम-ए-ख़ास यह शपथ लेते हैं, के आज के बाद हमारा राजकुमार अमन से कोई भी रूहानी संबंध नहीं होगा, ना ही था। जो कहानी इस घर की मिट्टी से शुरू हुई थी, आज हम यही दफन कर रहे हैं।" इतना कह दर्द के मारे वह बेहोश हो गई।

" बेगम साहिबा। कहीं आपने कुछ ज्यादा तो नहीं कर दिया ? याद रखएगा शायरा का जिंदा रहना बहुत जरूरी है।" वजीर साहब ने अपनी बीवी से कहा।

" यह नाटक कर रही है पिता जी। आपने देखा नहीं, अभी कुछ देर पहले किस तरीके से बात कर रही थी।" उनकी बड़ी बेटी फिर बीच में बोली।

वजीर साहब की बीवी के आदेश पर दासिया फिर से ठंडा पानी ले आई और शायरा पर उड़ेल दिया। ठंड से कप कपाती वह उठ खड़ी हुई। " भला इस तरह से कौन उठाता है ?" समायरा ने अपने आसपास के लोगों को देखा।

" मैं इस घर में क्या कर रही हूं ? तुम वजीर के बच्चे तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे यहां लाने की।" वह वजीर साहब की तरफ दौड़ी लेकिन सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और उसे फिर से घुटनो के बल बिठाया गया। " मेरी पीठ में इतना दर्द क्यों हो रहा है ? क्या कर रहे हो तुम लोग मेरे साथ ? क्या तमाशा चल रहा है यह ‌?" समायरा के दिमाग में अनगिनत सवाल थे।

" इसका नाटक फिर से शुरू हो गया।" शायरा की बड़ी मां ने समायरा की तरफ देखते हुए कहा।

" डायन कहीं की। मेरी खूबसूरती से जलती हो ना तुम ? क्या कर रही हो मेरे साथ ?" उसने शायरा की बड़ी मां को देखते हुए पूछा।

" यह क्या तरीका है अपनी बड़ी मां से बात करने का शायरा ?" वजीर साहब ने कहा।

" चुप रहो बुड्ढे। मुंह मत खुलवा ओ मेरा। किस वजह से तुम्हें यह मेरी ‌‌‌‌‌मां लगती है ? अगर कोई मेरी मां है तो वह वह है कि तुम्हारे पैरों के पास रो रही है अपनी बेटी की सलामती के लिए।" समायरा ने शायरा की मां की तरफ देखते हुए कहा।

" शायरा अपनी तमीज भूलो मत।" वजीर साहब गुर्राए।

" मुझे तमीज सिखाने से पहले तुम खुद सीख कर आओ। छोड़ो मुझे जाने दो यहां से।" समायरा की बढ़ती हुई बदतमीजी देख शायरा की बड़ी मां ने चाबुक हाथ में लिया। उसने वह चाबुक उठाकर शायरा की तरफ बढ़ाया ही था कि किसी ने पीछे से उसका वार पकड़ लिया।

वजीर साहब तुरंत अपने जगह पर खड़े हो गए। " राजकुमार आपका इस महल में स्वागत है।" उसने सर झुकाते हुए सिराज को आमंत्रित किया।

सिराज ने समायरा को देखा। जमीन पर ठंडे पानी में पूरी तरह से भीगी हुए बैठी थी। उसने तुरंत अपना लबादा उतारा और समायरा की ओर भागा। समायरा को अपने कपड़े से ढकने के बाद उसने अपने सीने से लगा लिया।

" यह क्या गुस्ताखी है वजीर साहब ? हमारी बीवी आपके घर के बाहर, इस तरह से अपने घुटनों के बल, पानी में बैठ क्या कर रही थी ? कोई मुझे इस बात का जवाब देगा।" सिराज जोरों से गुर्राया। उसके गुस्से की आग देख हर कोई दो कदम पीछे हट गया।

किसी से कोई जवाब ना पाकर सिराज ने हर किसी को एक गुस्से भरी नजर से देखा। " आज के बाद ना ही हमारा ना ही हमारी बीवी का आपके परिवार से किसी भी तरह का रिश्ता रहेगा। आज जिस हालत में हमने हमारी बीवी को यहां पर बेइज्जत होते हुए देखा है। उसके बाद हम आपको उनके वालिद के हक से बेदखल करते हैं।" इतना के सिराज समायरा को लेकर अपने महल की ओर चल पड़ा।

जैसे ही समायरा महल पहुंची मौली तुरंत उसे अपने कमरे में ले गई। उसने कपड़े बदलने में समायरा की मदद की यहां तक कि सिराज ने भेजा हुआ मरहम तक उसकी पीठ पर लगा दिया। समायरा को अपने अंदर अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी।

" मौली यहां क्या हुआ है मुझे बताओगी ?" उसने पूछा।

मौली ने सर झुकाते हुए उसे सारी बातें बताई।