स्त्री का सच Ranjana Jaiswal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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स्त्री का सच

स्त्री जब तक गुलाम बनी रहती है, तब तक पुरूष की प्रिय बनी रहती है पर जब वह अपनी बुद्धि,तर्क के सहारे अपने वजूद को साबित करती है ।अपने होने को दिखती है ,पुरूष उसका दुश्मन हो जाता है |कारण साफ है कि स्त्री के इस कदम से उसकी सत्ता खतरे में पड़ जाती है। वह उस स्त्री का तिरस्कार करने लगता है ।उसे पीड़ा पहुँचकर आनंद का अनुभव करने लगता है |परपीड़क तो पुरूष हमेशा से रहा है और इससे कभी ग्लानि का अनुभव भी नहीं करता पुरूष अपनी अक्षमता ,निकम्मेपन और तर्कहीनता को कूरता के आवरण में छिपाता है |समाज की हर वस्तु पर उसका ही कब्जा है |पुरूष होने का अहंकार उस पर इतना हावी है कि वह अपनी स्त्री –विरोधी हर काम को न्यायोचित ठहराता है |

यदि कोई स्त्री अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहती है तो उसमें कोई गलत बात तो नहीं ,वह भी तो करता है और उसकी महत्वाकांक्षा की पूर्ति में स्त्री सहायक भी बनती है पर यदि स्त्री उसकी मदद लेती है तो वह उसकी कीमत वसूल करता है |यदि इस यात्रा में स्त्री असफल होती है तो सारा दोष उसी के सिर जाता है कि उसने सफल होने के लिए छोटा रास्ता क्यों चुना ?गलत रास्ते पर स्त्री को ले जाने वाला भी कोई पुरूष ही होता है पर वह बेदाग अलग खड़ा रहता है |

विज्ञान भी यह मानता है कि जिन पुरूषों में स्त्री-गुण ज्यादा हैं ,वही भावना-प्रधान हो सकते हैं |पुरूष प्रधानता उनको दैहिक रूप से बलिष्ठ तो बनाती है,पर हृदय की कोमलता को खत्म कर देती है |नई स्त्री को स्त्री गुणों वाल पुरूष ज्यादा पसंद आ रहे हैं |सदियों से स्त्री को बुद्धिहीन और पुरूष को बुद्धिमान बताने का परिणाम यह निकला कि स्त्री स्वयं को ऐसा ही मानने लगी |वह हर निर्णय के लिए पुरूष का मुंह ताकती है |अगर किसी स्त्री को बुद्धिमती होने का भान होता भी है तो उसे किसी कालिदास जैसे मूर्ख से बांध कर दबाने का प्रयास किया जाता है|कालिदास जैसा मूर्ख भी अपनी स्त्री द्वारा मूर्ख कहा जाना सहन नहीं कर पाता |तुलसीदास पत्नी द्वारा ज्ञान देने पर इस कदर आहत होते हैं कि जीते-जी उसका मुंह नहीं देखते जबकि वह स्त्रियाँ ही थीं जिनके कारण कालिदास और तुलसी दोनों ही कविशिरोमणि हुए|पर उन्होने कभी इसका श्रेय अपनी पत्नियों को नहीं दिया |पुरूष की उपेक्षा और तिरस्कार को स्त्री अपना भाग्य मान लेती है |वह उसके गढ़े नियमों की कसौटी पर खरा दिखने के प्रयास में अपनी सारी विचारशीलता खो देती है |स्त्री को अपनी भावनाओं,अपने सम्मान और अपनी मुक्ति के प्रति सचेत रहना चाहिए |

महात्मा गांधी ने कहा था--स्त्री को कमजोर कहना निंदनीय है ,यह पुरूषों का स्त्री के प्रति अन्याय है |अगर ताकत का अर्थ नैतिक ताकत से है ,तब स्त्रियाँ पुरूष से कहीं अधिक श्रेष्ठतर हैं |क्या उनमें अन्तर्ज्ञान नहीं ?वे ज्यादा आत्मत्याग करने वाली नहीं होतीं ?क्या उनमें सहनशीलता नहीं होती ? क्या उनमें हिम्मत की कमी होती है ?उनके बिना पुरूष नहीं होते |अगर अहिंसा हमारे होने का कानून है तो स्त्री हमारा भविष्य |मैं हमेशा इन विचारों को जिंदा रखूँगा |