छिछोरों का छिछियाना
आजकल बच्चियों से बलात्कार की खबरों से समाचार-पत्र भरे रहते हैं | कितना गिर गया है पुरूष समाज !कौन-सी वजह है इसके पीछे ?
एड्स जैसे यौन रोगों से बचाव कि यौन का भ्रामक ज्ञान कि अधिक से अधिक लड़कियों का प्रथम पुरूष होने का गर्व कि कौमार्य भंग करने का आनंद कि शिकार को लहूलुहान छटपटाते देखने का बीभत्स शिकारी सुख कि चिर युवा बने रखने का नुस्खा कि हम उम्र स्त्रियॉं से ऊब कि नवीनता की चाह कि सत्ता का अहंकार कि पौरूष की आत्म संतुष्टि कि बदले की भावना कि स्त्री जाति से चिढ़ कि दिमाग की कोई ग्रंथि कि बचपन में हुआ शोषण कि माँ से नफरत कि अतिरिक्त यौन भावना कि यौन साथी का अभाव या फिर अक्षत अकलंक कन्या की चाह |
क्या कहें ऐसी संस्कृति को जो एक तरफ तो कन्या पूजती है दूसरी तरफ उससे बलात्कार करती है |एक ऋषि हुए थे ,जो आठ साल की मछुआरन पर फिदा हो गए उससे संभोग की इच्छा से इतना भर गए कि उन्हें यह भी ध्यान न रहा की वह बालिका है,उसके शरीर से मछली की बू आती है और वहाँ पर बहुत सारे लोग बैठे हैं |उन्होंने अपने तप-बल का दुरूपयोग किया |कन्या को युवती बना दिया, उसके शरीर की दुर्गंध को कस्तूरी गंध में बदल दिया और कुहासे का वातावरण बना दिया पर अपनी काम भावना को नहीं दबा पाए |संभोग किया और उसे फिर से कुमारी बनने का बरदान भी दिया |न ऋषि पर अंगुली उठी न कन्या पर क्योंकि सब पर धर्म का आवरण डाल दिया गया | उस संबंध से उत्पन्न पुत्र भी महान ऋषि और रचनाकार बना और उसने भी कई विवाहित कन्याओं को मातृत्व सुख देकर निहाल किया |महाभारत ऐसे महान कृत्यों से भरा पड़ा है |द्रोपदी को पाँच पुरूषों में बाँट दिया गया फिर भी वे कुमारी कही जाती हैं |कुंती ने कौमार्यावस्था में ही पुत्र पैदा किया फिर भी कुमारी थी |अहल्या ने परपुरूष इन्द्र से संभोग किया फिर भी कुमारी तारा और मंदोदरी भी उसी तरह कुमारी मानी गयी |मैं ये नहीं कहती कि वे गलत थीं या गलत किया |प्रेम या यौन उनका व्यक्तिगत अधिकार था ,किया पर उसपर ये कुमारी होने का लबादा क्यों ?एक बात ध्यान देने वाली है कि इन सबके पीछे पुरूष की कामना थी स्त्री ने सहयोग दिया पर जब स्त्री ने कामना की उसका अपमान हुआ |सुपर्णखा इसका उदाहरण है |ये कनफ्यूज करने वाली चीजें हैं |हमारे महान ऋषियों की इन कारगुजारियों से ही आसाराम और राम-रहीम जैसे आधुनिक साधु -संत प्रेरित होते हैं |
तो यह तो साफ है कि कन्या-प्रेम कोई नयी बात नहीं है |बाल-विवाह भी इसी की एक कड़ी रही है ,जो अभी तक देश के किसी कोने-अतरों में हो ही रही है |आज नन्ही बच्चियों को आक्सीटोसीन जैसे इंजेक्शन लगाकर यौन-क्रिया के योग्य बनाया जा रहा है|योग्य न भी हो पाएँ तो क्या हार्मोन्स के इंजेक्शन,नशीले पदार्थ,नीली फिल्में तो हैं ही ,जो उनके इस कुत्सित कार्य में सहायक बन जाती हैं |
ये कैसे लोग हैं जो इतने घिनौने कार्य को आय का जरिया बनाए हुए हैं |क्या ये पुरूष कहला सकते हैं ?पुरूष में तो पौरूष होता है ,जिनसे कमजोर वर्ग की रक्षा होती है |कन्याओं को बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों अपराधी हैं |खरीदने वाले ज्यादा |मांग होने के कारण ही तो बाजार तैयार होता है |विडम्बना तो यह है कि खरीदार ज़्यादातर सफेदपोश होते हैं और पकड़े नहीं जाते या यूं कहें कि उन पर पर्दा डालकर छिपा दिया जाता है |बेचने वाले और शिकार कन्याएँ ही पकड़ी जाती हैं |लचर कानून व्यवस्था के कारण अपराधी जल्द ही छूट जाते हैं या सफेदपोश उन्हें छुड़ा लेते हैं |बर्बाद होती हैं तो कन्याएँ |उनका अपराध यह है कि वे स्त्री प्रजाति की हैं |
वैसे तो कहते हैं स्त्री में पुरूष से आठ गुना अधिक काम भावना होती तो फिर ये आठ गुना कम वाले क्यों छिछियाते फिर रहे हैं ?क्या इसलिए कि अपने छिनरपन के कारण वे वास्तव में छूछे हो चुके हैं और बच्चियाँ उनके छूछे होने को नहीं समझ सकतीं ?
ये छूछे अब समूह में आ रहे हैं और नन्ही बच्चियों को प्रताड़ित कर कुत्सित आनंद ले रहे हैं |शायद छूछे हो जाने का प्रतिशोध |तन-मन संवेदना-भावना ,नैतिकता सबसे छूछे हो चुके इन तथाकथित मर्दों का बस एक इलाज है उनके पुरूष -अंग का उच्छेदन | इन्हें मार डालने से कुछ नहीं होगा |वे रक्तबीज हैं एक गिरेंगे सौ आ जाएंगे |