स्पर्श--भाग (७) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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स्पर्श--भाग (७)

मधुसुदन जब सुनैना के घर से चला तो सुनैना को इस तरह से मधुसुदन का जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा,उसने मन में सोचा कि उस पागल के लिए मधुसुदन मुझे ठुकरा रहा है उसकी इतनी हिम्मत,मैं इस बात का बदला मधुसुदन से जरूर लेकर रहूँगी।।
और फिर दूसरे दिन ही वो तेजप्रताप से मिली और उससे बोली....
मैनें बहुत कोश़िश की लेकिन वो मेरे हाथ आता ही नहीं है।।
तुझे मैने इस काम के लिए मुँहमाँगे दाम दिए हैं,जब तू एक मर्द को अपने काबू में नहीं कर सकती तो तेरी ये खूबसूरती किस काम की?तेजप्रताप बोला।।
अरे! वो उस पागल को बहुत चाहता है और उसे धोखा नहीं दे सकता,सुनैना बोली।।
ये तू क्या कह रही है? मुझे मेरी दौलत वापस पाने के लिए मधुसुदन को सबकी नजरों में गिराना ही होगा,तेजप्रताप बोला।।
मैं ने सब करके देख लिया लेकिन वो नहीं फिसला,सुनैना बोली।।
कुछ भी हो तुझे उसे पटाना ही होगा,मुझे मेरी दौलत हर हाल में वापस चाहिए,तेजप्रताप बोला।।
ये तो बिल्कुल ही नामुमकिन है,वो मेरी अदाओं पर नहीं फिसला तो क्या करूँ? रात की हरकत के बाद तो शायद वो मेरा मुँह ही देखना ना पसंद करें,सुनैना बोली।।
तो ऐसा करो तुम जाकर उससे माँफी माँग लो,तेजप्रताप बोला।।
तुम ये क्या कह रहे हो? वो बहुत ज्यादा गुस्सा है मुझसे, वो मुझे माँफ नहीं करेगा,सुनैना बोली।।
कर देगा,तुम उसके घर जाकर उससे माँफी माँग लो,वो सच में तुम्हें माँफ कर देगा,तेजप्रताप बोला।।
ठीक है तो मैं कोश़िश करूँगी,तो अब मैं चलूँ और इतना कहकर सुनैना वहाँ से चली आई और फिर दूसरे दिन सुनैना ने मधुसुदन से आँफिस में जाकर मिली लेकिन मधुसुदन ने जैसे ही सुनैना को देखा तो उससे किनारा कर लिया,सुनैना ने मन में सोचा कि मधुसुदन कुछ ज्यादा ही गुस्सा हो गया रात वाली बात से,इसे मनाने के लिए कोई और ही तरीका निकालना होगा।।
फिर एक शाम वो तेजप्रताप के कहें अनुसार उसके घर माँफी माँगने गई लेकिन वो उस समय घर पर नहीं था विभावरी को लेकर डाक्टर के पास मन्थली चेकअप के लिया गया था और सुनैना मायूस होकर उसके घर से चली आई।।
और फिर ऐसे ही कई दिन बीत गए लेकिन तब भी मधुसुदन ने सुनैना को कोई भाव ना दिया,फिर एक दिन लंच के समय सुनैना ने मधुसुदन को अकेला देखा और उसके पास जाकर बोली....
अब कब तक रूठे रहोगें?माँफ भी कर दो।।
तुम्हारी हरकत माँफ करने के लायक नहीं है,मधुसुदन बोला।।
ठीक है हो गई गलती,प्यार ना करो मुझसे लेकिन दोस्त होने का हक़ का तो ना छीनों,सुनैना बोली।।
तुम्हें तो मैनें दोस्त माना था लेकिन अपने दोस्त से कोई ऐसी बात कहता है भला,जो तुमने उस रात कही,मधुसुदन बोला।।
मैं बहक गई थी,मैं तुम्हें पसंद करने लगी हूँ और कुछ नहीं,सुनैना बोली।।
जब तुम्हें पता था कि मैं शादीशुदा हूँ तब भी तुमने ऐसी बात कही,मधुसुदन बोला।।
कहा ना कि गलती हो गई,अब माँफ भी कर दो,सुनैना बोली।।
ठीक है जाओ माँफ किया लेकिन आइन्दा ऐसी गलती फिर कभी ना हो,समझी! मधुसुदन बोला।।
हाँ! कभी ना होगी,सुनैना बोली।।
और फिर मधुसुदन और सुनैना फिर से पहले की ही तरह दोस्त बन गए,सुनैना इस बार मधुसुदन की जिन्द़गी में और भी खतरनाक इरादो के साथ आई थी,इस बात से मधुसुदन बिल्कुल बेख़बर था,इस बार सुनैना और भी जहरीली चाल चलने वाली थी।।
अब सुनैना कभी कभी मधुसुदन के साथ उसके घर भी जाती और उससे विभावरी के सामने और भी दोस्ताना व्यवहार दिखाती,वो ये सब विभावरी को जलाने के लिए कर रही थी,जिससे कि विभावरी मधुसुदन से शिकायत करे और उन दोनों के बीच कलह हो,
लेकिन जैसा सुनैना विभावरी को समझ रही थी विभावरी बिल्कुल भी वैसी नहीं थी,वो बहुत ही संयमी और पारदर्शी हृदय वाली थी, सुनैना का यूँ मधुसुदन के संग अंतरंग होना उसे अच्छा तो नहीं लगता था लेकिन वो मधुसुदन से कहती कुछ भी नहीं थी ,कभी कभी बातों बातों में सुनैना मधुसुदन के गले लग जाती ,जहाँ मधुसुदन बैठा हो तो वो वहीं बैठती और हर संडे वो मधुसुदन के साथ गुजारती,
कभी तो उसके घर लंच पर आ जाती तो कभी उसे अपने साथ शाँपिंग पर ले जाती और विभावरी से ये कहती कि मैं तुम्हें भी साथ ले चलती लेकिन तुम्हें इस हालत में बाहर ले जाना ठीक नहीं है ना! इन दिनों तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है,तुम्हारा होने वाला बच्चा सही-सलामत रहें इसके लिए तुम्हारा घर पर रहना ही ठीक होगा।।
और विभावरी सुनैना की बात सुनकर अपना मन मसोस कर रह जाती,उसकी आँखों के सामने कोई उसके पति को छीनने की कोश़िश कर रहा था और वो चुपचाप थी,कुछ भी नहीं कर सकती थी,उसे अब ये लगने लगा था कि वो मंदबुद्धि है ना इसलिए उसका पति उसका ख्याल नहीं रखता,सुनैना को देखों वो कितनी होशियार है तभी तो उसका पति उसके साथ कितना खुश रहता है,मैं कभी भी अपने पति को खुश नहीं रख सकती,शायद यही मेरे भाग्य में लिखा है।।
और ये सोच सोचकर विभावरी मन ही मन घुलने लगी, लेकिन मधुसुदन का मन तो अभी भी आइने की तरह बिल्कुल साफ था,उसे तो ना सुनैना की चालें समझ आ रही थी और ना विभावरी के मन के भाव,उसके लिए तो हर दिन एक जैसा था।।
और उधर तेजप्रताप ने भी अपने चाचा रघुवरदयाल से धीरे धीरे नजदीकियांँ बढ़ानी शुरु कर दी थीं,वो अब उनके सामने शरीफ होने का नाटक करने लगा था,उनके घर भी जाने लगा था फिर एक दिन वो रघुवरदयाल जी के घर जाकर बोला.....
चाचा जी! मैं आपको अब तक कितना गलत समझ रहा था,लेकिन खोट तो मेरे ही भीतर था,अब मुझे अपने पिता की दौलत नहीं चाहिए,मैं अब अपनी मेहनत से अपना कारोबार खड़ा करूँगा,वो जो गाँव वाला मकान मेरे नाम था,वो मैने बेंच दिया है और उससे मिले रूपयों से एक कपड़ो की दुकान डालने वाला हूँ,अगर आपका आशीर्वाद रहा तो जरूर सफल हूँगा।।
मुझे खुशी हुई ये जानकर कि तुम ने सही रास्ते पर आने का सोचा,तुम मेहनत तो करो मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ और जिस दिन मुझे लगा कि तुम इस काबिल हो गए हो कि अपनी दौलत सम्भाल सकते हो तो उस दिन मैं तुम्हें तुम्हारी सारी दौलत लौटा दूँगा,रघुवरदयाल जी बोले।।
मैं जानता था कि आप मुझे माफ कर देगें,मैनें अपनी बहन सुनैना के खिलाफ भी तो ना जाने क्या क्या कहा है,मेरी जुबान में कीड़े पड़े,उस बेचारी मासूम को भी मैं कोसने से बाज़ ना आया,तेजप्रताप बोला।।
अब बहुत हुआ अपने आपको मत कोसो,ये सब तो तुमने अन्जाने में किया तुम्हारी ऐसी मंशा थोड़े ही रही होगी,चलो तुम्हें अपनी गलती का एहसास तो हुआ,जब जागो तभी सबेरा,रघुवरदयाल जी बोले।।
लेकिन मैं अब भी बहुत शर्मिंदा हूँ और आज ही उसके घर उससे माँफी माँगने जाऊँगा,तेजप्रताप बोला।।
हाँ...हाँ...क्यों नहीं? चले जाना उसके घर,अपने भाई को देखकर वो भी बहुत खुश होगी,रघुवरदयाल जी बोले।।
जी! अच्छा!तो अब मैं चलता हूँ और इतना कहकर तेजप्रताप चला आया और शाम को वो विभावरी से मिलने उसके घर गया,उसे देखकर पहले तो विभावरी थोड़ी परेशान हुई लेकिन जब तेजप्रताप बोला....
मुझे माँफ कर दो मेरी प्यारी बहन!दौलत के लालच में मैं अन्धा हो गया था,लेकिन अब मेरी आँखे खुल गई हैं इसलिए तो तुमसे मिलने चला आया,कैसी हो मेरी बहन?
जब विभावरी ने तेजप्रताप के मुँह से ये शब्द सुने तो वो फूली ना समाई और बोली।।
बैठो! तेजा भइया! मैं अभी तुम्हारे लिए मिठाई लेकर आती हूँ।।
अरे! पगली !मिठाई तो मैं भी लाया था,मैं तो बस अपनी प्यारी बहन से मिलने आया था,तेजप्रताप बोला।।
हाँ...हाँ...बैठती हूँ तुम्हारे साथ और ढ़ेर सारी बातें करूँगी तुमसे,तुम पहली बार मेरे घर आए हो खातिरदारी तो बनती है ना! विभावरी बोली।।
और फिर उस दिन विभावरी ने तेजप्रताप की खूब खातिरदारी की।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा....