विभावरी माँ बनने वाली है ये खबर सुनकर मधुसुदन खुशी के मारे फूला नहीं समाया,विभावरी का चेहरा भी शरम से लाल हो गया था,उस दिन दोनों पति-पत्नी बहुत ही खुश हुए और अपने अपने परिवार को ये खुशखबरी सुनाई,ये खबर सुनकर दोनों परिवारों के बीच खुशियाँ छा गई।।
लेकिन जब ये खबर विभावरी के पिता रघुवरदयाल के भतीजे तेजप्रताप यानि कि विभावरी के चचेरे भाई तक पहुँची तो उसे ये बात बिल्कुल भी हज़म ना हुई क्योकिं तेजप्रताप को तो सालों से ये लगता आया था कि उसकी चचेरी बहन तो पागल है मंदबुद्धि है भला उससे कौन शादी करेगा?फिर चाचाजी को तो अपनी सारी जायदाद और कारोबार मेरे नाम ही करना होगा।।
लेकिन जब मधुसुदन ने विभावरी से शादी कर ली थी तो उसके मंसूबों पर पानी फिर गया,लेकिन जब उसने ये सुना कि विभावरी माँ बनने वाली है तो उसको तो जैसे करंट का झटका सा लगा और उसी वक्त वो रघुवरदयाल जी के घर आकर उनसे बहस करने लगा और बोला....
चाचाजी! ये मत समझिएगा कि मैनें हार मान ली है,आप जिस दौलत और कारोबार पर नाग की तरह कुण्डली मार कर बैठे हैं वो दौलत मेरे पिताजी की थी,उनके मरने से पहले उनकी वसीयत पर जाली हस्ताक्षर करवाकर आपने धोखे से सारी दौलत हड़प ली,मैं आपसे अपनी दौलत और कारोबार लेकर रहूँगा।।
तेरे करम देखकर ही भाईसाहब ने फैसला किया था कि तुझे उनकी जायदाद में से कुछ नहीं मिलेगा,तेरा रात रात भर अय्याशी करना,बार और कसीनों में पैसा उड़ाना उनकी बरदाश्त से बाहर हो रहा था इसलिए उन्होंने सब मेरे नाम कर दिया,मैनें तेरे साथ कोई धोखा नहीं किया,बड़े भाईसाहब ने अपनी मरजी से अपनी वसीयत लिखी थी,उसमें मेरा कोई हाथ नहीं,रघुवर दयाल जी बोले।।।
झूठ बोलते हैं आप,तेजप्रताप चीखा।
नहीं! यही सच है,रघुवरदयाल जी बोले।।
ये सब विभावरी की दादी वसुन्धरा सुन रही थीं और वें भी बाहर आकर तेजप्रताप से बोलीं....
शरम नहीं आती तुझे अपने चाचा पर झूठे इल्जाम लगाते,पहले अपने करम तो देख ,तूने अपने बाप के साथ कैसा व्यवहार किया था? तेरे गुणों के कारण ही तो वो दुनिया से जल्दी चला गया,
दादी! आप भी अपने छोटे बेटे का पक्ष लेने आ गई,तेजप्रताप बोला।।
क्यों ना लूँ अपने बेटे का पक्ष? मैं तो खूब उसका पक्ष लूँगी क्योकिं वो दोषी नहीं तू दोषी है,इस पर दोष थोपकर तू अपने पापों पर परदा डालना चाहता है,निर्लज्ज,अय्याश कहीं का,वसुन्धरा तेज आवाज़ में बोली।।
चाचाजी ! आपको क्या लगता है कि उस पागल की शादी करवाकर आप सारी दौलत उसके नाम कर देगें तो ये कभी नहीं हो सकता,आप अभी मुझे जानते नहीं है कि मैं क्या कर सकता हूँ?तेजप्रताप बोला।।
चुप कर नालायक! अपनी बहन के बारें में ऐसी बातें करता है,वसुन्धरा बोली।।
वो मेरी बहन नहीं दुश्मन है,तेजप्रताप बोला।।
तू पागल हो गया है,तुझे सही और गलत कुछ भी पता नहीं है इसलिए तू ऐसी बातें कर रहा है,वसुन्धरा बोली।।
आप लोगों ने उसकी शादी करवाकर अच्छा नहीं किया,तेजप्रताप बोला।।
तो अब सबकुछ तेरी सलाह लेकर करेगे क्या हम? रघुवर दयाल जी बोले।।
मेरी दौलत आप यूँ ही विभावरी के नाम नहीं कर सकते,तेजप्रताप बोला।।
जिस दिन तू अपनी आदतें सुधारकर एक अच्छा इन्सान बन गया तो उसी दिन मैं तेरी जायदाद तुझे लौटा दूँगा,रघुवर दयाल जी बोले।।
देखिएगा एक ना एक दिन मैं अपनी जायदाद आपसे लेकर रहूँगा,फिर इसके लिए मुझे चाहें जो भी करना पड़े और इतना कहकर तेजप्रताप चला गया।।
तेजप्रताप तो चला गया लेकिन वसुन्धरा और रघुवर दयाल जी को विभावरी की चिन्ता हो आई कि ना जाने तेजप्रताप अब क्या करने वाला है....?
दिन यूँ ही गुजर रहे थे विभावरी के अब तीन महीने गुजर चुके थे,विभावरी की सास और उसकी दादी वसुन्धरा बीच बीच में उसके घर आकर उसे हिदायतें देकर चली जातीं और विभावरी सावधानीपूर्वक उन सब बातों का ख्याल रखती।।
मधुसुदन भी बराबर विभावरी का ख्याल रखता,उसे हमेशा खुश रखने की कोश़िश करता,विभावरी भी मधुसुदन के सानिध्य में खिल रही थी,दोनों की दुनिया में केवल बहार ही बहार थी,दुखों का नामोनिशान ना था।।
दिन ऐसे ही बीत रहे थे मधुसुदन के आँफिस में एक नई लड़की का आगमन हुआ जिसका नाम सुनैना था,उसने मधुसुदन से जान पहचान बढ़ा ली,मधुसुदन ने भी उससे दोस्ती कर ली....
सुनैना के लिए सब नया नया था इसलिए उसने मधुसुदन से कहा कि आप ही मुझे यहाँ के बारें में जानकारी देदे कि यहाँ के लोंग कैसे हैं?
मधुसुदन इस बात से बिल्कुल बेख़बर था कि सुनैना को उससे दोस्ती करने को तेजप्रताप ने कहा है,तेजप्रताप ने इस काम के लिए सुनैना को मुँहमाँगे रूपए दिए थे,तेजप्रताप चाहता था कि सुनैना मधुसुदन को अपने प्यार के जाल में फाँसकर उसकी चचेरी बहन विभावरी का घर तोड़ दे,मधुसुदन एक बार चरित्रहीन घोषित हो गया तो उसका रास्ता आसान हो जाएगा,जिससे रघुवरदयाल जी टूट जाऐगे और मधुसुदन से नफरत करने लगेगें फिर वें अपनी सारी जमीन जायदाद मधुसुदन के नाम नहीं करेगें,तब तेजप्रताप ही उनकी सारी दौलत और कारोबार का इकलौता वारिस होगा।।
धीरे धीरे सुनैना ने मधुसुदन से और भी नजदीकियांँ बढ़ा लीं और वो उसे अकेला नहीं छोड़ती,ऊपर से विभावरी के प्रसव के दिन भी नजदीक आते जा रहे थे,मधुसुदन अब धीरे धीरे विभावरी का ध्यान रखना भी छोड़ रहा था,इससे विभावरी उदास रहती थी लेकिन वो मधुसुदन से इसकी वजह ना पूछती।।
जब कभी विभावरी की सास शान्ती उसके पास आती तो वो अपने पति के बारें में भी झूठ कह देती,अपनी दादी से भी अपने पति की शिकायत ना करती,जब मधुसुदन घर लौटता तो विभावरी का हाल चाल भी ना पूछता और बिस्तर पर मुँह फेरकर सो जाता,इससे विभावरी का कोमल मन अत्यधिक व्यथित हो जाता,
दिन बीत रहें थे और विभावरी अपने पति को खुद से दूर जाता हुआ देख रही थी,कभी कभी वो मधुसुदन की तस्वीर को अपने सीने से लगा के खूब रोती और भगवान के मंदिर के आगें भी आँसू बहाती और उधर एक रात सुनैना ने मधुसुदन को अपने घर पार्टी के लिए बुलाया ,मधुसुदन तैयार भी हो गया,दोनो ने पार्टी की और शराब भी पी,तब सुनैना मधुसुदन से बोली....
मधु! मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ।।
मधु को शराब पीने के बाद भी होश था और वो बोला....
लेकिन मैं तो शादीशुदा हूँ।।
तो क्या हुआ? शादी के साथ साथ लोंग और रिश्ते भी तो रखते हैं,सुनैना बोली।।
लेकिन ऐसे रिश्तों का अन्जाम बहुत बुरा होता है,मधु बोला।।
सब कहते हैं कि तुम्हारी बीवी तो वैसे भी आधी पागल है ,सुनैना बोली।।
तुम कहना क्या चाहती हो? कि तुम्हारे लिए अपनी वीबी से दगाबाजी करूँ,इतना गिरा नहीं हूँ मैं,मधुसुदन बोला।।
तुम अपनी बीवी को देखो और मुझे देखो,वो कहीं से भी मुझसे मेल नहीं खाती,सुनैना बोली।।
सही कहा तुमने ,तुम उससे मेल नहीं खाती उसका मन हीरे की तरह पारदर्शी है और तुम्हारा मन कोयले की तरह काला,मैं यहाँ और नहीं बैठ सकता मैं अपने घर जा रहा हूँ और इतना कहकर मधुसुदन सुनैना के घर से चला आया....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा....