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स्पर्श--भाग(२)

शादी की सभी रस्में पूर्ण हो चुकीं थीं,चूँकि शादी उसी शहर में थी तो सभी बाराती अपने अपने घर वापस लौट गए थे,कुछ ख़ास मेहमान बचे थे तो उनके ठहरने का इन्तजाम रघुवरदयाल जी यानि कि जो अब मधुसुदन के पूज्यनीय ससुर बन चुके थे उनके बंगले पर कर दिया गया था,ये तय हुआ कि विभावरी की विदाई सुबह होगी और शाम तक वो फिर अपने पति के साथ रघुवरदयाल जी के घर लौट आएगी...
सभी बचे हुए हुए बाराती उस रात रघुवरदयाल जी के बंगले पर ही ठहर गए और फिर मधुसुदन को भी उसके सुहाग कक्ष में भेज दिया गया,जहाँ मोगरे और गुलाब के फूलों से बिस्तर और कमरें को बड़ी खूबसूरती के साथ सजाया गया था,सजे हुए कमरें को देखकर मधुसुदन का पारा और भी बढ़ गया और उसे खुद से नफरत सी होने लगी कि वो और एक मंदबुद्धि को आज की रात स्पर्श करेगा....हरगिज़ नहीं,बाबू जी ने मेरा ब्याह तो उस मंदबुद्धि से जबरदस्ती करवा दिया लेकिन मैं उसे स्पर्श कभी भी नहीं करने वाला....
और फिर कुछ ही देर में दूध का गिलास हाथों में लेकर विभावरी कमरें में आईं,उसने धीरे से टेबल पर दूध का गिलास रखा और फौरन ही मधुसुदन के पैर छू लिए.....
ये देखकर मधुसुदन पीछे हटा और बोला....
ये क्या कर रही हो?
आपके पैर छू रही हूँ जी!,विभावरी बोली।।
तुमसे ऐसा करने को किसने कहा? मधुसुदन ने पूछा...
जी! दादी कहती है कि पति भगवान का रूप होता है,उनके पैर छूने चाहिए और उनकी हर बात माननी चाहिए,इसलिए मैनें आपके पैर छुए,विभावरी बोली।।
और क्या क्या कहती है तुम्हारी दादी? मधुसुदन का पारा थोड़ा कम हुआ और उसने पूछा।।
जी! उन्होंने कहा कि अगर मैं आपके साथ अच्छे से पेश आऊँगीं तो आप मुझे बहुत प्यार करेगें,आपकी हर बात मानूँगी तो और लोगों की तरह आप मुझे पागल नहीं कहेगें,विभावरी बोली।।
मेरी हर बात मानोगी,मधुसुदन ने पूछा।।
जी! हमेशा आपकी हर बात मानूँगी,विभावरी बोली।।
तो ये रहा चादर और ये रही तकिया,तुम नीचे फर्श पर बिछाकर सो जाओ,मधुसुदन बोला।।
बस,इतनी सी बात,लाइए मैं अपना बिस्तर बिछाकर नीचे सो जाती हूँ और इतना कहकर विभावरी ने फर्श पर चादर बिछाया ,तकिया रखा और लेट गई....
वो कुछ देर ऐसी ही लेटी रही फिर बोली....
क्या मैं ये गहने उतार दूँ? बहुत चुभते हैं,
हाँ! उतार दो,मधुसुदन बोला।
और फिर विभावरी एक एक करके अपने गहने उतारने लगी,उसने अपने सिर की चुनरी एक तरफ रख दी और एक एक करके सारे गहने भी उतार दिए,बालों में लगा गजरा भी निकाल दिया लेकिन उससे उसके बालों में लगा जूड़े का काँटा नहीं खुल रहा था तो उसने मधुसुदन से खोलने को कहा....
मधुसुदन बोला,ठीक है इधर आओ।।
और जब विभावरी मधुसुदन के करीब गई तो विभावरी के बदन से आती भीनी भीनी खुशबू से मधुसुदन मदहोश सा होने लगा,इतने में जूड़े का काँटा खुल गया और विभावरी के काले घने लम्बे बाल बिखर गए,तभी विभावरी ने कहा....
आप बहुत अच्छे हैं,दादी ठीक कहती थी और मधुसुदन के गाल पर चुम्बन पर लेकर वो फिर से फर्श पर बिछे चादर पर आकर लेट गई.....
इधर विभावरी के चुम्बन से मधुसुदन बेचैन हो उठा।।
कुछ देर विभावरी लेटी रही फिर बोली...
मुझे नींद नहीं आ रही...
मधुसुदन ने पूछा,क्यों?
जब तक दादी मेरा सिर नहीं सहलाती तो मुझे नींद नहीं आती,विभावरी बोली।।
तो मैं क्या करूँ?मधुसुदन बोला।।
मेरा सिर सहला दीजिए,विभावरी बोली।।
मुझे नींद आ रही है,सोने दो,मधुसुदन बोला।।
ठीक है आप सो जाइए,विभावरी बोली।।
और फिर मधुसुदन सो गया करीब चार बजे मधुसुदन की आँख खुली उसे वाँशरूम जाना था,उसने देखा कि विभावरी अभी तक जाग रही है और कमरें की छत को निहार रही है,तब मधुसुदन ने पूछा...
तुम सोईं नहीं...
मैनें कहा ना जब तक दादी मेरा सिर नहीं सहलाती तो मुझे नींद नहीं आती,विभावरी बोली।।
अजीब पागल लड़की हो तुम! मधुसुदन बोला।
जी! मुझे तो सभी कहते हैं कि मैं पागल हूँ,विभावरी बोली।।
मेरा वो मतलब नहीं था,मधुसुदन बोला।।
जी! दादी ने कहा है कि मैं आपसे बिल्कुल भी बहस ना करूँ,विभावरी बोली।।
ठीक है मैं पहले वाँशरूम होकर आता हूँ .....
और फिर जब मधुसुदन वाँशरूम से होकर आ गया तो उसने विभावरी के सिरहाने बैठकर विभावरी का सिर सहलाना शुरू कर दिया तो वो धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गई....
सोती हुई विभावरी,मधुसुदन को बहुत मासूम सी लगी और उसने मन में सोचा....
इसका भी क्या दोष है? कितनी भोली है बेचारी।।
विभावरी के सो जाने के बाद फिर मधुसुदन बिस्तर पर आकर लेट गया...
सुबह हुई सबसे पहले मधुसुदन जागा तो तब तक आठ बज चुके थे उसने देखा कि विभावरी अभी तक सो रही है,उसने उसे जगाया और कहा....
विभावरी! ये बात किसी को मत बताना कि तुम फर्श पर चादर बिछाकर सोई थीं।।
लेकिन क्यों?विभावरी ने पूछा।
सब मुझे बुरा कहेगें तो तुम्हें अच्छा लगेगा,मधुसूदन बोला।।
जी! बिल्कुल नहीं,मैनें कहा ना कि मैं आपकी हर बात मानूँगी और आपसे कभी भी कुछ ना छुपाऊँगी,विभावरी बोली।।
शाबास! तुम बहुत समझदार हो! अब जाओ जाकर तैयार हो जाओ ,घर चलना है,वहाँ तुम्हारी मुँहदिखाई की रस्म होगी,मधुसुदन बोला।।
जी! मैं ये सब गहने लेकर जाती हूँ,दादी ही मुझे तैयार करेगीं,विभावरी बोली।
ठीक है,मधुसुदन बोला।।
सुनिए जी! मैं इतना भारी लहँगा नहीं पहनना चाहती,क्या मैं साड़ी पहन सकती हूँ? विभावरी ने पूछा।।
हाँ! ठीक है,मधुसुदन बोला।।
साड़ी भी दादी ही मुझे पहनाएगीं क्योकिं मुझे अभी तक साड़ी बाँधनी नहीं आती,विभावरी बोली।।
ठीक है,मधुसुदन बोला।।
तो अब मैं जाऊँ,विभावरी ने पूछा।।
हाँ जाओ,मधुसुदन बोला।।
और फिर विभावरी तैयार होने चली गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....


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