स्पर्श--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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स्पर्श--(अन्तिम भाग)

विभावरी ने अपने बड़े भाई के साथ बैठकर ढ़ेर सारी बातें की,उसके जाने के बाद जब शाम को मधुसुदन घर लौटा तो उसने उसे बताया कि उसके बड़े भाई तेजप्रताप आएं थे,तब मधुसुदन बोला....
आज के पहले तो कभी भी तुमने उनका जिक्र नहीं किया ,अचानक कहाँ से ये तुम्हारे बड़े भाई पैदा हो गए।।
पहले भइया का हम लोगों के प्रति व्यवहार अच्छा नहीं था इसलिए पापा उनसे दूरी बनाकर रखते थे,विभावरी बोली।।
तो अचानक कैसे तुम्हारे भइया का व्यवहार तुम्हारे लिए बदल गया?मधुसुदन ने पूछा।।
वो तो पता नहीं,लेकिन आज तो उन्होंने मुझ पर बहुत प्यार लुटाया,विभावरी बोली।।
तुम बहुत भोली हो विभावरी!तुम्हारे भइया के इरादें मुझे कुछ ठीक नहीं लगते,मधुसुदन बोला।।
आपको गलतफहमी हो रही है,अब भइया सुधर गए हैं,इसलिए तो मुझसे मिलने आएं थे वो आपसे भी मिलना चाहते थे,विभावरी बोली।।
ठीक है तुम्हें लगता है कि भइया सुधर गए हैं तो अब मैं क्या बोलूँ? तुम भाई बहन का मामला है मेरा ज्यादा बोलना कुछ ठीक नहीं लगता,मधुसुदन बोला।।
ऐसे ही दो चार दिन के बाद शाम के समय विभावरी के पापा उससे मिलने आएं और विभावरी से बोलें....
मैं सोचता हूँ कि अब सारी दौलत तुम्हारे भाई तेजप्रताप के नाम कर ही दूँ,वो सुधर जो गया है।।
हाँ...हाँ...पापा! बिल्कुल सही,वो ही तो असली वारिस है उस खानदान के,विभावरी बोली।।
बस,तेरी राय पूछने आया था कि तुझे कोई एतराज़ तो नहीं,विभावरी के पापा बोले।।
भला! मुझे क्या एतराज़ हो सकता है? ये तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी,विभावरी बोली।।
अच्छा लगा ये जानकर कि तूने उसे माँफ कर दिया,विभावरी के पापा बोले।।
उस समय घर का दरवाज़ा खुला था और तब तक मधुसुदन घर आ चुका था और उसने दोनों बाप बेटी के बीच हो रहीं बातें सुन ली थी,मधुसुदन को ये सुनकर बहुत बुरा लगा कि उसके ससुर रघुवरदयाल जी सारी दौलत तेजप्रताप के नाम करना चाहते हैं,उसे ये गलतफहमी हो चुकी थी क्योकिं रघुवरदयाल जी तो केवल तेजप्रताप के पिता की दौलत उसे लौटाने को कह रहे थे।।
मधुसुदन दुखी मन से भीतर आया और उसने रघुवरदयाल जी के चरण स्पर्श किए फिर ये कहकर अपने कमरें में चला गया कि सिर में दर्द है मैं आराम करने जा रहा हूँ।।
रघुवरदयाल जी को ये आम सी बात लगी और उन्होंने इसे गम्भीरता से नहीं लिया लेकिन मधुसुदन को ये बात चुभ गई थी कि जिस दौलत की वज़ह से उसने पागल विभावरी से शादी की अब वही दौलत उसके हाथ से छूटती जा रही है,उसे इस बात की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि उसके ससुर सारी दौलत तेजप्रताप को दे देगें और आज से पहले तो उन्होंने कभी तेजप्रताप का जिक्र भी नहीं किया था,
वो इस बात को दिल से लगा बैठा था,अब उसके मन में रघुवरदयाल जी और विभावरी के लिए घृणा घर करने लगी थी,आज से पहले तक तो उसे ये लगता था कि रघुवरदयाल जी की सारी दौलत उसी की है और वो अपनी तीनों बहनों का ब्याह बड़ी धूमधाम से करेगा।।
उस दिन रघुवरदयाल जी तो अपनी बात कहकर चले गए और उस बात का मधुसुदन ने गलत अर्थ निकाला और अब इस गलतफहमी ने विभावरी और मधुसुदन के बीच एक नफरत की दीवार खड़ी कर दी थी,अब मधुसुदन को विभावरी के भीतर खामियाँ ही खामियाँ नज़र आने लगी थीं,वो उससे बहुत खिचा खिचा सा रहने लगा था।।
विभावरी पहले तो मधुसुदन के ऐसे स्वाभाव का कारण सुनैना को समझती थी लेकिन अब सुनैना तो काफी दिनों से मधुसुदन के घर नहीं आई थी और मधुसुदन का अब उससे बिल्कुल भी व्यवहार नहीं रह गया था,लेकिन जब मधुसुदन ने रघुवरदयाल जी के मुँह से तेजप्रताप को दौलत लौटाने की बात सुनी थी तो वो अब फिर से सुनैना से दोस्ती बढ़ा रहा था।।
सुनैना को भला इस बात से क्या एतराज़ हो सकता था वो तो यही चाहती थी कि मधुसुदन उसके बनाएं जाल में फँस जाएं,लेकिन अब तो मधुसुदन खुदबखुद सुनैना की ओर आकर्षित था,उसे ऐसा लगने लगा था कि उसके ससुर ने उसके साथ धोखा किया है और वो इस बात का बदला विभावरी से लेगा।।
ऐसे कुछ समय और गुजरा और अब तो मधुसुदन रात रात भर घर ना लौटता और इस बात को लेकर विभावरी के मन को बहुत पीड़ा पहुँचती लेकिन वो कभी भी मधुसुदन से कोई सवाल ना करती और ना ही ससुराल में सास से कुछ कहती और ना अपनी दादी से कुछ बताती,एक रात तो हद ही हो गई जब मधुसुदन नशे में धुत्त अपने घर लौटा और बिना कपड़े बदले ही बिस्तर पर लेटते ही बड़बड़ाने लगा कि सुनैना मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,मुझे वो पागल विभावरी पसंद नहीं,दौलत के लालच में मैनें उससे शादी की थी।।
ये बात सुनकर विभावरी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली लेकिन फिर भी उसने मधुसुदन के जूते उतारें उसे चादर ओढ़ाया और खुद जाकर सोफे पर लेटकर सारी रात आँसू बहाती रही ।।
अब सुनैना बहुत खुश थी क्योकिं उसे मधुसुदन को अपने करीब लाने के लिए कोई मेहनत ही नहीं करनी पड़ी,मधुसुदन खुदबखुद उसके करीब आ चुका था,ये ख़बर उसने तेजप्रताप को सुनाई तो तेजप्रताप की खुशी की सीमा ना रही,उसने सुनैना से कहा....
मुझे पहले पता होता कि अच्छा बनने का नाटक करने से इतना फायदा होगा तो मैं ये नाटक पहले ही कर लेता,लेकिन मधुसुदन तुम्हारे पास खुदबखुद आ गया,इसका मतलब उसके मन में कुछ ऐसा चल रहा है जो किसी को नहीं पता,कुछ तो हुआ है कोई तो बात है जो मधुसुदन को इतना खटक रही है इसलिए तो वो विभावरी से दूरियाँ बना रहा है।।
हमें क्या? हम दोनों का तो इस बात से फायदा हो रहा है,सुनैना बोली।।
सही कहती हो,तेजप्रताप बोला।।
एक बात पूछूँ,सच सच बताओगे,सुनैना बोली।।
तुम बाद में मुझसे शादी करोगे ना! सुनैना ने पूछा।।
इसमें कोई पूछने की बात है,दौलत मिलते ही मैं तुमसे शादी कर लूँगा,बस तुम मधुसुदन को अपनी मुट्ठी में लेकर रखों जब तक मेरा काम पूरा नहीं हो जाता,तेजप्रताप बोला।।
मैं तो पूरी कोश़िश कर रही हूँ,सुनैना बोली।।
और ऐसे ही दोनों के बीच बातें चलतीं रहीं....
अब विभावरी के गर्भ को सातवाँ महिना लग चुका था इसलिए विभावरी की सास एक दिन मधुसुदन को टेलीफोन करके बोली.....
बेटा! बहु को सातवाँ महीना लग चुका है,अब उसकी गोद भराई की रस्म हो जानी चाहिए,ऐसा कर तू किसी शुभ दिन आँफिस से छुट्टी ले ले और मैं तेरे घर आकर सारे इन्तजाम कर दूँगीं,काफी मेहमान भी इकट्ठे होगें,तेरी जान-पहचान वालों को भी तू बुला लेना,
मधुसुदन ने ना चाहते हुए भी अपनी माँ को हाँ कर दी और फिर वो दिन भी आ पहुँचा,घर में बहुत से मेहमान इकट्ठे हुए,घर में बहुत ही चहलपहल मची हुई थी,विभावरी की दादी और पापा के आ जाने के बाद गोद भराई की रस्म शुरू हुई,इसके बाद सभी मेहमानों का खाना शुरू होने लगा,खाना खाने के बाद एक एक करके सभी मेहमान चलें गए,आखिरी में तेजप्रताप,रघुवरदयाल जी और विभावरी की दादी भी चले गए,सब निपटते निपटते रात हो चली थी।।
तब विभावरी की सास उससे बोली....
चल अब तू भी खाना खा लें और मधु को भी खाने के लिए बुला ले...
ठीक है माँ! बस अभी बुलाकर लाती हूँ,विभावरी बोली।।
मैनें अभी उसे लाँन की तरफ जाते देखा हैं,वहीं होगा ,विभावरी की सास बोली।।
ठीक है माँ ! और इतना कहकर विभावरी सँजी धँजी सी मधुसुदन को बुलाने लाँन में पहुँची लेकिन वहाँ पहुँचते ही उसके कदम ठिठक गए.....
वहाँ सुनैना और मधुसुदन झूले में बैठकर कुछ बातें कर रहे थे जो कि विभावरी ने सुन लीं थीं,सुनैना ने मधुसुदन से पूछा...
हम साथ साथ कब रहेगें? मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाती।।
मैं भी यही चाहता हूँ मेरी जान! बस बच्चा होने तक रूक जाओं उसके बाद मैं उसे तलाक देकर तुमसे शादी कर लूँगा,मधुसुदन बोला।।
सच्ची कहते हो और इतना कहकर सुनैना मधुसुदन से लिपट गई,तभी एकाएक सुनैना की नज़र विभावरी पर पड़ी और वो मधुसुदन से अलग होते हुए बोली....
अरे! विभावरी ! तुम कब आईं।।
मैं तो इन्हें खाना खाने के लिए कहने आई थीं,माँ बुला रही हैं आपको,जल्दी से आ जाइए।।
और फिर विभावरी ने इतना ही कहा और चली गई,मधुसुदन को लगा कि विभावरी ने सब सुन लिया है और वो सबसे ये बात कह देगीं,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ विभावरी ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी और वो ऐसे व्यवहार करती रही कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।।
ऐसे ही एक महीने और गुज़र गए अब विभावरी की सास विभावरी के पास आकर रहने लगी थी उसका ख्याल रखने के लिए क्योकिं घर पर तो विभावरी की तीन ननदें थीं घर सम्भालने के लिए,इसलिए विभावरी की सास घर की तरफ से बिल्कुल बेफिक्र थी।।
माँ के घर पर रहने से अब मधुसुदन थोड़ा सावधान हो गया था,वो सुनैना से भी अब कम मिलने लगा था और शराब पीकर भी नहीं आता था,घर भी समय से आ जाता था लेकिन उसका व्यवहार अब भी विभावरी के लिए रूखा था,उधर विभावरी को ये लगता था कि वो और लड़कियों की तरह अकलमंद नहीं है मंदबुद्धी है इसलिए उसका पति उसे नहीं सुनैना को पसंद करता है,उसने मन में सोच लिया था कि बच्चा होने के बाद वो स्वयं ही मधुसुदन से तलाक लेने को कह देगीं।।
अब विभावरी का नौवांँ महीना बस खतम होने को था,डाक्टर ने कह दिया था कि अब किसी भी दिन प्रसवपीड़ा हो सकती है,आप इनके पास ही रहें,कहीं भी ना जाएं।।
विभावरी की सास तो वैसे भी उसका बहुत ख्याल रखती थी अब उसने अपनी एक बेटी अंजली को भी साथ बुला लिया था दोनों हर वक्त विभावरी के साथ साए की तरह लगीं रहतीं।।

फिर एक दिन सुनैना ने तेजप्रताप से कहा कि वो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है,ये सुनकर तेजप्रताप के चेहरे का रंग उड़ गया लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने सुनैना से कहा....
ये तो बहुत अच्छा हुआ ,अब तुम ये इल्जाम मधुसुदन पर लगाकर उसके घर में आग लगा सकती हो।।
लेकिन इतना गंदा इल्जाम मैं उस पर नहीं लगा सकती,मेरा जमीर गँवारा नहीं करता,सुनैना बोली।।
जब पूरी बाज़ी मेरे हाथ में आने वाली है तो तू ये कैसी बातें कर रही है?ज्यादा नाटक मत कर,तेजप्रताप चीखा।।
क्या मधुसुदन पर ऐसा इल्जाम लगाना ठीक रहेगा? सुनैना ने पूछा।।
सही गलत कुछ भी नहीं ,मुझे अपनी दौलत चाहिए वो भी किसी भी हाल में,तेजप्रताप बोला।।
लेकिन मैं ये नहीं कर सकती,ये बच्चा तुम्हारा है मैं मधुसुदन पर कैसें इल्जाम लगा सकती हूँ? सुनैना बोलीं।।
तो तू फिर मेरे किसी काम की नहीं रहीं,तेजप्रताप बोला।।
सुनैना ने इतना सुना तो उसे अपने लिए खतरा महसूस हुआ और वो बाहर की ओर भागी,तब तेजप्रताप बोला...
भागती कहाँ है ? आज मैं तुझे नहीं छोड़ूगा।।
और फिर तेजप्रताप ने अपने गुण्डों को आवाज लगाई....
हीरा....शम्भू....लाखन कहाँ गए सब, उस लड़की का पीछा करो....
जब तक सब सुनैना के पीछे गए तब तक सुनैना सड़क पर आकर भागने लगी,वो जल्द से जल्द पुलिसचौकी पहुँचना चाहती थी अपनी जान बचाने के लिए,उसे पता था कि आज तेजप्रताप उसे नहीं छोड़ेगा,इसी आपाधापी में वो एक मोटर से टकरा गई,सुनैना का एक्सीडेंट होते ही वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई और तेजप्रताप के गुण्डो को वहाँ से भागना पड़ा।।
मोटर वाले ने फौरन ही अपनी मोटर से सुनैना को अस्पताल पहुँचाया,तब तक पुलिस को भी ख़बर लग चुकी थी और वो अस्पताल पहुँच गई उस मोटर वाले के ड्राइवर को पकड़ने के लिए,कुछ ही देर में सुनैना को होश आ गया,तब डाक्टर बोले....
साँरी! हम आपके बच्चे को नहीं बचा सकें,लेकिन आप की हालत ठीक है आपको कुछ नहीं हुआ,तब डाक्टर ने उस मोटर वाले से कहा कि अब आप पेसेंट से मिल सकते हैं,साथ में पुलिस भी गई।।
उस मोटर वाले ने जैसे ही सुनैना को देखा तो बोला....
तुम मधुसुदन के आँफिस में काम करती हो ना! उस दिन मैने तुम्हें विभावरी की गोद भराई की रस्म में देखा था।।
वो और कोई नहीं विभावरी के पापा रघुवरदयाल जी थे और फिर सुनैना ने अपना बयान पुलिस को दिया और पूरी घटना कह सुनाई,मैं भागते हुए इनकी मोटर से जा टकराई ,इसमें इनका कोई दोष नहीं है।।
खब़र सुनकर रघुवरदयाल जी ने फौरन ही पुलिस से कहा कि वो तेजप्रताप को गिरफ्तार करें और फिर वें सुनैना से बोले....
बेटी! घबराओं नहीं,तुम्हारे इलाज का पूरा खर्च मैं उठाऊँगा और तुम अब किसी भी बात की चिन्ता मत करो तेजप्रताप तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा।।
इसके बाद वें मधुसुदन के आँफिस पहुँचे और उसे सारी बात बताई तब मधुसुदन को अपनी गलती का एहसास हुआ कि वो अपने ससुर जी और विभावरी को कितना गलत समझ रहा था,तभी मधुसुदन के आँफिस का टेलीफोन बजा और मधुसुदन ने टेलीफोन उठाया तो पता चला कि विभावरी को प्रसवपीड़ा हो रही है और उसे उसकी माँ ड्राइवर के साथ मोटर में अस्पताल ले गई है।।
टेलीफोन रखते हुए मधुसुदन बोला...
मैं बस कुछ ही देर में अस्पताल पहुँचता हूँ,जब रघुवरदयाल जी को ये बात पता चला तो उन्होंने मधुसुदन से कहा कि वो भी साथ चलेगें और फिर दोनों रघुवरदयाल जी की मोटर से अस्पताल पहुँचे,वहाँ मधुसुदन की माँ और बाबूजी जी ,टहल टहल कर खुशखबरी के आने का इन्तजार कर रहे थें,कुछ ही देर में नर्स बाहर आकर बोली....
बधाई हो! लक्ष्मी आई है,माँ और बच्ची दोनों स्वस्थ हैं।।
रघुवरदयाल जी ने मारे खुशी के अपने गले की सोने की चेन उतार कर नर्स को देदी,मधुसुदन ने भी अपना सारा बटुआ नर्स के हाथ पर उड़ेल दिया,तब तक विभावरी की दादी और मधुसुदन की बहनें भी अस्पताल पहुँच गई थीं।।
फिर कुछ देर में सब बच्ची और विभावरी से मिलने पहुँचे,बच्ची बहुत ही खूबसूरत थी बिल्कुल विभावरी की तरह ,बच्ची को देखकर सबका जी खुश हो गया और विभावरी की दादी सबसे बोली...
अब माँ और बाप को भी अपनी बच्ची से अकेले में बात कर लेने दो,अब हमारा यहाँ क्या काम?
सब हँसते हुए कमरें से बाहर निकल गए तब मधुसुदन बोला....
विभावरी मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।।
तब विभावरी बोली....
हाँ! मुझे पता है कि आप क्या कहना चाहते हैं? यही ना कि अब बच्चा हो गया है तो आप मुझसे तलाक लेकर सुनैना से शादी करना चाहते हैं,ये बात तो मुझे ना जाने कब से पता थी,आप जहाँ चाहेगें मैं साइन कर दूँगीं,मैं बस आपकी खुशी चाहती हूँ,मैं बस इतना चाहती हूँ कि आप हमेशा खुश रहें और अगर आपकी खुशी मेरे साथ रहने में नहीं है तो कोई बात नहीं,वैसे भी मैं आपके लायक नहीं हूँ,मंदबुद्धी हूँ और लड़कियों की तरह होशियार नहीं हूँ,बस आप कभी भी मेरी वजह से दुखी ना हो,आपके चेहरे की मुस्कुराहट यूँ ही बरकरार रहें,इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं ....
और ये कहते कहते विभावरी की आँखों से दो बू्ँद आँसू भी टपक गए और उन्हें छुपाने के लिए उसने दीवार की ओर मुँह फेर लिया....
विभावरी की बातें सुनकर मधुसुदन की आँखें भर आईं और वो उससे बोला।।
रो रही हो!
मैं क्यों रोने लगी भला! मुझे क्या दुःख है?विभावरी बोली।।
मुझसे दूर नहीं रहना चाहती ,मुझसे बहुत प्यार करती हो ना! मधुसुदन बोला।।
इससे आपको कहाँ कोई फर्क पड़ता है लेकिन कुछ भी हो मैं आपसे हमेशा यूँ ही प्यार करती रहूँगी,आप चाहे सुनैना से शादी कर लें तब भी,विभावरी बोली।।
अगर मैं कहूँ कि मैं सुनैना से नहीं सिर्फ़ तुमसे प्यार करता हूँ तो,मधुसुदन बोला।।
लेकिन मैनें सुना था कि आप सुनैना से प्यार करते हैं,विभावरी बोली।।
एक बात कहूँ,आज तुमने मेरे मन को स्पर्श कर लिया है,तुम्हारे जैसी अच्छी पत्नी मुझे कभी नहीं मिल सकती थीं,मेरे बाबूजी का फैसला एकदम सही था और एक बात बोलूँ,मधुसुदन बोला।।
हाँ! कहिए! विभावरी बोली।।
मैं सिर्फ़ तुमसे ही प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा,मधुसुदन बोला।।
तो क्या करूँ?विभावरी बोली।।
अब गले से लग जाओ और क्या करो?मधुसुदन बोला।।
और फिर मधुसुदन ने विभावरी के पास जाकर उसके माथे को चूमकर उसके स्पर्श को महसूस किया और उसे अपने सीने से लगाकर माँफी माँगी,दोनों पति पत्नी काफी देर तक यूँ ही रोते रहें और दोनों के आँसू पोछते रहें।।
इतने में बच्ची जाग कर रो पड़ी और फिर दोनों बच्ची को देखकर खिलखिलाकर हँस पड़े.....

समाप्त....🙏🙏😊😊
सरोज वर्मा....