चौथा नक्षत्र - 4 Kandarp द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चौथा नक्षत्र - 4

अध्याय 4


लेक्चर हाल


आई.सी.यू. फ्लोर के गद्देदार सोफों पर धूप अपना साम्राज्य बढ़ाती जा रही थी | धूप की पीली सुनहरी रोशनी में इस वक्त प्रश्नो की एक लड़ी सुरभि के सामने चमकने लगी थी | प्रश्न सुरभि के पास सिमटते आ रहे थे | प्यार क्या है ? क्या यह महज आकर्षण भर है ? लेकिन अगर यह आकर्षण भर ही है तो क्यों नही सभी से हो जाता ? क्यों खास किसी एक को ही देखकर दिल का जलतरंग कम्पित होता है ? प्रश्न सुरभि को घेरकर चुपचाप बैठे उसे तक रहे थे |

कुमुद ताल के पास खड़े कमल को भी शायद यही प्रश्न घेरकर खड़े थे | क्यों सुरभि को देखकर उसका दिल इस तरह जोर जोर से धड़कने लगा था ? सुरभि के चेहरे में ऐसा क्या था जिसने उसकी धड़कनों की रफ्तार इस कदर बढ़ा दी थी ? क्या वह सुरभि का अप्रतिम सौंदर्य था ? सुरभि का मैदे से भी उजला, सुंदर चेहरा और कमर तक लहराते काले घने बाल अक्सर राह चलते युवकों की नज़र बांध लेते | उन राहगीरों की ऐसी बेबाक बेशर्मी पर वह बस सिर झुका कर मुस्करा भर देती | किन्तु इतना सौंदर्य क्या कमल ने अब तक देखा नही था | क्या वह रूपवती कन्याओं से अनजान था ? नही ........| उसकी फ्रेंड लिस्ट में कई सुंदर लड़कियां थी | फिर .... फिर........ हल्के धानी रंग के सूट में , मूंगे से भी लाल होठो पर बार बार उड़ कर आते ढीठ बालो को हटाती उस लड़की में ऐसा क्या था कि उसके दिल की धड़कने अपनी रफ्तार कम ही नही कर रही थी ? ........क्या उसे प्यार हो गया था ? क्या यही प्यार था ?


प्रश्नों से घिरे कमल की धड़कनों से अनजान सुरभि इस वक्त लेक्चर हाल में बैठी थी |
“इतनी क्या जल्दी थी तुम्हे ...... देखो, अभी तक कोई प्रोफेसर नही आया |” मुग्धा नें शिकायत भरे अंदाज में कहते हुए सुरभि को देखा |

“अच्छा ..... तो वहीं तंबू लगाकर समाधि लेने वाली थी , उस मिस्टर कर्ली हेयर के साथ ”

चित्रा नें चिढ़ाते हुए मुग्धा के कमर में चिकोटी काटी |

“उईSSSS ......क्या कर रही है ”

बोलती हुई मुग्धा खिलखिला कर हँस पड़ी | न जाने क्यों सुरभि को मुग्धा का मजाक अच्छा न लगा | वह अनमनी सी हो गयी | खिलखिलाती हुई मुग्धा अचानक चुप हो गयी | लेक्चर हाल का शोरगुल अचानक शांत हो गया था |

एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति लेक्चर हाल में तेजी से प्रवेश कर गया था | नीले चेक्स के शर्ट में उसका तोंद सबसे पहले ध्यान खींचता था | गोल्डन फ्रेम के गोल चश्में को संभालते हुए वह स्टेजनुमा प्लेटफॉर्म पर खड़ा हो गया था | उसके साथ ही प्रवेश करने वाले पांच और टीचर भी प्लेटफॉर्म पर खड़े थे |


“ वेलकम टू द रीम कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी | आई एम प्रोफेसर कामत | योर हेड ऑफ द डिपार्टमेंट | दीस आर.... ”


“ में वी कम इन सर”
प्रोफेसर कामत की आवाज को काटती हुई एक आवाज हाल में गूंजी | प्रोफेसर कामत की आंखे हाल के दरवाजे की ओर घूम गयी | दो लड़के प्रश्नवाचक नजरों से प्रोफेसर की ओर देख रहे थे | दोनो में से एक की हल्की नीली जीन्स घुटनो तक गीली थी |

“ प्लीज कम.... ऐज आई वाज सेईंग ये आपके टीचर्स हैं जो आपको पढ़ाएंगे एंड दे आर वेरी पंचुअल | ”

प्रोफेसर कामत ने ‘पंचुअल’ पर खास जोर दिया था | हाल में कई जगह दबी दबी मद्धम हँसी की आवाजे आने लगी थी | लड़के हड़बड़ी में जल्दी-जल्दी बैठने के लिए जगह ढूंढने लगे थे | पहला दिन होने की वजह से पीछे की सीटे पहले भर गई थीं | केवल आगे की कुछ सीटे खाली थीं ,जिधर सुरभि चित्रा और मुग्धा बैठी हुई थीं | लड़के उन तीनों के सामने से गुजरे |


"अरे चित्रा ........ !!! तुमने यहीं एडमिसन लिया है !!! ”

कमल के साथ चल रहे लड़के का ध्यान अचानक चित्रा की ओर चल गया था |
चित्रा ने उस लड़के की ओर देखा फिर दूसरी ओर मुंह घुमाते हुए कहा |


“ हाँ.... भइया | ”

लड़का आगे बढ़ गया था | मुग्धा का मुँह आश्चर्य से खुल गया था | सुरभि भी विस्मय से उसे देखने लगी थी |

“ क्या .....? ......वह तुम्हारा भाई है ?”

बातूनी मुग्धा के मुँह से बस इतना ही निकल पाया |

“ अरे नही ..... दूर का कजन है ”

चित्रा ने जल्दी से कहा |

“ ओह... लेकिन नाम क्या है, इस गुड लुकिंग का ? ”

झटके से उबरने के बाद मुग्धा अपने चुलबुले रूप में वापस आ गयी थी |

“तुमको तो सभी गुड लुकिंग लगते हैं ...मोतियाबिंद उतर आया है क्या ...? ”

चित्रा ने चिढ़ते हुए कहा |


“तुम्हारा भाई है ना ...इसलिए तुम्हे नही लगता होगा | क्यों सुरभि ... गुड लुकिंग नही है क्या ? ”

मुग्धा नें शरारत भरी नजरों से सुरभि की ओर देखा |

“हाँ.... है तो..”

सुरभि ने मुग्धा की ओर देख कर आँख दबा दी | चित्रा मुँह बनाते हुए दूसरी ओर देखने लगी | कमल उन तीनों के पास वाली सीट पर बैठ गया था | उसकी धड़कनो ने अपनी रफ्तार फिर बढ़ा दी थी |

“ सो आई होप ..आप लोग कंप्यूटर साइंस एन्जॉय करेंगे .......”

प्रोफेसर कामत का लेक्चर जारी था | हाल तालियों से गूंज रहा था |

अस्पताल का शांत माहौल अचानक फ़ोन की घंटी से गूंज उठा था | सुरभि ने देखा उसका फोन बज रहा था | सौरभ भैया का काल था | शायद माँ और पिताजी आ गए थे | वह लिफ्ट की ओर चल पडी ।

------------- क्रमशः
------------------------------ कंदर्प


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