6.मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-6)
मैंने बिना मां बाबा को बताए नमिता के भाई के बच्चें के एडमिशन के लिए दो लाख रूपये दें दिए थे..नमिता इस बात से वेहद खुश थी पर ये सब मिझे ठीक नहीं लग रहा था क्या मैंने गलत किया था या सही क्योंकि नमिता के घर वालों का हमारी ज़िन्दगी में कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही होने लगा था जिसके चलते नमिता मेरे हर काम पर नज़र रखने लगी थी.. इन्ही सब के चलते मैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए अभी तक कोई नया कॉन्सेप्ट भी डिसाइड भी नहीं कर पाया था.. क्योंकि महीने में नमिता के तीन चार लोगों का जन्मदिन या फिर कोई ना कोई ऐसी वजह होती थी जिसके चलते गिफ्ट आदर सत्कार आदि के लिए नमिता मुझ पर प्रेसर बनाती.. जबकि मैं हर माह इतने तो पैसे उसे देता ही था के वो मेरे पूछे बगैर भी अपने भतीजे भतीजीयों भाइयो भाभियों अपनी बहनो और उनके बच्चों के इन अवसरों पर अपने ही हिसाब से अच्छा ही कर सकती थी लेकिन मैंने जब भी उसके हांथो में दिए जाने वाले कैश के बारे में पूछा तो यही कह कर मुझे चुप करा देती के वक़्त वेवक़्त पर काम आने के लिए इकट्ठा कर रही हूं.. ये सुन कर मैं भी चुप हो जाता कि चलो ठीक हैं..
मैंने उसे बीच में टोका था
क्या आपकी वाईफ के घर से मिलने जुलने वाले अक्सर आया करते थे..?
हां अक्सर तो नहीं पर हां उस दौरान शादी के एक माह बाद उनके भाई भाभी और दो बच्चें आए थे.. फिर दो महीने बाद या तीन महीने बाद कोई ना कोई तो मिलने आता ही रहता था..
वैसे मुझे पूछना तो नहीं चाहिए लेकिन फिर भी हर महीने आप अपनी वाईफ के हाथ में कितना पैसा देते थे...?
कभी बीस तो कभी पचास हजार....!
क्या वो पैसा आप अपनी मर्जी से देते थे या..?
मर्ज़ी से शुरुआत में दें दिया करता था.. लेकिन उसने कहां के इतने से क्या होता हैं तब मैंने भी इस बारे में कुछ ना सोचते हुए फिर ज्यादा पैसे देने लगा था..!
मसलन शुरुआत यही से होने लगी थी... आपकी वाईफ कितने भाई बहन हैं..?
6 बहन 7 भाई..
मैंने आश्चर्य से अविनाश को देखा
क्या...?
हां और ये सबसे छोटी हैं घर में.. मेरी शादी के समय उनके घर परिवार के छोटे बड़े मिला कर लगभग 70-80 लोग थे.
रिस्ता करते वक़्त आपके मां बाबा ने ये सब नहीं देखा था क्या...?
देखा था पर वो लोग तो गले ही पड़ गए थे जबकि सिर्फ मुझे देखने के लिए आए थे लेकिन उन लोगों ने दूसरे दिन ही इंगेजमेंट करा दी थी.
मतलब आप दोनो की आपस में बात चीत किए बगैर ही ..?
हां... घर वालों ने कहा भी था के एक बार तो लड़का और लड़की को आपस में बात चीत कर लेने दो लेकिन कुछ भी संभव नहीं हो सका सगाई के एक हफ्ते पहले घर वाले देख कर आए थे और मुझे यहां इस शहर में आए दो दिन ही हुए थे और चौथे दिन सगाई हो गई यहां तक कि 15 दिन बाद शादी की डेट भी फिक्स हो गई थी सर..
मतलब वो लोग जान चुके थे लड़का हेंडसम और स्मार्ट हैं पैसे वाला भी हैं इसलिए... क्या आपकी वाईफ की पहले भी कहीं से इंगेजमेंट टूट चुकी थी..?
हां तीन बार... पर आपने कैसे जाना
पिछले चार पांच केसो के अनुभव से आजकल यही सब तो हो रहा हैं... आपके मेटर में मैं ये जानना चाह रहा हूं के गलतियां कहां कहां और किससे हुई हैं. आप आगे बताए फिर क्या हुआ था ..?
सब कुछ यूं ही चलता रहा और फिर एक साल बाद हम दो ट्विन्स बच्चों के माता पिता बन चुके थे...बच्चों के होने के बाद तो नमिता का नेचर तो और भी रूडली हो गया था जिसके चलते उन दोनों को मेरे मां बाबा ने ही उन दोनों की परवरिश की अब हालात ये रहें के दोनों मेरे बच्चें मेरे मां पिता के बगैर रहते ही नहीं थे और यही हाल मेरे मां बाबा का भी था... जिसके चलते आज भी मेरे बच्चें मेरे मां बाबा को मम्मी पापा ही कहते हैं...एक दिन नमिता ने मुझे एक पेपर दिया.. जो किसी डॉ का लिखा हुआ था
ये क्या हैं नमिता
ये मेरी दवाओं का पेपर हैं
किस बात की दवाए...? (मैं थोड़ा चौका था)
अरे उस दिन जो मुझे परेशानी हुई थी
हां
ये उसी का हैं
ओह अच्छा
सुनो न
हां बोलो..?
ये दवाए आप ही लाना
हां मैं ही ला कर दूंगा तुम ऐसा क्यों बोल रही हो..?
नहीं मेरा मतलब हैं घर में किसी को नहीं बताबना मुझे शर्म आएगी
अच्छा अच्छा ठीक हैं मैं अभी जाऊंगा तो लेते हुए आयूंगा
अच्छा वैसे कितने दिनों की लाना हैं
पूरे महीने की लें आना क्योंकि ये कोर्स पूरे साल भर का हैं (उसने थोड़ा लज़ाते हुए बोला था)
और मैं भी थोड़ा लज़ाता हुआ अपने कमरे से बाहर निकल आया था
जब मैं अपने दोस्त राहुल के साथ मेडिकल से दवा लें रहा था तो मेडिकल वाले ने पेपर देख कर मना कर दिया और कहा
भईया जी ये दवाए यहां नहीं मिलेंगी हम मेन्टल रोगी की दवाए नहीं रखते हैं और फिर ये दवाए बहुत रेयर हैं यहां कहीं भी नहीं मिलेंगी
अरे भई कैसे ये मेन्टल पेसेंट की मेडिसन हैं...?
उसने मुझे पेपर दिखाते हुए कहा... ये देखिए क्या लिखा हैं डॉ. ज्ञानेन्द्र सिंह मनोरोग विशेषज्ञ लिखा हैं कि नहीं..
मैंने और राहुल ने पर्चे को गौर से देखा जो बात दुकानदार कह रहा था उसकी बात सही थी..
फिर कहां मिलेगी ये मेडिसिन...? राहुल ने शॉप कीपर से पूछा था
आप तो दवा बाज़ार चलें जाइए वहीं मिलेंगी ये दवाए..
और राहुल ने शॉपकीपर से पेपर लें कर मुझे खींचता हुआ सा गाड़ी तक लाया था
यार ये कैसे हो सकता हैं क्या भाभी मेन्टल पेसेंट हैं..?
मैं चुप था मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन नमिता की हर वो हरकतें, बात करने के समय कुछ कुछ अजीब सी हरकते करना बात बात पर पलट जाना वो सब मेरे दिमाग़ में घूमने सा लगा था..
मैं तुझ से कुछ पूछ रहा हूं.. (उसने मुझे झींझकोड़ते हुए पूछा था)
मुझे भी अभी पता चला
इसका मतलब नमिता भाभी कब दवाए खाती थी ये घर में किसी को नहीं मालूम..?
अगर ऐसा होता राहुल तो मां बाबा मुझसे इतनी बड़ी बात छिपाते नहीं.
हां ये भी सही बात हैं... अगर ऐसा था भी तो भाभी के घर वालों को शादी के समय बात छिपानी नहीं थी..
हां यार भले वो मुझे बता देते कम से कम मैं अपने बलबूते पर नमिता का अच्छे से अच्छे डॉ से इलाज़ करवाता लेकिन अब क्या करूं मैं
देख तू ये दवाए तो लेकर जा और इस पेपर की एक फोटो कॉपी करा कर अपने पास सम्हाल कर रख... क्योंकि जब से भाभी आई हैं तब से तुझे नोचा ही जा रहा हैं..न वो तेरे साथ मुंबई जा रही हैं और न ही तुझे जाने दें रही हैं अगर ऐसा ही रहा तो आगे कैसे चलेगा भाई.. अभी तो तेरे से पैसे वैसे की फिर तो डिमांड नहीं की..
मैं चुप था राहुल ने मेरी आंखों मे झाकते हुए पूछा
तू चुप क्यों हैं बोलता क्यों नहीं..?
अभी दस दिन पहले ही पचास हजार दिए थे नमिता को.
क्यों करोड़पति महोदय... ऐसी क्या अमरजेंसी हो गई थी..?
मैं चुप था क्योंकि सही में मैं कुछ तो गलत कर रहा था
क्यू क्या उनके सारे खानदान का तूमने ठेका लें लिया हैं..? अविनाश भाई शादी सबकी होती हैं इसका मतलब ये नहीं हैं कि तुम इस तरह से भाभी की ज़िद पर उनके घर वालों की हर ज़रूरतें पूरी करो वैसे ये तुम्हारी फैमिली का मेटर हैं शादी मेरी भी हुई हैं लेकिन मेरी वाइफ ने तो आज तक ऐसा नहीं किया.. मेरी वाइफ और मैं दोनों नौकरी कर रहें हैं इसलिए कि आनेवाला कल ठीक से गुजरे.. क्या कभी तुमने भाभी को कुछ भी काम धाम करने को नहीं कहा..?
काफ़ी बार कह चुका हूं कहती हैं इतना सब तो हैं कोई सुनेगा तो क्या कहेगा..?
मतलब दुनियां के जीतने भी लाखपती और करोड़पति हैं वो सब पागल हैं.
अब छोड़ न यार... दवा का क्या करूं..?
क्या करूं क्या अब लेके जाओ वर्ना दूसरी मुसीबत क्या ये भी अब गले तो पड़ ही गई हैं..
============
मैंने नमिता को दवाए लाकर दे दी थी और रात भर सोचता रहा अगर मां बाबा से कहता हूं तो नमिता को बुरा लगेगा और मां बाबा भी चिंता करेंगे नहीं नहीं... इसे मैं ही फेश करूंगा..
इस बात को अभी मुश्किल से 15 से 20 दिन ही गुज़रे थे मैंने एक दिन नमिता से उसकी बिमारी के बारे में जानकारी लेना चाही तो नमिता हर बार बात को घुमा फिरा कर अपने घर के लोगों की बात पर आ जाती लेकिन वो अपनी बिमारी के बारे की बात को टालती रही थी. जिसके चलते आए दिन हम दोनों की आपस में किसी न किसी बात को लेकर बहस हो जाया करती थी... क्योंकि वो अपनी बीमारी को लेकर मिझ से झूठ पर झूठ बोले जा रही थी....दूरे दिन जब मैं काम से बाहर आया था तभी उसके डॉ भईया भाभी का फ़ोन मेरे पास आया.
क्रमशः 7