मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 2 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 2

पार्ट - 2. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू


चच्चा की बातों में दम था...आखिर आज की ज़नरेसान क्या चाहती हैं मैं यही गुनताड़े की उधेड़ बुन में घर आ गया था.. लेकिन मन में चच्चा की तस्वीर और उनकी सोच मुझे बार बार झंझकोर रही थी..मेरे दिमाग में बार बार वो तस्वीरें भी दिख रही थी जिन्हे सही में मैंने भी देखा हैं..मैं हर वर्ग के मोहल्ले में किराएदार रहा हूं जहां मैंने एक बात तो नोटिस की हैं के हर मोहल्ले की गली में कोई ना कोई ऐसा होता हैं जहां निराधार इश्क़ आज भी पनापता हैं.. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौड़ते हुए ज़माने में फ़ैशन की फूहड़ता की अहम् भूमिका होती हैं.. जिसे ना चाह कर भी समाज किसी ना किसी बेबसी के चलते उसे अनदेखा भी करता हैं . जहां औरतों के नाभी प्रदर्शन फैसन के नाम पर आम होने लगें.. वहां वासना की अंगूरी महक कॉलोनी और मुहल्लों की फ़िज़ा को तो खराब करेगी ही.. फिर भले ही लिवास में ढका मुंदा जिस्म ही क्यों ना हो लेकिन मर्द की नज़रे तो उस पर पड़ेंगी ही.. और फिर समाज में फूहड़ता की आजादी के लिए चौक चौराहों पर नारे बाजी होती हैं.. कहीं औरत अपने हक़ के लिए चीखती हैं तो कहीं औरत अपनी आज़ादी के लिए चीखती हैं और फिर एक कपूर की महक की तरह गुम हो जाती हैं.. और ये सिलसिला निरंतर चलता रहता हैं. जबकि इस समाज़ और देश में हो रही घटनाओ के पीछे दोषी हम सभी हैं चाहें औरत हो या मर्द क्योंकि हमारे देश में देश की आधी आवादी की एक तिहाई आवादी निश्चय ही अपने स्वाभिमान और सम्मान के लिए आज भी लड़ रही हैं. वो सिर्फ इतना भर चाहती हैं उनका घर, समाज और कुटुंब सम्मान की ज़िन्दगी जिए एक संस्कार की ज़िन्दगी जिए.. वहीं इस आधी आवादी की एक तिहाई में से मुट्ठी भर आवदी फैसन की होड़ के चलते आधी आवादी को भुगतना पड़ता हैं..

शाम हो चली थी मोहल्ले का शोर गुल बढ़ता ही जा रहा था.. लोगों की आवाजही तेज होने लगी थी तो मैं भी अपना मन हल्का करने के लिए रोज की तरह अपने घर के बरामदे की बालकनी में आकर बैठ गया था मानो किसी स्टेडियम की बालकनी में आकर बैठ गया हूं..मेरी नज़रे सड़क और पार्क की तरफ आते जाते लोगों पर टिक गई थी.. कभी कुछ देर उस तरफ निहारता तो कभी नज़रे सामने के अपार्टमेंट की बालकनीयों में टिक जाती तो कभी कॉलोनी के मेन गेट पर टिक जाती...तभी तीन चार पुलिस की गाड़िया तेज गति से कॉलोनी के मेन गेट के अंदर दाखिल हुई थी और सीधे डी ब्लॉक की सड़क पर दौड़ती हुई निकल गई इतना ही नहीं उन गाड़ियों के काफ़िले के पीछे पीछे पांच छे मिडिया की भी गाड़िया जाती हुई दिखाई दी..इस तरह की गतिविधि देख कर लगा कोई बड़ी बात हुई हैं आखिर क्या हुआ होगा ये देख कर मैं सोच ही रहा था के तभी मेरे बरामदे से लगें ठिये पर बैठे लोग और लडके उन गाड़ियों के गए हुए काफ़िलों की तरफ तो मैं भी बरामदे से निकल कर बाहर आ कर खड़ा हो गया था.. क्योंकि जिस तरह से इन पुलिस की गाड़ियों का आना हुआ था उस हिसाब से ये सोचने का विषय तो था ही. और देखते देखते चर्चाए गरमानें लगी थी..

ओ.. क्या हुआ..?

किसी ने ऊपर के अपार्टमेंट की बालकनी से एक आते हुए लड़के से चिल्ला कर पूछा था.. नीचे खड़े हम सभी ने ऊपर बालकनी की तरफ देखा था..

किस बात का .. क्यों कुछ हुआ क्या..?

तुझे नहीं पता... तो चल रहने दे..

अरे बता ना क्या हुआ..?

अभी अभी 10-12 पुलिस की गाड़िया तुम्हारे ब्लॉक की तरफ गई हैं...

अच्छा... मैं जा कर देखता हूं...

और वो लड़का उल्टे पैर अपने ब्लॉक की तरफ दौड़ लगा देता हैं..

क्या हुआ होगा भाई सहाब..?

पता नहीं मैं तो अपने बरामदे में बैठा अपना काम कर रहा था..तभी उन जाती हुई गाड़ियों पर नज़र पड़ी तो मैं भी उन्हें देखते हुआ बाहर आ गया.

हां हम भी वॉक करने निकलें थे.. आजकाल पार्क में जाने का कोई धरम ही नहीं रहा इसीलिए कॉलोनी की गलियों के वॉकिंग ट्रेक पर ही वॉक कर लेते हैं..

बिलकुल सही कह रहें हो मिश्रा जी

हम चार पांच के झुण्ड में धीरे धीरे और भी लोग आ कर खडे होते गए और बातों ही बातों में भीड़ होने लगी.. जो अक्सर हो जाया करती हैं जिसमें सभी उम्र के लोग अपने अपने दिमागी घोड़ो को दौड़ा दौड़ा कर घटना क्रम के अपने अपने मत पेश कर रहें थ. लेकिन सभ्यता की हद्द के चलते किसी की ये हिम्मत नहीं हो रही थी के जिस बिल्डिंग की तरफ पुलिस की गाड़ियों का काफिला गया हैं उस तरफ जा कर ही पता कर लिया जाए..तभी किसी ने अपने दिमाग़ के उठते फितूर की जिज्ञासा पेश की थी

अरे हा वो कॉलोनी के एकदम एंड में वो स्टोर रूम हैं..?

हां हां..

वहां मौजूद भीड़ में खडे दो तीन लोगों ने हां में हां मिलाई थी..

मुझे लगता हैं वहीं कहीं कुछ गड़बड़ हुई होंगी.

अरे नहीं भाई वहां कैसे गड़बड़ हो सकती हैं वहां तो वॉच मेनो की फेमिली भी तो रहती हैं... ना ना मैं नहीं मानता.

हां हां ऐसा चोरी मोरी की बात तो भूल ही जाओ मुझे इस कॉलोनी मैं बीस साल हो गए हैं आज तक किसी चोरी वोरी की बात नहीं सूनी और ना ऐसा कुछ देखा मैंने.. कोई और ही बात हैं..

सबकी अपनी अपनी बातों के घोड़े दौड़ाते हुए पूरा एक घंटा हो चुका था तभी गाड़ियों का रेला आता हुआ दिखाई दिया तो सबकी गर्दने उस दिशा में घूम गई और निगाहे आती हुई गाड़ियों पर टिक गई थी.. जितनी जिज्ञासा इन लोगों को जानने की थी उतनी ही जिज्ञासा मुझे भी थी लेकिन असहाय की तरह किसी और सूचना तंत्र के इंतज़ार में खडे थे..कुछ लोगों की जिज्ञासा इंतज़ार के चलते बुझ चुकी थी जिसके चलते कुछ लोग तो अपने अपने रास्ते को हो लिए थे.. गाड़ियों के काफ़िले को निकलें हुए लग भग दस मिनट हो चुके थे.. तभी एक ने आकर पूरे घटना क्रम की आंखों देखी बया कर दी..जिसको सुन कर सबकी आंखे फटी की फटी रह गई

वो डी ब्लॉक के बी-16 में जो जाट जी रहते हैं..

हां हां वो बटिंडा वाले... क्यों क्या हुआ उनके वहां..?

अरे उनकी सबसे छोटी बहू.. वो रागनी..

हां वो महेश की बीबी जो फौज में हैं

हां हां उसी की बीबी

क्यों क्या हुआ उसे..?

अरे आप लोगों को पता नहीं वो पिछले तीन दिन से लापता थी..

अरे.. क्या बात कर रहें हो भाई..?

सब के चेहरों पर आश्चर्य के प्रशनिक भाव उभर आए थे..

हां भाई उसी की बात कर रहा हूं...

वो तो परसो मुझे सुबह सुबह स्कूल में दिखी थी..जब मैं अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गया था तब तो वो भी अपने दोनों बच्चों को स्कूल छोड़ने आई थी.

हां वो उसी दिन और उसी समय से गायब थी.

फिर..?

फिर क्या उसे अटारी बॉर्डर की पुलिस ने पकड़ा और लाकर छोड़ के गई हैं.

अटारी वो जो भारत पाकिस्तान की बॉर्डर हैं.

हां वहीं अटारी वहीं से

तभी एक अंकल ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा

बेचारी पति के वियोग में आधी हो रही थी

अरे नहीं अंकल पूरी बात तो सुनो वो बेचारी नहीं हैं उसने तो वो गुल खिलाया हैं उसे सुन कर आप लोगों के होश फाख्ता हो जाएंगे..

ए... गुल...? ऐसा क्या कर दिया भई उसने...?

भानू प्रताप वो भानू प्रताप जाट जिनकी मूछे कभी किसी के सामने नहीं झुकी जिनकी छाती उनके तीनों बेटों ने कभी भी कमजोर नहीं होने दी आज उनकी ही बहू ने उनके खानदान की सारी इज्जत मिट्टी में मिला दी..

लेकिन ऐसा किया क्या उसने..?

क्या किया . अरे ये पूछो क्या नहीं किया उसका पति सरहद पर देश की रक्षा के लिए रात दिन एक कर रहा हैं और यहां उसकी बीबी सोशल मिडिया पर इश्क़ लड़ा रही थी.. मैडम मोबाईल पर ऑनलाइन लूडो गेम खेला करती थी वो भी पाकिस्तान के किसी ज़ेद के साथ खेलते खेलते दोनों को प्यार हो गया और मैडम ने ना अपने ससुराल का सोचा ना मायके वालों का सोचा और ना ही अपने बच्चों और पति का सोचा और निकल ली अपने आशिक के पास हमेशा हमेशा के लिए वो तो भला हो सीमा सुरक्षा बल की पुलिस का जिनकी नज़रों में मैडम चढ़ गई और धर ली गई वहीं लोग उसे यहां छोड़ने आए थे..

लो ये गुल खिल रहा था हमारी कॉलोनी में बस यही देखना और सुनना भर बाकी था.. क्या ज़माना आ गया हैं..?

हां भाई सहाब आप बिलकुल सही कह रहें हैं आजकल किस का भरोसा करें के किस के मन में क्या चल रहा हैं..

बिलकुल सही कहा आपने.. अपनी इस कॉलोनी में पहले ऐसा कभी नहीं सुना लेकिन अब पता नहीं क्या हो गया हैं अपनी ही कॉलोनी की बहू बेटियों और बहनो के बारे में कुछ भी कहने से शर्म आती हैं..

अब तो कल क्या अभी से ये खबर ना जाने कहां कहां फैल जाएगी.. और हमारी ये कॉलोनी बदनाम हो जाएगी..

हा यार अंकल सही कह रहें हैं अब तो अपनी कॉलोनी का नाम भी बताने में शर्म आएगी..

नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा...मिडिया वालों को और अखबार वालों को साफ हिदायत देदी हैं एस पी सहाब ने वो खुद यहां आए थे... उन्होंने कुछ भी छापने और टीवी पर दिखाने से मना कर दिया और ये भी कहा किसी भी अखबार या टीवी पर ज़रा भी कुछ इस बारे में दिखाया तो उसकी खैर नहीं..

बिलकुल सही कहा पुलिस ने वैसे ही बहू की इस करतूत से जाट जी का सिर झुक गया अगर टीबी या अखबार में खबर आ गई तो वोतो घर के सब को खतम कर देगा और और खुद भी मर जाएगा.. मैं उन्हें बहुत अच्छे से जनता हूं जैसे वो वैसे उनके तीनों बेटे भी हैं.. क्या कलंक लगा दिया उस औरत ने.. अभी उनकी बहू कहां हैं..?

यही हैं उसके भी मां बाप और भाई आए हैं.. जाट सहाब ने कह दिया अभी इसको यहां से लें जाओ.. तीन महीने बाद उनका बेटा आएगा जैसा वो कहेगा तभी कुछ सोचेंगे.

बताओं भाई जरा सी गल्ती के चक्कर में क्या हो गया.. आज कल जब से ये कमबख्त फोन में इंटरनेट क्या आया ज़िन्दगीयां ही बर्बाद हो रही हैं..

बिलकुल सही कहां मूलचंदानी जी.. अब तो ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले कल में आज के भविष्य का क्या होगा..?

चलो भई पता नहीं कैसा ज़माना हो रहा हैं ऐसा सुनकर बहुत डर सा लगता हैं..

और धीरे धीरे सब अपने अपने घरोंदो को निकल जाते हैं मैं भी मज़मे की भीड़ से निकल कर अपने घर में आ चुका था रात काफी हो चुकी थी.. और भूख भी मर चुकी थी जिसके चलते मेरी नींद भी कोसों दूर भाग चुकी थी मैं बिस्तर पर पड़ा पड़ा यही सोचता रहा के सही में ज़माना क्या से क्या होने जा रहा हैं....

मुझे बिस्तर में तबे की रोटी की तरह उलट पलट होते हुए सुबह के चार बज चुके थे..जो शायद ही अपने जीवन में कभी इस तरह बेचैन सा रहा हुआ होंगा.. जो आज एक नारी के चरित्र का चेहरा मेरे ज़ेहन में मंडरा रहा था.. उस फौजी जवान की क्या गल्ती थी उस औरत ने क्यों अपने पति के विश्वास का गला घोटा और अपनी ससुराल के लोगों का और अपने नन्हे से बच्चों के सम्मान का खून किया.. क्या इश्क़ में इतना अंधा और पागल हो जाना तो ऐसा इश्क़ गुनाह हैं इसकी सजा क्या होंगी ये तो ऊपर वाला ही जाने लेकिन उस औरत ने पूरा घर वर्बाद कर दिया.. तभी फ़ज़र की अज़ान ने मेरी सोच को भंग किया था.. और मैं अपने बिस्तर से उठकर बैठ गया...और अपने आप से ही बात करने लगा

चलो आज मॉर्निंग वाक् पर चलते हैं...

बिलकुल चलना चाहिए..

क्यों ना आज इस मशीनी जिस्म को कायनात की सुबह सुबह की आबो हवा खिला दी जाए..

हां क्यों नहीं सुबह ब्रम्ह महूर्त में उठना शरीर के लिए अच्छा होता हैं.

तो चलें आज बाहर की सैर ही कर ली जाए..

और मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो कर कॉलोनी की सड़क पर निकल आया था..

ओह ये क्या.. यहां तो लग ही नहीं रहा के मैं अकेला ही हूं.. यहां तो सभी लोग मौजूद हैं..

इतना सोचते हुए मैंने भी सुबह की ताज़ी हवा को गहरी सांसों से खींचा था और अलसाये हुए हांथ पैरों को हवा में लहराया था..जिसके चलते शरीर की सुस्ती एकदम रफू चक्कर हो गई थी शरीर में स्फूर्ति का संचार होने लगा था और मेरे चेहरे पर और आंखों में चमक सी आ गई थी मन में द्रढ संकल्प की योजनाओ का संचार होने लगा था मेरे कदम अनास ही सड़क के किनारे बने फुटपाथ पर रेंगने से लगें थे मन से वेबजह की बातें और चिंताए मिटने लगी थी.. सुबह के मन मोहक नज़ारों में लोगों की मौजूदगी चार चांद लगा रही थी.. मैं कब कॉलोनी के गार्डन के करीब पहुंच गया मुझे पता ही नहीं चला जब मेरे कानो में किसी वेस्टर्न धुन की रिधम तेजी से कानों में पड़ी तो मेरी नज़रे उस और को घूम गई.. जहां गार्डन की बाउंड्रीवाल के बाहर खडे लोग बाउंड्री के अंदर झाकते हुए से खडे थे.. जहां अंदर तक़रीबन 40-50 औरते और जवान लड़कियां एरोबिक करने में व्यस्त थी जो म्यूजिक की धुन पर हाथ पैर और अपने कूल्हे मटका रही थी.. उनके परिधान सिर्फ ब्रेस्ट और कमर हैं जांघो तक ढ़के हुए थे बाकी का जिस्म उघड़ा हुआ था..

ये क्या.. ये तो तमाशा हो रहा हैं..?

तभी मेरे नज़दीक ही खडे एक अधेड ने मुस्कुराते हुए कहा..

तमाशा ही तो हैं.. यार जितनी गर्मी दौड़ने और डन्ड पेलने से नहीं आती हैं उससे कहीं ज्यादा गर्मी यहां के नजरे से आ जाती हैं भाई..

मैं उसकी बात सुन कर थोड़ा असहज सा हुआ था.

तो आप इतनी सुबह से यही गर्मी लेने आते हैं..?

तो क्या.. इसमें बुराई क्या हैं आजकल टीवी और इंटरनेट पर जो सरकार ने पावंदी लगा दी हैं.. वहां देखने को नहीं मिलता तो यही सही.

उसकी बात सुन कर तो मैं अपने दांत पीस कर रह गया..

क्या आपकी भी वाइफ या बहन यहां आती हैं..

इतना सुन कर उसने मुझे घूर कर देखा.. और कुछ ही पल में वो वहां से आगे को निकल गया.

ओ भाई मेरी बात का जवाब तो देदो..

लेकिन वो नहीं रुका पता नहीं उसने ऐसा क्या देख लिया था मुझ में..तभी कुछ लोग गार्डन की बाउंड्री पर चढ़ने लगें तो मैंने भी जिज्ञासा बस अपने पैरों के पंजो के बल थोड़ा ऊपर को उठ कर देखा तो अब सारी महिलाए ज़मीन पर लेट कर पैरों की एरोबिक एक्सरसाइज़ कर रही थी..

तभी फिर वहां मौजूद लोगों में से किसी ने कहा

वो देख अंगूरी..

कहां..?

वो पीले शॉर्ट स्कर्ट में..जो सब को सिखा रही हैं

आए हाय क्या फिगर हैं यार ..

मेरी भी नज़रे उस पर पड़ी तो मुझे सही में शर्म सी आ गई क्यों की उसके पैरों की पोजीसन बिलकुल हम लोगों की ही तरफ थी और वो म्यूजिक के रिधम पर अपने पैर लेटे चला रही थी.. एक झलक देख कर मैंने वहां से जल्दी ही निकलना ठीक समझा और मैं अपने कदम तेजी से बढ़ता हुआ सीधे आपने अपार्टमेंट की मेन सड़क पर निकल आया.. और राहत की सांस ली.

ओह तो ये हैं मोहतरमा अंगूरी महक इसने तो सही में माहौल बिगाड़ कर रखा हैं ऐसी एक्शरसाइज तो बंद हॉल में होती हैं लेकिन ये तो बहुत ही गलत हैं...क्या कॉलोनी की इन औरतों को और जवान लड़कियों को समझ नहीं आ रहा या ये जानबूझ कर किया जा रहा हैं.. कुछ तो करना ही होगा.. नूर भाई ने सही ही कहा था...

क्रमशः 3