नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 17 Poonam Sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नफरत से बंधा हुआ प्यार? - 17

"सबी! सबी!" सबिता ने सुना नीलांबरी उसको बार बार पुकार रही है। जब सबिता ने कोई जवाब नही दिया तोह नीलांबरी अपनी दासियों के साथ सीढ़ियों से नीचे उतर आई।

"सबी!" नीलांबरी अभी भी उसे पुकार रही थी।

सबिता ने भावशून्य एक्सप्रेशन से उन्हे देखा। "यस?"

नीलांबरी की आंखें दहशत सी लदी हुई लग रहीं थी। "तुम्हारी कजन यहां आ रही है। क्या तुम्हे पता है वो यहां क्यों आ रही है?"

सबिता ने अपने कंधे उच्चका दिए।
"देव सिंघम को कुछ डॉक्यूमेंट्स पर मुझसे कुछ डिस्कस करना है जो शहर जाने से पहले उसे लेकर जाना है। क्योंकि देव सिंघम को मुझसे काम है और वोह यहां आ रहा है तो शायद अनिका भी उसके साथ ऐसे ही आ रही हो।" सबिता ने अपनी बुआ नीलांबरी की तरफ गौर से देखते हुए कहा।
"आप चाहती हो की मैं उन्हे यहां आने से मना कर दू क्योंकि आप को उनके यहां होने से परेशानी है?"

नीलांबरी की गुस्से से भौंहे उच्चक गई।
"नही! मैं उनसे मिलूंगी। मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं नीलांबरी प्रजापति हूं। मैं किसी से डरती नहीं हूं। किसी के भी आने या जाने से मुझे कोई फर्क नही पढ़ता।"

दस मिनट बाद, नीलांबरी अपने नौकरानियों और गार्ड्स के झुंड के साथ सिंगम्स का इंतजार कर रही थी। थोड़ी ही देर में सिंघम्स की गाड़िया आ कर रुकी। प्रजापतियों ने उनका स्वागत किया पर नीलांबरी सबसे उपर वाली सीढ़ी पर ही खड़ी उन्हे शाही नज़रों से देख रही थी जैसे वो इस सत्ता की महारानी हो और बाकी सब नौकर। जब अनिका गाड़ी से उतरी और प्रजापति मैंशन की तरफ अपने कदम बढ़ाने लगी, तब नीलांबरी के एक्सप्रेशंस भी बदलने लगे। सबिता की भौंहे उच्चक गई अपनी बुआ को अनिका को भय से घूरते हुए देखने से। पर वो अनिका को नही देख रही थी, बल्कि वोह तो एकटक अभय सिंघम को घूर रही थी।
फिर मानो बेहोशी की हालत में नीलांबरी सीढ़ियों से नीचे उतरी और अनिका और अभय सिंघम के सामने खड़ी हो गई। कांपते हाथों से उसने अनिका के पेट पर बमुश्किल दिखाई देने वाली बेबी बंप को छुआ।
"सिंघम्स का वारिस," नीलांबरी धीरे से फुसफुसाई।

"हां," अनिका ने कहा। "मैं चाहता हूं कि हम अपने मतभेदों को दूर कर दें ताकि मेरा बच्चा अपनी नानी को जान सके। सिंघम्स और मैं इस उत्तराधिकारी का एकमात्र श्रेय आपको देते हैं।"

सबिता को लगा अनिका कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा के बोल रही है लेकिन नीलांबरी ने भी कुछ नहीं कहा।
नीलांबरी इतना अहंकारी थी कि अनिका ने उसकी तारीफ में जो कुछ भी कहा, वह उसे झकझोर कर रख दिया।
"रास्ता छोड़ो, सब!" नीलांबरी खुशी से चिल्लाई। "सिंघम्स का उतराधिकारी प्रजापति हवेली में आ रहा है। आइए हम सब मिलकर जश्न मनाए।"

नीलांबरी ने अपने लोगों और नौकरानियों को कई तरह के पकवान बनाने और उपहार तैयार करने के आदेश दिए जो वोह अनिका और अभय के साथ सिंघम्स की हवेली में भेज सके।

देव आनंद से देख रहा था की कैसे प्रजापतिस नीलांबरी प्रजापति के आदेश का पालन करने के लिए बिना सिर की मुर्गी की तरह इधर उधर भाग रहे हैं। साथ ही साथ उसने अभय और अनिका के बॉडीगार्ड्स को अभय और अनिका के नजदीक रहने के लिए भी कह दिया था। रवि जो अनिका का पर्सनल बॉडीगार्ड था उसने देव को इशारे से कह दिया था की सब कुछ ठीक है। रवि की तरफ अपना सिर हिला कर, देव सबिता प्रजापति की तरफ मुड़ गया जो सबको यूहीं देख रही थी। देव सबिता के पास आया।
"क्या हम चलें?" देव ने पूछा।

अपना सिर हिला के सबिता आगे बढ़ने लगी और देव उसके पीछे चलने लगा। आधा दूर चलने के बाद सबिता सीढियां चढ़ने लगी। देव की आंखें एकटक सबिता की लंबी घनी चोटी पर थी जो सबिता की चाल के साथ ही लहरा रही थी। देव को अपने ऊपर गुस्सा आने लगा था की क्यों वोह सबिता की तरफ से अपनी नज़रे हटा नही पा रहा है। वोह कोई ऐसे ही कोई लड़की नहीं थी जिसे वोह देख रहा था। वोह सबिता प्रजापति थी.......उसकी दुश्मन। उसकी आंखें और शरीर के बाकी हिस्से और उसका दिमाग भी क्या कर रहा है उसे कुछ समझ नही आ रहा था। अंत में उसने तब ऊपर देखा जब सबिता एक कमरे के सामने रुकी और कुछ बाहर गिरा। देव ने सोचा शायद कमरे की चाबी है जो गिरी लेकिन नीचे देखने पर उसे पता लगा की वोह एक चाकू था जो सबिता की जेब से गिरा था। और यह वोही चाकू था जिससे अनिका और अभय की शादी की एक रात पहले सबिता ने देव की जांघ पर उसी से वार किया था। गुस्सा आने की बजाय उसे अपने से चिढ़ होने लगी की कैसे सबिता ने उसे दर्द दिया था। देव सबिता को हैरानी से देख रहा था की कितनी आसानी से उसने नीलांबरी के कमरे का दरवाजा उसी चाकू से खोल दिया था। देव के सामने जो लड़की खड़ी थी वो हमेशा ही उसे आश्चर्यचकित कर देती थी भले ही वोह उसके बारे में जो भी सोचता हो। इसी वजह से वो उसे ज्यादा से ज्यादा अनदेखा करने की कोशिश करता था। पर जब भी वो सोचता की उसे सबिता छुटकारा मिल गया है, वोह फिर से आंधी की तरह वापिस आ जाती थी और उसकी जिंदगी को तहस नहस करके उसकी शांति भंग कर देती थी। ऐसा क्या था जो उसे उसकी तरफ खींचता था, क्यों उसकी तरफ खींचा चला जाता था, उसे नही पता था। बल्कि वोह जानना ही नही चाहता था की वोह उसके बारे मैं क्या सोचता है। हां पर यह सच था की उसके मन मैं हवस जरूर जागी थी जब उसने उसे पहली बार देखा था जिसे वोह धिक्कार नही सकता था। उसने अपने सिर से यह सारे ख्याल झटके और उस तरफ ध्यान देने लगा जिस वजह से वो यहां आया था। देव सबिता को देख रहा था जो की कुछ कदम नीलांबरी के कमरे में आगे रख कर वापिस पीछे मुड़ गई थी। देव को लगने लगा था जैसे सबिता अपने आस पास सब गहराई से और ध्यान से देख रही है जैसे पहली बार उस कमरे में आई हो। उसे कुछ अजीब लगने लगा था सबिता को देख कर। आखिर यह उसका हो तोह घर है। वोह घर जिसमे वो बड़ी हुई थी। देव अब भी उसे गौर से देख रहा था की सबिता ने फिर से उस चाकू का इस्तेमाल कर उस कमरे से ही जुड़े एक और कमरे का दरवाज़ा खोला जो की बैडरूम था।
सबिता कुछ कदम उस कमरे के अंदर बढ़ी ही थी की फिर रुक गई। अचानक रुकने की वजह से उसके पीछे आ रहे देव से वोह टकरा गई। देव ने तुरत हाथ बढ़ा कर उसके पेट पर पकड़ बना ली ताकि वो उसे गिरने से रोक सके नही तो वो खुद उसके ऊपर ही गिर जाता। जैसे ही सबिता संभली उसने देव को घूर कर देखा और फिर अपने हाथ उसके ऊपर से हटा लिए जैसे देव को कोई छूत की बीमारी हो। देव ने भी पलट कर उसे घूरा। वोह कुछ बोलता की आखिर उसकी प्रॉब्लम क्या है, उसकी आंखें एकदम से जम गई जब उसने उस कमरे की दीवारों की तरफ देखा। वोह सिर्फ एक कमरा नही था। बल्कि कुछ और ही था। दीवारों पर चारों ओर अलग अलग साइज की फोटो फ्रेम लगी हुई थी। सभी और हर एक फ्रेम में एक ही इंसान की तस्वीर थी......उसके पिता की।

"तुम्हारी बुआ तो सच में पागल है! उन्हे तो प्यार का जैसे जुनून सवार है।" देव ने कहा।

सबिता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वोह बस चुपचाप सभी फोटो फ्रेम्स को गौर से देख रही थी।
"यहां उनके हाथ के लिखे हुए खत भी हैं," सबिता ने धीरे से कहा।

देव उस तरफ गया जिस तरफ सबिता खड़ी थी। वोह बिलकुल सही थी। उन्हे कमरे में कुछ ढूंढना ही नही पढ़ा। उन खातों को फ्रेम करवा कर एक ओर दीवार पर टांग रखा था। वोह खत उसके पिता की तरफ से लिखे गए थे जब वो लंदन में पढ़ाई कर रहे थे। सबिता ने देव की तरफ अपनी नज़रे उठाई।

"हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। हमे जल्दी करना होगा इससे पहले की कोई यहां आ जाए कुछ ढूंढने।" सबिता ने कहा।

देव ने अपना सिर हिला दिया। "तुम यहां की दीवार की तरफ टंगी फ्रेम्स की फोटो खीच लो मैं उस तरफ से पिक्चर खीच लेता हूं," देव ने समझाते हुए कहा।

इस बार सबिता ने न ही बहस की और न ही पलट कर कुछ बोला। सबिता अपना फोन निकाल कर फोटो खींचने लगी। देव भी अपने फोन से फोटो खीच रहा था। जैसे दोनो का काम खतम हुआ सबिता देव की तरफ पलट गई।
"चलो अब यहां से।" सबिता ने कहा और ध्यान से दरवाजा बंद कर दिया। फिर वो सीढ़ियों से नीचे आने के लिए बढ़ने लगे।

"क्या तुमने पहले कभी भी अपनी बुआ के कमरे में वोह फ्रेम करी हुई फोटो और लैटर्स नही देखे थे?" देव ने पूछा।

कुछ पल रुक कर सबिता ने कहा, "नही। मैं पहले कभी भी उनके कमरे में नही गई।"

देव की भौंहे अपने आप ऊपर उठ गई। "किसी को भी उनके कमरे में आने की इज़जाज नही है? सफाई के लिए भी नही?"

"सिर्फ कुछ नौकरानियों को ही इजाज़त है।"

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जो देव को परेशान करने लगी थी। "तुम्हे आने की इजाज़त क्यों नही थी? तुम अपनी बुआ से बात करने कभी तोह गई होगी उनके कमरे में।"

सबिता एकदम चुप थी और उसके कंधे एकदम अकड़ गए। उसकी नज़रे अब देव पर चली गई।
देव को यह सब जान कर गुस्सा आने लगा था। नही, गुस्सा नही, बल्कि वोह आगबबूला हो चुका था। और उसका गुस्सा सबिता के लिए नही था। बल्कि नीलांबरी प्रजापति के लिए था। वोह औरत जिसने अपनी ही भतीजी को अपने कमरे में कभी आने नही दिया। उसे पक्का यकीन था की नीलांबरी अपनी भतीजी सबिता को खुद को छूने भी नही देती होगी, क्योंकि सबिता की मां किसी और जाती की थी। देव को ऐसी छोटी सोच वालो से सख्त नफरत थी। लेकिन वोह यह भी जानता था की इस तरह जातिवाद करने वाले लोग सिंघम राज्य में भी हैं। अभय और देव ने कई बार ऐसी मानसिकता को अपने लोगों के मन से दूर करने की कोशिश की थी लेकिन यह विचारधारा उनके मन में सालों से है और उन्हें विरासत में मिली है तो इतनी आसानी से उनकी सोच नही बदली सकती थी।

"मैं यह पिक्चर्स अनिका को भेज दूंगी," सबिता की आवाज़ ने देव की सोच को रोक लगा दी।

देव ने गंभीर रूप से सिर हिला दिया। जैसे ही वो दोनो सीढ़ियों से नीचे आए सामने उन्हे कुछ प्रजापतियों के आदमी खड़े दिखे।

"मैडम," उनमें से एक आदमी ने कहा।

"बीच की मंजिल पर आने जाने की रोक हटा दो," सबिता ने धीरे से आदेश दिया।

उस आदमी ने अपना सिर हिला दिया और उन दोनो को फिर से अकेला छोड़ कर वोह प्रजापतियों के आदमी चले गए।
देव सबिता को घूरता रहा, जबकि सबिता उसे अपनी आँखों में एक अजीब नज़र से देख रही थी।

इससे पहले की देव अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कुछ कहता, उसने देखा सबिता अपनी नज़र उस पर से हटा रही है।
"मैं तुम्हे बाद में साइट पर मिलती हूं," सबिता ने यूहीं कहा।
वोह आगे बढ़ने लगी। पर कुछ कदम चलने के बाद ही उसने रुक कर पीछे पलट कर देखा। वोह फिर उसे अजीब नज़रों से देखने लगी। इस बार फिर देव कुछ कहने ही वाला था की सबिता वापिस पलट गई और आगे बढ़ गई। देव भी उसके पीछे चलने लगा। देव और सबिता दोनो ही अब वापिस सबके पास लिविंग रूम में आ गए थे। बाकी के पूरे दिन भी देव की नज़र सबिता पर ही टिकी रही। देव उसे गौर से देख रहा था। सबिता कुछ दूरी पर व्हील चेयर के पास खड़ी थी। उसने अपना ज्यादा तर वक्त अपने दादाजी से ही बात करने में बिताया था।














________________________________________
(अगला भाग जल्द अपलोड करने की कोशिश करूंगी)