साहेब सायराना - 18 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साहेब सायराना - 18

ये अस्मा नाम की मोहतरमा भी खूब थीं!
हाथ धोकर पीछे ही पड़ गईं यूसुफ साहब के। जब- तब उनसे मिलने के मौक़े निकालती रहतीं। मज़े की बात ये थी कि कभी- कभी तो अपने शौहर तक को साथ ले आतीं। न जाने कैसे इन्हें खबर लग जाती कि दिलीप कुमार अपनी शूटिंग के सिलसिले में अभी कहीं घर से बाहर हैं और ये आ धमकतीं। इनका परिवार दिलीप साहब की बहनों के परिवार से काफ़ी करीब था अतः इन्हें दिलीप कुमार से मिल पाने में कहीं कोई दिक्कत भी नहीं पेश आती थी।
ये कोई नई नवेली हसीना नहीं बल्कि तीन- तीन बच्चों की मां थीं। पर नज़रों के हाथ एक बार देखे नज़ारे को बार - बार देखने पर मजबूर थीं।
लो! बतंगड़ तो बनना ही था।
फिल्मी रिसालों ने लिखना शुरू कर दिया कि दिलीप दूसरे प्रेम में हैं। कोई- कोई बात - बहादुर तो दूसरे निकाह की तस्वीर तक जुटा लाया।
गुत्थी उलझ गई।
लेकिन सायरा विचलित नहीं हुईं। उन्हें यकीन था कि उनके शौहर इस कदर जामे से बाहर नहीं जा सकते। उन्हें अपनी मां, अपने ख़ैरख्वाह दर्शकों और अपनी ख़ुद की शख्सियत पर पूरा ऐतबार था। ख़ुद सायराबानो भी तो फिल्मी सितारा थीं, तो जो कहती- सुनती थीं उसे मीडिया तवज्जो देती ही थी।
ये अनचाहा बादल भी दो साल गरज कर छंट गया।
फ़िर से दिलीप सायरा के और सायरा दिलीप की। दुनियां ने ये देख भी लिया और जान भी लिया।
जिन्होंने निकाह कराया था उन्होंने तलाक भी करवा छोड़ा। अफ़वाह के परिंदों के पर कतर दिए गए।
दिलीप कुमार अब फिल्मी पर्दे से लगभग दूर ही होने लगे थे। लेकिन ख़ास तौर पर उनके लिए लिखी भूमिकाओं वाली इनी- गिनी फ़िल्में कर भी रहे थे।
मनोज कुमार, शशि कपूर, हेमा मालिनी जैसे सितारों के साथ हालिया रिलीज़ फ़िल्म "क्रांति" ने एक बार फ़िर उनका समा बांध दिया था। नई नस्ल भी अपनी आंखों ये देख चुकी थी कि ये हैं दिलीप कुमार!
वो अमिताभ बच्चन जिन्होंने उस दौर की सारी हलचलें अपने नाम लिख डाली थीं, वो भी फ़िल्म "शक्ति" में दिलीप कुमार के साथ पर्दे पर आए। दर्शक दो युगों का आमना - सामना देख गदगद हो गए।
दिलीप कुमार के सम्मान में इज़ाफ़ा होता चला गया। पद्मश्री के बाद पद्मभूषण, पद्मविभूषण! और भी न जाने कौन- कौन से सम्मान। उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान भी मिला।
राजकपूर और दिलीप कुमार के साथ का जो सफ़र पाकिस्तान के पेशावर से शुरू हुआ था उसने इन दोनों की प्रचंड कामयाबी का असर पाकिस्तान के अवाम पर भी छोड़ा था। वहां दिलीप कुमार की पुश्तैनी मिल्कियत को भी सहेजा गया और उनकी ख्याति को पूरी तवज्जो दी गई। लेकिन एक विचित्र बात यह थी कि सायरा बानो का ज़्यादा लगाव पाकिस्तान से कभी नहीं रहा। शायद इसके पार्श्व में ये तथ्य कामकर रहा था कि इसी पाकिस्तान ने सायरा के पिता को उनसे दूर कर छोड़ा था। हो न हो, ये बात उनके अवचेतन में कहीं न कहीं दबी बसी रह गई होगी। वरना तो उनका भी परिवार कभी न कभी वहां से आया ही था। वहां उनके ताल्लुकात भी रहे ही होंगे।
लेकिन शायद सायरा बानो के व्यक्तित्व पर ब्रिटेन की छाया को निर्माता निर्देशक और एक्टर मनोज कुमार ने ज़रूर भांप लिया। सायरा वहां पढ़ कर आई थीं अतः वहां के तौर तरीके उनके लिए कोई नए नहीं थे। मनोज कुमार ने "पूरब पश्चिम" फ़िल्म में जब सायरा बानो से "ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार" गवाया तो सायरा पूरी अंग्रेजन ही नज़र आईं।
मज़े की बात यह थी कि यही अंग्रेजन जब गांव की गोरी बनी तो बिल्कुल ऐसी नज़र आई जैसे कोई पैदाइशी गांव की गोरी ही हो।
सायरा बानो की एक्टिंग की तारीफ़ चाहे फ़िल्म समीक्षक कभी नहीं करते थे लेकिन उनकी अभिनय रेंज का लोहा तो सभी मानते थे। सायरा ने छोटी सी उमर का प्रेमरोग भी पर्दे पर दिखाया तो भोलेपन से ये भी कह डाला कि दिल विल प्यार व्यार मैं क्या जानूं रे!