अगर तथाकथित जुमलेबाज़ी..लफ़्फ़ाज़ी या फिर चुटकुलों इत्यादि के उम्दा/फूहड़ प्रस्तुतिकरण को छोड़ दिया जाए तोवअमूमन कहा जाता है कि किसी को हँसाना या हास्य रचना आम संजीदा या दुख भरी रचनाओं के अपेक्षाकृत काफ़ी कठिन काम है। यही काम तब और ज़्यादा कठिन और दुरह हो जाता है जब आप एक पूरी सदी की चर्चित रचनाओं को छाँटने एवं एक साथ संजोने का कार्य अपने जिम्मे ले लेते हैं।
दोस्तों..इस कठिन कार्य को अपनी मेहनत..लगन और श्रम के बल पर मुमकिन कर दिखाया है हमारे समय के प्रसिद्ध व्यंग्यकार सुभाष चन्दर जी ने। जिनके संपादन में 2008 में आए इस संकलन को 'बीसवीं सदी की चर्चित हास्य रचनाएँ' नाम दिया गया है। इस संकलन के शुरुआती पन्नों में अब तक के उन साहित्यकारों/व्यंग्यकारों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने अपनी लेखनी के ज़रिए हिंदी के अब तक के उपलब्ध साहित्य में, कभी विशुद्ध हास्य के रूप में तो कभी अपने व्यंग्यों के द्वारा, हास्य की मात्रा में इज़ाफ़ा किया।
शीर्षकानुसार तो इस संकलन में सिर्फ़ हास्य से जुड़ी रचनाओं की ही मौजूदगी दर्ज होनी चाहिए थी मगर हमारे साहित्य में हास्य, व्यंग्य के साथ इस कदर घुलमिल गया है कि उनका अलग अलग वर्गीकरण अब कठिन और बेमानी सा प्रतीत होने लगा है। इस संकलन की रचनाओं में प्रेमचंद, सुदर्शन, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी इत्यादि से ले कर ज्ञान चतुर्वेदी, हरीश नवल और प्रेम जनमेजय जी जैसे अनेक व्यंग्य के धुरंधरों एवं पुरोधाओं की रचनाएँ शामिल हैं। आइए..अब चलते हैं इस संकलन में संग्रहित रचनाओं की तरफ़।
इस संकलन की किसी रचना में कोई नया दामाद पहली बार ससुराल जाने पर अपने पहलवान टाइप धाकड़ ससुरालियों के सामने अपनी वीरता की बड़ी बड़ी डींगे हाँकता तो दिखाई देता है मगर उसे जल्द ही आटे दाल का भाव सब पता चल जाता है। तो वहीं किसी अन्य रचना में कोई अधेड़ावस्था की उम्र में साइकिल चलाना सीखने की ठान तो लेता है मगर मज़ेदार उतारों चढ़ावों से भरी इस कहानी के अंत तक क्या वह अपने इरादे में कामयाब हो पाता है?
इसी संकलन की एक अन्य रचना खुराफ़ाती दोस्तों से दावत के बहाने जस का तस बदला लेने की बात कहती हुई नज़र आती है। तो वहीं किसी अन्य रचना में पिता के आए तार के बाद मेहमानों को मोटर गाड़ी द्वारा स्टेशन से ले कर आने के दौरान जो ऊधम और हाय तौबा मचती है कि बस पूछो मत। एक अन्य रचना में ओवर ईटिंग के बाद हुए पेट दर्द को ले कर लेखक की जो हालात होती है कि यार दोस्तों और रिश्तेदारों की सलाह पर वह कोई डॉक्टर.. कोई वैद्य..कोई हकीम..कोई होम्योपैथी डॉक्टर..कोई ओझा/तांत्रिक नहीं छोड़ता लेकिन उसे आराम नहीं मिलता।
इसी संकलन की एक अन्य मज़ेदार रचना में राय इकबाल शंकर के हाथ मरम्मत माँगती एक बेशक़ीमती एंटीक डायनिंग टेबल कौड़ियों के दाम लग जाती है। जिसे बहुत ही महँगे दाम पर खरीदने के लिए एक पारखी एंटीक डीलर उनके घर डिनर पर आ तो रहा है मगर...
इसी संकलन की किसी अन्य रचना में जेल का जेलर प्रेम पत्रों के माध्यम से अपनी पत्नी से रोमांस करने का प्रयास करता नज़र आता है। तो किसी अन्य रचना में संपादक द्वारा रचना को अस्वीकार कर दिए जाने के बाद उसी रचना को लेखक द्वारा महिला के नाम से भेजा जाता है जो झट से स्वीकार कर ली जाती है मगर...
इसी संकलन की एक अन्य मज़ेदार रचना 'बात के बतंगड़ बनने की बात कहती हुई उन लोगों पर ग़हरा कटाक्ष भरा प्रहार करती नज़र आती है। जो दूसरे की बात ध्यान से सुनने के बजाय खुद ही इतना ज़्यादा बोलने लगते हैं कि सामने वाला चाह कर भी अपने मन की बात नहीं कह पाता। तो वहीं किसी अन्य रचना में ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना करते वक्त स्त्रियों को चन्द्रमा पर और पुरुषों को पृथ्वी पर बसाने की मज़ेदार कहानी है। तो वहीं किसी अन्य रचना में मोटर ड्राइविंग स्कूल के बहाने देश के अकुशल नेताओं पर ग़हरा कटाक्ष होता नज़र आता है। कहीं किसी अन्य रचना में बच्चों के नामकरण में अनोखे..अनूठे व अजब गज़ब नाम उनकी आदतों या भविष्य में उनके द्वारा किए जाने वाले व्यवसायों को ध्यान में रख कर रखे जा रहे हैं।
इसी संकलन की किसी अन्य रचना में जहाँ एक तरफ़ कुकुरमुत्ते के माफ़िक जगह जगह उग पैसे कमाने की मशीन बन चुके इंग्लिश मीडियम स्कूलों पर गहरा कटाक्ष होता नज़र आता है। तो वहीं दूसरी तरफ़ किसी अन्य रोचक रचना में सिग्रेट छोड़ने की शर्त पर पत्नी, पति से जुए की तर्ज़ पर पैसा लगा, साँप-सीढ़ी का खेल खेलती नज़र आती है। किसी अन्य मज़ेदार रचना में बिचौलिए द्वारा दोनों तरफ़ की झूठी तारीफ़ें कर के रिश्ता पक्का कराया जा रहा है। तो कहीं स्विस खाते बनाम देसी खातों की तर्ज़ पर गाँव में बचत खाते खुलवाने की क़वायद होती नज़र आती है।
किसी अन्य रचना में कॉलेज के सभी प्रोफेसरों में से साढ़े चार गुप्त रोगियों को ढूंढ़ने की कवायद होती दिखाई देती है। तो किसी अन्य रचना में बतौर अच्छा पड़ोसी होने के नाते कोई अपनी बलां दूसरे के सिर पर लादता दिखाई देता है। किसी रचना में ड्यूटी के वक्त सरकारी दफ़्तरों का स्टॉफ आपसी सहयोग एवं समर्थन से ताश खेलता दिखाई देता है। तो किसी अन्य रचना में लेखक, हजामत बनवाने और ना बनवाने के भंवर में फँस, हर तरफ़ से आलोचना झेलता नज़र आता है।
कहीं किसी बारात में बाराती अपनी चप्पलों को चोरी होने से बचाने की कवायद में हर समय जुटे नज़र आते हैं। तो कहीं किसी रचना में चेपू दोस्त की रोज़ रोज़ की मेहमाननवाजी करने से बचने के चक्कर में लेखक खुद ही अपने घर को ताला लगा परिवार समेत उड़नछू हो..इधर उधर छिपता दिखाई देता है।
कहीं किसी रचना में लेखक के दोस्त की पत्नी अपने पति की बार बार भूलने की आदत से परेशान दिखाई देती है। तो कहीं किसी अन्य मज़ेदार रचना में खूबसूरत बीवी, पति और जवान नौकर के बीच कुछ ऐसा घटता है कि पति से ना छुपाए बनता है और ना ही बताए बनता है। कहीं किसी अन्य रचना में देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकारों के नाम पाठकों के मज़ेदार शैली में लिखे गए पत्र पढ़ने को मिलते हैं।
तो कहीं किसी अन्य रचना में इस बात की तस्दीक होती दिखाई देती है कि.. कई बार किसी के यहाँ मेहमान बन कर जाने पर भोजन के समय हम भरपेट खाने में संकोच तो कर जाते हैं मगर पेट भला कब..कहाँ.. किसकी सुनता है?
इस संकलन की कुछ रचनाएँ हँसने के अच्छे मौके तो कुछ अन्य रचनाएँ मुस्कुराने के पल दे सुकून से भर देती हैं।
इस संकलन की कुछ रचनाएँ जहाँ एक तरफ़ मुझे बेहद उम्दा लगी तो दूसरी तरफ़ कुछ ठीकठाक और कुछ बस औसत ही लगी। जो रचनाएँ मुझे बेहद पसंद आयी। उनके नाम इस प्रकार हैं।
1. स्वांग- प्रेमचंद
2. साइकिल की सवारी- सुदर्शन
3. चिकित्सा का चक्कर- बेढब बनारसी
4. बिजली चमकने का रहस्य- जगदीश नारायण माथुर
5. सौदा हाथ से निकल गया - भगवती चरण वर्मा
6. कयामत का दिन -अमृत लाल नागर
7. देवर की मिठाई - चिरंजीलाल पाराशर
8. तुम्हीं ने मुझको प्रेम सिखाया- शरद जोशी
9. चंद्रमा की सच्ची कथा- रवीन्द्रनाथ त्यागी
10. दि ग्रेंड मोटर ड्राइविंग स्कूल - श्रीलाल शुक्ल
11. नाम चर्चा- नरेन्द्र कोहली
12. संदलवुड चिल्ड्रन स्कूल- के.पी.सक्सेना
13. जब श्रीमती जी ने जुआ खेला - आनन्द प्रकाश जैन
14. ब्रह्म वाक्य - कृष्ण चराटे
15. और वे देसी खाते- ज्ञान चतुर्वेदी
16. साढ़े चार गुप्त रोगी, तीन दिन की गुप्तचरी - हरीश नवल
17. अच्छा पड़ोसी- प्रेम जनमेजय
18. नया ज़माना- हरदर्शन सहगल
19. मैंने हज़ामत बनवायी- रमाशंकर श्रीवास्तव
20. लुकाछिपी का खेल - हरिजोशी
21. भुलक्कड़ भाईसाहब - रौशन लाल सुरीरवाला
22. अंधेरा- रामचन्द्र चेट्टी
23. मेहमान साहब- डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल
24. डाकू- सरयू पंडा गौड़
25. नौटंकी में- अश्विनी कुमार दुबे
26. जब हम बाहर घूमने गए- संतोष खरे
27. किशोर की मूँछें- शांति भटनागर
28. प्रेम की संभावनाएं- जगत सिंह बिष्ट
29. पड़ोसी हों तो ऐसे- सुभाष चन्दर
30. नौकरानी कथा- श्रवण कुमार उर्मलिया
31. पत्नी की बीमारी- सुधीर ओखदे
32. दामाद साहब- चन्द्रमोहन मधुर
33. साहब की भैंस- प्रभाशंकर उपाध्याय 'प्रभा'
34. टूटी टाँग की टूर- टूर- डॉ. बापू राव देसाई
हास्य रचनाओं के इस 336 पृष्ठीय बढ़िया संकलन के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है भावना प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 400/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रकाशक, संपादक एवं विद्यमान रचनाकारों को बहुत बहुत शुभकामनाएं