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अंत... एक नई शुरुआत - 13

काश,कितनी संभावनाएं रखता है ये शब्द खुद में न और कितनी बेबसी भी!न जाने कितनी बार हम सब सोचते हैं कि काश ऐसा होता कि काश ऐसा न होता मगर हमारे सोचने से तो सबकुछ नहीं होता न!कुछ बातें तो सिर्फ नियति पर ही निर्भर करती हैं।आज न जाने क्यों मेरा मन बड़ी ही दार्शनिक बातें करने का कर रहा है,कहीं ये आजकल हमारे घर में हर वक्त चलने वाले दार्शनिक टीवी चैनलों का तो असर नहीं!!

आजकल ऊषा देवी के कमरे में हर वक्त भक्ति और दर्शन के ही प्रोग्राम टीवी पर चलते रहते हैं और वो सनी को भी बहुत अच्छी-अच्छी बातें सिखाती और सुनाती रहती हैं।

वो आजकल सनी के साथ काफी समय बिताने लगी हैं।कभी वो उसे शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से अच्छे आचरण और अच्छे विचारों की शिक्षा देती हैं तो कभी उसे अपने साथ बिठाकर कोई नैतिकशिक्षा का प्रोग्राम टीवी पर दिखाती हैं। इसके अलावा वो अब किसी-किसी दिन सनी को अपने साथ अपने बिस्तर पर सुलाने भी लगी हैं।उनके सनी के प्रति बढ़ते हुए इस स्नेह और प्रेम से मैं बहुत खुशी और संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ।मैं हमेशा से यही चाहती थी कि मेरे परिवार में सकारात्मकता और सुकून का माहौल रहे मगर समीर के रहते हुए इस तरफ़ की गई मेरी सारी कोशिशें हमेशा ही नाकामयाब रहीं और जब आज मैं कुछ वैसा ही मनचाहा माहौल इस घर में देख रही हूँ तो रह-रहकर बस यही ख्याल मेरे मन में आता है कि काश!काश ये सब समीर के सामने संभव हो पाता तो कितना अच्छा होता!!

आज स्मिता मैम का रिटायरमेंट है और उन्होंने मुझे इंस्टीट्यूट बुलाया है वहाँ उनके लिए इंस्टीट्यूट वालों ने एक रिटायरमेंट-पार्टी आयोजित की है।मैंने उनके लिए उपहारस्वरूप एक डायरी खरीदी है क्योंकि उन्हें डायरी लिखने का बहुत शौक है जिसका पता मुझे इंस्टीट्यूट में कोर्स के दौरान ही चला था।दरअसल एक बार उन्होंने खुद ये बात हमारे क्लास में सभी लड़कियों के बीच में तब बताई थी जब वो हमें डायरी लिखना एक अच्छी आदत है पर एक प्रोजेक्ट करवा रही थीं।वैसे तो आज मैं उनके लिए उपहार में कुछ और भी लेना चाहती थी मगर मैं जानती हूँ कि वो किसी से भी कोई कीमती उपहार लेना पसंद नहीं करतीं तो फिर मैं उनके लिए और कुछ भी लेजाकर उन्हें किसी भी प्रकार के धर्मसंकट में नहीं डालना चाहती।

माँ यानि कि मैम की पार्टी सचमुच बहुत शानदार थी।इंस्टीट्यूट के पूरे स्टाफ़ ने उनका बहुत अच्छा सम्मान किया।सभी लोग उनकी इस विदाई से बहुत दुखी थे और उनकी आँखें भी आज नम थीं।हमेशा हर एक विषम से विषम परिस्थिति में भी मुस्कुराने वाली मेरी माँ,मेरी स्मिता मैम की आँखों में आज पहली बार मैंने नमी तैरते हुए देखी।आज उन्होंने मुझे सबके सामने अपने गले से लगा लिया और मुझे अपनी बेटी बताते हुए सबसे मेरा परिचय भी करवाया।आज उनके गले लगकर मैं एक बार फिर से बहुत जज़्बाती हो गई थी मगर फिर वहाँ मौजूद लोगों में से ही किसी ने कहा कि बेटा विदाई आपकी नहीं बल्कि आपकी माँ की है जिसपर हम सब रोते-रोते हंस दिये।

प्रोग्राम खत्म होने के बाद मैं मैम के साथ उनकी गाड़ी में ही आयी और उन्होंने आज रास्ते में मुझसे बहुत सारी अपने मन की बातें साझा कीं।जिसमें कि सबसे अहम बात ये थी कि वो आज जितनी जज़्बाती अपने प्रोफ़ेशनल लाइफ़ से विदा लेने पर हैं उतनी ही जज़्बाती वो आज अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर भी हैं।वो ये सोचकर आज बहुत ही खुश और उत्साहित हैं कि अब वो सर के साथ हर वक्त रह पायेंगी और उन्हें अपना पूरा समय दे पायेंगी।उन्होंने मुझसे कहा कि सुमन आज मुझे जितना दुख अपने इंस्टीट्यूट के छूटने का हो रहा है उतनी ही खुशी मुझे अब तुम्हारे पापा के पास लौटने की भी हो रही है।

उनके द्वारा अंजाने में बोले गए इस एक शब्द नें मुझे फिर से मेरे घावों को कुरेदने पर मजबूर कर दिया।पापा!सच कहूँ तो एक समय नफ़रत थी मुझे इस शब्द से मगर आज मुझे इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता।जबसे मेरी माँ इस दुनिया से गई मैंने अपनी ज़िंदगी के हमेशा ग्रहण बने रहे इस शब्द को भी तिलांजलि दे दी।

क्रमशः...

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐


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