Vaishya ka bhai - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

वेश्या का भाई - भाग(१६)

गुलनार और नवाबसाहब को ये मालूम नहीं चला कि उन दोनों की बातें परदे के पीछे से बहु-बेग़म सल्तनत सुन रहीं थीं,दोनों की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए सल्तनत फौरन ही सादे कपड़ो में बुर्का डालकर एक नौकर से मंगल की कोठरी का पता पूछते हुए वहाँ जा पहुँचीं,वहाँ मंगल तो मौजूद नहीं था लेकिन रामजस मौजूद था,वो शायद दोपहर का खाना खाने आया था,तभी सल्तनत ने रामजस से पूछा....
मंगल कहाँ हैं?
जी! अभी वें कुछ देर पहले ही यहाँ से खाना खाकर गए हैं,रामजस बोला।।
ओहो....तब तो देर हो गई हमें,सल्तनत बुर्के के भीतर से ही बोली।।
जी! आपको कोई काम था उनसे ,रामजस ने पूछा।।
जी! हाँ! काम बहुत जरूरी था नहीं तो हम यहाँ पर क्यों आते ?सल्तनत बोली।।
जी!आप मुझे वो जरूरी काम बता दें मैं उनसे कह दूँगा,रामजस बोला।।
वही तो बात है कि हम किसी पर भरोसा नहीं कर सकते,वो बात अगर नवाबसाहब तक पहुँच गई तो वो हमारी जान ही ले लेगें,सल्तनत बोली।।
तो क्या वो बात नवाबसाहब से भी जुड़ी है?रामजस ने पूछा।।
जी! हाँ! बात बहुत जरूरी है,अगर मंगल को वक्त रहते पता ना चली तो वो गुलनार ना जाने मंगल का क्या हस्र करेगीं,सल्तनत बोली।।
गुलनार वही जिनका कोठा है,रामजस ने पूछा।।
हाँ !वही! लेकिन आप को कैसे मालूम?सल्तनत ने पूछा।।
जी! मैं मंगल भइया के कहने पर उनकी बहन से मिलने वहाँ गया था,रामजस बोला।।
ओहो....तो इसका मतलब आप सबकुछ जानते हैं,सल्तनत ने पूछा।।
जी!हाँ! मुझे मंगल भइया सबकुछ बता चुके हैं ,रामजस बोला।।
तो फिर आपसे कैसा पर्दा ? और इतना कहकर सल्तनत ने अपने चेहरे से बुर्का हटा दिया,तब रामजस ने सल्तनत के चेहरे को देखा तो बोल पड़ा....
बहु-बेग़म! आप और यहाँ पर,क्या ख़ास काम था मंगल भइया से ?
हम ये कहने आए थे कि थोड़ी देर पहले गुलनार नवाबसाहब से मिलने आई थी और नवाबसाहब ने मंगल के खिलाफ साजिश रची उन्होंने गुलनार से कहा कि वें केशर को समझाएं और अगर केशर ना माने तो उन पर लठैतों से हमला करवाएं,क्योकिं जब मंगल ही नहीं रहेगा तो फिर केशर किसके दम पर आवाज़ उठाएगी इसलिए आप मंगल भाईजा़न से कहिएगा कि वें जरा एहतियात बरतें गुलनार कुछ भी कर सकती है,सल्तनत बोली।।
जी मैं आपका पैगाम उन तक जरूर पहुँचा दूँगा,आप इत्मीनान रखें बहु-बेग़म,रामजस बोला।।
तो अब हम चलते हैं,हमें किसी ने यहाँ देख लिया तो कहीं ये बात नवाबसाहब तक ना पहुँच जाएं,सल्तनत बोली।।
ठीक है,रामजस बोला।।
और फिर सल्तनत वहाँ से चली आई लेकिन सल्तनत को नहीं मालूम था कि नवाबसाहब बहुत ही शातिर किस्म के हैं उन्होंने सल्तनत को रामजस और उनके बीच हो रही बाते करते सुन लिया था,वें जानते थे कि बहु-बेग़म कुछ ऐसा ही करने वालीं हैं,इसलिए उन पर नज़र बनाए हुए थे।।
फिर जब सल्तनत अपने कमरें में पहुँची तो नवाबसाहब वहाँ पहले से ही मौजूद थे और उन्हें देखकर सल्तनत कुछ डर सी गई लेकिन तब भी उसने खुद को सम्भालते हुए नवाबसाहब से पूछा....
अरे! आप ! हमारे कमरें में और इस वक्त,कुछ जुरूरी काम था क्या?
जी! नहीं! फुरसत बैठे थे तो सोचा आप से ही मिल आएं,वैसे आप कहाँ से आ रहीं हैं?नवाबसाहब ने पूछा।।
बस,वो हमारी नौकरानी नूरन है ना ! आज आई नहीं,हमें उसकी फिक्र हुई तो उसकी खैरियत पूछने चले गए थे ,सल्तनत बोली।।
तो क्या पता चला?नवाबसाहब ने पूछा।।
उसके बेटे की तबियत ख़राब़ है इसलिए नहीं आई,सल्तनत बोली।।
झूठ बोलतीं हैं आप!नवाबसाहब चीखें।।
नहीं! हमने आपसे कुछ झूठ नहीं कहा,सल्तनत बोली।।
क्योकिं नूरन देखिए वो रही,नवाबसाहब ने झरोखे की ओर इशारा करते हुए कहा,
वो तो अभी आई है,सल्तनत बोली।।
हमें सब मालूम है कि आप मंगल की कोठरी में गई थीं,उसे ख़बर देने कि गुलनार यहाँ हमसे गुफ्तगू करने आई थीं,आप जैसी औरतों ने ही अपने शौहरों का जीना हराम कर रखा है,आप हमारी ही मुखबिरी करने चलीं थीं,कुछ तो लिहाज किया होता कि आप इस ख़ानदान की बहु-बेग़म है उस दो कौड़ी के नौकर की इतनी फिक्र करना क्या आपको ठीक लगता है?नवाबसाहब बोले।।
जब आपको अपने खानद़ान की फिक्र नहीं तो हमसे खानद़ान की फिक्र करने की उम्मीद क्यों रखते हैं?और नौकर से पहले वो एक इन्सान है और हम भी एक इन्सान होने के नाते उसकी मदद कर रहे थे,सल्तनत बोली।।
तो क्या आप हमारे खिलाफ जाएगीं,नवाबसाहब बोले।।
अगर कुछ अच्छा करने के लिए ऐसा करना पड़े तो ऐसा ही सही,सल्तन बोली।।
कहीं आपकी अक्ल पर पत्थर तो नहीं पड़ गए जो आप ऐसा कह रहीं हैं,नवाबसाहब ने पूछा।।
नहीं! अक्ल पर पड़े पत्थर अब हट गए हैं,एक औरत होने के नाते अगर हम दूसरी औरत की मदद ना कर सकें,उसके आँसू ना पोछ सकें तो लानत है हमारी जिन्दगी पर,सल्तनत बोली।।
हमें आपकी बकवास सुनने की फुरसत नहीं है,हमें मालूम है कि आपको मंगल कोठरी में नहीं मिला ,आप रामजस से सब बताकर आईं हैं,अब रामजस की खैर नहीं,अब हम यहाँ से जाते हैं और इतना कहकर नवाबसाहब सल्तनत के कमरें से चले गए।।
अब नवाबसाहब के मन में खौंफ पैदा हो गया था इसलिए उन्होंने रामजस को कुछ लठैतों की मदद से उठवा लिया और हवेली के एक अँधेरें कमरें में बंद करवा दिया,जब मंगल कोठरी में लौटा तो रामजस को वहाँ ना देखकर कुछ परेशान सा हो गया,उसने शाम तक रामजस का इन्तजार किया फिर वो खाना बनाने में लग गया क्योकिं ज्यादातर रामजस ही खाना बनाया करता था जब वो नहीं लौटा तो मंगल ने सोचा आता ही होगा आज का खाना मैं ही तैयार किए देता हूँ,खाना बनाते हुए रात भी हो गई लेकिन रामजस अब भी ना लौटा।।
मंगल को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें? तभी सल्तनत की नौकरानी नूरन वहाँ डरी-सहमी सी पहुँची उसे सल्तनत ने मंगल के पास भेजा था और उसने मंगल को सारी बातें बता दी जो जो सल्तनत ने कहने को कहीं थीं,नूरन ने ये भी बताया कि नवाबसाहब ने रामजस को इसी हवेली की किसी कोठरी में कैद़ रखा है,बहु-बेग़म ने खुद देखा था लठैतों को रामजस को ले जाते हुए,अब मंगल को सारी बात समझ में आ गई थी कि नवाबसाहब से मदद मिलना नामुमकिन है वें नहीं चाहते कि कुशमा कोठे से रिहा हो ।।
इतना कहकर नूरन वहाँ से चली गई,लेकिन अब मंगल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें? कहाँ से रामजस को खोजे,वो इसी फिकर में अपनी कोठरी में यहाँ वहाँ टहल रहा था,
और उधर सल्तनत नवाबसाहब के बाहर जाने का इन्तजार कर रही थी,जैसे ही नवाबसाहब हवेली से बाहर निकले तो सल्तनत जा पहुँची उस कमरें की ओर जहाँ रामजस को कैद़ किया गया था,सल्तनत एक छोटे रोशनदान से उस कमरें में घुसी,अन्दर बहुत अन्धेरा था उसे कुछ भी दिखाई ना देता था इसलिए उसने पहले कमरें के झरोखे को खोला जहाँ से चाँद की रोशनी आ रही थी,अल्लाह के करम से उस दिन चाँदनी रात थी और वो उस रोशनी में रामजस को कमरें में ढूढ़ने लगी ,तभी सल्तनत को उस कमरें के एक कोने में रामजस पड़ा मिला,
सल्तनत उसके पास पहुँची और उसने सबसे पहले रामजस के मुँह पर बँधी हुई पट्टी खोली फिर उसके हाथ पैर खोले,सल्तनत की कलाइयों की खनकती हुई चूड़ियों की आवाज़ से रामजस ने फौरन पहचान लिया कि वो कोई औरत हैं और फिर रामजस ने उस औरत से पूछा।।
कौन? ....कौन हैं आप! जो मेरी मदद करने आईं हैं।।
मैं सल्तनत! इस हवेली की बहु-बेग़म॥॥
ओह....बहु-बेग़म ! आप मेरी मदद करने यहाँ तक आ पहुँचीं,रामजस बोला।।
हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है,पहले आप यहाँ से फौरन निकले,आपकी जान को खतरा हो सकता है,सल्तनत बोली।।
क्या मुझे यहाँ नवाबसाहब ने कैद़ करवाया है? रामजस ने पूछा।।
हमने कहा ना कि अभी आपके सवालों के जवाब देने का वक्त नहीं है,बाद में बात करते हैं ,पहले आप ये बुर्का पहन लेंं और इस रौशनदान से निकलने की कोश़िश करें,सल्तनत बोली।।
ठीक है और इतना कहकर रामजस रोशनदान से बाहर आ गया और पीछे से सल्तनत भी आ गई,दोनों छुपते छुपाते हवेली में आ गए,सल्तनत अपने कमरें में चली गई और रामजस अपनी कोठरी में आ पहुँचा....
मंगल काफ़ी चिन्ता में था कोठरी के किवाड़ खुले हुए थे और वो कोठरी में टहलकर रामजस को कैद़ से निकालने का कुछ उपाय सोच रहा था,तभी रामजस को मसखरी सूझी और वो कोठरी में घुसा और औरत की आवाज़ में बोला....
क्या आप ही मंगल हैं?
उस औरत को देखकर मंगल कुछ चौंका फिर बोला...
जी! मैं ही मंगल हूँ,कहिए क्या काम है?
जी! हमने सुना था कि आप निकाह़ करने की चाहत रखते हैं,औरत बना रामजस बोला।।
जी! बिल्कुल नहीं! ऐसा आपसे किसने कहा? मंगल ने पूछा।।
जी! हमें कुछ ऐसा ही मालूम चला है,रामजस बोला।।
आप हैं कौन? और इतनी रात गए मेरी कोठरी में क्या कर रही हैं?मंगल ने पूछा।।
हमारा दिल आ गया है आप पर और हम आपसे निकाह़ की चाहत रखते हैं,अगर आप तैयार हैं तो कहें,औरत बने रामजस ने पूछा।।
कौन हैं आप! शरीफ़ घर की लड़कियांँ यूँ रात गए किसी मर्द की कोठरी में नहीं जाया करतीं,मंगल बोला।।
आप हमारे सुकून हैं,दिल के करार हैं,हमारी इल्तजा मान लीजिए,हमें आपसे मौहब्बत हो गई है,रामजस बोला।।
अभी दो थप्पड़ में आपके होश ठिकाने हुए जाते हैं,मंगल बोला।।
क्या आप एक औरत पर हाथ उठाऐगें? मंगल बोला।।
क्यों नहीं?और मंगल ने रामजस का बुर्का खीचते हुए कहा....
मुझे इतनी देर से उल्लू बना रहे हों।।
मंगल भइया तुमने कैसे पहचाना? रामजस ने पूछा।।
ये जो तुम्हारी कलाई में तुम्हारा नाम गुदा हुआ है उससे,मंगल बोला।।
अच्छा!तो ये बात है,रामजस बोला।।
हाँ! यही बात है और कहाँ थे अब तक नूरन तो कहकर गई थी कि तुम्हें नवाबसाहब ने कैद कर रखा था मंगल ने पूछा।।
हाँ! बहु-बेग़म ने छुड़ाया और ये बुर्का देकर बोली कि पहन लो ,तुम्हें कोई पहचानेगा नहीं,रामजस बोला।।
ठीक है इसका मतलब है कि हम दोनों की जान को यहाँ ख़तरा है,मंगल बोला।।
हाँ! मंगल भइया! रामजस बोला।।
तो पहले जल्दी से खाना खा लेते हैं फिर यहाँ से भाग चलते हैं,मंगल बोला।।
हाँ! मंगल भइया!दोपहर से प्यास लगी है और अब तो भूख भी लग आई हैं,कुछ खाकर यहाँ से भाग चलते हैं,रामजस बोला।।
अच्छा तुम जल्दी से हाथ मुँह धोकर आओ मैं खाना परोसता हूँ,मंगल बोला।।
और फिर रामजस जैसे ही हाथ मुँह धोकर आया तो दोनों खाना खाने बैठ गए।।

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....


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