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वेश्या का भाई - भाग(६)

इन्द्रलेखा और कुशमा इस बात से बेख़बर थी कि उनके पीछे जमींदार गजेन्द्र लठैतों की फ़ौज लेकर आ रहा है जिनके हाथों में मशालें भी थी और साथ में मुनीम भी था,दोनों इस ताक में थीं कि कब उन्हें पक्की सड़क मिल जाए जिससे किसी मदद मिल सकें,लेकिन इतनी दूर चलने के बावजूद भी उन्हें पक्की सड़क ना मिली और पीछे से गजेन्द्र और उसके लठैत दोनों को खोजते हुए पहुँच ही गए उनके पास और फिर जमींदार गजेन्द्र जोर से चिल्लाया.....
इन्द्रलेखा....रूक जा....!
लेकिन इन्द्रलेखा ना रूकी उसने अपनी रफ्तार और भी बढ़ा ली,कुशमा का हाथ थामें वो बस आगें ही बढ़ रही थी,उसे रुकता ना देख गजेन्द्र एक बार फिर से गरजा...
इन्द्रलेखा...रूक जा,नहीं तो इसका अन्ज़ाम अच्छा ना होगा....
इन्द्रलेखा रूकी और पलटकर बोली....
जमींदार साहब! अब अन्ज़ाम जो भी हो,मैं पीछे हटने वाली नहीं,मेरे जीते जी आप इस लड़की को अपने साथ नहीं ले जा सकते,मैं इससे वायदा कर चुकी हूँ कि मैं इसे आपकी कैद़ से आज़ाद करा कर रहूँगी।।
तू इसे बाद में आज़ाद कराना,पहले मैं तुझे इस दुनिया से आजाद करता हूँ और इतना कहकर गजेन्द्र ने इन्द्रलेखा पर गोली चला दी,इन्द्रलेखा अपना बचाव करते हुए बगल में हट गई और गजेन्द्र का निशाना चूक गया लेकिन जब तक गजेन्द्र दूसरा निशाना साधता तब तक इन्द्रलेखा ने गजेन्द्र पर गोली दाग़ दी और वो गोली सीधे जाकर गजेन्द्र के माथे पर लगी और वो वहीं ढ़ेर हो गया,
गजेन्द्र को ढ़ेर होता देख मुनीम सदमे में आ गया और उसने आव देखा ना ताव गजेन्द्र की बंदूक उठाकर इन्द्रलेखा पर दो गोलियांँ दाग़ दी,इन्द्रलेखा तड़पती हुई जमीन पर गिर पड़ी उसे तड़पता देख कुशमा के आँसू निकल पड़े और वो इन्द्रलेखा को उठाते हुए बोली....
नहीं जमींदारन जी आप को कुछ नहीं होगा,उठिए....जल्दी से उठिए...हमें यहाँ से भागना है...
लेकिन फिर इन्द्रलेखा ने एक हिचकी ली और उसकी साँसों की डोर टूट गई....
अब मुनीम का रास्ता बिल्कुल साफ हो गया था,वो असहाय कुशमा को अपने संग ले गया ,उसने जमींदार गजेन्द्र,इन्द्रलेखा और उसके दोनों बेटों का अन्तिम संस्कार करवाया और खुद हवेली का मालिक बन बैठा लेकिन अब इस बार कुशमा चुप ना रह सकीं, एक दिन मौका पाकर वो मुनीम के चंगुल से भाग निकली और पक्की सड़क तक पहुँच गई,वहाँ एक मोटर वाला उसकी मदद करने को तैयार हो गया,
वो उसे पुलिसचौकी ले गया,वहाँ कुशमा ने अपनी रिपोर्ट दर्ज कराई ,उस मोटरवाले ने कुशमा की रिपोर्ट दर्ज कराने में भी उसकी मदद की,फिर वो मोटर वाला अपने रास्ते चला गया,ब्रिटिश पुलिस ने कुशमा की रिपोर्ट पर फौरन कार्यवाही शुरू की और मुनीम को धर-दबोचा,मुनीम के खिलाफ कड़ी सजा मुकर्रर हुई और उसे उम्रकैद़ की सजा हुई फिर पुलिस ने कुशमा को नारीनिकेतन भेज दिया जहाँ इसी तरह की और भी असहाय लड़कियाँ और औरतें थी।।
कुशमा को लगा कि अब उसकी जिन्दगी सँवर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं था,उसे वहाँ रहते हुए पता चला कि ये नारीनिकेतन नहीं है,यहाँ औरतों और लड़कियों का कारोबार होता है,उनके खरीदार आते हैं और दाम देकर उन्हें खरीद लेते हैं,जितना सुन्दर चेहरा उतना ही ऊँचा दाम।।
कुशमा को ऐसा लगा कि वो एक दलदल से आकर दूसरे दलदल में फँस गई है और फिर एक दिन आखिर कुशमा का भी एक खरीदार आ पहुँचा,उसे किसी नवाब ने ऊँचे दाम चुकाकर खरीद लिया था,नवाब उसे अपनी हवेली में ले आया,उसके लिए अलग से एक सुन्दर कमरा तैयार किया गया,जहाँ कुशमा अपनी दो नौकरानियों के साथ रहने लगी,नवाब ने उसके लिए खूबसूरत-खूबसूरत लिबास़ तैयार करवाएं,मोतियों और रत्नों के खास़तौर पर नए गहने गढ़वाए,कुशमा को लगा कि शायद अब उसकी जिन्दगी एक नया मोड़ ले लेकिन शायद कुशमा के नसीब को ये भी मंजूर ना था।।
नवाब की दो बेग़में पहले थी जिन्हें कुशमा से रश्क था और वें जल्द से जल्द कुशमा को हवेली से निकालना चाहती थीं क्योकिं कुशमा की वजह से नवाब उन दोनों से दूरियाँ रख रहें थें और ये दोनों बेग़में को नामंजूर था कि उनका शौहर किसी और औरत की खूबसूरती का क़ायल हो जाए,वैसे दोनों बेग़मों को भी एकदूसरे से कम रश्क ना था लेकिन अब वें कुशमा को हवेली से निकालने के लिए एक हो गईं थीं।।
इस काम के लिए छोटी बेग़म ने अपने भाई को बुलवा भेजा,उसे छोटी बेग़म ने सारी बात कह डाली,छोटी बेग़म का भाई बोला.....
आप बेफिक्र रहें आपका काम हो जाएगा।।
दोनों बेग़में अपने मन्सूबों में कामयाब हो गई थीं,छोटी बेग़म ने अपनी एक क़नीज़ के हाथों कुशमा के खाने में बेहोशी की दवा मिलवा दी और उसके हाथ-पैर बाँधकर मुँह पर पट्टी बाँध दी कि अगर कुशमा को गलती से होश आ भी जाएं तो वो चीख ना सकें,फिर खाना खाते ही कुशमा बेहोश हो गई और छोटी बेंग़म का भाई रातोंरात कुशमा को उठाकर अपने गेहूँ के गोदाम में ले गया।।
वहाँ ले जाकर उसने जैसे ही कुशमा के मुँह की पट्टी खोली तो वो उसकी खूबसूरती का कायल हो गया,उसके हुस्न पर फ़िदा हो गया,वो जब तक बेहोश रही तो ख़ालिद़ उसे बड़े प्यार से देखता रहा,कुशमा जब होश में आई तो खालिद को देखकर चीख पड़ी,ख़ालिद ने जल्दी से अपने हाथों से कुशमा का मुँह बंद किया और उससे बोला....
ए..हुस्न की मलिका!क्या तुम मुझसे निक़ाह करोगी?
लेकिन अब कुशमा को मर्दजात से नफ़रत हो चुकी थी और उसने निकाह करने से मना कर दिया और वो बोली.....
मैं इस क़ाबिल नहीं रही कि किसी श़रीफ़ इन्सान की जिन्दगी में रौशनी भर सकूँ,सच कहूँ तो मुझे किसी मर्द पर अब भरोसा नहीं रह गया है,मेरा जिस्म और मन दोनों बेदर्दी से कुचले जा चुके हैं,मेरे जज्बातों की नदी बिल्कुल से सूख चुकी है,अगर मैने तुमसे निकाह कर भी लिया तो ताउम्र मैं तुमसे मौहब्बत नहीं कर पाऊँगी,मुझे माँफ कर दो,तुम जो सज़ा दोगें वो मुझे मंजूर होगी लेकिन निकाह़ नहीं कर सकती तुमसे,बहुत धोखा खाया है मैने,अब मुझमें और धोखा खाने की हिम्मत नहीं।।
कुशमा की बात सुनकर ख़ालिद़ बोला....
मुझे तुमसे कोई शिकवा नहीं,मेरी बहन ने मुझे ये फ़रमान सुनाया तो मैं तुम्हें नवाबसाहब से दूर करने के लिए यहाँ ले लाया,जब तक तुम्हारा मन करें तो तुम यहाँ रह सकती हो,तुम्हारी जरूरत का सामान मैं पहुँचा दूँगा और इतना कहकर ख़ालिद़ वहाँ से चला आया।।
अब कुशमा ने ख़ालिद़ के गोदाम में डेरा डाल लिया,ख़ालिद़ उसे जरूरत का सामान दे जाता और वापस अपने घर आ जाता,लेकिन एक दिन बेग़मों को ख़बर लग गई कि ख़ालिद़ ने कुशमा को मरवाया नहीं हैं,गोदाम में पनाह दे दी है वो इस बात से ख़ालिद़ से बहुत ही ख़फ़ा हो गईं और फिर उन्होंने कुछ लोगों को रूपए देकर कुशमा को गोदाम से उठवा लिया और फिर उन लोगों ने कुशमा को गुलनार के कोठे पर बेंच दिया।।
गुलनार ने जैसे ही कुशमा की खूबसूरती देखी तो एक पल को ख़ामोश सी हो गई और उससे बोली...
ये केशर सा निखरा रंग,ये कजरारी आँखें,ये भरापूरा बदन,पतली कमर,काले घने लम्बें बाल,आपके आने से तो हमारे कोठे में चार चाँद लग गए,आज से आपका नाम केशर होगा,हम आपको नृत्य और गायन की तालीम दिलवाऐगें,फिर देखना आप सा आस-पास कोठों में मुजरा करने वाला कोई ना होगा,दौलत और शौहरत आपके कदम चूमेगीं।।
बदनाम होकर जो दौलत और शौहरत मिलें वो मेरे किस काम की?कुशमा बोली।।
उदास ना हो मेरी बच्ची!इस बेदर्द दुनिया ने ही आपको ये नजराना बख्शा है,इसे या तो खुशी से कुबूल किजिए या फिर रोकर ,लेकिन आपके लिए दुनिया का नजरिया बदलने वाला नहीं,आप इस दुनिया की मर्दजात के लिए एक खिलौना थी और हमेशा रहेगीं,गुलनार बोली।।
ये तो बिल्कुल सच है,कुशमा बोली।।
यही तो हम भी आपको समझाने की कोश़िश कर रहे हैं कि दुनिया आपको इसी गर्त में हमेशा ढ़केलेगी इससे अच्छा है कि आप खुदबखुद इस गर्त को अपना लें,गुलनार बोली।।
शायद आप सही कह रहीं हैं,कुशमा बोली।।
हम इस दौर से ग़ुजर चुके हैं इसलिए आपके दिल का हाल बखूबी समझ सकते हैं,दौलत के ज़ोर पर अमीर लोग हमेशा जियादती करते आएं हैं हम औरतों पर,
बेटी! इस समाज पर हमेशा से मर्दो की हूकूमत चलती चली आई है,उनके बनाएं कायदे-कानून पर हम औरतों को चलना पड़ता है,कहाँ तक बचेगी औरतें?क्योकिं हम औरतों के अन्दर मर्दजात का सामना करने की हिम्मत नहीं है और वो इसलिए कि हम औरतें ही औरतों की दुश्मन होतीं हैं,
अगर किसी औरत के खिलाफ कुछ भी गलत होता है तो दूसरी औरत कभी भी आव़ाज़ नहीं उठाती,इसलिए हम औरतें आज तक इन मर्दो के पैर की जूतियाँ बनी हुईं हैं।।
और फिर ऐसे ही दोनों के बीच बातें चलतीं रहीं....
और फिर उस दिन के बाद मैं कुशमा इस कोठे की मशहूर तवायफ़ केशरबाई बन गई,केशर ने शकीला से कहा....
तो ये थी तेरी कहानी,कितनी दर्द भरी थी,मुझे तो मेरे आशिक ने इस कोठे पर लाकर बेच दिया था लेकिन तुझे तो ....याह...अल्लाह,क्या बोलूँ? शकीला बोली।।
कुछ मत बोल,मेरे लिए अच्छा सा खाना परोसकर रख तब तक मैं नहा कर आती हूँ और इतना कहकर केशर नहाने चली गई.....
और शकीला उसे जाते हुए देखती रही,केशर के लिए उसकी आँखों से दो बूँद आँसू भी टपक गए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....




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