सिर्फ सच कहना बचा था, कह दिया, भूलना मत इसे Priya pandey द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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सिर्फ सच कहना बचा था, कह दिया, भूलना मत इसे

हम सब सच को श्रेष्ठ मानते हैं, सच से बड़ा मूल्य जीवन में शायद कुछ भी नहीं सच से अच्छा दोस्त कोई नहीं... लेकिन जब यही सच आपके खिलाफ हो तो इससे बड़ा शत्रु भी कोई नहीं, असल में इंसान के लिए सच वहीं होता है जब वह आपके पक्ष में आपके लिए बोला गया हो...

क्या कभी किसी ने सोचा है कि तब क्या होता होगा जब सच आपके खिलाफ बोला जाए? तब कैसा महसूस होता होगा?

...जब सच आपके खिलाफ हो तो वो आपको असहनीय पीड़ा देकर जाता है, उससे जुड़ी यादें आपको बिना पीए लंबे समय तक नशे में रखती है, ऐसा नशा की आप इससे बाहर आना चाहते हैं, यकीन मानिए इसका सुरूर एक पल का चैन नसीब नहीं होने देता, बार - बार वो सच आपके कानों में गूंजता रहता है मानों वो आपको इस खुमार से निकलने ही नहीं देना चाहता, ये नशा, ये खुमार महीनों आपके साथ होता है कई बार ताउम्र, उम्र के साथ साथ इस नशे की लत किसी और लत से ज्यादा खतरनाक हो जाती है, आप भीतर ही भीतर मारने लगते हैं, मरते जाते हैं, और एक लंबे इंतजार के बाद आपके मरे हुए मन का तन भी मर जाता है, शायद तन को पहले नष्ट हो जाना चाहिए था, तन पहले नष्ट हो जाता तो मन के जीवित रहने की क्षमता थोड़ी बची रहती, शायद तन पहले मरता तो मन को ये यकीन दिला पाना आसान होता कि सच सुनना इतना भी कठिन नहीं है... लेकिन इस स्थिति में तो मन पहले मर चुका है, बिना मन के तन का क्या मोल होगा मुझे नहीं पता...

- सच ही तो कहा इसमें इतना क्या बुरा मानना है, सच को स्वीकार करना सबसे आसान होता है

वाकई? उस सच को स्वीकार करना भी जिसमें आप निर्दोष होने के बावजूद सबसे बड़ी सजा काट रहे हों? बिलकुल नहीं, असल मे सच स्वीकार कर पाना सबसे कठिन काम है.. इस जटिलता को इतने सरलता के साथ बार बार सिर्फ इसलिए कहा गया है कि लोग इसी भ्रम में जीये की ये सबसे सरल है, असल में ये एक जहर है जो आपकी हर सांस के साथ आपके शरीर में एक छोटे महीन कण की तरह अंदर जाता है, तब तक जब तक आपका मन पूरी तरह से न मर जाए, मन के मरने के बाद भी ये अक्सर सिर्फ ये देखने ज्यादा है कि कहीं मन की सांस तो नहीं चल रहीं ? कहीं मन जिंदा तो नहीं? ये रोज अपनी जांच पुख्ता करता है कि मन मर चुका है..

- सिर्फ सच कहना बचा था, कह दिया, भूलना मत इसे

भुलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, अब ये जीवन का हिस्सा है, जितना जरूरी जीवन मे सांस लेना है उतना या शायद उससे कहीं ज्यादा इस सच को याद रखना इसे भूल जाना सूर्योदय की अनिवार्यता को अस्वीकार करने से भी ज्यादा बड़ी भूल होगी, इस भूल के लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं हूं, किसी को मृत्यु जितनी पीड़ा देने के लिए बोला गया सच किसी झूठ से भी बड़ा पाप है, भूलना अब संभव भी नहीं