श्रापित Priya pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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श्रापित

सब कुछ पहले की तरह है, लेकिन अब कोमल में शायद पहले जैसी कोमलता नहीं रही। हर छोटी बातों पर खिलखिला कर हंस देने वाली कोमल कब चिढ़ जाएगी। इसका आकलन कोई कर सका.. सच तो यह है जिसे अपने अल्हड़पन से मोहब्बत थी उसे अब जीवन का कोई रंग आर्कषित नहीं कर रहा... एक समय में जब मैं कोमल को देखती थी तो लगता था की जीवन इतनी ही निश्रिंतता के साथ हमें जीना चाहिए। लेकिन अब हर कोई उसके माथे में बनी चिंताओं की लकीरे साफ-साफ देख लेता है। बिना प्रेम में रहे कम उम्र में प्रेम को लेकर उसकी बातें सुनकर मुझे यही लगता था कि मैं प्रेम को जान ही नहीं पाई। हर नियमों को दरकिनार करने वाली कोमल खुद अब क्यों खुद को इतना बांधे हुए रखती है?

कई बार मैंने सोचा इस बारे में कोमल से बात किया जाए लेकिन कभी हिम्मत नहीं जुटा पाई। आज से लगभग साल भर पहले जब भी उसकी ओर देखती तो उसके चेहरे में एक चौड़ी मुस्कान हुआ करती थी । वही उसकी खूबसूरती थी। कई बार तो ऐसा मैंने पूछा भी था तुम्हें हंसने के दौरे आते है क्या? उसने जवाब दिया था, यह मुस्कान तो मेरे दिल से निकलती है । क्या तुम्हे लगन होती है क्या? वह अपनी तारीफ में हर किसी को कह दिया करती थी लेकिन यह सच है उसकी सुंदर मुस्कान में किसी दुख के आंसू को हंसी में बदलने की ताकत रहती थी। अक्सर वह कहती है, यह ताकत भगवान का दिया हुआ तोहफा है। मुझे कई बार इस तोहफे से जलन भी हुई है, लेकिन इसमें खुशी की मात्रा अधिक है।

मैं जब कभी परेशान होती तो उसके ऑफिस आने की राह देखा करती थी, वो आते ही गार्ड भइया को आवाज लगती दादा.., दादा भी एक आवाज में जाहिर हो जाते मानों उन्हे इस आवाज को सुनने का इंतजार था। हर बार के तरह पैकेट का चूड़ा उसकी हथेली भरते हुए कहते तुम्हारा हाथ भी तुम्हारी तरह छोटा है। ऑफिस बॉय से लेकर हर स्टाफ जब भी उससे बात करता तो चेहरे पर एक मुस्कान जरुर होती। उसे देखकर लगता कि सकारात्मकता का इससे बढ़िया उदाहरण शायद कुछ हो ही नहीं सकता। जब कभी मैं उदास होती तो वो कहती मौसम और एसी की तरह आप भी चिल करो, बाकी सब मैं देख लुंगी। किसी की मदद के लिए तो आधी रात को भी तैयार रहती। कई बार इस वजह से खुद परेशानी में फंस जाया करती थी, मैं कहती भी कि मना क्यों नहीं करती हो तुम लोगों को ?

वो कहती 'कोई जब किसी से कुछ कहता है तो एक आस के साथ-साथ बड़ी हिम्मत और इस उम्मीद के साथ कहता है कि शायद यहां से मदद हो जाए, मुझमें किसी की उम्मीद तोड़ पाने की हिम्मत नहीं है दी, और भगवान ने इस लायक बनाया है कि किसी की मदद कर सकूं तो मैं पीछे भी नहीं हटूंगी..

मैंने कहा - सब कहते हैं कि तुम कोमल नहीं कठोर हो, लेकिन तुम्हारे करीबी और मैं जानती हूं कि तुम बिल्कुल अपने नाम की तरह ही हो, छवि ऐसी क्यों बना रखी है तुमने ये मेरे समझ के बाहर है..

- मैंने कोई छवि नहीं बनाई। लोगों को लगता है मुझे देखकर कि मैं कठोर हूं, बस मैं उनकी गलतफहमी दूर करने की कोशिश नहीं करती... और अब वो हफ्तों मेरे बगल में बैठकर भी मुझसे बात नहीं करती..

मुझे याद है साल के शुरुआत में उसकी खुशी में चार चांद लगे थे, एक दिन जब हम कैंटीन में थे तो मैंने उससे पूछ ही लिया 'क्या बात है इन दिनों बहुत खिली खिली रहती हो, अब तुम्हारी मुस्कान में कुछ और भी घुल गया है, प्यार में हो क्या?

कोमल - प्यार? वो तो नहीं पता, लेकिन कोई है दी जो इस जीवन का ठहराव लगता है मुझे... जो मैं दिन भर भागती फिरती हूं न वो शाम का बसेरा लगता है मुझे, जहां मुझपर ये बोझ नहीं है कि मैं खुद को मजबूत ही साबित करूं, आपको पता है मेरा जब मन करता है मैं खुलकर रो लेती हूं उसके सामने, वो मुझे उन हैरान करने वाली निगाहों से नहीं देखता कि 'ये कैसे रो सकती है?' उसकी ये बात उसे सबसे खास बनाती है, मैं न दी हमेशा से एक ऐसा ही कंधा चाहती थी जहां मैं जो हूँ वो रहने का बोझ न हो मुझपर, मैं खुलकर हंस भी सकूं और खुलकर रो भी... मैं जिनती बेझिझक उसके साथ समझदारी वाली बातें करती हूं उतना ही खुलकर लोगों को गाली भी दे देती हूं..

मैं- तो ये प्यार नहीं है ?

कोमल - प्यार बड़ी बात है, इतना सब समझ पाने के लिए मेरा दिमाग थोड़ा कम है... लेकिन मुझे लगता है कि ये न लोगों की जो थोड़ी बहुत दुआ है वो मुझे इस इंसान के रूप में मिल गया है...

कुछ महीनों तक वो बेहद खुश रहती, अब जो हर वक्त गुस्सा उसकी नाक पर रहता था वो पूरी तरह गायब हो गया, बीते कुछ महीनों से वो पूरी तरह बदल गई है, अब कोमल में जो बदलाव आ रहे थे वो बेहद अजीब थे, गार्ड भइया आगे से आवाज देते तो हल्की मुस्कान देकर आ जाती, ऑफिस के स्टाफ में से कई लोगों से उसने बात करना बंद कर दिया है, मुझे देखकर छोटी स्माइल पास कर देती है, कोई कुछ भी कहे जवाब ही नहीं देती, जब भी मैं उसकी तरफ देखती हूं या तो आंखें चुरा लेती है या आंसू पोछ लेती है..

उस दिन कैंटीन में जब मैंने पूछा क्या हुआ तुम्हारे दुआओं का ? कैसा है वो? तो नम आंखों के साथ एक छोटी मुस्कान लिए कहने लगी - दुआएं बेसर निकली दी, वो दुआ मेरी नहीं थी, किसी और की थी कुछ दिन के लिए गलती से मेरी झोली में आ गई थी तो मुझे लगा मेरी है, लेकिन अब मैं श्रापित हो गई हूं, अब कोई दुआ रंग नहीं लाएगी...