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बूढी अम्मा

एक गाँव में एक बूढी अम्मा रहती थी। वह अकेली थी उसके आगे पीछे कोई नहीं था। क्योकि शादी के कुछ साल बाद ही उनके पति की मृत्यु हो जाने के बाद उनके कोई सन्तान नहीं थी

वह एक दम अकली रहती थी। सारा दिन वह टोकरियाँ बना कर जो पैसे मिलते थे उनसे वह गाँव के बच्चो के लिए खाने व खेलने के लिए समान खरीद लेती थी,जहाँ कहीं उसको बच्चे दिखाई देते थे वह उन सभी में बाट देती। गाँव के सभी बच्चे उस बुढ़ी अम्माँ को बहुत प्यार करते थे ,किसी दिन वह न दिखाई देती तो उस के घर तक पहुँच जाते ,गाँव के बच्चों ओर बुढ़ी अम्माँ का प्यार की चर्चा सारे गाँव में होती थी ,जहाँ कुछ अभिभावक बुढ़ी अम्माँ को मन से इज्ज़त करते थे वहीं कुछ उनको बुरा भी मानते थे ,परन्तु कहते है बच्चे भगवान का रूप होते है यह सच है ,जब अम्माँ बीमार हो जाती तो गाँव के सारे बच्चे उनकी सेवा करने लग जाते ,

माता पिता के लाख माना करने पर भी वह बच्चे नहीं मानते थे ,गाँव में एक रौनक थी वह बुढ़ी अम्माँ उनका कहने कोई नहीं था पर एक आवाज पर सारा गाँव इकक्ठा हो जाता था रिश्ता और सम्मान मिलता नहीं उसे कामया जाता है पर वह बुढ़ी अम्मा सभी की चिन्ता करती और मदद करती थी ,

एक बार गाँव में बहुत बड़ी महामारी फैलने लगी उसमे बहुत सारे लोग उस महामारी के शिकार हो गए ,सभी लोग एक दूसरे के पास जाने में डरने लगे। गाँव के लोग में महामारी को लेकर डर दिन प्रति दिन बढ़ने लगा धीरे धीरे यह महामारी बढ़ो से बच्चों में भी फैलने लगी ,पहले बढ़े लोगो की मौत और अब बच्चों की बारी ,बुढ़ी आमा से यह सब देखा न गया उसने गाँव के सभी लोगों को िक्क्ड़ किया और समझाया यदि हम सब ने मिल कर इसका सामना नहीं किया तो एक दिन हम सब इस महामारी के शिकार हो कर मर जाएंगे ,यह गाँव समसान बन जाए गा ,ामम के इस सोच पर सभी ने अम्माँ का साथ दिया और अम्माँ के साहस से व प्यार से अम्माँ ने उस मुश्किल घड़ी में सबको हिम्मत दी और जल्दी ही सभी लोगो ने उस महामारी पर विजय मिली

परन्तु इस महामारी में सबको बचाते बचाते बेचारी आमा गुजर गई ,इस बात से सारे गाँव में मातम सा झा गया ,सभी गाँव वाले व बच्चे बहुत रोए ,बुढ़ी आम्मा ने अपने प्यार से उस गाँव के लोगों को रिश्ते में बाधा और वह रिश्ता था प्यार का उन्होंने बताया की रिश्ते खून के ही नहीं होते है प्यार का रिश्ता सब से बड़ा रिश्ता होता है ,

उस बुढ़ी आम्मा को कोई संतान नहीं थी और नहीं उसके कोई रिश्तेदार था पर देखो आम्मा को अंतिम विदाई को आज पूरा गाँव था बच्चों से बड़ो तक ,उनका दा संस्कार में आज पूरा गांव रो रहा था ,

मानो जैसे उनका कोई छोड़ कर चला गया हो ,,


धन्यवाद

!!! रेखा कुमारी (चौहान) की कलम से !! !

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