कुर्सी Rekha k द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कुर्सी

बरामदे में एक पुरानी कुर्सी पर एक बुढ़ी अम्मा बैठती थी ,कुछ दिन बाद उस बुढ़ी अम्मा की मृत्यु हो जाती है। अब वह कुर्सी घर के कभी इस कोने में तो कभी उस कोने में रखी जाती है। मेरे लिए वह एक कुर्सी नही थी. उस कुर्सी पर बैठ कर अम्मा मुझे घंटों अपनी गोदी में बैठा कर लोरियाँ सुनाती थी. जो आज भी मुझे याद आती है।

एक दिन पापा के दफ़्तर से कुछ लोग घर पर खाने पर आने कहा वाले थे। माँ ने घर को बहुत सुन्दर सजाया था। माँ ने आज खाने में बहुत सारे पकवान बनाए थे। पापा बाजार से मिठाई लेकर आये थे. . माँ और पापा दोनो जल्दी से तैयार हो कर जैसे ही कमरे से बाहर आते है। तभी माँ की नज़र बरामदे में पड़ी उस पुरानी कुर्सी पर पडती है। और वह पापा से कहती है कि इस कुर्सी को उठा कर स्टोर रूम में जा कर रख दो।

पापा ने माँ के कहने पर वह कुर्सी उठा कर स्टोर रुम में रख दी।

कुछ दिनों बाद एक कबाड़ी वाला वह से आवाज़ लगाता हुआ जा रहा था , टूटा फुटा समान दे दो- टूटा फुटा समान दे दो।

माँ ने जैसे ही कबाड़ी वाले की आवाज़ सुनी। और उस कबाड़ी वाले को आवाज़ लगाई। ओ कबाड़ी वाले सुनो। .., वह माँ के बुलाने पर घर के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ और बोला बोलो मैडम क्या है आपके पास कुछ है ? माँ ने उस कबाडी वाले से कहा। अख़बार और ये कुछ पुरान पेपर, प्लास्टिक की बोतले है.. माँ को याद आया की स्टोर रूम में एक पुरानी कुर्सी पड़ी है क्या तुम उसे भी ले लोगे ? .

मैडम जी. आप दे दो। कबाड़ी वाला ने खुश हो कर बोला , वह कुर्सी, मै अपनी माँ को लेजा कर दूँगा , तो माँ बहुत खुश हो जाएगी ।