उनकी आखिरी मुलाकात Priya Maurya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

उनकी आखिरी मुलाकात

पता ही न चला कब वो मेरे दिल के इतना करीब आ गया। कॉलेज मे साथ पढते थे । थोड़ा गुस्सैल था पर दिल का बड़ा साफ था । अक्सर लड़ाई होती थी हमारे बीच। कॉलेज के अंतिम दिन मेरे गले लग बहुत रोया था । हमेशा बोलता था कभी छोड कर नही जायेगा। मै भी तो बहुत रोयी थी कॉलेज के आखिरी दिन। अजीब सी घबराहट थी मेरे मन मे की न जाने कब मिलेंगे।
कॉलेज खत्म होने के बाद वो दिल्ली चला गया और मै अपने शहर। मोबाइल पर बाते हो जाती थी कभी कभी। वो गुस्सैल नकचडा सा मुझसे फ़ोन पर भी लडता था। लेकिन हिम्मत करके फ़ोन पर ही अपने दिल की बात बोल दिया था मैने। मुझे क्या पता था इस बात पर वो अपना पेट पकड हंसने लगेगा। बहुत गुस्सा आया और मैने भी बोल दिया -" अब कभी फ़ोन मत करना मुझे और बात करने की कोशिश भी नही करना।"
मै फ़ोन काटने वाली ही थी कि दुसरी तरफ से उसकी आवाज आई जिसमे प्यार तो कितना था पता नही लेकिन रुकी सी आवाज जरुर थी । उसने बोला -" वैसे वाणी मै भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"
मै तो कुछ शर्माई सी सोचने लगी क्या बोलू अब। फिर धीरे से बोली -" उत्कर्ष एक बात बताओ ,,,, कब से करते हो मुझे प्यार।"
उसने अपनी बेफ़िक्री भारी आवाज मे बोला -" जिस दिन तुम नाले मे गिरी थी ना और तुम्हे देख सब डर गये ,,, बस उसी दिन मैने तुम्हे पहचान लिया की तुम्ही हो मेरी आने वाली जिन्दगी को नर्क बनाने के काबिल ।"
उसकी बात पर चिढ़ होने लगी थी भला ऐसे कौन बोलता है थोड़ी से तारीफ नही कर सकता क्या और मै जो अबतक संकुचाई सी बोल रही थी बिल्कुल पहले वाले अंदाज मे आ गयी । उसके ऊपर चिल्लाते हुये फ़ोन काट दिया।
वो थोड़ा अकडू जरुर था लेकिन सच मे बहुत प्यार करता था मुझसे। जब एक दिन फ़ोन आया की उसका सिलेक्शन CDS मे हो गया है मै कितना खुश थी । मेरा अकडू आर्मी मे ऑफिसर बन गया था।
इतना ब्यस्त होने के बाद भी मुझसे लड़ना नही भूलता था कोई अगर उसे ऐसे लड़ते देखता तो विश्वास ही नही होता की यह उसके सर है।
मेरी खुशी का ठिकाना तो तब नही रहा जब उस दिन वो मेरे घर आया था और मम्मी पापा से बात कर रहा था। मैने चकित थी की यह क्या कर रहा है यहां । उसने बातो बातों मे ही मेरे और अपने बारे मे सब बता दिया।
मेरे मम्मी पापा थोड़ा संजीदा हो गए। बहुत डर लग रहा था की पापा मानेंगे की नही क्योकि मै तो छोटी जाति से थी और वो ब्राम्हण । अरे हमारे भारतीय समाज मे यह सब बहुत चलता है ना। लेकिन पापा भी थोड़े इस जमाने के सोच रखने वाले थे मान गये।
उसने अपने मम्मी पापा को भी मना लिया था। और एक दिन ऐसा आया की मै अपने उस कडुस अकडू की पत्नी बनी लाल जोड़े मे मंडक मे उसके साथ थी।
जब उसने मेरे माँग मे सिन्दूर भरा था कितना अजीब अहसास था मै लफ्जो मे बया नही कर सकती।
जब रात को मै बैड पर बैठी थी और उसने धीरे से कमरे के अंदर आकर दरवाजा बंद किया ना धडकनें रुक सी गयी थी।
उस दिन उसने सबसे पहले मेरा जब घुघट उठाया तो मै शर्मा गयी थी और वो हंसने लगा और मै और शर्मा गयी।
उसने बोला था -" वाणी तुम ना ऐसे बिल्कुल ही बदसूरत लगती हो पहले की तरह लड़ती नही ना तो अच्छा ही नही लगता ।"
उसकी बाते सुन मैने भी एक मुक्का पीठ पर जड़ दिया -" अब अच्छा लगा।"
वो दर्द से कराहते हुये -" मारने को कहां बोला था।"
वो रात मेरी जिन्दगी की सबसे खुबसूरत रात थी मेरा अकडू मेरा था सिर्फ और मै उसकी ।
ड्यूटी पर जाने का वक्त आया तो मै गले लग रात भर रोयी थी और सुबह वो ड्यूटी पर चला गया क्योकि कोई इमरजेंसी आ गयी थी।
पता भी न चला की क्या हुआ दो तीन दिन बीत गये । एक सुबह घर मे सासु माँ ,ससुर जी, सब एकदम खामोश बैठे थे । मैने पुछा क्या हुआ किसी ने कुछ नही बताया । आखिरकार सासु माँ ने मुह खोला लेकिन ससुर जी को देख चुप हो गयी लेकिन उनके आँखो से गंगा यमुना बह निकली । मुझे समझ नही आया की वो रो क्यू रही हैं ससुर जी भी रोने लगे थे । वो रोते हुये मेरे सिर पर हाथ फेरने लगे जैसे मेरे पापा फेरते थे हमेशा।
घर के बाहर इतनी भीड थी समझ नही आया क्या हुआ।
सासु माँ ने मुझे पीछे के रास्ते मेरी पडोसी के घर भेज दिया फिर भी कुछ समझ नही आया।
अचानक हल्ला गुल्ला होने लगा गाडिय़ों की आवाज सुनायी देने लगी।
तभी किसी के मुँह से मैने कुछ ऐसा सुना की दिल धक सा रह गया। मुझे कुछ समझ नही आया बस दौड़ते हुये उस पडोसी के घर से निकली और दौड़ते हुये अपने घर के सामने जा रुकी। भीड को चिरते हुये जितना आगे जाती दिल बैठता जाता फिर मैने वो देखा जिसका डर था। तिरंगा मे लिपटा मेरा अकडू।
क्या वो मुझे छोड जा चुका था ? क्या यह हमारी आखिरी मुलाकात थी?
मै धम से वही गिर पड़ी । आँखो मे आँसू थे निकलना चाहते थे लेकिन न जाने क्यू निकल नही पा रहे थे। मै चिल्लाना चाहती थी रोना चाहती थी मै अपने अकडू के पीठ पर दौड कर उछ्लते हुये चढ जाना चाहती थी जो मै अक्सर कॉलेज मे किया करती थी। उसे उसके सामने अकडू कडुस बुलाना चाहती थी।
बहुत कुछ कहना चाहती थी बोलना चाहती थी कि उसने बोला था मुझे नही छोड जायेगा कभी फिर क्यूं चला गया हमेशा के लिये ? मुझे अकेला छोड गया ,,, मुझसे वो लड़ क्यू नही रहा था ,,, चलो माना कभी तारीफ नही करता था लेकिन प्यार तो बहुत करता था ना ,,, एक बार बस उसके मुह से मै वाणी सुनाना चाहती थी ,,,,,, बस एक बार ,, बस एक बार ,,,,,,,,।

समाप्त: