- हो गई सैर? मैंने कुछ व्यंग्य से कहा।
वे बोलीं- बताया न आपको, दवा लेने गई थी।
मैंने कुछ तल्खी से कहा- हां, फ़िर बताया नहीं आपने, कि आपको बेटों को क्या तकलीफ़ है, जिनके कारण आप यहां परदेस में भी चिंतित हैं?
उन्होंने चौंक कर मेरी ओर देखा। शायद मेरे स्वर की रुखाई उन्हें भायी नहीं।
वो भी कुछ सनक गईं। तुनक कर बोलीं- क्या करेंगे पूछ कर? आप कोई जादूगर तो हैं नहीं, जो मेरी तकलीफ़ दूर कर देंगे। मैं तो अकेली बैठी थी, आप आए, आपने जिज्ञासा और हमदर्दी जताई तो मैं आपसे खुल कर बोलने लगी। मैंने सोचा हम एक देश के हैं तो आपस में एक दूसरे की बात समझेंगे। मैं आपको कोई डॉक्टर समझ कर अपना रोग दिखाने तो नहीं आई!
- ओह। शायद आप नाराज़ हो गईं। माफ़ी चाहता हूं। कह कर मैं उठ लिया।
वे भी तिरस्कार से मेरी ओर हाथ जोड़ती हुई मुंह घुमा कर बैठ गईं।
मैं कुछ अपमानित सा महसूस कर रहा था। पर क्या करता, ग़लती तो मेरी ही थी। मैं अपने जज़्बात पर काबू नहीं रख सका। उस मलेशियन लड़के से उनकी असलियत जान कर मेरे मन से उनके प्रति जो आदर था, वो अचानक बह गया।
भला ये कोई बात है। दो युवा बच्चों की मां इतनी छलिया कैसे हो सकती है? एक तरफ़ तो अपने देश में अपनी प्रजा के लिए राजनीति में आने की ख्वाहिश रखना, अपने संपन्न पति की पैतृक मिल्कियत का भरपूर फ़ायदा उठाना, अपने बच्चों की शुभचिंतक बन कर उनकी ज़िन्दगी संवारने के नाम पर उनकी हर बात में दखल देना, और दूसरी तरफ़ यहां परदेस में अकेले आकर पराए मर्द के साथ इस तरह गुलछर्रे उड़ाना!
ये सब इन्हें शोभा देता है? मैं तो कुछ जान ही नहीं पाता अगर वो मलेशियन लड़का मुझे नहीं बताता। यहां हनीमून कक्ष किराए से लेकर पड़े रहना, रोज़ रात को किसी मर्द का उनके पास आना, उनके साथ सोना... छी -छी -छी... देखो तो वो मलेशियन लड़का किस तरह शरमा- शरमा कर सब बता रहा था। लाज से उस नवयुवक के गाल लाल हो गए थे। आखिर उसे भी तो ये सब देख सोच कर कुछ- कुछ होता होगा। इसीलिए मेरे पूछते ही उसने सब कुछ उगल दिया।
इन्हें देखो, साड़ी पहन कर सिर पर पल्ला लेकर किसी संन्यासिनी की भांति यहां बैठी हैं। इंतजार कर रही हैं रात का! दिन में कुछ और, रात में कुछ और!
दिन की यूनिफॉर्म है ये साड़ी तो... रात में तो...!
चलो, मेरा मिशन सफ़ल हुआ। मेरे पास अभी दो दिन का समय है। शानदार कवर स्टोरी बनेगी। मैं अब पूरी तहकीकात करता हूं और सारी हकीक़त लेकर इस कपट पूर्ण छद्म पर एक पर्दाफ़ाश कहानी बनाता हूं।
हूं, देश की बदनामी होगी, ऐसा सोच कर क्या मैं ऐसी ज़लील हरकत की अनदेखी कर दूं? हरगिज़ नहीं।
ज़्यादा से ज़्यादा ये करूंगा कि इनके देश का नाम नहीं लिखूंगा, नहीं छपेगा, मेरे देश का नाम। आख़िर देश की गैरत मेरी भी तो हैरत हुई।
नहीं! लेकिन तब बात नहीं बनेगी। इस कहानी का तो सारा मज़ा ही तब है जब नायिका भारतीय हो। पश्चिमी देशों में तो इसका कोई मतलब ही नहीं। नाम तो मुझे लिखना ही होगा।
मैं उत्तेजना से भर गया। अच्छा मसाला लगा था मेरे हाथ। अच्छा ही हुआ जो मैं आज घूमने नहीं गया। वरना मुझे कैसे पता चलता कि मेरी नाक के नीचे ही क्या गुल खिलाया जा रहा है।
शाम होने में अभी देर थी। मैं कमरे में आया। मैंने बैग से अपनी खास डायरी निकाल कर मेज पर रख ली जिसमें मुझे नोट्स लेने थे। लैपटॉप तैयार था ही। काम करने का मज़ा ही तब आता है जब कुछ चटपटा मसाला हाथ लगे।
चाहे इन दो दिनों में सारी रात जागना ही पड़े।