रस तो दोनों में अनार का ही था मगर एक ग्लास थोड़ा डार्क और दूसरा बिल्कुल ब्राइट रेड। मलेशियन लड़के ने गिलास रखे ही इस तरह थे कि हमने अपने- अपने सामने वाला गिलास उठा लिया।
हंसमुख मलेशियन लड़का उसी तरह उजली मुस्कान फेंकता वापस लौट गया।
मैडम ने एक सिप लेने के बाद अपने आप ही मुझे स्पष्टीकरण दिया कि दोनों गिलासों के रंग में फ़र्क क्यों है।
उनके जूस में एक दवा मिली हुई थी। ये दवा भी क्या, जामुन की गुठलियों का चूर्ण था जिसे वो हमेशा अपने साथ रखती थीं। वेटर जानता था क्योंकि वो पहले भी उससे कई बार इसे अपनी खाने- पीने की चीज़ों में मिलवा चुकी थीं और इसकी एक छोटी शीशी उन्होंने होटल के सर्विंग सेक्शन में रखवा ही छोड़ी थी।
मैडम ने अपनी बात उसी तरह जारी रखी। वो बताने लगीं- मेरे पति के दादा ने अपनी बहुत सारी ज़मीन दान कर दी थी।
- आपके पति के दादा क्या करते थे? मैंने पूछा।
- कुछ नहीं! आपको तो पता है न, हम लोग रॉयल फ़ैमिली से हैं। राज तो रहे नहीं, सरकार ने छीन लिए, पर आदतें किसी ने नहीं छीनीं। होश संभालते ही सबको ये समस्या आती थी कि क्या करें! कोई कुछ करने की सोचे भी तो उसे ये कह कर हतोत्साहित किया जाता था कि तुम ये करोगे? राजा होकर काम करोगे? उस वक्त कोई किसी को ये पूछने वाला नहीं था कि अब राज रहे कहां? ... ख़ैर, मैं कहां भटक गई। तो मैं कह रही थी कि मेरा बेटा डांस सीखने चला गया। कुल चौदह साल की उम्र, इतनी कड़ी मेहनत, वहां कौन उसका ख़्याल रखता होगा, क्या खाता होगा! यही सब सोचती हुई मैं यहां दुबली होती जाती थी। पति से कुछ पूछती तो वो मुझे ही डांटने लगते। कहते, वो वर्ल्ड फेम का स्कूल है, वहां के ट्रेनर तेरे जैसे नहीं हैं। लड़के को काबिल बना देंगे। अब क्या कहती! बैठ जाती चुपचाप।
मुझे लगता ठीक कहते हैं ये। सबको कुछ तो करना चाहिए। मैं भी कुछ करने के लिए तड़पने लगी। कभी कभी अपनी डायरी में कविता लिखती थी।
एक दिन एक इंटरनेशनल कवि सम्मेलन का एक इन्विटेशन देखा तो अपने काग़ज़ वहां डाल दिए। रोज़ पोस्टमैन का इंतजार करती कि कोई पैग़ाम लाएगा। तब वीसा - पासपोर्ट करूंगी।
- वाह! आपमें कोई कवयित्री छिपी थी, ग्रेट! फ़िर आया निमंत्रण? मैंने कहा।
- निमंत्रण तो नहीं आया, हां मेरे ससुर का फ़ोन ज़रूर आ गया। फ़ोन पर पहले मेरे पति को डांटने लगे, फ़िर मुझे भी फ़ोन पर बुलाया। बोले- बहू, तू कमाल करती है, पाकिस्तान में जाने का एप्लीकेशन डाल दिया? तू कुछ जानती भी है तू कितनी सुंदर है... तुझे कितनी खोज के बाद मैं अपने बेटे के लिए पसंद करके इस घर में लाया था.. जानती नहीं है क्या वहां के प्रेसीडेंट को? अपने हरम में डाल लेगा तुझे!
बाबा मैं तो डर गई। उस पोस्टमैन को देखो, मुझे तो कोई चिट्ठी लाकर दिया नहीं, सीधा जाकर मेरे ससुर को बोल दिया कि तुम्हारी बहू देश छोड़ कर जाती है... वो भी पाकिस्तान!
- फ़िर?
- मैं सुंदर तो बहुत थी, इसमें तो कोई शक नहीं, ससुर जी का गुस्सा अच्छा ही लगा... मेरा फोटो दूंगी आपको।
- फ़िर बेटे ने...
- हां, मैं आपको बता रही थी कि मुझे बेटे की बहुत चिंता रहती थी, मन भी नहीं लगता था। एक दिन बेटा छुट्टी में घर आया तो मैं उसे देख कर निहाल हो गई। क्या कद काठी निकाला था उसने। हे राम, मेरे बेटे को नज़र न लगे किसी की, यही सोचती। झकास! अब नहीं जाने दूंगी कहीं।
लेकिन एक बात थी।