ख़ाम रात - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ख़ाम रात - 7

मैडम बोलीं- मैं आपको सच- सच बताऊं, मुझे न जाने क्यों एक अनजाना डर सा लगने लगा। मैं देख रही थी कि दोनों भाइयों के बीच एक तिरस्कार की खाई बन रही है। मेरे दोनों लड़कों के बीच फासला आता जा रहा है। बड़ा छोटे के प्रति प्यार से नहीं बोलता था।
- छोटा उन्हें प्यार और सम्मान देता था? बड़े भाई को। मैंने पूछा।
- नहीं जानती। वो तो चला गया था न। वहां इतना व्यस्त रहता था कि मुझसे ज़्यादा बात नहीं करता था। जब एक- दो मिनट बात करता था तब ख़ुद बोल देता कि आप मत फ़ोन करना, मैं खुद करूंगा जब भी होगा। मुझे लगता कि वो तो मेरी भी मज़ाक करता है तो बड़ा ठीक ही कहता होगा।
- आपको ये कैसे लगा कि वो आपकी मज़ाक उड़ाता है? मैंने मैडम से ही पूछा।
वो बोलीं- अरे बाबा, वो फ़ोन करके अपने आप जल्दी जल्दी बोलने लगता- मैंने खाना खाया... नींद भी ले ली.. यही पूछना है न आपको। ओके? बस? रखूं फ़ोन! अब आप ही बोलो - अपनी मां से ऐसे बोलते हैं क्या? मैं तो मां हूं, ये पूछूंगी ही न, खाना खाया कि नहीं। इसमें गुस्सा कैसा। ...और कुछ पूछने का टाइम ही कहां देता था वो। और खाना तो सृष्टि का प्रथम नियम है। सब कुछ खाने के लिए ही तो हो रहा है। अगर पेट खाना न मांगे तो कोई कुछ करेगा ही नहीं।
मैं अब थोड़ा- थोड़ा ऊबने लगा था। मुझे लगता था कि वो अपनी कोई समस्या बताएंगी। लेकिन उनकी बातों से तो कहीं ये नहीं लगा कि उन्हें कोई समस्या होगी।
मैंने कुछ ज़ोर देकर कहा कि आप अपने बेटे को लेकर अपनी कोई परेशानी बताने वाली थीं, वो कहिए।
वो हैरान होकर इधर - उधर देखने लगीं। उन्होंने ऐसा चेहरा ऐसा बनाया मानो कह रही हों कि और क्या कर रही हूं।
मुझे अपनी रुखाई पर पश्चाताप हुआ। मैं फ़िर एक जागरूक श्रोता बन गया।
वो बोलीं- मैं कहती हूं सबको प्यार चाहिए। मैंने सोचा कि अगर मेरे बच्चे आपस में एक दूसरे को प्यार नहीं करते तो मैं उन्हें प्यार लाकर दूंगी। कहते हैं कि अगर किसी को प्यार न मिले तो वो दूसरी चीज़ों की तरफ़ भागता है जैसे कि पैसा, रुतबा, ओहदा, मान... ये सब। और मान अगर सम्मान के रूप में हो तब तो ठीक है पर अभिमान के रूप में हो तो जानलेवा है।
तो मैं अपने लड़के के लिए दुल्हन ढूंढने में जुट गई। लेकिन इसमें कम मुसीबत नहीं थी। अगर लड़की किसी रॉयल फ़ैमिली से न हो तो मेरे पति कहते - तू ही सोच, किसी से कैसे परिचय कराएंगे हम अपनी बहू का ? लोग बोलेंगे नहीं कि महल में हर जिस को ले आते हैं क्या? इतना लंबा- चौड़ा घर देख कर बौरा नहीं जाएगी? आते के दिन से ही ज़मीन का भाव लगाएगी और इस कोशिश में रहेगी कि जल्दी हिस्सा हाथ आए। आसान होता है क्या शान- शौकत से रहना।
मैं बोली- और कौन सी शान है लंबे चौड़े दरो- दीवार के अलावा? दो दिन हमारे कामगार न आएं तो सब पता चल जाए।
मेरे पति कहते- साल में एक ही बार सही, पर तीज त्यौहार पर हाथी पे बैठ कर तो निकलते हैं न हम? हाथी क्या फ्लैट में लाएगी? कुछ तो सोच।
मैं बोली- एक दिन न, एक दिन की शान के पीछे तीन सौ चौंसठ दिन की झाड़- पौंछ जो करनी पड़ती है वो?
वो कहते- तुझे करनी पड़ती है क्या? करेंगे वो, जो इसी के लिए पैदा हुए हैं।
अजी इतना गर्व अच्छा नहीं। जाने कब कौनसे दिन देखने पड़ें! मैं कहती।